Uttar Pradesh

StateCommission

A/175/2017

MahIndra and Mahindra Ltd - Complainant(s)

Versus

Yogendra Pratap Singh - Opp.Party(s)

Prakhar Mishra

08 Dec 2021

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/175/2017
( Date of Filing : 23 Jan 2017 )
(Arisen out of Order Dated 01/12/2016 in Case No. C/25/2015 of District Rae Bareli)
 
1. MahIndra and Mahindra Ltd
Mumbai
...........Appellant(s)
Versus
1. Yogendra Pratap Singh
Rae Bareilly
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. SUSHIL KUMAR PRESIDING MEMBER
 HON'BLE MR. Vikas Saxena JUDICIAL MEMBER
 
PRESENT:
 
Dated : 08 Dec 2021
Final Order / Judgement

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।

                                                      (सुरक्षित)

अपील सं0 :- 175/2017

(जिला उपभोक्‍ता आयोग, रायबरेली द्वारा परिवाद सं0- 25/2015 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 01/12/2016 के विरूद्ध)

 

  1. Mahindra & Mahindra Limited through Managing Director Mahindra Automotive, Mahindra Tower, near H.A.L., Faizabad Road, Lucknow.
  2. Mahindra & Mahindra Financial Services Ltd., through Branch Manager Near Civil Lines Raibareily.

 

  1.                                                                                     Appellants   

Versus

 

  1. Yogendra Pratap Singh, son of Gyan Singh, R/O-Rana Nagar,Raibareily.
  2. Narayan Automobile, through Managing Director, IV, Shahajaf Road, Lucknow.

                                                                                  …………Respondents  

समक्ष

  1. मा0 श्री सुशील कुमार,   सदस्‍य
  2. मा0 श्री विकास सक्‍सेना, सदस्‍य

उपस्थिति:

अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता:-                      श्री प्रखर मिश्रा

प्रत्‍यर्थी सं0 1 की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता:-      श्री एस0एम0 वाजपेई

प्रत्‍यर्थी सं0 2 की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता:-      श्री के0एन0 शुक्‍ला 

 

