Uttar Pradesh

StateCommission

RP/133/2015

Ansal Housing & Construction Ltd - Complainant(s)

Versus

Wg. Cdr. (Retd) Sudhir Mohan - Opp.Party(s)

Ankit Srivastava

23 Sep 2015

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
Revision Petition No. RP/133/2015
(Arisen out of Order Dated 07/08/2015 in Case No. Ex/27/2014 of District Lucknow-I)
 
1. Ansal Housing & Construction Ltd
Lucknow
...........Appellant(s)
Versus
1. Wg. Cdr. (Retd) Sudhir Mohan
Lucknow
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. JUSTICE Virendra Singh PRESIDENT
 
For the Petitioner:
For the Respondent:
ORDER

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।                                                                             

                                                                    सुरक्षित

पुनरीक्षण सं0-१३३/२०१५

 

(जिला मंच (प्रथम), लखनऊ द्वारा निष्‍पादन वाद सं0-२७/२०१४ में पारित आदेश दिनांक ०७-०८-२०१५ के विरूद्ध)

 

मै0 अंसल हाउसिंग एण्‍ड कन्‍स्‍ट्रक्‍शन लि0, १५, यूजीएफ इन्‍द्रप्रकाश, २१, बाराखम्‍भा रोड, नई दिल्‍ली, रीजनल आफिस एलजीएफ-१५८, खजारा कॉम्‍प्‍लेक्‍स, सैक्‍टर-के, आशियाना, लखनऊ।

                                                     ........... पुनरीक्षणकर्ता/विपक्षी।

बनाम

विंग कमाण्‍डर सुधीर मोहन पुत्र स्‍व0 एच0आर0एस0 उपाध्‍याय, निवासी जे-१००, साउथ सिटी, रायबरेली रोड, लखनऊ।

                                                        ...........  प्रत्‍यर्थी/परिवादी।

समक्ष:-

मा0 श्री उदय शंकर अवस्‍थी, पीठासीन सदस्‍य।

 

पुनरीक्षणकर्ता/विपक्षी की ओर से उपस्थित  : श्री अंकित श्रीवास्‍तव विद्वान अधिवक्‍ता।

प्रत्‍यर्थी/परिवादी की ओर से उपस्थित      : श्री कार्तिकेय दुबे विद्वान अधिवक्‍ता।

 

दिनांक :-  २९-०९-२०१५

 

मा0 श्री उदय शंकर अवस्‍थी, पीठासीन सदस्‍य द्वारा उदघोषित

 

निर्णय

       प्रस्‍तुत पुनरीक्षण जिला मंच (प्रथम), लखनऊ द्वारा निष्‍पादन वाद सं0-२७/२०१४ में पारित आदेश दिनांक ०७-०८-२०१५ के विरूद्ध योजित की गयी है। प्रश्‍नगत आदेश द्वारा जिला मंच ने पुनरीक्षणकर्ता द्वारा उपरोक्‍त निष्‍पादन वाद को निरस्‍त किये जाने हेतु प्रस्‍तुत किये गये प्रार्थना पत्र को निरस्‍त कर दिया।

           संक्षेप में तथ्‍य इस प्रकार हैं कि प्रत्‍यर्थी/परिवादी ने पुनरीक्षणकर्ता के विरूद्ध परिवाद सं0-२४५/२००० जिला मंच के समक्ष योजित किया था। यह परिवाद विद्वान जिला मंच ने निर्णय दिनांक १५-०९-२००५ द्वारा स्‍वीकृत किया। इस निर्णय से क्षुब्‍ध होकर पुनरीक्षणकर्ता द्वारा राज्‍य आयोग में अपील सं0-१८५४/२००५ योजित की गयी। यह अपील निर्णय दिनांक ०९-०१-२०१४ द्वारा निरस्‍त कर दी गयी। इस निर्णय से क्षुब्‍ध होकर पुनरीक्षणकर्ता ने माननीय राष्‍ट्रीय आयोग में पुनरीक्षण याचिका सं0-१७१४/२०१४ योजित की। इस पुनरीक्षण याचिका को

 

 

