Final Order / Judgement | (सुरक्षित) राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ। अपील सं0 :- 85/2020 (जिला उपभोक्ता आयोग, (द्वितीय) लखनऊ द्वारा परिवाद सं0-490/2012 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 11/04/2019 के विरूद्ध) Mr. Wazeer Hasan S/O Mehdhi Hasan R/O Gram Malshay Mau Gomti Nagar Lucknow - Appellant
Versus - Yash Construction Equipments Pvt. Ltd, 19/837, Sector 19, Ring Road Indira Nagar, Lucknow,
- Tata Hitachi Construction Equipment Company Pvt. Limited Telco construction Equipment Company limited 19/837, Sector 19 Ring road Indira Nagar Lucknow.
- Respondents
समक्ष - मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्य
- मा0 श्री विकास सक्सेना, सदस्य
उपस्थिति: अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता:-श्री विष्णु कुमार मिश्रा प्रत्यर्थीगण के विद्वान अधिवक्ता:- कोई नहीं दिनांक:-26.04.2023 माननीय श्री विकास सक्सेना, सदस्य द्वारा उदघोषित निर्णय - जिला उपभोक्ता आयोग, (द्वितीय) लखनऊ द्वारा परिवाद सं0 490/2012 वजीर हसन बनाम यश कन्स्ट्रक्शन इक्यूपमेंट प्रा0लि0 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 11.04.2019 के विरूद्ध यह अपील प्रस्तुत की गयी है।
- संक्षेप में वाद के तथ्य इस प्रकार हैं कि अपीलार्थी/परिवादी ने हाइड्रोलिक बैकहो लोडर विद एचडी-टायर 28 बकेट अर्थ मूविंग मशीन प्रत्यर्थी सं0 2/विपक्षी सं0 2 से खरीदी थी, जिसका इंजन सं0 NZY 860026 चेचिस सं0 315ई 1094 है उक्त मशीन की कुल कीमत 15,99,999.45/- है। उक्त मशीन के अधिकृत डीलर प्रत्यर्थी सं0 1/विपक्षी सं0 1 है एवं मशीन की निर्माता टेल्को कन्स्ट्रक्शन इक्यूपमेंट कम्पनी लि0 है। उक्त मशीन की डिलीवरी दिनांक 21.01.2011 को सम्पूर्ण धनराशि प्राप्त करके दी गयी थी। इसको खरीदने के लिए अपीलार्थी/परिवादी ने श्रीराम ट्रांसपोर्ट फाइनेंस कम्पनी से फाइनेंस कराया था। अपीलार्थी/परिवादी को उक्त मशीन के फाइनेन्स के ऐवज में रू0 38,383/- प्रतिमाह 32 माह तक देना था। इस मशीन की वारण्टी दिनांक 21.01.2011 से दिनांक 20.07.2012 तक अथवा 3004 घण्टों की इनमें से जो भी प्रथम हो, के लिए थी। यह मशीन आर0टी0ओ0 धनबाद से रजिस्टर्ड थी। मशीन ने उचित प्रकार से कार्य नहीं किया। मशीन में निर्माणीय त्रुटि थी। मशीन की शिकायतें प्रत्यर्थी सं0 1/विपक्षी सं0 1 से अपीलार्थी/परिवादी करता रहा। दिनांक 31.01.2011 को सर्विस करायी गयी। दिनांक 01.03.2011 को इंजन ने लोड लेना बंद कर दिया, जिसे कम्पनी द्वारा दिनांक 12.03.2012 को सही कराया गया। दिनांक 09.05.2011 को हाइड्रोलिक ऑयल लीक करने लगा, जिस कारण मशीन के कुछ पार्टस बदलने पड़े। इसी प्रकार विभिन्न तिथियों पर मशीन खराब होती रही और विपक्षी उसे ठीक करके देता रहा। इसके बाद भी मशीन ठीक से कार्य नहीं कर रही है। अपीलार्थी/परिवादी ने मशीन स्वरोजगार के लिए क्रय की थी और उसमें निर्माणीय त्रुटि है, इसलिए प्रतिदिन उसका रू0 4,000/- से रू0 5,000/- तक का नुकासान हो रहा है। अपीलार्थी/परिवादी ने विधिक नोटिस भी भेजी परंतु विपक्षी द्वारा कोई संज्ञान नहीं लिया गया है। ऐसा करके विपक्षी ने सेवा में कमी की है, जिस कारण यह परिवाद योजित करना पड़ा।
