Uttar Pradesh

Kanpur Nagar

cc/366/1995

gurbhej singh - Complainant(s)

Versus

zila udyog kendra - Opp.Party(s)

22 Jan 2015

ORDER

CONSUMER FORUM KANPUR NAGAR
TREASURY COMPOUND
 
Complaint Case No. cc/366/1995
 
1. gurbhej singh
KANPUR NAGAR
...........Complainant(s)
Versus
1. zila udyog kendra
govind nagar kanpur nagar
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. RN. SINGH PRESIDENT
 HON'BLE MR. PURUSHOTTAM SINGH MEMBER
 
For the Complainant:
For the Opp. Party:
ORDER

 


जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोश फोरम, कानपुर नगर।

   अध्यासीनः      डा0 आर0एन0 सिंह........................................अध्यक्ष    
    पुरूशोत्तम सिंह...............................................सदस्य
    

उपभोक्ता वाद संख्या-366/1995
1.    गुरूभेज सिंह 
2.    श्रीमती वरिन्दर सिंह कौर
निवासीगण मकान नं0-54/20 ब्लाक-6 गोविन्द नगर, कानपुर नगर।
                                  ................परिवादी
बनाम
महाप्रबन्धक, जिला उद्योग केन्द्र कानपुर देहात, डाक का पता- कार्यालय कालपी रोड, फजलगंज निकट चार खम्भा कुंआ, कानपुर नगर।
                             ...........विपक्षी
परिवाद दाखिल होने की तिथिः 22.04.1995
निर्णय की तिथिः 10.06.2016
डा0 आर0एन0 सिंह अध्यक्ष द्वारा उद्घोशितः-
ःःःनिर्णयःःः
1.      परिवादी की ओर से प्रस्तुत किये गये परिवाद पत्र एवं दिनांक 06.06.16 को प्रस्तुत की गयी लिखित बहस से स्पश्ट होता है कि परिवादी की ओर से प्रस्तुत परिवाद इस आषय से योजित किया गया है कि परिवादी के द्वारा भुगतान किये गये भूखण्ड के मूल्य की धनराषि लीज डीड को रजिस्टर्ड कराने में व्यय धनराषि, भवन निर्माण के नक्षा को अभियन्ता से बनवाने व अनुमोदन कराने में व्यय धनराषि, साझेदारी डीड को रजिस्टर कराने में व्यय धनराषि तथा कानपुर नगर महापालिका से अनापत्ति प्रमाण पत्र की कार्यवाही में व्यय धनराषि आदि पर व्यय कुल योग रू0 28,597.00 को भूखण्ड आवंटन की तिथि 02.11.82 से 18 प्रतिषत ब्याज के साथ प्रतिकर अनुतोश एवं वाद मूल्य/हर्जा को विपक्षी से दिलाया जाये।
2.     परिवाद पत्र के अनुसार संक्षेप में परिवादी का कथन यह है कि विपक्षी पक्ष ने नागरिकों से उद्योग/व्यवसाय लगाने के लिये नागरिकों को औद्योगिक स्थान रनियां कानपुर देहात में भूखण्डों को खरीदने का प्रस्ताव 
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किया और उद्योग स्थापना हेतु सभी मूल सुविधाओं को देने एवं दिलाने की घोशणा की। परिवादी द्वारा विपक्षी से 600 वर्गगज के भूखण्ड को देने का आवेदन किया गया तथा नियमानुसार रू0 500.00 प्रधान डाकघर में दिनांक 24.05.92 को जमा किया एवं खाता पंजिका सं0-91342 विपक्षी के कार्यालय में जमा किया गया। विपक्षी द्वारा अपने पत्र सं0-9299-307/ डी.आई.