-२-

अंगीकरण के स्‍तर पर ही पुनरीक्षणकर्ता द्वारा वापस लिए जाने की प्रार्थना माननीय राष्‍ट्रीय आयोग के समक्ष की गयी। अत: माननीय राष्‍ट्रीय आयोग ने पुनरीक्षण याचिका निरस्‍त कर  दी। तदोपरान्‍त परिवाद में पारित आदेश के निष्‍पादन हेतु निष्‍पादन वाद प्रत्‍यर्थी/परिवादी द्वारा सम्‍बन्धित जिला मंच में योजित किया। इस निष्‍पादन कार्यवाही के मध्‍य पुनरीक्षणकर्ता ने निष्‍पादन की कार्यवाही समाप्‍त किये जाने हेतु प्रार्थना पत्र प्रस्‍तुत किया। प्रश्‍नगत आदेश द्वारा विद्वान जिला मंच ने यह प्रार्थना पत्र निरस्‍त कर दिया, जिससे क्षुब्‍ध होकर यह पुनरीक्षण याचिका योजित की गयी है।

           मैंने पुनरीक्षणकर्ता के विद्वान अधिवक्‍ता श्री अंकित श्रीवास्‍तव एवं प्रत्‍यर्थी/केविएटर के विद्वान अधिवक्‍ता श्री कार्तिकेय दुबे के तर्क सुने तथा पत्रावली का परिशीलन किया। प्रत्‍यर्थी/परिवादी की ओर से प्रतिशपथ पत्र प्रस्‍तुत किया गया है।

           पुनरीक्षणकर्ता के विद्वान अधिवक्‍ता द्वारा यह तर्क प्रस्‍तुत किया गया कि अपीलीय एवं पुनरीक्षण न्‍यायालय द्वारा निर्णय पारित किये जाने के उपरान्‍त अपीलीय/पुनरीक्षण न्‍यायालय का निर्णय अधीनस्‍थ न्‍यायालय के निर्णय को प्रतिस्‍थापित करता है एवं अपीलीय/पुनरीक्षण न्‍यायालय द्वारा पारित निर्णय ही Doctrine of Merger के अन्‍तर्गत अन्तिम निर्णय माना जायेगा।

           प्रश्‍नगत मामले में माननीय राष्‍ट्रीय आयोग ने दिनांक ०१-०७-२०१४ को निम्‍नलिखित आदेश पारित किया है :-

                   “After addressing us for some time and having failed to convince us that the demand of additional amount of 65,000/- fronm the complainant as a pre-condition for execution of enveyance deed in his favour was justified, learned counsel appearing for the petitioner seeks leave to withdraw the Revision Petition.

                   Though we accede to the prayer for dismissal of the Revision Petition as withdrawn, but having regard to the fact that the possession of the subject property, allotted to the complainant on 12.4.1989, was to be delivered sometime in the year 1994 and the order passed by the Distric Forum, directing the petitioner to execute the sale deed and deliver possession of the property wa made as far back as on 15.9.2005, we direct the petitioner to pay to the complainant a sum        of 1,00,000.00 (Rupees one lakh only) as compensation for causing unnecessry

 

-३-

harassment to him on account o delay in handing over the possession and in prosecuing the case.

                   We may note that on account of inordicate delay in execution o the sake deed, the complainant may have to pay higher amount of Stamp Duty at the time o Registration of the said document. The said amount (Rupees one lakh only) shall be paid to the respondent within four weeks from today.

                   Learned counsel for the petitioner states, on instructions, that the Conveyance Deed in favour of the complainant shall be executed within 30 days of the complainant’s supplying to the petitioner the requisite stamp papers for the said purpose.

                   Revision Petition stands dismissed as withdrawn.”