दिनांक:- 21.01.2022      

माननीय श्री विकास सक्‍सेना, सदस्‍य द्वारा उदघोषित

निर्णय

  1.    यह अपील अंतर्गत धारा 15 उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम 1986 जिला उपभोक्‍ता आयोग, रायबरेली द्वारा परिवाद सं0 25/2015 योगेन्‍द्र प्रताप सिंह बनाम महिन्‍द्रा एण्‍ड महिन्‍द्रा लिमिटेड व अन्‍य में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांकित 01.12.2016 के विरूद्ध योजित की गयी है।
  2.    प्रत्‍यर्थी सं0 1/परिवादी द्वारा अपने परिवाद में मुख्‍य रूप से यह कथन किया गया है कि उसने विपक्षी सं0 1 महिन्‍द्रा एण्‍ड महिन्‍द्रा फाइनेन्सियल सर्विसेज लिमिटेड से ऋण लेकर विपक्षी नारायण आटो मोबाइल जो विपक्षी सं0 2 का डीलर तथा एक महिन्‍द्रा मैक्सिमों रूपये 3,02,000/- का ऋण लेकर लिया था, जिसकी वारण्‍टी 01 वर्ष की थी। प्रत्‍यर्थी सं0 1/परिवादी के अनुसार उक्‍त वाहन उसके जीवन यापन हेतु वाटर सप्‍लाई के कार्य में लगा था। क्रय करने के 20 दिन बाद वाहन चलते-चलते बन्‍द हो गया, जिसकी सूचना प्रत्‍यर्थी सं0 2/विपक्षी सं0 3 नारायण आटो मोबाइल को दी गयी, जिन्‍होंने अपने मैकेनिकों के माध्‍यम से वाहन को मंगवा लिया एवं कमी का पूरा करते हुए वाहन वापस कर दिया, किन्‍तु लगभग 2 माह बाद वाहन में पुन: खराबी हो गयी। जिसे विपक्षी नारायण आटो मोबाइल ने 03 दिन के उपरान्‍त ठीक कराकर वापस भेज दिया। जनवरी 2013 में वाहन ने पूर्ण रूप से कार्य करना बन्‍द कर दिया। उक्‍त वाहन का परीक्षण कराने पर विपक्षी सं0 3 नारायण आटो मोबाइल के मैकेनिको द्वारा बताया गया कि वाहन रायबरेली में ठीक नहीं होगा। प्रत्‍यर्थी सं0 1/परिवादी ने दिनांक 13.01.2013 को वाहन लखनऊ भेजा। नारायण आटो मोबाइल द्वारा दिनांक 30.01.2013 को वाहन दुरूस्‍त करके इसके चार्ज रूपये 10,000/- प्राप्‍त किये। पुन: वाहन फरवरी 2013 में खराब हो गया और उसके पश्‍चात दिनांक 12.09.2013 को पुन: खराब हुआ, जिससे दिनांक 04.02.2014 को मरम्‍मत करके वापस प्राप्‍त किया गया, किन्‍तु 24.02.2014 को पुन: वाहन खराब हो गया एवं इसकी मरम्‍मत करायी गयी। पुन: दिनांक 02.08.2014 को पुन: वाहन खराब हो गया, जिसकी रिपेयरिंग हेतु प्रत्‍यर्थी सं0 2/विपक्षी सं0 3 नारायण आटो मोबाइल द्वारा वाहन को मांगा गया, जिस पर   प्रत्‍यर्थी सं0 1/परिवादी ने उक्‍त वाहन को नहीं दिया क्‍योंकि विपक्षी सं0 2 व 3 ने मैन्‍यूफैक्‍चरिंग डिफेक्‍ट वाली गाड़ी लेकर लगभग 57,000/- रूपये परिवादी से ले लिये थे और प्रत्‍यर्थी सं0 1/परिवादी द्वारा यह परिवाद प्रस्‍तुत किया गया, जिसमें महिन्‍द्रा मैक्सिमों की नई गाड़ी प्रदान करने अथवा उसके द्वारा वाहन क्रय करने में व्‍यय की गयी धनराशि दिलाये जाने और 2,00,000/- रूपये की क्षतिपूर्ति के रूप में दिलाये जाने की मांग की गयी है।
  3.       अपीलार्थी/विपक्षी सं0 2 द्वारा प्रतिवाद पत्र प्रस्‍तुत किया गया, जिसमें कथन किया गया कि  प्रत्‍यर्थी सं0 1/परिवादी व्‍यवसायिक कार्य हेतु वाहन का क्रय किया था। अत: परिवादी उपभोक्‍ता की श्रेणी में नहीं आता है। अत: वाद उपभोक्‍ता फोरम में पोषणीय नहीं है। प्रश्‍नगत वाहन में 01 वर्ष की वारण्‍टी थी। दिनांक 26.07.2011 को वाहन की प्रथम सर्विसिंग की गयी थी, जिसमें स्‍टार्टिंग समस्‍या थी, जिसका निवारण किया गया। दिनांक 23.01.2013 को पुन: स्‍टार्टिंग समस्‍या होने पर वाहन की मरम्‍मत की गयी थी।