सी./(के)(1)ई. रनियाॅं-प्लाट/षेड दिनांक 02.11.82 के द्वारा परिवादी को 600 वर्गगज का भूखण्ड सं0-52 आवंटित किया गया। परिवादी द्वारा दिनांक 13.11.82 को रू0 1700.00 विपक्षी को अदा करके भूखण्ड आवेदन पत्र की षर्त का अनुपालन किया गया। आवंटन पत्र की षर्त सं0-2 के अनुसार परिवादी द्वारा रू0 2405.00 के स्टाम्प पेपर एवं वाटर मार्क पेपर खरीदकर विपक्षी को दिये गये। विपक्षी ने अपने पत्र सं0-26248/जि.उ.के.(का)/औ.आ./रनियां/83-84 दिनांकित 13.03.84 से लीज डीड पत्र के तैयार होने की सूचना परिवादी को दी। दिनांक 20.06.94 को परिवादी और विपक्षी द्वारा लीज डीड के पंजीयन हेतु सब- रजिस्टार अकबरपुर तहसील के समक्ष कागजातों पर हस्ताक्षर किये गये। तदोपरान्त परिवादी द्वारा यात्रा व्यय और विविध व्यय में रू0 749.00 खर्च किये गये। विपक्षी के प्रतिनिधियों द्वारा परिवादी को यह बताया गया कि पजेषन लेटर जारी होने के पष्चात उसके साथ ही लीज डीड की प्रतिलिपि परिवादी को दी जायेगी। परिवादी द्वारा पुनः दिनांक 20.06.82 को भूखण्ड के बनाये गये लीज डीड की प्रति और निर्माण कार्य हेतु अधिकार पत्र को देने हेतु आवेदन पत्र दिनांक 20.06.84 को दिया गया। परिवादी द्वारा भूखण्ड की कीमत अदा करने हेतु विपक्षी को रू0 1524.00 की दो अलग-अलग किस्तों का आवेदनपत्र के साथ दिनांक 09.01.87 एवं 05.10.88 को भुगतान किया गया और उद्योग स्थापना हेतु किये गये प्रयासों के विवरणों की जानकारी अपने पत्र दिनांकित 21.09.84 एवं 09.03.87 के द्वारा विपक्षी को दी गयी, जिस पर विपक्षी संतुश्ट रहे और कोई आपत्ति नहीं की गयी। तदोपरान्त विपक्षी ने अपने पत्र सं0-3714/       डी.आई.सी(के)प्रावि0/रजि0 दिनांक 29.06.82 के द्वारा उद्योग स्थापना हेतु 
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परिवादी के पक्ष से कानपुर नगर महापालिका के अनापत्ति प्रमाण पत्र की मांग की। इस अनापत्ति प्रमाण पत्र की कोई आवष्यकता नहीं थी। इस टिप्पणी को स्थानीय निकाय से प्राप्त करके विपक्षी के कार्यालय में प्रस्तुत करने में परिवादी को रू0 428.00 का विवध व्यय करना पड़ा और मानसिक कश्ट उठाना पड़ा। इसी प्रकार औ0आ0रनिया कानपुर में उद्योग लगाने वालों को षासन से 25 प्रतिषत सबसिडी (उत्पादन) की व्यवस्था थी। परिवादी के द्वारा दिये गये पत्र दिनांकित 15.03.85 व स्पश्टीकरण दिनांक 08.05.85 के बावजूद बिना कोई कारण बताये, परिवादी को सबसिडी की स्वीकृति विपक्षी ने नहीं दी। तत्संम्बधी सभी कागजात विपक्षी के कब्जे में है। दिनांक 31.10.84 को तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की स्तब्धकारी आकस्मिक व दुःखद मृत्यु से देष में कानूनी अव्यवस्था पैदा हो गयी। अराजक तत्वों से परिवादी को आर्थिक हानि हुई। परिवादी द्वारा पुलिस विभाग में दर्ज करायी गयी रिपोर्ट दिनांक 09.11.84 व प्रषासन के प्रमाण दिनांक 19.07.89 की रिपोर्ट संलग्न है। तदोपरान्त परिवादी पक्ष के साझेदार सतनाम सिंह अपनी अस्वस्था के कारण विपक्षी के समक्ष इस आषय का आवेदनपत्र मय षपथपत्र दिया कि मेरे सगे छोटे भाई की पत्नी श्रीमती वरिन्दर कौर के पक्ष में मेरी हिस्सेदारी कर दी जाये। जिस पर विपक्षी द्वारा साझेदारी परिवर्तित करने के लिए अपने पत्र दिनांकित 05.05.88 के द्वारा परिवादी को परिवर्तन कराने का षर्तनामा (डीड) एवं फम्र्स रजिस्ट्रार