           पुनरीक्षणकर्ता के विद्वान अधिवक्‍ता द्वारा यह तर्क प्रस्‍तुत किया गया कि माननीय राष्‍ट्रीय आयोग द्वारा पारित उपरोक्‍त आदेश दिनांकित ०१-०७-२०१४ का अनुपालन पुनरीक्षणकर्ता द्वारा पूर्णत: किया जा चुका है। यह आदेश ही Doctrine of Merger के अनुसार अन्तिम आदेश प्रश्‍नगत परिवाद के सन्‍दर्भ में माना जायेगा। अत: निष्‍पादन हेतु अब कोई मामला शेष नहीं रह जाने के कारण निष्‍पादन कार्यवाही आगे जारी रखे जाने का कोई औचित्‍य नहीं होगा। विद्वान जिला मंच ने Doctrine of Merger के सिद्धान्‍त को न मानते हुए प्रश्‍नगत आदेश पारित किया है जो विधि सम्‍मत नहीं है।

           Doctrine of Merger के सम्‍बन्‍ध में पुनरीक्षणकर्ता के विद्वान अधिवक्‍ता ने चॉंदी प्रसाद व अन्‍य बनाम जगदीश प्रसाद व अन्‍य (२००४) ८ एससीसी पृष्‍ठ ७२४ तथा गुरू स्‍वरूप जोशी बनाम बीना शर्मा (२००७) २५ एलसीडी ४८८ के मामलों में मा0 उच्‍चतम न्‍यायालय द्वारा एवं इस्‍कोडा आटो बनाम राघवेन्‍द्र III (2013) CPJ 131 (NC) के मामले में माननीय राष्‍ट्रीय आयोग द्वारा दिये गये निर्णयों पर विश्‍वास व्‍यक्‍त किया।

           पुनरीक्षणकर्ता के विद्वान अधिवक्‍ता द्वारा आगे यह तर्क प्रस्‍तुत किया गया कि एक ही मामले में दो डिक्रियॉं पारित नहीं की जा सकतीं। उनके द्वारा यह तर्क भी प्रस्‍तुत किया गया कि विद्वान जिला मंच को प्रश्‍नगत निष्‍पादन वाद के विचारण का क्षेत्राधिकार नहीं था, क्‍योंकि उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम १९८६ की धारा-२५/२७ के अन्‍तर्गत मा0 राष्‍ट्रीय आयोग द्वारा पारित आदेश का अनुपालन मा0 राष्‍ट्रीय आयोग द्वारा ही कराया जा सकता है, जिला मंच द्वारा नहीं।

-४-

           जहॉं तक पुनरीक्षणकर्ता के विद्वान अधिवक्‍ता के इस तर्क का प्रश्‍न है कि माननीय अपीलीय/पुनरीक्षण न्‍यायालय द्वारा पारित निर्णय सम्‍बन्धित परिवाद के सम्‍बन्‍ध में अन्तिम निर्णय माना जायेगा, इस सन्‍दर्भ में माननीय अपीलीय/पुनरीक्षण न्‍यायालय द्वारा पारित निर्णय अधीनस्‍थ न्‍यायालय के निर्णय को प्रतिस्‍थापित करेगा। पुनरीक्षणकर्ता के विद्वान अधिवक्‍ता के तर्क को अस्‍वीकार करने का कोई औचित्‍य नहीं है, किन्‍तु महत्‍पूर्ण प्रश्‍न यह है कि माननीय अपीलीय/पुनरीक्षण न्‍यायालय द्वारा क्‍या एवं किस परिप्रेक्ष्‍य में निर्णय पारित किया गया ? माननीय राष्‍ट्रीय आयोग द्वारा पुनरीक्षण सं0-१४१७/२०१४ में पारित आदेश दिनांकित ०१-०७-२०१४ के अवलोकन से यह विदित होता है कि माननीय राष्‍ट्रीय आयोग के समक्ष पुनरीक्षणकर्ता द्वारा अपनी पुनरीक्षण याचिका में कोई बल न पाते हुए पुनरीक्षणकर्ता के विद्वान अधिवक्‍ता ने अपनी पुनरीक्षण याचिका को वापस लेने की प्रार्थना की। माननीय राष्‍ट्रीय आयोग ने पुनरीक्षणकर्ता की इस प्रार्थना को स्‍वीकार करते हुए पुनरीक्षण याचिका को वापस करते हुए निरस्‍त कर दिया। साथ ही माननीय राष्‍ट्रीय आयोग ने यह भी पाया कि पुनरीक्षणकर्ता द्वारा लम्‍बी अवधि से प्रत्‍यर्थी को अकारण प्रताडित किया गया। अत: माननीय राष्‍ट्रीय आयोग ने मु० ०१-०० लाख रू० बतौर क्षतिपूर्ति प्रत्‍यर्थी/परिवादी को अदा करने हेतु पुनरीक्षणकर्ता को निर्देशित किया। माननीय राष्‍ट्रीय आयोग ने इस आदेश में यह तथ्‍य भी उल्लिखित किया है कि पुनरीक्षणकर्ता के विद्वान अधिवक्‍ता द्वारा यह सूचित किया गया कि प्रत्‍यर्थी/परिवादी के पक्ष में विक्रय पत्र ३० दिन में परिवादी द्वारा आवश्‍यक स्‍टाम्‍प पेपर दाखिल किये जाने पर निष्‍पादित कर दिया जायेगा।

