Uttar Pradesh

Bareilly-I

CC/225/2013

ABHILASHA SHARMA - Complainant(s)

Versus

YOGESH CHANDRA SAXENA - Opp.Party(s)

S.C. SINHA

18 Nov 2016

ORDER

DISTRICT CONSUMER FORUM-1
BAREILLY (UTTAR PRADESH)
 
Complaint Case No. CC/225/2013
 
1. ABHILASHA SHARMA
GALI NO. 5 KARAM CHARI NAGAR , SAINDPUR HAWKINS P.S IZZAT NAGAR , BAREILLY , U.P.
...........Complainant(s)
Versus
1. YOGESH CHANDRA SAXENA
BANKHANA P.S PREM NAGAR , BAREILLY , U.P.
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. Brijesh Chandra Saxena PRESIDENT
 HON'BLE MR. Mohd Qamar Ahmad MEMBER
 
For the Complainant:S.C. SINHA , Advocate
For the Opp. Party: P.K. SAXENA , Advocate
Dated : 18 Nov 2016
Final Order / Judgement

न्यायालय जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम-प्रथम, बरेली ।
परिवाद सं0 225/2013
              उपस्थित:- 1- बृजेश चन्द्र सक्सेना       अध्यक्ष
     2- मोहम्मद कमर अहमद     सदस्य

श्रीमती अभिलाषा शर्मा आयु लगभग 60 वर्ष पत्नी श्री गिरीश कुमार शर्मा, निवासी मकान नं0 230, गली नं0 05, कर्मचारी नगर, सैदपुर हाकिन्स, थाना इज्जतनगर, बरेली । 
                                               .............. परिवादिनी
                                बनाम 
1.    योगेश चन्द्र सक्सेना पुत्र श्री ओम प्रकाश सक्सेना द्वारा श्री अरविन्द कुमार जौहरी (जे.ई.) नहर विभाग, मकान नं0 54, नीम की मठिया, निकट सुर्खा नाला, बानखाना, थाना प्रेमनगर, बरेली । 
2.    विपिन कुमार सक्सेना पुत्र श्री हरि ओम प्रकाश सक्सेना, निवासी मकान नं0 11, चन्द्रशेखर आजाद नगर, बरेली, वर्तमान कार्यरत् वार्ड बाॅय, महाराणा प्रताप जिला अस्पताल, थाना कोतवाली, बरेली द्वारा हाॅस्पीटल अधीक्षक । 
3.    अनिल कुमार भटनागर पुत्र श्री ओम प्रकाश, मकान नं0 115/9, राजेन्द्र नगर, थाना प्रेमनगर, बरेली । कार्यरत् वार्डबाॅय मानसिक चिकित्सालय, सिविल लाइंस, बरेली । 
4.    स्टेट बैंक आॅफ इण्डिया (एस.ए.आर.बी.) द्वारा ए.जी.एम., कार्यालय प्रशासनिक भवन, 148 सिविल लाइंस, थाना कोतवाली, बरेली । 
5.    बैंक आॅफ बडौदा, नरकुलागंज शाखा द्वारा शाखा प्रबन्धक, थाना प्रेमनगर, बरेली । 
                                             ............... विपक्षीगण