तदोपरान्‍त दिनांक 22.09.2013 को, पुन: 25.02.2014 तथा 03.08.2014 को वाहन में स्‍टार्टिंग समस्‍या होने की शिकायत की गयी, जिसकी मरम्‍मत की गयी। विपक्षी के अनुसार वाहन में किसी प्रकार का निर्माण संबंधी दोष नहीं था। प्रत्‍यर्थी सं0 1/परिवादी ने गलत तथ्‍यों पर जानबूझकर यह परिवाद प्रस्‍तुत किया है। विद्धान जिला उपभोक्‍ता फोरम ने उभय पक्ष को सुनवाई का अवसर देने के उपरान्‍त परिवाद आंशिक रूप से इस प्रकार स्‍वीकार किया कि परिवादी को विपक्षी सं0 2 महिन्‍द्रा मैक्सिमों वाहन 2 माह के अंदर उपलब्‍ध करा दे। वाहन उपलब्‍ध न कराने की स्थिति में वाहन की धनराशि क्षतिपूर्ति एवं वाद व्‍यय हेतु वाद आज्ञप्‍त किया गया, जिससे व्‍यथित होकर यह अपील प्रस्‍तुत की गयी।
  4.     अपील में मुख्‍य रूप से यह कथन किया गया है कि प्रश्‍नगत निर्णय अवैध, मनमाना तथा न्‍यायिक की दृष्टि से उचित नहीं है तथा विद्धान जिला उपभोक्‍ता फोरम ने बिना मस्तिष्‍क का प्रयोग किये हुये निर्णय पारित किया है। विद्धान जिला उपभोक्‍ता फोरम ने यह तथ्‍य नहीं देखा कि प्रश्‍नगत वाहन प्रत्‍यर्थी सं0 1 द्वारा दिनांक 22.04.2011 को प्रस्‍तुत किया गया था एवं परिवाद दिनांक 18.02.2015 को अत्‍यंत देरी से प्रस्‍तुत किया गया है यदि परिवादी को वाहन क्रय करने के तुरंत बाद कोई निर्माण संबंधी दोष परिलक्षित हुआ था तो उसे तुरंत ही अपीलार्थी से सम्‍पर्क करना चाहिए था। दिनांक 01.11.2011 के उपरान्‍त दिनांक 23.01.2013 तक परिवादी ने इस परिवाद का कोई दोष अपीलार्थी को सूचित नहीं किया। विद्धान जिला उपभोक्‍ता फोरम ने निर्णय में इस तथ्‍य को साक्ष्‍य से पुष्‍ट नहीं किया है कि किन आधारों पर प्रश्‍नगत वाहन में निर्माण संबंधी दोष साबित होता है।   प्रत्‍यर्थी सं0 1/परिवादी द्वारा ऐसा कोई दस्‍तावेजी साक्ष्‍य प्रस्‍तुत नहीं किया गया है, जिससे यह तथ्‍य साबित होता हो कि प्रश्‍नगत वाहन में कोई निर्माण संबंधी दोष था। साक्ष्‍य से पुष्‍ट न होने के कारण प्रत्‍यर्थी सं0 1/परिवादी का परिवाद निरस्‍त किये जाने योग्‍य है और इस कारण प्रश्‍नगत निर्णय भी अपास्‍त किये जाने योग्‍य है यदि प्रश्‍नगत वाहन में कोई निर्माण संबंधी दोष था तो एक स्‍वतंत्र विशेषज्ञ की जांच रिपोर्ट के संबंध में ली जानी चाहिए थी, किन्‍तु ऐसी कोई आख्‍या प्रस्‍तुत नहीं की गयी। वाहन दिनांक 22.04.2011 को क्रय किया गया था, किन्‍तु प्रथम बार परिवादी ने वाहन की स्‍टार्टिंग समस्‍या दिनांक 23.01.2013 को सूचित की थी, जो वाहन क्रय करने के लगभग 02 वर्ष के बाद थी। अत: यह नहीं माना जा सकता कि वाहन में निर्माण संबंधी कोई दोष था। निर्णय बिना साक्ष्‍य को किये हुये एवं वि‍धिक स्थितियों को नजरअंदाज करते हुए दिया गया है जो अपास्‍त होने योग्‍य है। इन आधारों पर अपील प्रस्‍तुत की गयी है।
  5.    अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्‍ता श्री प्रखर मिश्रा तथा प्रत्‍यर्थी सं0 1 के विद्धान अधिवक्‍ता श्री एस0एम0 वाजपेई तथा प्रत्‍यर्थी सं0 2 के विद्धान अधिवक्‍ता श्री के0एन0 शुक्‍ला को विस्‍तृत रूप से सुना गया। पत्रावली पर उपलब्‍ध समस्‍त अभिलेख का परिशीलन किया गया, जिसके आधार पर पीठ के निष्‍कर्ष निम्‍नलिखित प्रकार से हैं:-