उ0प्र0 षासन का साझेदारी परिवर्तन प्रमाण पत्र प्रस्तुत करने का आदेष दिया। तदोपरान्त विपक्षी के उपरोक्त आदेष के अनुपालन हेतु परिवादी ने साझेदारी परिवर्तन के प्रमाण पत्र हेतु अधिनियम के अंतर्गत नियमानुसार आवेदन किया और पार्टरनषिप डीड को पंजीयन हेतु सब रजिस्ट्रार अकबरपुर तहसील के समक्ष कागजात आवेदन एवं षुल्क प्रस्तुत किया। इन कार्यालयों से प्राप्त प्रमाणों की छायाप्रतियां नियमानुसार विपक्षी के समक्ष अपने आवेदन पत्र दिनांकित 09.09.88 के साथ नत्थी करके दिनंाक 17.09.88 को प्रस्तुत किया गया। जिस पर विपक्षी ने कोई कार्यवाही नहीं की।  विपक्षी ने रजिस्टर्ड डाक से अपने 
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पत्रांक-280/जी.एम.(के)/डी आई सी/आई.ई. 52 दिनांक 04.05.90 से परिवादी को पंजीयन पार्टनरषिप डीड के दस दिन में देने का आदेष दिया। जिसका परिवादी ने दिनांक 16.05.90 को रजिस्टर्ड डाक से विपक्षी को आवेदन पत्र दिनांक 15.05.90 में बताया कि पत्रांक-1599 दिनांकित 22.08.89 अभी तक नहीं मिला है तथा सब रजिस्ट्रार अकबरपुर तहसील के यहां से पंजीयन डीड की कापी को दिनंाक 30.06.90 तक देने की बात कही गई और इस प्रकार अतिरिक्त समय की याचना की गयी। परिवादी द्वारा पंजीयन साझेदारी षर्तनामा दिनांक 30.06.90 को विपक्षी के यहां प्रस्तुत किया गया और दिनांक 04.08.90 को आवेदन पत्र के साथ चेक से रू0 1524.00 द्वारा पंजीकृत डाक, तीसरी किष्त के भुगतान के रूप में भेजा गया। किन्तु इसके पष्चात विपक्षी द्वारा रजिस्टर्ड डाक से अपने पत्रांक-1128/म0प्र0(के)/औ0आ0-52 दिनांक 17.08.90 से परिवादी को बताया गया कि पत्रांक-904(4) दिनांक 12.07.90 के द्वारा आपके पक्ष में आवंटित भूखण्ड का आवंटन पत्र निरस्त किया जा चुका है। वास्तविकता यह है कि परिवादी को उपरोक्त पत्र आज तक प्राप्त नहीं हुआ। जिसके कारण परिवादी को निरस्तीकरण के कारणों की जानकारी नहीं हैं परिवादी द्वारा दिनंाक 27.08.90 को तत्काल विपक्षी एवं उसके विभागाध्यक्ष को तथ्यों से अवगत कराया गया तथा साझेदारी परिवर्तन की लम्बित कार्यवाही के निस्तारण व जांच की प्रार्थना की गयी। जिसे प्राप्त होने के पुश्टि विपक्षी द्वारा की गयी, किन्तु जांच को अनदेखा और अनसुना कर दिया गया, जो कि विपक्षी के पत्र दिनंाकित 20.09.90 से स्पश्ट है। तदोपरान्त परिवादी द्वारा अल्पसंख्यक आयोग को उद्योग, निदेषक उत्तर प्रदेष षासन के यहां प्रतिवेदन प्रस्तुत करने पर अल्पसंख्यक आयोग द्वारा तत्कालीन जिलाधिकारी कानपुर देहात को आवष्यक कार्यवाही करके कार्यवाही से आयोग एवं परिवादी को अवगत कराने का आदेष दिया गया। जिस पर विपक्षी ने पत्रांक-1257/जि0उ0के(का)/कैम्प/षिकायत दिनांक 09.08.91 के द्वारा निरीक्षण एवं जांच के प्रकरण की सूचना प्रेशित की। परिवादी  द्वारा अपने प्रतिवेदन दिनांक 10.10.90 को अभिलेख सं0-उ0-14 प्रतिवेदन 