निर्णय

      परिवादिनी श्रीमती अभिलाषा शर्मा की ओर से यह परिवाद विपक्षीगण योगेश चन्द्र सक्सेना व अन्य के विरूद्व इस आशय से योजित किया गया है कि विपक्षी नं0 1 लगायत 3 को आदेशित किया जाये कि वह संॅयुक्त या पृथक-पृथक रूप से परिवादिनी को अंकन 8,00,000/-रूपये का भुगतान मय ब्याज के दिनांक 31.03.12 से भुगतान किये जाने की तिथि तक करे । इसके अतिरिक्त विपक्षी नं0 1 को आदेशित किया जाये कि वह मानसिक क्षति के संदर्भ में अंकन 50,000/-रूपये का भुगतान करे और परिवादिनी के हक में अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी करते हुए मूल विक्रय पत्र दिनांकित 04.01.01 को उपलब्ध कराये । इसके अतिरिक्त विपक्षी नं0 5 को परिवादिनी के मकान संॅ0 230, गली नं0 5, कर्मचारी नगर और खसरा संॅ0 156, 157, 223, 229 एवं 231 के किसी भी भाग के संदर्भ में कोई भी विपरीत कार्यवाही करने से रोका जाये और विपक्षी नं0 4 को आदेशित किया जाये कि वह अंतिम रूप से समायोजन करने के उपरांत अंकन 6,10,041/-रूपये का भुगतान परिवादिनी को करे । इसके अलावा वाद व्यय के रूप में भी विपक्षीगण से अंकन 10,000/-रूपये का भुगतान दिलाया जाये । 
        संॅक्षेप में परिवादिनी का कथन है कि परिवादिनी के पति श्री गिरीश कुमार शर्मा को पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त होने के पश्चात् परिवादिनी को एक मकान की आवश्यता उत्पन्न हुई । विपक्षी नं0 1 योगेश चन्द्र सक्सेना द्वारा मकान नं0 320 गली नं0 5, कर्मचारी नगर, सैदपुर हाकिन्स, परगना व तहसील बरेली को विक्रय करने का प्रस्ताव देते हुए मकान से सम्बन्धित् विक्रय पत्र की फोटो प्रति परिवादिनी को उपलब्ध करायी । उक्त विक्रय पत्र के आधार पर जाॅंच करने पर परिवादिनी को यह जानकारी हुई कि विपक्षी नं0 1 योगेश चन्द्र सक्सेना द्वारा पूर्व में एक प्लाट 105 वर्गगज का क्रय किया गया था, जो खाता नं0 230 खसरा नं0 156 व 157, स्थित ग्राम सैदपुर हाकिन्स, जिला बरेली का अंश था । यह प्लाट राम बहादुर पुत्र जगन लाल एटार्नी से क्रय किया गया था, जिसका मूल स्वामी महेश कुमार पुत्र द्वारिका प्रसाद और श्रीमती रामबेटी पत्नी हीरा लाल थी । इसी प्लाट पर विपक्षी नं0 1 योगेश चन्द्र सक्सेना द्वारा मकान बनाये जाने का तथ्य परिवादिनी को बताया गया । परिवादिनी और उसके पति गिरीश कुमार शर्मा ने विपक्षी नं0 1 की बातों से संतुष्ट होकर सब रजिस्ट्राॅर कार्यालय में भी जाॅंच की गयी और उक्त मकान के संदर्भ में विपक्षी नं0 1 से अंकन 4,50,000/-रूपये  में विक्रय पत्र दिनांक 15.11.07 को पंजीकृत कराया गया। विपक्षी नं0 1 द्वारा उक्त मकान का कब्जा भी दे दिया गया और परिवादिनी अपने परिवार के साथ शांतिपूर्वक रहने लगी । परिवादिनी द्वारा अनेकों बार आग्रह किये जाने के उपरांत भी विपक्षी नं0 1 द्वारा पूर्व विक्रय पत्र दिनांकित 4.06.01 को उपलब्ध नहीं कराया गया और यह कहा गया कि वह गायब हो गया है । इसके उपरांत माह मार्च, 12 में विपक्षी नं0 4 स्टेट बैंक आॅफ इण्डिया द्वारा सरफेेसी एक्ट के अंतर्गत परिवादिनी को नोटिस भेजी गयी और अखबारों में भी उसका प्रकाशन कराया गया तथा प्रश्नगत मकान को खाली करने की धमकी दी गयी । यह नोटिस बकाया प्रश्नगत सम्पत्ति से सम्बन्धित् बकाया ऋण राशि के वसूलयाबी के संदर्भ में दिया गया । स्टेट बैंक, बरेली द्वारा यह ऋण विपक्षी नं0 1 व 2 को संॅयुक्त रूप से दिया गया था । परिवादिनी को यह जानकारी हुई कि विपक्षी नं0 1 व 2 द्वारा लिये गये ऋण के संदर्भ में दिनांक 01.03.11 तक अंकन 87,0041-रूपये बकाया हैं इस तथ्य की जानकारी होने पर परिवादिनी व उसके पति द्वारा विपक्षी नं0 4 से सम्पर्क स्थापित किया गया और उन्हें तब यह जानकारी प्राप्त हुई कि विपक्षी नं0 1 व 2 ने प्रश्नगत मकान का स्वामी दर्शित करते हुए सी0बी0 गंज शाखा से अंकन चार लाख रूपये का ऋण प्राप्त किये जाने की प्रार्थना की गयी और विपक्षी द्वारा विपक्षी नं0 1 व 2 को प्रश्नगत सम्पत्ति का स्वामी मानते हुए अंकन चार लाख रूपये के ऋण का भुगतान दिनांक 11.02.01 को कर दिया गया था । इस ऋण का भुगतान किये जाने हेतु विपक्षी नं0  1 लगायत 3 संयुक्त रूप से या पृथक-पृथक उत्तरदायी थे, परन्तु विपक्षी नं0 1 लगायत 3 द्वारा उक्त ऋण का भुगतान नहीं किया गया