राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-1568/2015
( सुरक्षित )
(जिला उपभोक्ता फोरम, सहारनपुर द्वारा परिवाद संख्या-227/2010 में पारित निर्णय और आदेश दिनांकित 06-07-2015 के विरूद्ध)
मेसर्स किरन कोल्ड स्टोरेज प्रा0लि0, चिलकाना रोड, शहर-सहारनपुर द्वारा डायरेक्टर मनोहर लाल अहूजा।
अपीलार्थी/विपक्षी
बनाम्
यशपाल पुत्र श्री ओम प्रकाश निवासी-ग्राम-उसंड, डा0 व तहसील-बेहट, जिला-सहारनपुर।
प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष :-
- माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष।
- माननीय श्रीमती बाल कुमारी, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री आर0 के0 गुप्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : श्री नवीन कुमार तिवारी।
दिनांक : 18-04-2017
माननीय श्रीमती बाल कुमारी, सदस्य द्वारा उद्घोषित निर्णय
परिवाद संख्या-227/2010 यशपाल बनाम् मैसर्स किरन कोल्ड स्टोरेज प्रा0 लि0 में जिला फोरम, सहारनपुर द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक 06-07-2015 के विरूद्ध यह अपील उपरोक्त परिवाद के विपक्षी मेसर्स किरन कोल्ड स्टोरेज प्रा0लि0 की ओर से धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम,1986 के अन्तर्गत इस आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गयी है।
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आक्षेपित निर्णय और आदेश के द्वारा जिला फोरम ने परिवाद विपक्षी मेसर्स किरन कोल्ड स्टोरेज प्रा0लि0 के विरूद्ध स्वीकार किया जाता है। विपक्षी को आदेश दिया जाता है कि वह इस निर्णय की तिथि से एक माह के अंदर परिवादी को उसके खराब हुए आलू की कीमत अंकन रूपये 5,41,599/- व इस पर परिवाद दायर करने की तिथि से इस निर्णय की तिथि तक 9 प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्याज सहित अदा करें। इसके अतिरिक्त विपक्षी उपरोक्त अवधि में ही परिवादी को मानसिक, शारीरिक एवं आर्थिक कष्ट एवं सेवा में कमी के लिए अंकन रूपये 50,000/- एवं वाद व्यय हेतु अंकन रू0 5,000/- भी अदा करें। उपरोक्त अवधि में अदायगी ना करने पर इस निर्णय की तिथि से अंतिम अदायगी की तिथि तक विपक्षी द्वारा परिवादी को अंकन रूपये 5,91,599/-रू0 की राशि पर 9 प्रतिशत वार्षिक की दर से साधारण बयाज भी देय होगा।
संक्षेप में इस केस के तथ्य इस प्रकार है कि परिवादी एक काश्तकार है और परिवादी अधिकतर अपनी खेती में साग-सब्जी उगाने, आलू बोने आदि का कार्य करता है तथा मुख्य रूप से आलू बोता है तथा प्रत्येक वर्ष अपनी अग्रिम फसल की बुआई के लिए उत्तम किस्म का बीज सुरक्षित रखने हेतु उसे कोल्ड स्टोरेज में रखता है। परिवादी ने विपक्षी के पास अपनी आलू की फसल एफ-2 को सुरक्षित रखने के लिए दिनांक 28-03-2010 को 171 बोरे, दिनांक 30-03-2010 को 167 बोरे, दिनांक 02-04-2010 को 179 बोरे, दिनांक 04-04-2010 को 171 बोरे व दिनांक 23-04-2010 को 46 बोरे कुल 724 बोरे रखे थे जिनका शुल्क 62/-रू0 प्रति बोरा तय था। विपक्षी द्वारा विश्वास दिलाया गया था कि उसके स्टोर में रखा आलू खराब नहीं होगा और न ही सिकुडेगा तथा न ही सडेगा और न ही आलू में अंकुर