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दिनांक 24.05.91 को अभिलेख सं0-उ0-15 दिनांक 09.08.91 को अभिलेख सं0-उ0-16 को चिन्हित करके इस ज्ञापन के साथ संलग्न करता है। जांच कार्यवाही में सम्पूर्ण सहयोग के बावजूद विपक्षी द्वारा परिवादी से तथ्यों की जांच पर कोई पूछताछ नहीं की गयी और न ही तो कृत कार्यवाही से परिवादी को अवगत कराया गया। तदोपरान्त परिवादी के प्रयास करने से प्रष्नगत विशय विधानसभा में और अल्पसंख्यक आयोग में पुनः उठाया गया और उपरोक्त विभागों द्वारा पुनः जांच के निर्देष किये गये। किन्तु पुनः परिवादी को न तो किसी अधिकारी द्वारा सुना गया और न ही कृत कार्यवाही से अवगत कराया गया। फलस्वरूप परिवादी को प्रस्तुत परिवाद योजित करना पड़ा।    
3.    विपक्षी की ओर से जवाबदावा प्रस्तुत करके परिवादी की ओर से प्रस्तुत किये गये परिवाद पत्र में उल्लिखित कतिपय प्रस्तरों को स्वीकार किया गया है और कतिपय तथ्यों से इंकार करे हुए संक्षेप में यह कहा गया है कि औद्योगिक क्षेत्र रनियां कानपुर देहात के अंतर्गत आता है। विपक्षी द्वारा परिवाद पत्र के प्रस्तर-2, 3 व 4 में उल्लिखित तथ्यों को स्वीकार किया गया है और यह स्वीकार किया गया है कि भूखण्ड सं0-52 सतनाम को प्रचार-प्रसार व प्रकाषन के नाम से आवंटित किया गया था, किन्तु परिवादी द्वारा आवंटन पत्र की षर्तो का अनुपालन नहीं किया गया। भूखण्ड का लीज डीड दिनंाक 20.06.84 को सब रजिस्ट्रार अकबरपुर के यहां पंजीकृत कराया गया था। लीज डीड की मूल प्रति आवंटी को इसलिए उपलब्ध नहीं करायी जाती है क्योंकि भूखण्ड का मूल्य 15 वार्शिक किष्तों में जमा कराया जाता है तथा उद्योग स्थापना हेतु वित्तीय सहायता प्राप्त करने पर वित्तीय संस्था को भूखण्ड बंधक करने की अनुमति प्रदान की जाती है तथा लीज डीड निराधार है। पजेषन लेटर के सम्बन्ध में आवंटी द्वारा मात्र एक पत्र के माध्यम से पजेषन की मांग की गयी है, जबकि पजेषन भौती रनियां से प्राप्त करना चाहिए। वास्तव में आवंटी द्वारा कब्जा प्राप्त नहीं किया गया। आवंटी द्वारा रू0 1524.00 की धनराषि भूखण्ड के विरूद्ध जमा की गयी थी, किन्तु अन्य आवंटन एवं अनुबन्ध पत्र 
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की सभी षर्तो का अनुपालन नहीं किया गया है। परिवादी द्वारा उ0प्र0 सरकार की योजनाओं के अनुसार भूखण्ड एवं निर्धारित अवधि षर्तों के अनुसार उद्योग स्थापना हेतु कोई प्रयास नहीं किया गया। भूखण्ड पर उद्योग स्थापना हेतु आवंटी से पत्रों के माध्यम से अनेक बार अनुरोध किया गया, परन्तु इस हेतु परिवादी द्वारा कोई ठोस कदम नहीं उठाये गये। इकाइयों के प्रस्तावित पंजीकरण के मामलों में वास्तविक आवष्यकताओं की पूर्ति के सम्बन्ध में अभिलेख प्रस्तुत करने का अनुरोध किया गया। जहां तक सबसिडी का प्रष्न है, उद्योग की स्थापना होने पर ही सबसिडी देने का प्राविधान है। किन्तु परिवादी द्वारा लगातार 6 वर्शों तक उद्योग स्थापना में कोई रूचि नहीं ली गयी और न ही तो आवष्यक औपचारिकताओं की पूर्ति समय से की गयी। परिवादी साझेदारी में बार-बार परिवर्तन करता रहा। इसके अतिरिक्त श्री सतनाम सिंह बीमारी के कारण फर्म से अलग हो गये। श्री गरूभेज सिंह भारत सरकार के प्रतिश्ठान रक्षा मंत्रालय एच0ए0एल0 में सेवारत हैं। अतः रनियां में कार्य करने का इनके पास समय ही नहीं है, इसी कारण उद्योग स्थापना के लिए कोई प्रयास