और वह ऋण भी दिनांक 01.03.11 तक अंकन 87,004.75 -रूपये  हो गया और इसी धनराशि की वसूलयाबी हेतु स्टेट बैंक द्वारा कार्यवाही प्रारम्भ कर दी गयी । परिवादिनी द्वारा बैंक से इस मामले के संदर्भ में समझौता किये जाने का प्रस्ताव किया और परिवादिनी को बैंक द्वारा अंकन 7,50,000/-रूपये का भुगतान किये जाने हेतु प्रस्तावित किया गया । परिवादिनी और उसके पति द्वारा अपनी चल सम्पत्ति, जेवर व किसी प्रकार से नकद धनराशि का प्रबन्ध किया गया । बैंक द्वारा मूल विक्रय पत्र जो योगेश चन्द्र सक्सेना के नाम में था वह परिवादिनी को उपलब्ध नहीं करा दिया गया और अनापत्ति प्रमाण पत्र भी जारी नहीं किया गया । परिवादिनी ने पुनः इस सब कार्यवाही में और अधिवक्ता व्यय के रूप में अंकन 50,000/-रूपये किये । विपक्षी नं0 4 द्वारा अंकन 7,50,000/-रूपये का भुगतान प्राप्त किये जाने के उपरांत धोखे से इस समझौते को 40 वर्षों तक के लिए बढा दिया गया, जिससे परिवादिनी व उसके पति को काफी मानसिक आघात पहुॅंचा और उनके द्वारा विपक्षी नं0 1 व 2 से सम्पर्क करके प्रार्थना की गयी कि वह समझौता से निस्तारित धनराशि अंकन 7,50,000/-रूपये का भुगतान करते हुए अभिलेखों का निष्पादन करे और मूल विक्रय पत्र दिनांकित 04.06.01 को वापस प्राप्त करे, परन्तु उन दोनों ने ही यह प्रार्थना अस्वीकार की गई और यह कहा कि वह उसके साथ बैंक नहीं जा सकते हैं । इसके बाद परिवादी व उसके पति द्वारा गारंटर विपक्षी नं0 3 से सम्पर्क किया गया और वह बैंक कार्यालय जाने के लिए और मामले के निस्तारण तथा अभिलेखों के निष्पादन के लिए तैयार हो गये । इस संदर्भ में विपक्षी नं0 3 द्वारा सभी प्रपत्र व शपथपत्र बैंक को उपलब्ध करा दिये गये । विपक्षी नं0 4 बैंक को इंडेमिनटी बाॅण्ड भी उपलब्ध करा दिया गया और मूल विक्रय पत्र दिनांकित 04.06.01 की माॅग की गयी । बैंक से नो डियूज सर्टिफिकेट दिये जाने की भी माॅंग की गयी । विपक्षी नं0 4 स्टेट बैंक आॅफ इण्डिया द्वारा नो डियूज सर्टिफिकेट भी जारी किया गया, परन्तु धोखे से उसमें यह उल्लेख कर दिया गया कि समझौता धनराशि अंकन 7,50,000/-रूपये विपक्षी नं0 3 अनिल कुमार भटनागर द्वारा जमा किये गये और मूल विक्रय पत्र दिनांक 04.06.01 के संदर्भ में यह कथन प्रस्तुत किया गया कि विपक्षी नं0 1 द्वारा बैंक की सी0बी0 गंज शाखा को यह सूचना दी गयी है कि विक्रय पत्र वापस किया जाये । परिवादिनी विपक्षी नं0 4 बैंक के पास अनेकों बार नो डियूज सर्टिफिकेट और मूल विक्रय पत्र दिये जाने हेतु प्रार्थना करती रही, परन्तु विपक्षी बैंक द्वारा कोई कार्यवाही नहीं की गयी । इसके उपरांत दिनांक 16.10.13 को बैंक आॅफ बडौदा, नरकुलागंज शाखा द्वारा सरपेसी एक्ट के अंतर्गत एक नोटिस परिवादिनी के मकान पर चस्पा कर दिया गया और विपक्षी नं0 1 व 2 से अंकन 6,10,091/-रूपये का भुगतान 60 दिनों में किये जाने का उल्लेख किया गया । परिवादिनी द्वारा उक्त नोटिस प्राप्त किये जाने के उपरांत अपने अधिवक्ता से सम्पर्क किया गया और परिवादिनी के अधिवक्ता द्वारा जारी नोटिस दिनांक 17.10.13 द्वारा विपक्षी नं0 5 बैंक आॅफ बडौदा को यह सूचना दी गयी कि प्रश्नगत मकान विपक्षी नं0 4 स्टेट बैंक आॅफ इण्डिया, सी0बी0गंज शाखा में रहन है और मूल विक्रय पत्र भी बैंक के पास ही है । परिवादिनी के द्वारा अपनी पाकेट से ऋण धनराशि के सदंर्भ में समझौता करते हुए समस्त भुगतान किया गया, परन्तु बैंक द्वारा मूल विक्रय पत्र अभी तक वापस नहीं किया गया है और जबकि मूल विक्रय पत्र विपक्षी नं0 4 स्टेट बैंक के कब्जे में है, उस स्थिति में प्रश्नगत  मकान को विपक्षी नं0 5 बैंक आॅफ बडौदा के पक्ष में रहन नहीं किया जा सकता है, परन्तु विपक्षी नं0 5 बैंक आॅफ बडौदा के द्वारा इस संदर्भ में कोई भी कार्यवाही नहीं की गयी । यदि मान भी लिया जाये कि विपक्षी नं0 5 बैंक आॅफ बडौदा द्वारा विपक्षी नं0 1 व 2 को गृह ऋण प्रदान किया गया था, तो उसके लिए विपक्षी नं0 1 व 2 संॅयुक्त रूप से या अलग-अलग व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी हैं, परन्तु विपक्षी नं0 5 प्रश्नगत मकान को विक्रय करके ऋण धनराशि का भुगतान प्राप्त नहीं कर सकते हैं, क्योंकि प्रश्नगत मकान पहले से ही विपक्षी नं0 4 के पक्ष में रहन है। इसके उपरांत विपक्षी नं0 5 द्वारा पुनः नोटिस के द्वारा परिवादिनी को मकान से बेदखल किये जाने की भी धमकी दी गयी । परिवादिनी प्रश्नगत मकान की बोनाफाइड परचेजर है और सभी विपक्षीगण द्वारा संॅयुक्त रूप से या अलग - अलग परिवादिनी से धनराशि प्राप्त करने के उपरांत सेवा प्रदान की गयी है । अतः परिवादिनी द्वारा यह परिवाद फोरम के समक्ष योजित किया गया है । 