          प्रत्‍यर्थी सं0 1/परिवादी द्वारा प्रश्‍नगत वाहन में निर्माण संबंधी दोष दर्शाते हुए नया वाहन दिलाये जाने की मांग की गयी थी, जिसे विद्धान जिला उपभोक्‍ता फोरम ने उचित मानते हुए दोषपूर्ण वाहन के स्‍थान पर उसी मॉडल का नया वाहन दिलाये जाने अथवा उक्‍त शर्त का पालन न होने पर वाहन का मूल्‍य रूपये 3,02,000/- मय ब्‍याज दिलाया जाना आज्ञप्‍त किया है। प्रत्‍यर्थी सं0 1 वाहन स्‍वामी ने निर्माण संबंधी दोष होने के कारण वाहन में लगातार स्‍टार्टिंग समस्‍या बने रहने का आक्षेप किया है। प्रत्‍यर्थी सं0 1/परिवादी के उक्‍त आक्षेप के प्रकाश में वाहन के दुरूस्‍ती के प्रपत्रों की प्रतियों का अवलोकन किया गया जो यह प्रतियां दोनों पक्षों को स्‍वीकार है। शिकायत सर्वप्रथम यू0पी0 मोटर्स जो प्रत्‍यर्थी सं0 2 नारायण आटो मोबाइस की यूनिट दर्शायी गयी है। जॉब कार्डदिनांकित 26.07.11 अभिलेख पर है। उपलब्‍ध वाहन क्रय किये जाने के लगभग 03 माह के उपरान्‍त का है। इस जॉब कार्ड में उपभोक्‍ता द्वारा वाहन की दुरूस्‍ती की मांग में स्‍टार्टिंग समस्‍या दर्शायी गयी है। इस प्रपत्र में उल्‍लेख है कि उपभोक्‍ता द्वारा दुरूस्‍ती हेतु भुगतान किया गया है इस प्रपत्र से यह स्‍पष्‍ट होता है कि वाहन के क्रय किये जाने के 01 वर्ष के भीतर अर्थात वारण्‍टी अवधि के अंतर्गत यह समस्‍या उत्‍पन्‍न हो गयी थी। अभिलेख पर परिवादी योगेन्‍द्र प्रताप सिंह पत्र दिनांकित 17.02.2012 भी है, जिसकी प्रति नारायण आटो मोबाइल्‍स द्वारा प्राप्ति होने की मुहर व हस्‍ताक्षर है। इस पत्र में भी उपभोक्‍ता द्वारा कथन किया गया है कि उनकी गाड़ी दिनांक 17.02.2012 तक अनेकों बार खराब हो चुकी है। इसके उपरान्‍त रिपेयर आर्डर फार्म दिनांकित 03.08.2014 भी अभिलेख पर है। इस फार्म में भी वाहन का स्‍टार्टिंग समस्‍या होना एकमात्र शिकायत दर्ज है। इसके उपरान्‍त 08.02.2014 के जॉब कॉर्ड द्वारा यू0पी0 मोटर्स वर्क्‍स में प्रश्‍नगत वाहन में स्‍टार्टिंग समस्‍या होना एवं इसको रिपेयर किया जाना अंकित है। एक महीने के अंदर ही दिनांक 04.03.2014  को वाहन में स्‍टार्टिंग समस्‍या परिलक्षित होता है। बिल दिनांक 30.01.2013 रिपेयर आर्डर 23.01.2013 में स्‍टार्टर मोटर रिपेयर किया जाना अंकित है। बिल दिनांकित 07.02.2014  रिपेयर आर्डर 12.09.2013 में वाहन मे स्‍टार्टर न होने की समस्‍या होना अंकित है। रिपेयर आर्डर दिनांकित 08.02.2014 मे वाहन स्‍टार्टिंग समस्‍या होना अंकित है। इसी प्रकार बिल दिनांकित 28.02.2014  रिपेयर आर्डर दिनांकित 25.02.2014 में वाहन का स्‍टार्टर मोटर रिपेयर किया जाना परिलक्षित होता है।

