SURYA NATH GUPTA filed a consumer case on 06 Sep 2021 against WISHWA PRAKASH SINGH in the Azamgarh Consumer Court. The case no is CC/150/2010 and the judgment uploaded on 07 Oct 2021.
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग- आजमगढ़।
परिवाद संख्या 150 सन् 2010
प्रस्तुति दिनांक 02.07.2010
निर्णय दिनांक 06.09.2021
1/1.बेचू राम कान्दू उम्र लगभग 55 साल पुत्र सूर्यनाथ गुप्ता साकिन मौजा व पोस्ट धरवारा तहसील सदर जिला- आजमगढ़।
.........................................................................................परिवादी।
बनाम
उपस्थितिः- कृष्ण कुमार सिंह “अध्यक्ष” तथा गगन कुमार गुप्ता “सदस्य”
कृष्ण कुमार सिंह “अध्यक्ष”
परिवादी ने अपने परिवाद पत्र में यह कहा है कि उसकी पॉलिसी नं. 293653517 थी। जिसकी सालाना प्रीमियम 31,935/- रुपया थी। परिवादी ने मार्च 2008 का प्रीमियम भुगतान हेतु मुo 31,935/- रुपया नकद विपक्षी संख्या 01 को दिनांक 20.02.2008 को दिया था। जिसे विपक्षी संख्या 01 ने टी.आर. नं. 183878 सीरियल नं. 1956871 से दिनांक 25.02.2008 को जमा किया। परिवादी ने मार्च 2009 का प्रीमियम दिनांक 24.02.2009 को को जमा करने हेतु भारतीय जीवन बीमा निगम शाखा कार्यालय नं. 02 रैदोपुर आजमगढ़ गया तो टी.आर. नं. 200496 क्रम संख्या 1849 140 (1849140) से लेट पेमेण्ट के साथ मुo 34530/- रुपया पुनः मार्च 2008 का प्रीमियम परिवादी से लिया गया। परिवादी ने दूसरे दिन मार्च 2008 की रसीद लेकर भारतीय जीवन बीमा निगम शाखा नं. 02 रैदोपुर आजमगढ़ के कार्यालय में पता किया तो पता चला कि विपक्षी संख्या 01 ने नकद पैसा न जमा करके अपने एकाउन्ट से उक्त प्रीमियम मार्च 2008 का चेक संख्या 767308 इलाहाबाद बैंक शाखा जहानागंज आजमगढ़ द्वारा जमा किया। खाते में रकम न होने के कारण चेक अनादृत हो गया। परिवादी ने उपरोक्त बात की जानकारी होने पर दिनांक 02.03.2009 को शाखा प्रबन्धक भारतीय जीवन बीमा निगम शाखा नं. 02 रैदोपुर आजमगढ़ को लिखित शिकायत किया। परिवादी को बार बार आश्वासन दिया जाता रहा कि उसको पैसा मिल जाएगा। परन्तु दिनांक 30.06.2010 को अन्तिम बार उसे पैसा देने से इन्कार कर दिया गया। अतः परिवादी को विपक्षीगण से मूल धनराशि मुo 31,935/- रुपया, शारीरिक एवं मानसिक आघात हेतु 50,000/- रुपया तथा दौड़-धूप एवं यात्रा व्यय मुo 15,000/- रुपया सम्पूर्ण मुo 96,935/- रुपया 18% वार्षिक ब्याज की दर से दिलाया जाए।
परिवादी द्वारा अपने परिवाद पत्र के समर्थन में शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया है।
प्रलेखीय साक्ष्य में परिवादी द्वारा कागज संख्या 6/1 प्रीमियम भुगतान की छायाप्रति तथा कागज संख्या 6/2 प्रार्थना पत्र की छायाप्रति प्रस्तुत किया है।
कागज संख्या 10क विपक्षी संख्या 02 द्वारा जवाबदावा प्रस्तुत किया गया है, जिसमें उसने परिवाद पत्र के कथनों से इन्कार किया है। अतिरिक्त कथन में उसने यह कहा है कि परिवादी को परिवाद प्रस्तुत करने का कोई हक नहीं है। परिवाद पत्र के तथ्य इस प्रकार हैं कि परिवादी ने विपक्षी संख्या 02 के यहाँ से नाम टेबुल/टर्म 174-16 के अन्तर्गत रुपया 4,00,000/- की बीमा पॉलिसी संख्या 293653517 लिया जिसकी प्रारम्भ तिथि 28.03.2006, किश्त की धनराशि 31,935/- वार्षिक एवं बीमित धनराशि रुपए 4,00,000/- रही। परिवादी ने उपरोक्त बीमा पॉलिसी की दूसरी प्रीमियम रुपए 31,935/- मात्र दिनांक 03.02.2007 को जमा किया एवं मार्च 2008 में देय तीसरी प्रीमियम