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फूटेगा और सही हालत में जैसा आलू रखा जायेगा वैसा ही मिलेगा क्योंकि उसके यहॉं 24 घंटे बिजली की आपूर्ति है। परिवादी जब आलू की बुआई हेतु अपना 30 बोरा आलू उठाने दिनांक 30 सितम्बर, 2010 को विपक्षी के कोल्ड स्टोर में गया तो उसने पाया कि आलू पूरी तरह खराबहोगया है और आलू बोनेलायकनहीं रहा तथा आलू सिकुड व सड़ गया जिसे देखकर परिवादी को काफी मानसिक व शारीरिक कष्ट पहुँचा। परिवादी ने इसकी शिकायत विपक्षी से की तो विपक्षी द्वारा उसे कोई संतोषजनक उत्तर नहीं दिया गया बल्कि उससे दुर्व्यवहार किया गया और क्षतिपूर्ति हेतु कोई धनराशि देने से मना कर दिया गया। तब परिवादी द्वारा दिनांक 14-10-2010 को अधिवक्ता के माध्यम से नोटिस भेजा और खराब हुए आलू की कीमत मु0 5,79,200/-रू0 की मांग की, किन्तु नोटिस प्राप्त होने के बाद भी विपक्षी द्वारा कोई अनुपालन नहीं किया गया। इसके बाद परिवादी द्वारा जिला उद्यान अधिकारी, सहारनपुर से भी शिकायत की गयी। विपक्षी को जब इस बात की जानकारी हुई तो उसने सबूत मिटाने के लिए आनन-फानन में परिवादी के आलू के बोरे विपक्षी के कथनानुसार बेच दिये जिसमें परिवादी की कोई अनुमति या सहमति भी नहीं ली गयी और न ही परिवादी को बताया गया। विपक्षी ने आलू के बोरे कुल 87,295/-रू0 में बेचना बताकर, 45,694/-रू0 किराये के एवं 4000/-रू0 20 बोरे सफाई छंटाई के कम करकेकुल 37,601/-रू0 के चेक दिनांक 30-11-2010 अपने पत्र दिनांक 30-11-2010 के माध्यम से परिवादी को प्रेषित किया। पत्र प्राप्त होनेके बाद भी परिवादी विपक्षी से मिला तथा विपक्षी के अनाधिकृत कृत्यों पर एतराज जताया तथा विपक्षी द्वारा पूर्व की भॉंति धमकी दी गयी और परिवादी को
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उसके साथ गये व्यक्ति के समक्ष ही स्टोर से बाहर निकाल दिया गया। परिवादी का यह भी कथन है कि विपक्षी का उक्त कृत्य घोर लापरवाही का प्रतीक है। जिससे परिवादी को घोर मानसिक, शारीरिक व आर्थिक क्षति हुई है और हो रही है और परिवादी अपने खेत में अपने कीमती आलू की फसल को नहीं बो सका और उसे बुआई करने हेतु बाजार से अधिक कीमत पर बीज लेना पड़ा। जो कि विपक्षी की सेवा में कमी है इसलिए यह परिवाद योजित किया गया है।
विपक्षी किरन कोल्ड स्टोरेज द्वारा अपना उत्तर पत्र प्रस्तुत किया गया और कहा गया कि वाद खिलाफ कानून तथ्यों के विपरीत बिना किसी आधार के प्रस्तुत किया गया है। वादी उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत उपभोक्ता की परिषाभा में नहीं आता है। वादी ने कोल्ड स्टोरेज में आलू के बोरे व्यापार पर लाभ कमाने के उद्देश्य से स्टोर किया था। इस आधार पर वाद निरस्त होने योग्य है। परिवादी का यह कथन भी गलत है कि उसके द्वारा 724 बोरे बीज के रखे थे क्योंकि उनमें 114 बोरे बीज के थे और शेष मोटा आलू था। यह भी कहा गया कि परिवादी की इतनी खेती नहीं है जिसमेंवह 724 बोरे बीज के लगा सकता क्योंकि एक बीघा पक्का क्षेत्रफल मे दो या तीन बोरे आलू के बीज के लगते हैं तथा विपक्षी द्वारा यह भी कहा गया कि विपक्षी ने आलू पूरी सावधानी व उचित तापमान पर रखा और निश्चित अवधि तक आलू बिल्कुल सही स्थिति में था आलू न तो सिकुडा था और न ही खराब हुआ था। वर्ष 2010 में आलू काफी मंदा था और आलू का सही भाव नहीं मिल रहा था। किराया न अदा करना पड़े इस कारण परिवादी ने आलू स्टोर से नहीं उठाया। विपक्षी के स्टोर में 30,000 बोरे आलू के विभिन्न व्यक्तियों व सरकारी विभाग के रखे थे। किसी ने भी