       विपक्षी नं0 1 की ओर से प्रारम्भिक आपत्ति 39/1 लगायत 39/2 दाखिल करते हुए यह कथन प्रस्तुत किया गया है कि परिवादिनी की ओर से योजित परिवाद इस फोरम द्वारा निर्णीत नहीं किया जा सकता है । परिवादिनी की ओर से एैसे तथ्यों को परिवाद के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है, जिसका निस्तारण फोरम की सूक्ष्म विधि से तीन माह की अवधि के अंदर होना संभव नहीं है । बैंक की रिपोर्ट और गवाही आदि कराने में काफी समय लगेगा और एैसी स्थिति में परिवाद फोरम के समक्ष चलने योग्य नहीं है। परिवादिनी द्वारा यह स्पष्ट किया गया है कि विपक्षी नं0 3 अनिल कुमार भटनागर ने अंकन 7,50,000/-रूपये के संदर्भ में हुए एक मुश्त जमा योजना के अनुसार विपक्षी नं0 4 के पास जमा कर दिये और एैसी स्थिति में गारंटर द्वारा जमा की गयी धनराशि ऋण की अदायगी की श्रेणी में है और विपक्षी नं0 4 को समस्त धनराशि प्राप्त होने के पश्चात् प्रश्नगत मकान के संदर्भ में वाद का कोई कारण नहीं है । विपक्षी नं0 4 द्वारा अपने जबाव दावे में यह कथन किया गया है कि परिवादिनी को नो डियूज सर्टिफिकेट यह कहकर जारी किया गया है कि विपक्षी नं0 1 व 2 ने देय धनराशि विपक्षी नं0 3 द्वारा जमा कर दी गयी है । अतः परिवाद चलने योग्य नहीं है । परिवादिनी द्वारा यह भी कहा गया है कि विपक्षी नं0 5 बैंक आॅफ बडौदा पर धोखाधडी का आरोप है क्योंकि बिना मूल दस्तावेज को गिरवी रखे हुए विपक्षी नं0 1 को ऋण प्रदान किया गया और इस प्रकार धोखाधडी के संदर्भ में किसी भी शिकायत को निस्तारित करने का क्षेत्राधिकार फोरम को नहीं है, तद्नुसार परिवाद निरस्त होने योग्य है । 
       परिवादिनी की ओर से आपत्ति प्रस्तुत करते हुए यह कथन प्रस्तुत किया गया है कि विपक्षी की प्रारम्भिक आपत्ति पोषणीय नहीं है । विपक्षी किसी न किसी आधार पर परिवाद के निस्तारण में विलम्ब करना चाहता है । विपक्षी नं0 1 की ओर से असत्य कथनों के आधार पर प्रारम्भिक आपत्ति प्रस्तुत की गयी है । विपक्षी नं0 1 द्वारा विपक्षी नं0 3 अनिल कुमार भटनागर द्वारा निष्पादित प्रार्थना पत्र व इंडेमिनिटी बाॅण्ड का अवलोकन नहीं किया गया और अकारण ही आपत्ति प्रस्तुत की गयी है । परिवादिनी द्वारा अपने परिवाद में यह स्पष्ट किया गया है कि विपक्षी नं0 4 द्वारा प्रश्नगत मकान को विपक्षी नं0 1 व 2 द्वारा लिये गये ऋण के संदर्भ में रहन होने की सूचना प्राप्त होने पर परिवादिनी ने बंधन मुक्त कराने के लिए अंकन 7,50,000/-रूपये का भुगतान किया था, परन्तु विपक्षी नं0 4 द्वारा लिखा पढी हेतु विपक्षी नं0 3 अनिल कुमार भटनागर से मिलकर जो रूपये परिवादिनी द्वारा अदा किये गये थे, उसे विपक्षी नं0 3 के माध्यम से जमा कर लिये गये । विपक्षी नं0 3 द्वारा बैंक को यह अवगत भी कराया गया था कि परिवादिनी द्वारा विपक्षी नं0 3 अनिल कुमार भटनागर के माध्यम से विपक्षी नं0 4 को यह धनराशि जमा की गयी है, जबकि वास्तविकता यह है कि परिवादिनी द्वारा स्वयॅं चेक के माध्यम से अंकन 7,50,000/-रूपये का भुगतान बैंक को किया गया है । इसी आधार पर यह परिवाद योजित किया गया है ।
       विपक्षी नं0 1 की ओर से प्रतिवाद पत्र 52/1 दाखिल करते हुए यह कथन प्रस्तुत किया गया कि परिवाद बिना क्षेत्राधिकार के प्रस्तुत किया गया है और परिवाद कालबाधित है, क्योंकि बयनामा दिनांक 15.11.07 को हुआ  था । परिवादिनी द्वारा मात्र कोर्ट फीस बचाने के आशय से यह परिवाद फोरम के समक्ष प्रस्तुत किया गया है । परिवादिनी द्वारा प्रश्नगत मकान खरीदने के पूर्व रजिस्ट्री कार्यालय में सम्पूर्ण जाॅंच की गयी और उसके पश्चात् अंकन 4,50,000/-रूपये  में सौदा तय हुआ, क्योंकि उक्त मकान पर स्टेट बैंक का ऋण है, इसलिए परिवादिनी द्वारा मात्र अंकन 1.5 लाख रूपये नकद दिये गये और अंकन तीन लाख रूपये का चेक दिया गया । परिवादिनी का यह कहना गलत है कि उसके द्वारा पुराने बयनामे की माॅग की