- प्रत्यर्थी सं0 1/विपक्षी सं0 1 ने प्राथमिक आपत्ति में कहा है कि विपक्षी ने सेवा में कोई कमी नहीं की है। परिवादी ने उक्त मशीन वाणिज्यिक प्रयोग हेतु क्रय किया है उसने उक्त मशीन स्वरोजगार हेतु नहीं क्रय किया है। परिवादी का परिवाद उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आता है। परिवाद खण्डित होने योग्य है।
- प्रत्यर्थी सं0 2/विपक्षी सं0 2 ने प्रारंभिक आपत्ति में उन्हीं तथ्यों को दोहराया है जिन तथ्यों को विपक्षी सं0 1 ने दोहराया है।
- अपीलार्थी की ओर से विद्धान अधिवक्ता श्री विष्णु कुमार मिश्रा को सुना गया। प्रत्यर्थीगण ओर से कोई उपस्थित नहीं है। पत्रावली पर उपलब्ध समस्त अभिलेख का अवलोकन किया गया।
- अपीलार्थी/परिवादी द्वारा लोडर मशीन जो अपीलार्थी/परिवादी के निर्माण के कार्य में उपयोग की जानी है, के संबंध में यह उपभोक्ता परिवाद प्रस्तुत किया गया है। विपक्षी का मुख्य रूप से यह कथन आया है कि अपीलार्थी/परिवादी का निर्माण का कार्य व्यवसायिक उद्देश्य से किया जा रहा कार्य है एवं इसके लिए जो लोडर मशीन खरीदी गयी है, इस क्रय के संबंध में अपीलार्थी/परिवादी उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं माना जा सकता क्योंकि यह सम्व्यवहार व्यवसायिक उद्देश्य से किया गया है।
- इस संबंध में माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पारित निर्णय लक्ष्मी इन्जीनियरिंग वर्क्स प्रति पीएसजी इण्डस्ट्रियल इंस्टीट्यूट प्रकाशित II (1995) CPJ page 1 (S.C.) का उल्लेख करना उचित होगा। निर्णय के प्रस्तर 10 तथा 11 में यह दिया गया है कि अपीलार्थी/परिवादी का यह लिखना पर्याप्त नहीं है कि वह जीवन यापन हेतु स्वरोजगार के माध्यम से कार्य कर रहा है, जिसके लिए सेवा अथवा वस्तु क्रय की गयी है और उसको उपभोक्ता माना जाये। वास्तव में यह क्रय व्यवसायिक उद्देश्य के लिए है अथवा नहीं यह देखा जाना आवश्यक है।
Controversy has, however, arisen with respect to meaning of the expression “commercial purpose”. It is also not defined in the Act. In the absence of a definition, we have to go by its ordinary meaning. “Commercial” denotes “pertaining to commerce” (Chamber’s Twentieth Century Dictionary); it means “connected with, or engaged in commerce; mercantile; having profit as the main aim” (Collins English Dictionary) whereas the word “commerce” means “financial transactions especially buying and selling of merchandise, on a large scale” (Concise Oxford Dictionary). The National Commission appears to have been taking a consistent view that where that where a person purchases goods “with a view to using such goods for carrying on any activity on a large scale for the purpose of earning profit” he will not be a “consumer”. - मा0 सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष इस मामले में परिवादी ने एक लघु उद्योग इकाई के लिए सेण्ट्रल टर्निंग मशीन खरीदी थी एवं उपभोक्ता परिवाद में यह उल्लेख किया कि यह लघु उद्योग उसके द्वारा स्वरोजगार हेतु जीवन-यापन के उद्देश्य से किया जा रहा है। मा0 सर्वोच्च न्यायालय द्वारा यह निर्णीत किया गया कि वास्तव में यह लघु उद्योग भी लाभ कमाने के उद्देश्य से किया जा रहा है और यह कहने से कि परिवादी स्वरोजगार हेतु जीवन-यापन के लिए कार्य कर रहा है। अपीलार्थी/परिवादी को उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं माना जा सकता है।