नहीं किये गये। भूखण्ड के पूर्व निरस्तीकरण की प्रति पंजीकृत डाक से भेजी गयी है। अतः आवंटी का यह कथन कि निरस्तीकरण की कापी प्राप्त नहीं हुई है-असत्य व निराधार है। अल्पसंख्यक आयोग के निर्देषानुसार महाप्रबन्धक जिला उद्योग केन्द्र कानपुर देहात द्वारा की गयी कार्यवाही को आयोग को उचित ठहराते हुए श्री गरूभेज सिंह को निर्णय की प्रति प्रेशित की गयी। विधानसभा सदस्य सतीष महाना के द्वारा श्री गरूभेज सिंह का प्रार्थनापत्र प्राप्त हुआ, जिस पर विभाग के मुख्यालय और इस कार्यालय के पत्रांक-2393 दिनंाक 06.11.92 के द्वारा मुख्यालय को सभी वस्तु-स्थिति से अवगत कराया गया। सभी कार्यवाहियों की सूचना परिवादी को समय से निरन्तर दी जाती रही है। परिवादी का यह कथन असत्य एवं निराधार है कि उसे जांच प्रपत्रों से अवगत नहीं कराया गया। ऐसा प्रतीत होता है कि परिवादी द्वारा भूखण्ड को लाभ कमाने/बेंचने के दृश्टिकोण से आवंटित कराया गया था।  जैसाकि भूमि की खरीद  बिक्री में प्रायः होता रहता है।     
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उक्त भूखण्ड सं0-52 के निरस्तीकरण के बाद मेसर्स माता रनियां आवंटी को आवंटित कर दिया गया था। क्योंकि श्री सतनाम सिंह और श्री गरूभेज सिंह दोनों ही बार-बार साझेदारी में परिवर्तन कराते रहे है। वास्तविक रूप में उनके पास उद्योग चलाने के लिए समय नहीं था। उपरोक्त कारणों से परिवाद खारिज किये जाने योग्य है। परिवादी कोई उपषम प्राप्त करने का अधिकारी नहीं है।
परिवादी की ओर से प्रस्तुत किये गये अभिलेखीय साक्ष्यः-
4.    परिवादी ने अपने कथन के समर्थन में गुरभेज सिंह कौर का षपथपत्र दिनांकित 23.11.96 व 09.01.98, 16.11.15 तथा अभिलेखीय साक्ष्य के रूप में सूची कागज के साथ संलग्न अभिलेख सं0-1 लगातय् 24 व अन्य अभिलेख (जो पत्रावली में संलग्न है) तथा लिखित बहस दाखिल किया है।
विपक्षी की ओर से प्रस्तुत किये गये अभिलेखीय साक्ष्यः-
5.    विपक्षी ने अपने कथन के समर्थन में मात्र अभिलेखीय साक्ष्य के रूप में कागज सं0-2/1 लगायत् 2/4 दाखिल किया है।
निष्कर्श
6.    फोरम द्वारा उभयपक्षों के विद्वान अधिवक्तागण की बहस सुनी गयी तथा पत्रावली में उपलब्ध साक्ष्यों एवं परिवादी द्वारा दाखिल लिखित बहस का सम्यक परिषीलन किया गया। 
    परिवादी को व्यक्तिगत रूप से सुनने तथा पत्रावली के परिषीलन से विदित होता है कि प्रस्तुत मामले में एक आदेष दिनांक 27.07.99 को तत्कालीन फोरम अध्यक्ष एवं सदस्यगण के द्वारा पारित करके परिवाद को फोरम द्वारा विचारण न बताते हुए परिवाद खारिज किया गया है। तदोपरान्त परिवादी द्वारा उक्त आदेष को मा0 राज्य आयोग के समक्ष आक्षेपित करते हुए अपील सं0-2286/99 योजित किया गया। मा0 राज्य आयोग द्वारा उपरोक्त अपील में दिनांक 27.03.14 को आदेष  पारित करते 