की धनराशि का भुगतान परिवादी के जानिब से चेक संख्या 767308 वास्त रुप. 31,935/- मात्र के जरिए किया गया एवं उक्त चेक इलाहाबाद बैंक शाखा जहानागंज आजमगढ़ पर देय था। इस चेक के जमा करने के साक्ष्य स्वरूप परिवादी के नाम चेक जमा रसीद दिनांक 25.02.2008 जारी की गयी। संग्रहण हेतु प्रेषित करने पर परिवादी के उक्त पॉलिसी में जमा चेक संख्या 767308 वास्ते रुपये 31935/- मात्र इलाहाबाद बैंक शाखा जहानागंज आजमगढ़ द्वारा चेक जारी करने वाले के खाता में पर्याप्त निधि न होने के कारण डिसऑनर कर दिया गया जिसकी सूचना मिलने पर दिनांक 27.03.2008 को चेक डिसऑनर एक्शन लेते हुए परिवादी को इस सम्बन्ध में सूचित करके विलम्ब शुल्क के शाथ मार्च 2008 की प्रीमियम जमा करने का सुझाव दिया गया। कालान्तर में परिवादी ने मार्च 2008 की प्रीमियम रुपए 31935/- व विलम्ब शुल्क मिलाकर दिनांक 24.02.2009 के कुल रु. 34530/- मात्र का भुगतान किया जिसका उल्लेख परिवादी ने परिवाद पत्र की पैरा 05 में किया है। बीमाधारक ने दिनांक 30.11.2011 को उपरोक्त पॉलिसी को अभ्यर्पित/सरेण्डर करके इसकी रकम को प्राप्त कर लिया है। तद्नुसार इस पॉलिसी के सम्बन्ध में परिवादी विपक्षी संख्या 02 का उपभोक्ता नहीं है। विपक्षी संख्या 01 विपक्षी संख्या 02 का जीवन बीमा एजेन्ट है और उसे कोई भी प्रीमियम प्राप्त करने का अधिकार नहीं है। अतः परिवाद निरस्त किया जाए।
विपक्षी संख्या 02 द्वारा अपने जवाबदावा के समर्थन में शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया है।
प्रलेखीय साक्ष्य में कागज संख्या 15 एल.आई.सी. द्वारा परिवादी को लिखे गए पत्र की छायाप्रति, कागज संख्या 19 परिवादी द्वारा चेक जमा किए जाने के पश्चात् एल.आई.सी. द्वारा जारी विवरण प्रस्तुत किया गया है।
उभय पक्षों को सुना तथा पत्रावली का अवलोकन किया। परिवादी ने अपने परिवाद पत्र में यह कहा है कि उसने एजेन्ट को किश्त जमा करने के लिए रकम दिया था, लेकिन एजेन्ट ने उसे जमा नहीं किया। इस सन्दर्भ में यदि हम “लाईफ इन्श्योरेन्स कॉर्पोरेशन ऑफ इण्डिया” के ‘एजेन्ट रेगुलेशन’ की धारा-8(4) का अवलोकन करें तो इसमें यह कहा गया है कि एजेन्ट को बीमाधारक से किश्त लेने का कोई अधिकार हासिल नहीं है। इस सन्दर्भ में यदि हम न्याय निर्णय “हर्षद जे. शाह एवं अन्य बनाम एल.आई.सी. ऑफ इण्डिया एवं अन्य ए.आई.आर. (1997)5 एस.सी.सी. 64” का यदि अवलोकन करें तो इस न्याया निर्णय में माo उच्चतम न्यायालय ने यह अभिधारित किया है कि एल.आई.सी. का जो अधिनियम बनाया गया है वह लोगों के हेत के लिए बनाया गया है और किसी भी एजेन्ट को बीमा किश्त बीमाधारक से लेने का कोई अधिकार हासिल नहीं है। इस सन्दर्भ में यह हम एक अन्य न्याय निर्णय “लाईफ इन्श्योरेन्स कॉर्पोरेशन ऑफ इण्डिया बनाम गिरधारी लाल पी. केशरवानी एवं अन्य एन.सी.” निर्णित दिनांक 14 जनवरी, 2009 का अवलोकन करें तो इस न्याय निर्णय में माo राष्ट्रीय आयोग ने यह अभिनिर्धारित किया है कि बीमा एजेन्ट को बीमाधारक से बीमा किश्त लेने का कोई अधिकार हासिल नहीं है।
ऐसी स्थिति में उपरोक्त विवेचन से हमारे विचार से परिवाद खारिज किए जाने योग्य है
आदेश
परिवाद पत्र खारिज किया जाता है। पत्रावली दाखिल दफ्तर हो।
गगन कुमार गुप्ता कृष्ण कुमार सिंह
(सदस्य) (अध्यक्ष)
दिनांक 06.09.2021
यह निर्णय आज दिनांकित व हस्ताक्षरित करके खुले न्यायालय में सुनाया गया।
गगन कुमार गुप्ता कृष्ण कुमार सिंह
(सदस्य) (अध्यक्ष)
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