           पुनरीक्षणकर्ता के विद्वान अधिवक्‍ता द्वारा यह तर्क प्रस्‍तुत किया जा रहा है कि माननीय राष्‍ट्रीय आयोग द्वारा पारित उपरोक्‍त आदेश दिनांकित ०१-०७-२०१४ में मूल परिवाद में विद्वान जिला मंच द्वारा पारित निर्णय समाहित माना जायेगा। अत: मा0 राष्‍ट्रीय आयोग द्वारा पारित उपरोक्‍त आदेश के अनुपालन के उपरान्‍त जिला मंच द्वारा पारित आदेश महत्‍वहीन हो जाने के कारण निष्‍पादन योग्‍य नहीं माना जा सकता।

           उल्‍लेखनीय है कि प्रश्‍नगत परिवाद सं0-२४५/२००५ को विद्वान जिला मंच द्वारा स्‍वीकार करते हुए दिनांक १५-०९-२००५ को निम्‍नलिखित आदेश पारित किया गया था :-

           ‘’ परिवाद पत्र स्‍वीकार किया जाता है कि विपक्षी को आदेश दिया जाता है कि

 

-५-

इस निर्णय आदेश की तिथि से ५० दिवस के अन्‍दर परिवादी को उसे आबंटित भवन का कब्‍जा भवन के मूल्‍य की बकाया धनराशि १६०००/- रू० कब्‍जा किये जाने के समय प्राप्‍त करके भवन का भौतिक कब्‍जा परिवादी को प्रदान किया जाय। विपक्षी के स्‍तर पर परिवाद के निस्‍तारण में काफी विलम्‍ब कथित किया गया और विपक्षी द्वारा हर्जा अदा करने के पारित आदेशों का अनुपालन करके हर्जा भी अदा नहीं किया गया। अत: विपक्षी ५०००/- रू० बतौर वाद व्‍यय परिवादीको अदा करने का आदेश किया जाता है। यदि विपक्षी द्वारा निर्णय आदेश का अनुपालन निर्धारित अवधि में नहीं किया जाता है कि तो विपक्षी द्वारा भवन के मूल्‍य व अन्‍य मदों में सम्‍पूर्ण जमा धनराशि पर परिवाद पत्र प्रस्‍तुत किये जाने की तिथि २२-०२-२००० से भवन का विक्रय विलेख परिवादी के पक्ष में निष्‍पादित करके उसका कब्‍जा दिये जाने की तिथि तक जमा धनराशि १,७१,७००/- रू० पर १२ प्रतिशत साधारण वार्षिक दर से ब्‍याज की धनराशि परिवादी को अदा की जाये। विपक्षी परिवादी को आबंटित भवन का विक्रय विलेख उसके पक्ष में निष्‍पादित करके भवन का कब्‍जा परिवादी को निर्धारित अवधि में प्रदान करें। ‘’

