Uttar Pradesh

StateCommission

A/2013/297

Sanmukh Sari House - Complainant(s)

Versus

XPS Cargo - Opp.Party(s)

Omkar Nath Verma

08 Nov 2017

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/2013/297
(Arisen out of Order Dated in Case No. of District State Commission)
 
1. Sanmukh Sari House
a
...........Appellant(s)
Versus
1. XPS Cargo
a
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. Ram Charan Chaudhary PRESIDING MEMBER
 HON'BLE MRS. Smt Balkumari MEMBER
 
For the Appellant:
For the Respondent:
Dated : 08 Nov 2017
Final Order / Judgement

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।

(सुरक्षित)                                                                                  

अपील संख्‍या:-297/2013

(जिला उपभोक्‍ता फोरम, दितीय लखनऊ द्धारा परिवाद सं0-333/2011 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 17.01.2013 के विरूद्ध)

M/s Sanmukh Saree House, Kanpur Road, Alambagh, Lucknow through its Proprietor Mr. Vijai Kumar.                         

              ........... Appellant/ Complainant

Versus    

1-      XPS Cargo, A Division of T.C.I., T.C.I. House A- 331-332 Transport Nagar, Lucknow through its Branch Manager.

2-      Administrative Officer, XPS, Administrative Office-10, Ram Bagh Old Rohtak Road, Delhi-110007

            ……..…. Respondents/ Opp. Parties                                                            

समक्ष :-  

मा0 श्री रामचरन चौधरी, पीठासीन सदस्‍य

मा0 श्रीमती बाल कुमारी, सदस्‍य

अपीलार्थी के अधिवक्‍ता      :   श्री ओमकार नाथ वर्मा

प्रत्‍यर्थी के अधिवक्‍ता       :   श्री आर0के0 गुप्‍ता

दिनांक : 15-11-2017

मा0 श्री रामचरन चौधरी, पीठासीन सदस्‍य द्वारा उदघोषित

निर्णय    

मौजूदा अपील जिला उपभोक्‍ता फोरम, दितीय लखनऊ द्धारा परिवाद सं0-333/2011 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 17.01.2013  के विरूद्ध योजित की गई है, उक्‍त निर्णय के द्वारा परिवादी का परिवाद खारिज किया गया है।

संक्षेप में केस के तथ्‍य इस प्रकार है कि परिवादी 50 साल से साडियों का काम कर रहा है एवं प्रतिवादी सं0-1, प्रतिवादी सं0-2 की ब्रांच है एवं दिनांक 06.12.2007 को परिवादी ने 32 साडियों का बंडल जिसकी कीमत 20,000.00 रू0 थी, प्रतिवादी सं0-1 के माध्‍यम से 388.00 रू0 खर्च करके बुक कराया था, जिसकी रसीद उसे प्राप्‍त हुई थी एव‍ं डिलीवरी न मिलने पर शिकायत की गई। परिवादी ने प्रतिवादी सं0-1 से सम्‍पर्क किया तो उन्‍होंने माल गायब होना बताया। परिवादी ने 20,388.00 रू0 प्राप्‍त करने के लिए

-2-

पत्र भेजा, परन्‍तु कोई सुनवाई नहीं हुई एवं व्‍यापार मण्‍डल ने भी दिनांक 23.5.2008 को पत्र भेजा, किन्‍तु कोई सुनवाई नहीं की गयी और केवल माल के संबंध में आश्‍वासन देते रहे, अत: दिनांक 11.8.2009 को पंजीकृत डाक द्वारा लीगल नोटिस भेजी गयी, परन्‍तु कोई कार्यवाही नहीं की गई, अत: परिवादी द्वारा प्रतिवादीगण से 32 साडियों की कीमत 20,000.00 रू0 मय ब्‍याज तथा क्षतिपूर्ति का अनुतोष दिलाये जाने हेतु जिला उपभोक्‍ता फोरम के समक्ष परिवाद प्रस्‍तुत किया गया है।

प्रतिवादीगण की ओर से जिला उपभोक्‍ता फोरम के समक्ष अपना प्रतिवाद पत्र प्रस्‍तुत कर यह कथन किया गया है कि माल बुकिंग के संबंध में कोई कागजात नहीं दाखिल किया है, जिस कारण कोई जवाब देना सम्‍भव नहीं है और रसीद के बारे में भी जवाब दिया जाना सम्‍भव नहीं है ऐसा कथन किया गया है कि अपने पूरे बयान में प्रतिवादीगण ने यही कहा है कि यह काफी पुराना मामला है, इसलिए जवाब देना सम्‍भव नहीं है और यह भी कहा गया है कि मामला उपभोक्‍ता फोरम के अन्‍तर्गत नहीं आता है, अत: परिवाद खारिज किए जाने योग्‍य है।