  1.             इस प्रकार समस्‍त प्रपत्रों के अवलोकन से यह स्‍पष्‍ट होता है कि प्रश्‍नगत वाहन में क्रय होने के लगभग 03 महीने के अंदर ही स्‍टार्टिंग समस्‍या आरंभ हो गयी थी एवं वाहन लगातार चलते रहने पर बार बार इसमें स्‍टार्टिंग समस्‍या आती रही और प्रत्‍यर्थी नारायण आटो मोबाइल के अथराइज्‍ड गैराज यूपी मोटर्स द्वारा बार बार रिपेयर किये जाने के बावजूद भी वाहन में स्‍टार्टिंग समस्‍या बनी रही, जिससे स्‍पष्‍ट होता है कि प्रश्‍नगत वाहन में निर्माण संबंधी कोई दोष था, जिस कारण बार बार रिपेयर होने के बावजूद विपक्षी स्‍टार्टिंग समस्‍या दूर नहीं की जा सकी। यह स्‍टार्टिंग         समस्‍या वारण्‍टी अवधि में ही आरंभ हो गयी थी और वाद योजन की तिथि तक यह दोष आता रहा।
  2.      अपीलकर्ता की ओर से मुख्‍य तर्क यह दिया गया है कि प्रश्‍नगत वाहन में निर्माण संबंधी दोष होने के संबंध में किसी विशेषज्ञ की     आख्‍या नहीं दी गयी है, किन्‍तु प्रपत्रों से ही यह परिलक्षित होता है कि प्रश्‍नगत वाहन में बार बार स्‍टार्टिंग समस्‍या आ रही थी, जिसे बार बार रिपेयर गैराज में भेजे जाने के बावजूद यह समस्‍या बनी रही। तथ्‍यों से ही यह स्‍पष्‍ट हो जाता है कि वाहन में निर्माण संबंधी वाहन की स्‍टार्टिंग का दोष था, जिस कारण लगभग 04 वर्ष तक यह दोष दूर नहीं किया जा सका।
  3.            इस संबंध में माननीय राष्‍ट्रीय आयोग द्वारा पारित निर्णय क्‍वाडरोस मोटर्स प्राइवेट लिमिटेड प्रति प्रणालीचारी प्रकाशित IV (2021) CPJ पृष्‍ठ 139 (एनसी) इस संबंध में दिशा निर्देशन देता है कि इस निर्णय में प्रश्‍नगत वाहन में निर्माण संबंधी दोष था। बार बार वाहन खराब हो जाता था एवं बार बार दुरूस्‍ती हेतु प्रेषित किये जाने पर वाहन उचित प्रकार से नहीं चल सका। माननीय राष्‍ट्रीय आयोग द्वारा यह निर्णीत किया गया कि निर्माणकर्ता तथा डीलर का यह उत्‍तरदायित्‍व है कि वह निर्माण संबंधी दोष को दूर करें, यदि वाहन सही प्रकार से नहीं चल रहा है तो निर्माणकर्ता तथा डीलर का उत्‍तरदायित्‍व है कि उसे ठीक करायें और यदि वह दोष को ठीक करने में असफल रहता है तो उनका यह उत्‍तरदायित्‍व होगा कि वे यह तो नया वाहन दें अथवा वाहन का मूल्‍य उपभोक्‍ता को प्रदान करे।  माननीय राष्‍ट्रीय आयोग द्वारा इस निर्णय में यह भी निर्णीत किया गया कि यदि विशेषज्ञ की आख्‍या नहीं भी प्रस्‍तुत की गयी है तो भी तथ्‍यों से यह स्‍पष्‍ट हो जाता है कि वाहन में निर्माण संबंधी दोष था।
  4.       माननीय राष्‍ट्रीय आयोग के एक निर्णय टाटा मोटर्स प्रति राजेश त्‍यागी व अन्‍य, निगरानी सं0 1030 सन 2008 पर आधारित करते हुए यह निर्णीत किया गया कि यदि वाहन बार बार किसी एक दोष को दूर करने हेतु रिपेयर गैराज में लाया जा रहा है, जो जॉब कार्ड से स्‍पष्‍ट है तो यह माना जा सकता है कि वाहन में ऐसा कोई निर्माण संबंधी दोष था, जो बार बार रिपेयर करने के बावजूद दूर नहीं किया जा सका। माननीय राष्‍ट्रीय आयोग के उपरोक्‍त निर्णयों को आधारित करते हुए यह पीठ इस मत कि है कि प्रस्‍तुत मामले में उपभोक्‍ता द्वारा बार बार विपक्षी अथराइज्‍ड गैराज में स्‍टार्टिंग समस्‍या दूर करने के लिए ले जाया गया और कई बार स्‍टार्टिंग मोटर भी रिपेयर की गयी। किन्‍तु वाद योजन की तिथि तक स्‍टार्टिंग समस्‍या बनी रही। अत: इस वाहन में निर्माण संबंधी कोई ऐसा दोष था, जिससे यह समस्‍या दूर नहीं की जा सकी। अत: ऐसी दशा में वाहन को त्रुटिपूर्ण माना जा सकता है और इसलिए विपक्षी को क्षतिपूर्ति दिलाया जाना उचित है।