- प्रस्तुत मामले पर माननीय सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय लागू होता है। इस मामले में यद्यपि अपीलार्थी/परिवादी ने स्वयं को उपभोक्ता इस आधार पर बताया है कि उसके द्वारा अपना निर्माण का कार्य स्वरोजगार के उद्देश्य से जीवन-यापन हेतु किया जा रहा है, किन्तु स्पष्ट रूप से निर्माण का कार्य लाभ कमाने के उद्देश्य से व्यवसायिक प्रकृति का है एवं माननीय सर्वोच्च न्यायालय के उपरोक्त निर्णय के अनुसार अपीलार्थी/परिवादी को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत संरक्षण नहीं दिया जा सकता है।
- इस संबंध में माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पारित एक अन्य निर्णय राजीव मेटल वर्क्स प्रति मिनेरल एण्ड मेटल ट्रेडिंग कारपोरेशन आफ इण्डिया प्रकाशित 1996 वाल्यूम 9 एस.सी.सी. पृष्ठ 422 तथा ए.आई.आर. 1996 एस.सी. पृष्ठ 1083 भी इस संबंध में दिशा-निर्देशन देता है जिसमें परिवादी ने जनपद उन्नाव उत्तर प्रदेश में जिला उद्योग केन्द्र के माध्यम से एक उद्योग स्थापित किया, इससे संबंधित सम्व्यवहार को माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा व्यवसायिक उद्देश्य से किया गया कार्य माना तब इस संबंध में माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा पारित नकौदा मशीनरी प्राइवेट लिमिटेड प्रति जॉन क्रस्टा व अन्य निगरानी सं0 3517 सन 2016 भी इस मामले में उल्लेखनीय है। इस मामले में परिवादी ने एक जे0सी0बी0 मशीन तथा रॉक अपने कम्पनी के लिए खरीदा, जिसमें परिवादी ने जीवन यापन हेतु बताया किन्तु माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा यह निर्णीत किया गया कि कार्य की प्रकृति के अनुसार अपीलार्थी/परिवादी को उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं माना जा सकता है।
- प्रस्तुत मामले में माननीय सर्वोच्च न्यायालय एवं राष्ट्रीय आयोग द्वारा पारित निर्णय में उल्लिखित सिद्धांतों के आधार पर प्रस्तुत मामले में भी अपीलार्थी/परिवादी ने अपने निर्माण कार्य के व्यवसाय के लिए प्रश्नगत मशीन का खरीदना बताया, जिसे जीवन-यापन एवं स्वरोजगार हेतु नहीं माना जा सकता है। अपीलार्थी/परिवादी का क्रय का सम्व्यवहार व्यवसायिक उद्देश्य से होने के कारण अपीलार्थी/परिवादी उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं माना जा सकता है। अत: अपील उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत पोषणीय नहीं है। अत: अपील इस निर्देश के साथ निरस्त किये जान योग्य है कि अपीलार्थी सक्षम न्यायालय में अपील प्रस्तुत करने के लिए स्वतंत्र है।
आदेश अपील निरस्त की जाती है। आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें। (विकास सक्सेना) (सुशील कुमार) सदस्य सदस्य संदीप, आशु0 कोर्ट नं0-3 | |