गयी हो, क्योंकि परिवादिनी को यह ज्ञात था कि उक्त मकान पर स्टेट बैंक का ऋण है । इसी कारण परिवादिनी द्वारा रजिस्ट्री के समय अंकन तीन लाख रूपये का चेक दिया गया था, जिसे बैंक में जमा करके मकान को फ्री होल्ड कराया जायेगा । परिवादिनी द्वारा चेक वाली रकम विपक्षी को नहीं दी गयी और न ही बैंक में कोई रूपये जमा किये गये, जिसके कारण ऋण राशि बढती गयी । परिवादिनी का यह कथन गलत है कि बैंक आॅफ बडौदा द्वारा पुराना ऋण दिखाकर परिवादिनी से धन की माॅग की गयी हो, क्योंकि मकान के मूल दस्तावेज स्टेट बैंक आॅफ इण्डिया के पास जमा थे और उक्त मकान पर बैंक आॅफ बडौदा द्वारा ऋण दिया जा सकता था । विपक्षी नं0 1 द्वारा जब परिवादिनी द्वारा दिये गये चेक के बाउंस होने के संदर्भ में एन.आई. एक्ट की धारा 138 के अंतर्गत मुकदमा पंजीकृत किया, तब परिवादिनी ने उक्त मकान से बचने के लिए यह झूठा परिवाद योजित किया है । परिवादिनी की ओर से योजित परिवाद निरस्त किये जाने योग्य है ।
       विपक्षी नं0 3 अनिल कुमार भटनागर द्वारा प्रतिवाद पत्र दाखिल करते हुए यह कथन प्रस्तुत किया गया है कि वह किसी भी लेन-देन या क्रय-विक्रय में सम्मिलित नहीं है । परिवादिनी विपक्षी नं0 2 के साथ जिला अस्पताल में नौकरी करती थी, जिसके कारण खाता खोलने के संदर्भ में उसे गारंटी हेतु बताया गया था, जबकि विपक्षी ने बैंक से साॅठ-गाॅठ करके उक्त मकान के ऋण की गारंटी में सम्मिलित करा दिया था । नोटिस प्राप्त होने पर विपक्षी नं0 3 द्वारा विपक्षी नं0 1 व 2 से सम्पर्क किया गया, तो उन्होंने आश्वासन दिया  िकवह भुगतान कर देगें, उसका कोई मतलब सरोकार नहीं है । परिवादिनी द्वारा दूसरे जमानतदार मकरन्द सिंह को पक्षकार नहीं बनाया गया है और विपक्षी नं0 3 को मात्र परेशान करने की नियत से पक्षकार बनाया गया है । विपक्षी नं0 3 के विरूद्व परिवाद पोषणीय नहीं है और निरस्त होने योग्य है ।
       विपक्षी नं0 4 स्टेट बैंक आॅफ इण्डिया द्वारा प्रतिवाद पत्र दाखिल करते हुए यह कथन प्रस्तुत किया गया है कि विवादित सम्पत्ति के विपक्षी नं0 1 स्वामी व काबिज हैं, जिनके द्वारा विक्रय पत्र दिनांक 04.06.01 के माध्यम से विवादित सम्पत्ति क्रय की गयी थी और बैंक की सी0बी0 गंज शाखा से संॅयुक्त रूप से अंकन चार लाख रूपये का मकान ऋण प्राप्त किये जाने की प्रार्थना की गयी । विपक्षी नं0 1 व 2 को संॅयुक्त रूप से दिनांक 11.02.01 को मकान निर्माण कराये जाने हेतु ऋण प्रदान किया गया, जिसके गारंटर विपक्षी नं0 3 अनिल कुमार भटनागर और मकरन्द सिंह थे । विपक्षी नं0 1 द्वारा विवादित सम्पत्ति को बैंक के पक्ष में रहन रख दिया था और मूल विक्रय पत्र जमा कर दिया था । मकान निर्माण कराये जाने के उपरांत विपक्षी नं0 1 व 2 तथा गारंटर द्वारा ऋण राशि का भुगतान नहीं किया गया और उनके विरूद्व दिनांक 01.03.11 तक अंकन 870041.75 रूपये बकाया हो गये । एैसी परिस्थिति में विपक्षी नं0 4 बैंक द्वारा सरफेसी एक्ट के प्राविधानों के अंतर्गत नोटिस जारी करते हुए अखबारों में प्रकाशन कराया गया । इसके उपरांत परिवादिनी और उसके पति द्वारा बैंक से सम्पर्क किया गया और यह कहा गया  िकवह प्रश्नगत सम्पत्ति के बोनाफाइड परचेजर हैं, जिनके द्वारा यह सम्पत्ति विक्रय पत्र दिनांक 15.11.07 के माध्यम से क्रय की गयी थी । विपक्षी नं0 1 द्वारा बैंक ऋण की तिथि से और विवादित सम्पत्ति के रहन रखे जाने की तिथि को छिपाया गया । परिवादिनी और उसके पति द्वारा बैंक से समझौता किया गया और विपक्षी नं0 1 व 2 के विरूद्व बकाया धनराशि के संदर्भ में विपक्षी नं0 3 अनिल कुमार भटनागर के माध्यम से अंकन 7,50,000/-रूपये जमा कर दिये गये । बैंक द्वारा परिवादिनी को नो डियूज सर्टिफिकेट जारी करते हुए यह उल्लेख किया गया कि परिवादिनी द्वारा अनिल कुमार भटनागर के माध्यम से ऋण धनराशि का भुगतान कर दिया गया । बैंक द्वारा मूल विक्रय पत्र परिवादिनी को वापस करने से मना कर दिया गया क्योंकि विपक्षी बैंक और परिवादिनी के माध्य कोई संविदा नहीं  थी । परिवादिनी विपक्षी नं0 4 बैंक से किसी प्रकार कोई भी क्षतिपूर्ति प्राप्त करने की अधिकारिणी नहीं है । 
