आदेश
दिनंाक 02-01-2023 को पारित
माननीय सदस्य श्री एसएस बंसल अनुसार
1- यह अपील अपीलार्थीगण/अनावेदकगण द्वारा उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा 15 के अंतर्गत जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण आयोग, उज्जैन (संक्षेप में ”जिला आयोग“) के प्रकरण क्रमांक 408/2017 में पारित आदेश दिनंाक 8-4-2019 से असंतुष्ट होकर प्रस्तुत की गई है।
2- प्रकरण का संक्षिप्त विवरण यह है कि परिवादी यशवंत कुमार के द्वारा अनावेदक बैंक से ऋण लिया था। बैंक ने ऋण की बकाया राशि प्रतिअपीलार्थी/परिवादी के बचत खाते में जमा राशि में से 89,000/- रूपए ऋण पेटे आहरित की। इससे असंतुष्ट होकर परिवादी ने जिला आयोग में परिवाद प्रस्तुत किया। जिला आयोग ने सुनवाई कर बैंक द्वारा परिवादी के बचत खाते में जमा राशि में से 89,000/- रूपए, जो आहरित किए, उसे अनुचित मानकर, परिवाद स्वीकार कर आदेश की कण्डिका-10 में निम्नानुसार आदेश पारित कियाः-
”परिणामस्वरूप आवेदक द्वारा प्रस्तुत परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए अनावेदकगण को आदेशित किया जाता है कि-
(अ) एक माह की अवधि के अंदर आवेदक को 89,000/- रूपए की राशि आवेदन दिनंाक 8-12-2017 से 6 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज सहित अदा करे।
(ब) उक्त अवधि में कथित राशि अदा करने में व्यतिक्रम करने की दशा में उक्त राशि पर 9 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज, आवेदन दिनंाक 18-12-2017 से अदा करे।
(स) परिवाद का व्यय 1,000/- रूपए अदा करे।“
इससे असंतुष्ट होकर यह अपील अपीलार्थीगण बैंक द्वारा प्रस्तुत की गई है।
3- उभयपक्ष को सुना गया।
4- अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता ने तर्क में बताया कि प्रतिअपीलार्थी/आवेदक द्वारा असत्य आधारों पर परिवाद प्रस्तुत किया है। प्रतिअपीलार्थी अपीलार्थी बैंक का डिफाल्टर रहा है, उसने ऋण अदायगी हेतु बैंक से समझौता किया था, किंतु लंबी अवधि बाद भी जानबूझकर ऋण की अदायगी नहीं की गई और कथित राशि अपने बचत खाते में जमा की गई, जिसकी जानकारी आवेदक को है, इसके बावजूद आवेदक ने ब्लैकमेलिंग करने के उद्देश्य से दुर्भावनापूर्वक परिवाद प्रस्तुत किया। सभी तथ्य जिला आयोग मंे प्रस्तुत हुए, उसके बाद भी जिला आयोग ने परिवाद स्वीकार किया, अतः अपील स्वीकार कर जिला आयोग का आदेश निरस्त होने योग्य है।
5- प्रतिअपीलार्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्ता ने तर्क में बताया कि अपीलार्थी बैंक को परिवादी के बचत खाते से 89,000/- रूपए की राशि आहरित करने का कोई अधिकार नहीं था। परिवादी ऋण राशि जमा करने हेतु तत्पर था। बैंक द्वारा राशि जमा नहीं कराई जा रही है। बैंक द्वारा जानबूझकर परिवादी के बचत खाते से राशि आहरित की। सभी तथ्य जिला आयोग के समक्ष प्रस्तुत हुये। जिला आयोग ने सभी तथ्यों पर विचार कर आदेश पारित किया है, जिसमें हस्तक्षेप का कोई आधार नहीं होने से अपील निरस्त होने योग्य है।
6- तर्को का मनन किया। अभिलेख का अवलोकन किया।
7- अभिलेख अनुसार परिवादी ने अपीलार्थी बैंक से ऋण लिया था। परिवादी द्वारा ऋण की राशि जमा नहीं कराये जाने पर अपीलार्थी बैंक ने परिवादी को दिनांक 11-9-2017 को मांग-पत्र भेजा था।
8- अभिलेख से स्पष्ट है कि परिवादी को अपीलार्थी बैंक से लिए गए ऋण की बकाया राशि अदा करनी थी। परिवादी द्वारा अपीलार्थी बैंक से ऋण राशि की अदायगी हेतु समझौता भी किया गया, लेकिन लंबी अवधि व्यतीत होने के उपरांत भी परिवादी ने ऋण राशि की अदायगी नहीं की गई, जिस पर अपीलार्थी बैंक द्वारा प्रतिअपीलार्थी/परिवादी के बचत खाते से राशि आहरित कर ऋण राशि का समायोजन किया गया, जिसके लिये अपीलार्थी बैंक द्वारा सेवा में कमी किया जाना नहीं माना जा सकता। जिला आयोग ने इस बिन्दु पर विचार न कर परिवाद स्वीकार करने में त्रुटि की गई है।
9- उपरोक्त विवेचना के प्रकाश में प्रस्तुत अपील स्वीकार कर जिला आयोग का आदेश दिनंाक 8-4-2019 निरस्त किया जाता है तथा परिवादी का परिवाद भी अपास्त किया जाता है।
10- अपील का व्यय स्वयं उभयपक्ष अपनाअपना वहन करेंगे।
न्यायमूर्ति शांतनु एस.केमकर
अध्यक्ष एस एस बंसल
सदस्य
दुफारे