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कोई शिकायत नहीं की। आलू रखने की समय सीमा एक 01 मार्च से शुरू होकर 31 अक्टूबर को समाप्त हो जाती है एवं आलू यदि किसी बीमारी या लासे के कारण खराब होता है तो उसकी कोई जिम्मेदारी स्टोर की नहीं होती है। यह सभी रसीदों (गेट पास) पर पीछे अंकित है। परिवादी को आलू उठाने हेतु मौखिकरूप से भी कहा गया तथा दिइनांक 25-10-2010, 01-11-2010,06-11-2010 व 30-11-2010 को पत्र लिखे गये। इन पत्रों के प्राप्त होने पर भी परिवादी ने न तो आलू उठाया और न ही किराये की राशि को अदा किया। यदि आलू मण्डी समिति में न बेचा जाता तो खराब हो जाता। परेशान होकर विपक्षी ने आलू को दिनांक20-11-2010 से 23-11-2010 के बीच परिवादी को सूचित करके मण्डी समिति में बाजारी भाव पर बेच दिया। यह आलू 87,295/-रू0 में बिका तथा किराया 45,694/-रू0 काटकर शेष राशि 37,601/-रू0 का चेक परिवादी को भिजवा दिया गया जिसका भुगतान परिवादी ने प्राप्त कर लिया। विपक्षी द्वारा कोई भी ऐसा कार्य नहीं किया गया है जो सेवा में कमी के अन्तर्गत आता हो। परिवादी अपने वाद को साबित करने में पूर्णतया: असमर्थ रहा है। अत: वादी का वाद सव्यय निरस्त होने योग्य है।
अपीलार्थी की ओर से विद्धान अधिवक्ता श्री आर0 के0 गुप्ता तथा प्रत्यर्थी की ओर से विद्धान अधिवक्ता श्री नवीन कुमार तिवारी उपस्थित आए।
हमने उभयपक्ष के विद्धान अधिवक्तागण के तर्क को सुना है तथा आक्षेपित निर्णय और आदेश एवं पत्रावली का अवलोकन किया है।
अपीलार्थी/विपक्षी के विद्धान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम ने साक्ष्यों तथा तथ्यों की अनदेखी करते हुए विधि विरूद्ध आदेश पारित किया
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है। इसके साथ ही कथन किया कि परिवादी/प्रत्यर्थी उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आता है क्योंकि उसने 724 बोरे आलू बाजार में मंहगे भाव पर बेचकर लाभ कमाने के लिए व्यापारिक प्रयोजन हेतु आलू कोल्ड स्टोर में रखा था। परिवादी/प्रत्यर्थी के पास इतनी खेती नहीं है कि वह 724 बोरे आलू का बीज बो सके। अपीलार्थी/विपक्षी ने आलू निश्चित अवधि के लिए उचित तापमान पर रखा था और आलू का भाव कम हो जाने के कारण परिवादी अपना आलू उठाने नहीं आया इसलिए विपक्षी/अपीर्थी ने मण्डी परिषद के भाव के अनुसार आलू बेचकर कोल्ड स्टोर का किराया काटकर शेष धनराशि 37,601/-रू0 का चेक परिवादी/प्रत्यर्थी को अदा कर दिया। अपीलार्थी/विपक्षी ने कोई सेवा में कमी नहीं की है अत: अपील स्वीकार कर जिला फोरम के आदेश को अपास्त किया जाए।
प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्धान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम ने साक्ष्य तथा तथ्यों के आधार पर विधि अनुकूल आदेश पारित किया है और उसमें हस्तक्षेप की कोई आवश्यकता नहीं है अत: अपील निरस्त करते हुए जिला फोरम के आदेश को यथावत रखा जाए।