        विपक्षी नं0 5 की ओर से प्रतिवाद पत्र दाखिल रते हुए यह कथन प्रस्तुत किया गया है कि परिवादिनी की ओर से योजित परिवाद असत्य कथनों पर आधारित है और कानून के विपरीत होने के कारण निरस्त किये जाने योग्य है । परिवादिनी स्वच्छ हाथों से फोरम के समक्ष उपस्थित नहीं हुई है । विपक्षी द्वारा परिवादी के प्रति सेवाओं में कोई त्रुटि नहीं की गयी है, बल्कि परिवादिनी विपक्षी की उपभोक्ता ही नहीं है । विपक्षी नं0 1 व 2 की ओर से दिनांक 09.08.03 को अंकन चार लाख रूपये का ऋण मकान खरीदने के लिए दिया गया था, जिसे विपक्षी नं0 1 व 2 ने कूट रचित अभिलेखों और विक्रय पत्र के आधार पर बाद में भारतीय स्टेट बैंक आॅफ इण्डिया के पक्ष में रहन किया था । विपक्षी नं0 4 स्टेट बैंक आॅफ इण्डिया द्वारा गलत तरीके से मकान की नीलामी करायी गयी, जबकि मकान पहले से ही विपक्षी नं0 05 के पक्ष में रहन था और विपक्षी नं0 05 का उक्त सम्पत्ति पर सम्पूर्ण अधिकार था । विपक्षी नं0 05 द्वारा सरफेसी एक्ट के अंतर्गत परिवादिनी को नोटिस दिये जाने पर उसके द्वारा असत्य कथनों के आधार पर यह परिवाद योजित किया गया है, जबकि सरफेेसी एक्ट के अंतर्गत नोटिस दिये जाने के उपरांत इस फोरम को सुनवाई का कोई क्षेत्राधिकार नहीं रह जाता है । परिवादिनी द्वारा धोखाधडी से यह परिवाद योजित किया गया है । परिवादिनी कोई भी अनुतोष प्राप्त करने की अधिकारिणी नहीं है । परिवादिनी द्वारा सही तथ्यों को छिपाकर झूठा परिवाद योजिजत किया गया है । विपक्षी नं0 05 के विरूद्व कोई भी स्टे आदेश पारित नहीं किया जा सकता है । परिवादिनी की ओर से योजित परिवाद निरस्त किये जाने योग्य है ।
      परिवादिनी की ओर से अपने कथनों के समर्थन में शपथपत्र साक्ष्य 53/1 लगायत 53/16 प्रस्तुत किया गया है और सूची 06 के माध्यम से विक्रय पत्र दिनांक 04.06.01 की छाया प्रति 7/1 लगायत 7/9, बयनामा दिनांक 15.11.07 की छाया प्रति 7/10 लगायत 7/22, स्टेट बैंक द्वारा सरपेसी एक्ट के अंतर्गत भेजे गये नोटिस की छाया प्रति 7/23, परिवादिनी द्वारा बैंक आॅफ बडौदा में दिये ये चेक कीक छाया प्रति 7/24, परिवादिनी द्वारा बैंक आॅफ बडौदा में जमा किये गये अंकन पाॅंच लाख रूपये के चेक की छाया प्रति 7/25, बैंक में जमा की गयी धनराशि की स्लिप की छाया प्रति 7/26, परिवादिनी द्वारा स्टेट बैंक को भेजे गये पत्र की छाया प्रति 7/27, थाना अध्यक्ष, इज्जतनगर को भेजे गये पत्र की छाया प्रति 7/28 लगायत 7/29, पुलिस अधीक्षक को भेजे गये पत्र की छाया प्रति 7/30 लगायत 7/31, विपक्षी नं0 3 द्वारा स्टेट बैंक को भेजे गये पत्र की छाया प्रति 7रु2 लगायत 7/33, शपथपत्र की छाया प्रति 7/34 लगायत 7/36, नो डियूज सर्टिफिकेट की छाया प्रति 7/36, विपक्षी नं0 5 द्वारा भेजे गये नोटिस की छाया प्रति 7/38 और परिवादिनी द्वारा भेजे गये रजिस्टर्ड नोटिस की छाया प्रति 7/39 लगायत 7/42 प्रस्तुत किये गये हैं ।  
      विपक्षी नं0 1 की ओर से परिवादिनी के पक्ष में विक्रय किये गये मकान से सम्बन्धित् विक्रय पत्र की छाया प्रति 60/1 लगायत 60/4, एच0डी0एफ0सी0 बैंक के चेक की छाया प्रति दिनांकित 05.09.07 की छाया प्रति 60/5, विपक्षी नं0 1 के स्टेट बैंक आॅफ इण्डिया में चल रहे खाते के विवरण की छाया प्रति 60/6, केनरा बैंक के पासबुक की छाया प्रति 60/7, उप निबन्धक बरेली को भेजे गये शिकायती पत्र की छाया प्रति 60/8 प्रस्तुत की गयी है । 
        विपक्षी नं0 05 की ओर से विपक्षी नं0 1 को भेजे गये नोटिस की छाया प्रति 58/1 लगायत 58/58/5, विपक्षी नं0 05 द्वारा भेजे गये कब्जा लिये जाने से सम्बन्धित् नोटिस की छाया प्रति 58/6 लगायत 58/7, ट्रांन्जेक्शन इन्कारी की छाया प्रति 58/8 लगायत 58/11, विक्रय पत्र की छाया प्रति 58/12 लगायत 58/19 प्रस्तुत की गयी है । 
         परिवादिनी की ओर से अपने कथनों के समर्थन में शपथपत्र साक्ष्य 52ए/1 लगायत 52/ए/16 प्रस्तुत किये गये हैं । विपक्षी नं0 01 की ओर से शपथपत्र साक्ष्य 53/1 लगायत 53/2, विपक्षी नं0 04 स्टेट बैंक आॅफ इण्डिया की ओर से शपथपत्र साक्ष्य 61/1 लगायत 61/4 एवं विपक्षी नं0 05 की ओर से बैंक आॅफ बडौदा की ओर से शपथपत्र साक्ष्य 56 प्रस्तुत किया गया है, अन्य विपक्षीगण की ओर से कोई शपथपत्र साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया गया है । 
        पक्षगण अधिवक्ता के तर्कों को सुना गया एवं पत्रावली का अवलोकन किया गया । 