  5.              इस मामले में विद्धान जिला फोरम ने वाहन का कुल मूल्‍य विपक्षी से दिलवाया है किन्‍तु जॉब कार्ड के अवलोकन से स्‍पष्‍ट होता है कि रिपेयर आर्डर दिनांकित 26.07.2021 अर्थात क्रय किये जाने के 03 महीने में ही वाहन का 30,554 किमी चलना दर्शाया गया है। इसी प्रकार 04.03.2014 के जॉब कार्ड में वाहन का 47,711 किमी चलना दर्शाया गया है। रिपेयर आर्डर 01.11.2011 में वाहन का 30,354 किमी चलना दर्शाया गया है जिससे स्‍पष्‍ट होता है कि वाहन चलाया जा रहा था एवं ऐसी दशा में था कि वह सड़क पर चलने योग्‍य (Road worthy) न हो।
  6.        इस संबंध में माननीय राष्‍ट्रीय आयोग द्वारा पारित निर्णय मारूति उद्योग लिमिटेड प्रति अतुल भारद्धाज तथा अन्‍य प्रकाशित (I) 2009 CPJ   पृष्‍ठ 270 (एनसी) का उल्‍लेख करना उचित होगा। इस संबंध में माननीय सर्वोच्‍च न्‍यायालय द्वारा पारित एक अन्‍य मारूति उद्योग लिमिटेड प्रति सुशील कुमार गबगोतरा तथा अन्‍य प्रकाशित 2006 Vol IV SCC पृष्‍ठ 644 पर आधारित करते हुए यह निष्‍कर्ष दिया गया कि वाहन विक्रेता एवं निर्माणकर्ता का उत्‍तरदायित्‍व वाहन की कमियों को रिपेयर करना और दोषपूर्ण भागों को वारण्‍टी के अनुसार बदल देना है। प्रश्‍नगत वाहन को बदले जाने अथवा उसका सम्‍पूर्ण मूल्‍य दिलाये जाने का आदेश दिया जा सकता है, जब यह स्‍थापित हो जाये कि वाहन इस प्रकार के निर्माण संबंधी दोष रखता है, जिसके कारण वाहन सड़क पर चलने योग्‍य नहीं है।
  7.    माननीय राष्‍ट्रीय आयोग एवं माननीय सर्वोच्‍च न्‍यायालय द्वारा पारित उपरोक्‍त निर्णय इस मामले पर लागू होता है उपरोक्‍त वर्णित जॉब कार्ड के अवलोकन से स्‍पष्‍ट होता है कि प्रश्‍नगत वाहन परिवादी द्वारा चलाया जाता रहा किन्‍तु यह तथ्‍य भी स्‍थापित है कि इसमें स्‍टार्टिंग समस्‍या आरंभ से वाद योजन की तिथि तक बनी रही, जिसे विपक्षी बार-बार रिपेयर करने के बावजूद दूर नहीं कर सका। अत: निश्‍चय ही परिवादी को वाहन में कमियां होने के कारण असुविधा एवं हानि उठानी पड़ी, जिसके लिए उसे क्षतिपूरित किया जाना आवश्‍यक है। अत: वाहन का सम्‍पूर्ण मूल्‍य न दिलाकर परिवादी द्वारा वाहन का उपभोग एवं उपयोग किया जाने का तथ्‍य को दृष्टिगत करते हुए वाहन के कुल धनराशि का 50 प्रतिशत अर्थात रूपये 1,51,000/-   रूपये दिलवाया जाना उचित है। वाद तदनुसार आंशिक रूप से आज्ञप्‍त होने योग्‍य है तथा अपील आंशिक रूप से स्‍वीकार किए जाने योग्‍य है।

                   

  •  

                 अपील आंशिक रूप से स्‍वीकार की जाती है प्रश्‍नगत निर्णय व आदेश इस प्रकार संशोधित किया जाता है कि अपीलकर्ता,     प्रत्‍यर्थी सं0 1/परिवादी को वाहन का मूल्‍य का 50 प्रतिशत रूपये 1,51,000/- तथा इस पर वाद योजन की तिथि से वास्‍तविक अदायगी तक 8 प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्‍याज प्रदान करे। उभय पक्ष वाद व्‍यय स्‍वयं वहन करेंगे।

              आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें। 

 

 

 

 

  (विकास सक्‍सेना)                            (सुशील कुमार)

     सदस्‍य                                    सदस्‍य

     संदीप आशु0कोर्ट नं0 2

 

 
 
[HON'BLE MR. SUSHIL KUMAR]
PRESIDING MEMBER
 
 
[HON'BLE MR. Vikas Saxena]
JUDICIAL MEMBER
 

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