इस सम्‍बन्‍ध में जिला उपभोक्‍ता फोरम के प्रश्‍नगत निर्णय/आदेश दिनांकित 17.01.2013 तथा आधार अपील का अवलोकन किया गया एवं अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता श्री ओमकार नाथ वर्मा तथा प्रत्‍यर्थी की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता श्री आर0के0 गुप्‍ता उपस्थित आये। उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्‍तागण की बहस सुनी तथा पत्रावली पर उपलब्‍ध अभिलेखों एवं लिखित बहस का भी अवलोकन किया गया है।

आधार अपील में यह कहा गया है कि मैसर्स सनमुख साड़ी हाउस एक प्रतिष्ठित फर्म है और विगत 50 वर्षों से चल रही है और अपीलार्थी ने 32 साडियों का पार्सल कीमत 20,000.00 रू0 प्रत्‍यर्थी सं0-1 से दिनांक 06.10.2007 बुक कराया था और अपीलार्थी प्रत्‍यर्थी सं0-1 के यहॉ एक माह बाद गया, तो उसने बताया कि पार्सल कही खो गया है और उसका पता लगाया जा रहा है और अपीलार्थी ने प्रत्‍यर्थी सं0-1 से पत्र दिनांक 06.12.2007 के माध्‍यम से रू0 20,388.00 की मॉग की, जिस पर प्रत्‍यर्थी

-3-

सं0-1 ने कोई ध्‍यान नहीं दिया और उसके बाद व्‍यापार मण्‍डल के अध्‍यक्ष ने एक पत्र प्रत्‍यर्थी सं0-1 को दिनांक 23.5.2008 को भेजा, लेकिन प्रत्‍यर्थी सं0-1 ने कोई ध्‍यान नहीं दिया और दिनांक 23.5.2008 के पत्र पर भी कोई कार्यवाही नहीं की और केवल आश्‍वासन देते रहे। उसके बाद एक रजिस्‍टर्ड नोटिस दिनांक 11.8.2009 प्रत्‍यर्थीगण को भेजा गया और पत्र दिनांकित 11.8.2009 के नोटिस का कोई जवाब प्रत्‍यर्थी ने नहीं दिया और न ही उपरोक्‍त धनराशि परिवादी को दी, इसलिए जिला उपभोक्‍ता फोरम के समक्ष परिवाद दायर किया गया है।

मौजूदा केस में बहस के दौरान प्रत्‍यर्थी के विद्वान अधिवक्‍ता द्वारा यह कहा गया है कि माल दिनांक 06.10.2007 को बुक कराया गया था एवं दिनांक 06.12.2007 को पत्र भेजा गया और परिवाद दिनांक 06.12.2009 तक दायर कर सकते थे, लेकिन परिवाद दिनांक 18.4.2011 को परिवाद दायर किया गया है, जो कि बिना किसी देरी मॉफी प्रार्थना पत्र के दायर किया गया है और इस प्रकार से परिवादी का परिवाद कालबाधित था और जिला उपभोक्‍ता फोरम के द्वारा सही आदेश पारित किया गया है और उसमें किसी प्रकार की कोई त्रुटि नहीं है।

इस सम्‍बन्‍ध में अपीलार्थी की ओर से यह कहा गया है कि माल दिनांक 06.12.2007 को बुक कराया गया था और दिनांक 23.5.2008 को नोटिस दिया गया और कोई ध्‍यान न देने पर दिनांक 11.8.2009 को रजिस्‍टर्ड नोटिस भेजा गया और इसका उल्‍लेख वाद पत्र के पैरा सं0-12 में किया गया है कि दिनांक 11.8.2009 को भेजी गई रजिस्‍टर्ड नोटिस का जवाब नहीं दिया गया और पैरा-13 में यह कहा गया है कि यदि कोई देरी परिवाद दायर करने में की गई है तो वह प्रतिवादी सं0-1 के द्वारा देरी करने के कारण हुई है और जो मॉफ किए जाने योग्‍य है और अपीलार्थी की ओर से यह कहा गया है कि इस प्रकार से यदि कोई देरी की गई थी तो उसके लिए प्रार्थना परिवाद पत्र के पैरा-13 में ही कर दी गई थी और रजिस्‍ट्री नोटिस दिनांक 11.8.2009 को भेजा गया था, जिसकी प्रति कागज सं0-13 पर संलग्‍न है और दिनांक 11.8.2009 को नोटिस देने के बाद

-4-

परिवाद दिनांक 11.8.2011 को दायर कर सकते थे, जबकि परिवाद दिनांक 18.4.2011 को दायर किया गया है, परन्‍तु वाद पत्र की जो नकल दाखिल की गई है, उसमें दिनांक 04.4.2011 की तिथि अंकित है और इस सम्‍बन्‍ध में यह कहा गया है कि परिवाद समय सीमा के अन्‍दर दायर किया गया था और कोई देरी नहीं की गई थी और रजिस्‍ट्री नोटिस दिनांक 11.8.2009 से ही वाद कारण उत्‍पन्‍न हुआ और उसके दो वर्ष के अन्‍दर ही परिवाद दायर कर दिया गया था। अपीलार्थी की ओर से यह कहा गया है कि परिवाद के कालबाधित होने का जो निष्‍कर्ष दिया गया है, वह गलत है।