निष्कर्ष

      उपरोक्त सम्पूर्ण प्रकरण पर विचारण करने के पश्चात् यह स्पष्ट है कि उपरोक्त मामले में परिवादिनी के साथ विपक्षी नं0 1 लगायत 3 तथा विपक्षीगण द्वारा आपस में साज करके धोखाधडी की गयी है और कूटरचित अभिलेख भी तैयार किये गये हैं । परिवादिनी की ओर से स्वयॅं यह कथन प्रस्तुत किये गये हैं कि उसके द्वारा प्रश्नगत मकान विपक्षी नं0 1 से अंकन 4,50,000/-रूपये में दिनांक 15.11.07 को पंजीकृत कराया गया था, परन्तु विपक्षी नं0 1 द्वारा पूर्व विक्रय पत्र दिनांकित 04.06.01 को उपलब्ध नहीं कराया गया और कहा गया कि वह गायब हो गया है । परिवादिनी की ओर से यह भी स्पष्ट किया गया है कि विपक्षी नं0 1 द्वारा उसे यह जानकारी नहीं दी गयी कि उसने विपक्षी नं0 4 स्टेट बैंक आॅफ इण्डिया से ऋण प्राप्त किया था और प्रश्नगत मकान बैंक के पक्ष में गिरवी है । इस तथ्य की जानकारी परिवादिनी को तब हुई, जब विपक्षी नं0 4 की ओर से सरफेसी एक्ट के अंतर्गत नोटिस जारी की गयी, जबकि इसी संदर्भ में विपक्षी नं0 1 द्वारा यह कथन प्रस्तुत किया गया है कि परिवादिनी द्वारा स्वयॅं सब रजिस्ट्रार कार्यालय में जाॅंच करने के पश्चात् और संतुष्ट होकर प्रश्नगत मकान क्रय किया गया था और उसे यह जानकारी थी कि उक्त मकान पर स्टेट बैंक आॅफ इण्डिया का ऋण बकाया है । परिवादिनी द्वारा इसी कारण बयनामा कराते समय विपक्षी नं0 1 को कुल अंकन 1,50,000/-रूपये का भुगतान किया गया और शेष अंकन  3,00,000/-रूपये का भुगतान विपक्षी नं0 1 को नहीं किया गया । इस प्रकार यह स्पष्ट है कि सत्यता जानने के लिए यह आवश्यक है कि विवाद के संदर्भ में पक्षकारों और साझीगण के ब्यान लेकर उनसे जिरह की जाये और इस संदर्भ में विशेषज्ञ साक्ष्य भी एकत्रित की  जाये । इसी प्रकार परिवादिनी की ओर से यह कथन भी प्रस्तुत किया गया है कि उसके द्वारा विपक्षी नं0 4 स्टेट बैंक आॅफ इण्डिया से समझौता किया गया और समझौते के आधार पर अंकन 7,50,000/-रूपये का भुगतान भी किया गया, जबकि विपक्षी नं0 4 की ओर से यह कथन प्रस्तुत किया गया है कि परिवादिनी और उसके पति द्वारा बैंक से समझौता किया गया और विपक्षी नं0 1 व 2 के विरूद्व बकाया धनराशि के संदर्भ में विपक्षी नं0 3 अनिल कुमार भटनागर के माध्यम से अंकन 7,50,000/-रूपये जमा कर दिये गये । परिवादिनी का कथन है कि बैंक द्वारा साजिशन नो डियूज सर्टिफिकेट जारी करते हुए यह उल्लेख कर दिया गया कि उपरोक्त धनराशि का भुगतान गारंटर विपक्षी नं0 3 अनिल कुमार भटनागर द्वारा किया गया । परिवादिनी की ओर से यह कथन भी प्रस्तुत किया गया है कि विपक्षी नं0 4 ने मूल विक्रय पत्र वापस नहीं किया और यह कहा गया कि उसके साथ उसकी कोई संविदा नहीं है । इस प्रकार पुनः यह स्पष्ट हो जाता है कि इस विवाद का निराकरण करने के लिए भी पक्षकारों और साझीगण से जिरह किया जाना आवश्यक है और अत्यधिक विभिन्न प्रकार की साक्ष्य का एकत्रित होना आवश्यक है, जो फोरम के द्वारा सूक्ष्म विधि से नहीं की जा सकती है और न ही एैसे विवाद फोरम के समक्ष पोषणीय है । इसी संदर्भ में विपक्षी नं0 5 की ओर से यह कथन प्रस्तुत किया गया है कि विपक्षी नं0 1 व 2 द्वारा प्रश्नगत मकान के संदर्भ में अंकन चार लाख रूपये का ऋण प्राप्त किया गया था, जिसे विपक्षी नं0 1 व 2 ने कूट रचित अभिलेखों और विक्रय पत्र के आधार पर भारतीय स्टेट बैंक के पक्ष में मकान गिरवी रख दिया और विपक्षी नं0 4 स्टेट बैंक आॅफ इण्डिया द्वारा गलत तरीके से मकान की नीलामी करायी गयी, जबकि मकान पहले से ही विपक्षी नं0 5 के पास गिरवी था । इसके अतिरिक्त यह कथन भी प्रस्तुत किया गया कि विपक्षी नं0 5 द्वारा उक्त सम्पत्ति के संदर्भ में सरफेसी एक्ट के अंतर्गत नोटिस जारी की गयी है और विधि के सिद्वांत के आधार पर सरफेसी एक्ट के अंतर्गत कार्यवाही सम्पन्न होने पर फोरम को सुनवाई का कोई क्षेत्राधिकार नहीं रह जाता है, जबकि इस संदर्भ में परिवादिनी की ओर से यह कथन प्रस्तुत किया गया है कि जब पूर्व में ही विपक्षी नं0 4 स्टेट बैंक आॅफ इण्डिया के पास मूल विक्रय अभिलेख जमा कर दिये गये थे, उस हालत में उसी प्रश्नगत सम्पत्ति के संदर्भ में विपक्षी नं0 5 बैंक आॅफ बडौदा द्वारा किस प्रकार से गृह ऋण का भुगतान कर दिया गया और कौन सा विक्रय पत्र अथवा अभिलेख जमा कराये गये, जबकि मूल विक्रय पत्र विपक्षी नं0 4 स्टेट बैंक आॅफ इण्डिया के कब्जे में  था । इस प्रकार पुनः यह स्पष्ट हो जाता है कि विपक्षी नं0 1 व 2 द्वारा कूट रचित अभिलेखों को तैयार किया गया और धोखाधडी से एक ही सम्पत्ति को गिरवी करते हुए दो बैंकों से अलग-अलग ऋण प्राप्त किये गये और साथ ही साथ विपक्षी नं0 4 से भी साज करके विपक्षी नं0 5 बैंक आॅफ बडौदा के समक्ष कूट रचित अभिलेखों के आधार पर उसी सम्पत्ति को गिरवी कर दिया गया । विपक्षी नं0 1 और 3 द्वारा कूट रचना तथा आपस में साज करके धोखाधडी से विपक्षी नं0 5 बैंक आॅफ बडौदा के समक्ष अभिलेख प्रस्तुत करके गृह ऋण प्राप्त कर लिया गया । परिवादिनी द्वारा स्वयॅं यह स्पष्ट किया गया है कि विपक्षी नं0 1 व 2 द्वारा जानबूझकर किसी षडयंत्र एवं धोखाधडी के अंतर्गत सही तथ्यों को छिपाते हुए नजायज लाभ कमाने के उद्देश्य से कूट रचित एवं फर्जी विक्रय पत्र के आधार पर प्रश्नगत सम्पत्ति को दोबारा गिरवी रखते हुए ऋण प्राप्त कर लिया गया । परिवादिनी की ओर से यह तर्क भी प्रस्तुत किया गया कि विपक्षी नं0 5 बैंक आॅफ बडौदा द्वारा भी इस साजिश के संदर्भ में कोई जानकारी प्राप्त नहीं की गयी और मूल विक्रय पत्र विपक्षी नं0 4 भारतीय स्टेट बैंक के कब्जे में होने के कारण विपक्षी नं0 5 बैंक आॅफ बडौदा द्वारा प्रश्नगत सम्पत्ति के संदर्भ में यदि कोई ऋण प्रदान किया गया है, तो वह झूठा एवं दिखावटी है । 