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हुए परिवाद रिमाण्ड किया गया और उभयपक्षों को सुनवाई का अवसर देते हुए परिवाद को गुण दोश के आधार पर निर्णीत करने का आदेष पारित किया गया। मा0 राज्य आयोग के उपरोक्त आदेष के आलोक में विपक्षीगण को पुनः नोटिस भेजे गये। विपक्षीगण की ओर से अधिवक्ता दिनंाक 16.05.15 एवं 23.05.15 को उपस्थित आये, किन्तु उसके पष्चात विपक्षीगण की ओर से कोई उपस्थित नहीं आया। अतः परिवाद में एकपक्षीय सुनवाई का आदेष पारित किया गया। पत्रावली में विपक्षीगण का जवाब दावा उपलब्ध है। अतः निर्णय में विपक्षीगण की ओर से प्रस्तुत जवाब दावा का उल्लेख आगे किया जायेगा।
    प्रस्तुत मामले में मुख्य विवाद का विशय यह है कि क्या परिवादी, विपक्षी से रू0 28,597.00 दिनंाक 02.11.82 से 18 प्रतिषत ब्याज सहित व अन्य प्रतिकर अनुतोश, वाद मूल्य/हर्जा विपक्षी से प्राप्त करने का अधिकारी है।
    परिवादी की ओर से लिखित बहस प्रस्तुत करके यह कहा गया है कि परिवादी को वर्श 1982 में 600 वर्गगज का भूखण्ड सं0-52 औद्योगिक क्षेत्र रनियां कानपुर देहात विपक्षी के आवंटन पत्र दिनंाक 02.11.82 से आवंटित किया गया था, किन्तु अन्यान्य प्रयासों के बावजूद उक्त भूखण्ड का अध्यासन परिवादी को नहीं दिया गया। परिवादी द्वारा उक्त भूखण्ड के सम्बन्ध में भूखण्ड की मूल धनराषि लीज डीड को रजिस्टर्ड कराने में व्यय धनराषि, भवन निर्माण के नक्षा को पास कराने में व्यय धनराषि, साझेदारी डीड को रजिस्टर्ड कराने में व्यय धनराषि तथा कानपुर नगर महापालिका से अनापत्ति प्रमाण पत्र की कार्यवाही में व्यय धनराषि कुल रू0 28,597.00 व्यय किये गये। किन्तु प्रष्नगत प्लाट का कब्जा नहीं दिया गया। अतः परिवादी द्वारा अब उपरोक्त रू0 28,597.00 मय 18 प्रतिषत वार्शिक ब्याज की दर से दिनांक 02.11.82 से तायूम वसूली मांग की गयी है। विपक्षी द्वारा आवंटन स्वीकार करते हुए यह तर्क किया गया है कि परिवादी द्वारा निर्धारित समय में कब्जा जानबूझकर नहीं लिया गया। क्योंकि परिवादी गुरूभेज  सिंह व अन्य  साझेदार सतनाम  सिंह के पास 
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उद्योग चलाने के लिए समय नहीं था। वे दोनों अलग-अलग सेवाओं में सेवारत थे। परिवादी द्वारा विपक्षी के उपरोक्त कथन का खण्डन नहीं किया गया है। परिवादी द्वारा विभिन्न विभागाध्यक्ष, अल्पसंख्यक आयोग एवं जनप्रतिनिधि/विधायक श्रीमान सतीष महाना को उक्त के सम्बन्ध में लिखे गये पत्र की प्रतियां तथा विभिन्न प्रपत्र साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किये गये हैं। किन्तु उक्त प्रपत्रों से यह सिद्ध नहीं होता है कि परिवादी आवंटन पत्र में उल्लिखित षर्तों के अनुसार अभिकथित प्लाट का कब्जा लेना चाहता था और उद्योग स्थापित करना चाहता था। स्वयं परिवादी द्वारा स्वीकार किया गया है कि उसके द्वारा साझेदारी में परिवर्तन किया जा रहा है और यह भी स्वीकार किया गया है कि कानपुर में ही 1984 के दंगे से भी वह प्रभावित रहा है। यद्यपि परिवादी द्वारा एक तर्क यह किया गया है कि उसे प्रष्नगत भूखण्ड निरस्तीकरण की सूचना नहीं दी गयी जबकि विपक्षीगण द्वारा पंजीकृत डाक से निरस्तीकरण की सूचना परिवादी को भेजने की बात कही गयी है। जिसका खण्डन परिवादी ने नहीं किया है।