इसके अलावा अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्‍ता की ओर से कागज सं0-18 की ओर पीठ का ध्‍यान दिलाया गया है, जो कि जिला उपभोक्‍ता फोरम दितीय लखनऊ के आदेश दिनांकित 02.5.2011 के आदेश की प्रमाणित प्रतिलिपि है। उक्‍त आदेश का अवलोकन किया गया, जिसमें यह उल्‍लेख किया गया है कि वादी उपस्थित है। पोषणीयता पर सुना गया। समय सीमा औचित्‍यपूर्ण है। परिवाद स्‍वीकार किया जाता है। पंजीकृत हो। विपक्षी को एक सप्‍ताह के अन्‍दर नोटिस की पैरवी किया जाये। 

इस प्रकार से जिला उपभोक्‍ता फोरम के द्वारा दिनांक 02.5.2011 को वाद पत्र को समय सीमा के अन्‍दर मानकर परिवाद को पंजीकृत किया गया था और परिवाद की पोषणीयता पर सुना गया था और इस प्रकार से जिला उपभोक्‍ता फोरमका आदेश दिनांक 02.5.2011 के रहते हुए उसके विरूद्ध कोई आदेश जिला उपभोक्‍ता फोरम दितीय लखनऊ द्वारा पारित नहीं कर सकते थे और जिला उपभोक्‍ता फोरम द्वारा पारित आदेश दिनांकित 02.5.2011 की कोई अपील नहीं की गई है और न ही उसके विरूद्ध कोई आदेश है, इस प्रकार हम यह पाते हैं कि दिनांक 02.5.2011 को जो समय सीमा पर अपना आदेश पारित किया गया है, वह अंतिम हो चुका है और उसके विरूद्ध जिला उपभोक्‍ता फोरम ने अपने निष्‍कर्ष निर्णय दिनांकित 17.01.2013 में दिया है, वह विधि सम्‍मत नहीं है और हम यह पाते हैं कि जिला उपभोक्‍ता फोरम ने जो परिवाद को कालबाधित होने के आधार पर खारिज किया है, वह औचित्‍य पूर्ण नहीं है। इसके अलावा जिला उपभोक्‍ता

-5-

फोरम ने अपने प्रश्‍नगत निर्णय में यह भी कहा गया है कि परिवादी ने अपने कथन की पुष्टि में शपथपत्र दाखिल किया है तथा शपथपत्र के माध्‍यम से रसीदें, भेजे गये पत्र, नोटिस को साबित किया है। प्रतिवादी की तरफ से केवल तथ्‍यों को इंकार किया गया है, लेकिन दाखिल की गयी रसीदों के सम्‍बन्‍ध में कोई संतोषजनक उत्‍तर नहीं दिया गया है और जिला उपभोक्‍ता फोरम ने यह भी पाया है कि परिवादी ने प्रतिवादी सं0-1 के माध्‍यम से माल भेजा था जो प्रतिवादी सं0-1 के कब्‍जे में रहते हुए गायब हुआ और इस प्रकार कर निष्‍कर्ष जो जिला उपभोक्‍ता फोरम द्वारा दिया गया है, वह केस के तथ्‍यों व परिस्थितियों तथा साक्ष्‍यों से समर्थित है और पुष्‍ट किए जाने योग्‍य है। इस प्रकार हम यह पाते हैं कि जिला उपभोक्‍ता फोरम द्वारा जो परिवादी का परिवाद समय द्वारा बाधित होने के आधार पर खारिज किया गया है, वह विधि सम्‍मत नहीं है। तद्नुसार अपीलार्थी की अपील स्‍वीकार किए जाने योग्‍य है।

आदेश

अपीलार्थी की अपील इस निर्देश के साथ स्‍वीकार की जाती है कि अपीलार्थी/परिवादी, प्रत्‍यर्थी/प्रतिवादी सं0-1 से रू0 20,388.00 मय 06 प्रतिशत वार्षिक ब्‍याज के साथ, साडियों के भेजे जाने की तिथि 06.10.2007 से उसकी अदायगी तक प्राप्‍त करने का हकदार है।

उभय पक्ष अपीलीय व्‍यय भार स्‍वयं वहन करेगें।

 

     (रामचरन चौधरी)                      (बाल कुमारी)

     पीठासीन सदस्‍य                          सदस्‍य

हरीश आशु.,

कोर्ट सं0-5

 

 
 
[HON'BLE MR. Ram Charan Chaudhary]
PRESIDING MEMBER
 
[HON'BLE MRS. Smt Balkumari]
MEMBER

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