         इस प्रकार उपरोक्त सम्पूर्ण विवेचना के आधार पर यह स्पष्ट है कि इस प्रकरण में कूटरचित अभिलेखों एवं परिवादिनी से वास्तविक तथ्यों को छिपाकर प्रश्नगत सम्पत्ति का विक्रय करना और विपक्षी नं0 1 और 2 द्वारा कूट रचित अभिलेखों के आधार पर किसी षडयंत्र एवं धोखाधडी के तहत नजायज लाभ उठाने की गरज से एक ही सम्पत्ति को दो बैकों में गिरवी रखते हुए गृह ऋण प्राप्त किया गया । इस प्रकार विपक्षी नं0 1 व 2 द्वारा परिवादिनी के साथ धोखाधडी की गयी और कूटरचित अभिलेखों के आधार पर विपक्षी नं0 5 के साथ भी छलकपट और धोखाधडी करते हुए लाभ अर्जित किया गया, जबकि छलकपट एवं फर्जी अभिलेखों के विवाद के संदर्भ में सुनवाई का कोई भी क्षेत्राधिकार फोरम को नहीं है । इसके अतिरिक्त जहाॅं पर किसी विवाद के निर्णय के लिए पक्षगण से जिरह की आवश्यकता हो अथवा परिवाद की जटिलताओं के निराकरण के लिए विभिन्न प्रकार के साक्ष्य और खासतौर से विशेषज्ञ साक्ष्य की आवश्यकता हो, तो एैसे मामलों की सुनवाई केवल दीवानी न्यायालय में ही हो सकती है और फोरम के समक्ष एैसे परिवाद का निस्तारण पोषणीय नहीं होगा । इस संदर्भ में मेरा ध्यान ।। (2015) सी.पी.जे.-108 (आन्द्र प्रदेश) प्रतापा राम किरन बनाम कोटक्की लक्ष्मी व अन्य के मामले में माननीय आन्ध्र प्रदेश राज्य आयोग द्वारा दिये गये निर्णय की ओर आकर्षित किया गया । माननीय आन्ध्र प्रदेश राज्य आयोग द्वारा इस मामले में यह निर्णीत किया गया है कि धोखाधडी और अभिलेखों की हेराफेरी के संदर्भ में पक्षगण से जिरह की आवश्यकता होगी और विभिन्न प्रकार के दस्तावेजी साक्ष्य की आवश्यकता होगी, जिसका निस्तारण फोरम की सूक्ष्म विधि से संभव नहीं है और एैसे मामलों की सुनवाई का क्षेत्राधिकार केवल दीवानी न्यायालय को ही होगा । इसी प्रकार मेरा ध्यान 1993 सी.सी.जे. 693 (राष्ट्रीय आयोग), नई दिल्ली एन. शिवाजी राव बनाम मै0 दमन मोटर कम्पनी के मामले में माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा दिये गये निर्णय की ओर    आकर्षित किया गया । माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा यह निर्णीत किया गया है कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत गठित जिला फोरम एवं आयोग कपट एवं छल के जटिल मामलों का निस्तारण सुगमता पूर्वक नहीं कर सकते । यह मामले त्रुटिपूर्ण माल एवं सेवा से सम्बन्धित् नहीं है और एैसे मामलों में विशेषज्ञ साक्ष्य की आवश्यकता होगी। अतः छलकपट विषयक मामले अथवा कूटरचित अभिलेखों के विवाद के निस्तारण के लिए दीवानी न्यायालय ही उचित फोरम है । इसी प्रकार मेरा ध्यान 2001 (1) सी.पी.आर. 660 श्रीमती मंजीत बालिया बनाम डा0 उपेन्द्र सिंह व अन्य के मामले में माननीय पंजाब राज्य आयोग द्वारा पारित किये गये निर्णय की ओर आकर्षित किया गया । माननीय पंजाब राज्य आयोग द्वारा यह निर्णीत किया गया है कि यदि कोई परिवाद जटिलताओं से युक्त है और उसके निस्तारण के लिए विशेषज्ञ का साक्ष्य अंकित किया जाना आवश्यक है, तो एैसे मामलों में उचित अनुचित के लिए परिवादी को दीवानी न्यायालय के समक्ष वाद प्रस्तुत करना चाहिये ।
    उपरोक्त संदर्भ में परिवादी की ओर से मेरा ध्यान  ।ट (2013) सी.पी.जे. 513 (एन.सी.) बैंक आॅफ बडौदा रतन सिंह रावीवा व अन्य में माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा पारित किये गये निर्णय की ओर आकर्षित किया गया, परन्तु इस मामले के तथ्य वर्तमान मामले के तथ्यों से भिन्न हैं । इस मामले में पुराने ट्रैक्टर को नया ट्रैक्टर बताते हुए परिवादी को विक्रय कर दिया गया था और परिवाद में अनुचित व्यापार प्रथा का मामला पाया गया था, जो उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत ग्राहय है, जबकि वर्तमान मामले में षडयंत्र धोखाधडी एवं कूट रचित अभिलेखों का विवाद है, जिससे संदर्भित मामलों की सुनवाई का क्षेत्राधिकार फोरम को नहीं है । अतः उपरोक्त निर्णय का लाभ परिवादी को प्राप्त नहीं हो सकता है ।      
       इस प्रकार उपरोक्त सम्पूर्ण विवेचना के उपरांत हम इस निष्कर्ष पर पहुॅंचते हैं कि वर्तमान परिवाद जटिलताओं से युक्त है और कपट एवं छल के जटिल मामलों का निस्तारण निहित है, जिसके लिए साक्षीगण से जिरह और विभिन्न प्रकार के अभिलेखीय साक्ष्य की आवश्यकता होगी, जिसका निस्तारण फोरम की सूक्ष्म विधि से संभव नहीं है तथा माननीय राष्ट्रीय आयोग एवं माननीय आन्ध्र प्रदेश राज्य आयोग और पंजाब राज्य आयोग द्वारा पारित किये गये उपरोक्त निर्णय के आधार पर यह स्पष्ट है कि एैसे मामलों की सुनवाई का क्षेत्रावधिकार जिला उपभोक्ता फोरम को नहीं है, बल्कि एैसे मामलों को दीवानी न्यायालय के समक्ष ही प्रस्तुत किया जा सकता है । अतः उपरोक्त आधार पर हम इस निष्कर्ष पर पहुॅंचते हैं कि वर्तमान मामले में उत्पन्न हुए जटिल विवादों और छल कपट षडयंत्र एवं धोखाधडी और कूट रचित अभिलेखों के विवाद के निस्तारण के लिए परिवादिनी को यह परिवाद सिविल कोर्ट के समक्ष ही प्रस्तुत करना चाहिये । एैसे मामलों का निस्तारण फोरम के समक्ष पोषणीय नहीं हैेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेे, तद्नुसार इस फोरम द्वारा उपरोक्त मामले का निस्तारण करना संभव प्रतीत नहीं होता है और एैसी परिस्थिति में परिवादिनी कोई भी अनुतोष इस फोरम के माध्यम से प्राप्त करने में सक्षम नहीं है और तदनुसार परिवाद निरस्त किये जाने योग्य है । 

आदेश

      परिवादिनी की ओर से विपक्षीगण के विरूद्व योजित किया गया परिवाद निरस्त किया जाता है । परिवादिनी यदि चाहे तो सिविल कोर्ट के समक्ष परिवाद दायर कर सकती है । पक्षगण अपना-अपना वाद व्यय स्वयॅं वहन करेगें ।

( मोहम्मद कमर अहमद )                  (  बृजेश चन्द्र सक्सेना )
        सदस्य                                    अध्यक्ष    
यह निर्णय आज दिनांक 18.11.2016 को हमारे द्वारा हस्ताक्षरित करके खुले फोरम में उद्घोषित किया गया ।


   ( मोहम्मद कमर अहमद )                  (  बृजेश चन्द्र सक्सेना )
          सदस्य                                अध्यक्ष    

 


    
            

 
 
[HON'BLE MR. Brijesh Chandra Saxena]
PRESIDENT
 
[HON'BLE MR. Mohd Qamar Ahmad]
MEMBER

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