    पत्रावली के परिषीलन से विदित होता है कि परिवादी द्वारा रू0 1529 एवं 1534.00 विपक्षी को अदा करने का साक्ष्य कागज सं0-6 छायाप्रति के रूप में प्रस्तुत किया गया है। अन्य कोई धनराषि विपक्षी के यहां जमा करने का प्रमाण प्रस्तुत नहीं किया गया है। विपक्षी द्वारा साझेदारी परिवर्तन के सम्बन्ध में व्यय धनराषि का भी उल्लेख किया गया है, किन्तु साझेदारी परिवर्तन करना या न करना यह परिवादी का अपना स्वतंत्र निर्णय था, जिसमें विपक्षी का कोई दोश नहीं है। विपक्षी द्वारा परिवादी से प्राप्त धनराषि के सम्बन्ध में कोई सारवान तथ्य अथवा सारवान साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किये गये हैं।
    उपरोक्त तथ्यों, परिस्थितियों के आलोक में फोरम इस मत का है कि परिवादी रू0 1529$1534=3063.00 मय 10 प्रतिषत वार्शिक ब्याज की दर से, प्रस्तुत परिवाद योजित करने की तिथि से तायूम वसूली की तिथि तक तथा रू0 10,000.00 परिवाद व्यय के लिए प्रस्तुत परिवाद स्वीकार किये जाने योग्य है।  जहां तक परिवादी की ओर से याचित अन्य उपषम 
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का सम्बन्ध है- उक्त याचित उपषम के लिए परिवादी द्वारा कोई सारवान तथ्य अथवा सारवान साक्ष्य प्रस्तुत न किये जाने के कारण परिवादी द्वारा याचित अन्य उपषम के लिए परिवाद स्वीकार किये जाने योग्य नहीं है।
    यद्यपि परिवादी द्वारा समय पर अध्यासन नहीं लिया गया, यह तथ्य सिद्ध होता है। किन्तु विपक्षी का भी यह उत्तरदायित्व  था कि यदि परिवादी का प्रष्नगत आवंटन निरस्त होता है और उसका प्लाट किसी अन्य को आवंटित किया जा चुका है, तो परिवादी द्वारा जमा धनराषि उसे वापस करना चाहिए था। क्येांकि विपक्षी द्वारा उक्त धनराषि जब्त करने का किसी प्राविधान का उल्लेख नहीं किया गया है। अतः परिवादी उपरोक्त प्रस्तर में उल्लिखित उपषम प्राप्त करने का अधिकारी है।
ःःःआदेषःःः
7.     परिवादी का प्रस्तुत परिवाद विपक्षी के विरूद्ध आंषिक रूप से इस आषय से स्वीकार किया जाता है कि प्रस्तुत निर्णय पारित करने के 30 दिन के अंदर विपक्षी, परिवादी को रू0 3063.00 मय 10 प्रतिषत वार्शिक ब्याज की दर से, प्रस्तुत परिवाद योजित करने की तिथि से तायूम वसूली अदा करें तथा रू0 10,000.00 परिवाद व्यय के रूप में भी अदा करें।


      (पुरूशोत्तम सिंह)                   (डा0 आर0एन0 सिंह)
          सदस्य                              अध्यक्ष
    जिला उपभोक्ता विवाद                     जिला उपभोक्ता विवाद
        प्रतितोश फोरम                            प्रतितोश फोरम
        कानपुर नगर।                             कानपुर नगर।

    आज यह निर्णय फोरम के खुले न्याय कक्ष में हस्ताक्षरित व दिनांकित होने के उपरान्त उद्घोशित किया गया।


      (पुरूशोत्तम सिंह)                   (डा0 आर0एन0 सिंह)
          सदस्य                              अध्यक्ष
    जिला उपभोक्ता विवाद                     जिला उपभोक्ता विवाद
        प्रतितोश फोरम                            प्रतितोश फोरम
        कानपुर नगर।                             कानपुर नगर।

 

 
 
[HON'BLE MR. RN. SINGH]
PRESIDENT
 
[HON'BLE MR. PURUSHOTTAM SINGH]
MEMBER

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