पत्रावली का परिशीलन यह दर्शाता है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने अपनी आलू की फसल एफ-2 को सुरक्षित रखते हेतु विभिन्न तिथियों को कुल 724 बोरे आलू विपक्षी/अपीलार्थी के कोल्ड स्टोरेज में 62/-रू0 प्रति बोरे के हिसाब से किराया तय कर रखा। विपक्षी ने अपने प्रतिवाद पत्र में 724 बोरे आलू रखा जाना तथा 62/-रू0 प्रति बोरे के हिसाब से किराया तय होने से इंकार नहीं किया है तथा यह भी कहा कि समय-समय पर परिवादी 128 बोरे आलू उठाकर ले गया तथा शेष आलू में से 114 बोरे आलू ही बीज का आलू था एवं बाकी कोल्ड स्टोरेज में रखा आलू मोटा था। अपीलार्थी/विपक्षी
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ने 128 बोरे आलू परिवादी/प्रत्यर्थी द्वारा ले जाने का न तो कोई साक्ष्य जिला फोरम में दाखिल किया है और न ही अपील के स्तर पर ही ऐसा कोई अभिलेखीय साक्ष्य प्रस्तुत किया है जिससे यह स्पष्ट हो सके कि परिवादी/प्रत्यर्थी अमुक तिथि को 128 बोरे आलू उठा कर ले गया है। अत: प्रत्यर्थी/परिवादी का कथन ही है कि उसने 724 बोरे आलू 62/-रू0 प्रति बोरे
के किराये के हिसाब से अपीलार्थी/विपक्षी के कोल्ड स्टोरेज में रखे जो बिना परिवादी/प्रत्यर्थी की सहमति व विश्वास में लिए बिना ही परिवादी/प्रत्यर्थी की अनुपस्थिति में आलू को बेचा जाना विपक्षी/अपीलार्थी की सेवा में कमी है। जिला फोरम ने प्रत्येक बिन्दु पर विस्तृत विश्लेषण करनेके बाद आलू की कीमत व ब्याज के संबंध में जो आदेश पारित किया वह वह विधि अनुसार है और इसमें हस्तक्षेप की कोई आवश्यकता नहीं है। जहॉं तक मानसिक व शारीरिक कष्ट के मद में 50,000/-रू0 क्षतिपूर्ति हेतु आदेश पारित किया गया है वह उचित नहीं है और अपास्त किये जाने योग्य है। अपीलार्थी द्वारा जो धनराशि प्रत्यर्थी/परिवादी को आलू के मद में अदा कर दी है उसे इस धनराशि से घटाते हुए 62/-रू0 प्रति बोरी के किराये की धनराशि से घटाते हुए शेष धनराशि परिवादी/प्रत्यर्थी को मय ब्याज अदा करेगा।
परिवादी/प्रत्यर्थी ने विपक्षी/अपीलार्थी को विधिक नोटिस दिया व जिला उद्यान अधिकारी के यहॉं लिखित शिकायत की तत्पश्चात् परिवाद योजित किया है। अपीलार्थी ने बिना परिवादी की सहमति व परिवादी की अनुपस्थिति में आलू बेचकर घोर सेवा में कमी की है अत: 5,000/-रू0 वाद व्यय के मद में जिला फोरम द्वारा पारित आदेश विधि अनुसार सही है।
तद्नुसार अपील आंशिक रूप से स्वीकार किये जाने योग्य है।
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आदेश
अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है। जिला उपभोक्ता फोरम, सहारनपुर द्वारा परिवाद संख्या-227/2010 में पारित निर्णय और आदेश दिनांकित 06-07-2015 को संशोधित करते हुए मानसिक व शारीरिक कष्ट के मद में 50,000/-रू0 क्षतिपूर्ति का आदेश निरस्त किया जाता है। निर्णय/आदेश का शेष भाग यथावत रहेगा।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान) (बाल कुमारी)
अध्यक्ष सदस्य
कोर्ट नं0-1 प्रदीप मिश्रा