           जहॉं तक माननीय राष्‍ट्रीय आयोग द्वारा प्रत्‍यर्थी/परिवादी को बतौर क्षतिपूर्ति    ०१-०० लाख रू० पुनरीक्षणकर्ता द्वारा अदा किये जाने के आदेश का प्रश्‍न है, यह आदेश प्रश्‍नगत प्रकरण के सन्‍दर्भ में पुनरीक्षणकर्ता के आचरण को देखते हुए माननीय राष्‍ट्रीय आयोग द्वारा पारित किया गया है, इसे पुनरीक्षण याचिका के सन्‍दर्भ में गुणदोष के आधार पर पारित आदेश नहीं माना जा सकता। अत: आदेश का यह भाग Doctrine of Merger के अन्‍तर्गत मूल परिवाद में पारित आदेश के प्रतिस्‍थापन में नहीं माना जा सकता। वस्‍तुत: माननीय राष्‍ट्रीय आयोग द्वारा पुनरीक्षण याचिका निरस्‍त की गयी है। तद्नुसार मा0 राज्‍य आयोग द्वारा अपील में पारित मूल आदेश की पुष्टि की गयी है। अत: माननीय राष्‍ट्रीय आयोग द्वारा पुनरीक्षणकर्ता के आचरण को देखते हुए स्‍व विवेक से जो आदेश क्षतिपूर्ति के सम्‍बन्‍ध में पारित किया गया है, उस आदेश के अनुपालन के आधार पर परिवाद में पारित मूल आदेश की संतुष्टि नहीं मानी जा सकती।

           पुनरीक्षणकर्ता के विद्वान अधिवक्‍ता का यह तर्क कि एक ही मामले में दो डिक्रियॉं पारित नहीं की जा सकतीं, प्रस्‍तुत मामले के सन्‍दर्भ में भ्रामक है, क्‍योंकि माननीय राष्‍ट्रीय आयोग ने पुनरीक्षण याचिका में पारित आदेश दिनांकित ०१-०७-२०१४ वस्‍तुत: मूल

 

-६-

आदेश में पारित आदेश के परिप्रेक्ष्‍य में गुणदोष के आधार पर पारित नहीं किया गया है, बल्कि पुनरीक्षण याचिका वापस लिए जाने के कारण निरस्‍त कर दी है। मु० १,००,०००/- रू० पुनरीक्षणकर्ता द्वारा प्रत्‍यर्थी को क्षतिपूर्ति के रूप में अदा करने के सम्‍बन्‍ध में पारित आदेश पुनरीक्षणकर्ता के आचरण के आलोक में स्‍व विवेक से अतिरिक्‍त अनुतोष के रूप में पारित किया गया है। ऐसी परिस्थिति में पुनरीक्षणकर्ता के विद्वान अधिवक्‍ता का उपरोक्‍त तर्क स्‍वीकार किये जाने योग्‍य नहीं है।

           पुनरीक्षणकर्ता के विद्वान अधिवक्‍ता का यह तर्क कि उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम की धारा-२५/२७ के आलोक में प्रश्‍नगत निष्‍पादन वाद की सुनवाई का क्षेत्राधिकार विद्वान जिला मंच को नहीं था, भी भ्रामक है। अधिनियम की धारा-२५ में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है कि जिला मंच द्वारा पारित किसी निर्णय के विरूद्ध यदि अपील मा0 राज्‍य आयोग में योजित की जाती है अथवा राज्‍य आयोग के निर्णय के विरूद्ध यदि पुनरीक्षण याचिका माननीय राष्‍ट्रीय आयोग में योजित की जाती है तब माननीय राष्‍ट्रीय आयोग द्वारा कोई आदेश उस पुनरीक्षण याचिका में पारित किये जाने के कारण जिला मंच को अपने आदेश के अनुपालन हेतु योजित किये गये निष्‍पादन वाद की सुनवाई का क्षेत्राधिकार नहीं होगा, बल्कि अधिनियम की धारा-२५ की उपधारा (३) यह स्‍पष्‍ट करती है कि जिला मंच के क्षेत्राधिकार से सम्‍बन्धित वादों में पारित आदेश का अनुपालन जिला मंच द्वारा कराया जायेगा। इसी प्रकार मा0 राज्‍य आयोग के क्षेत्राधिकार तथा माननीय राष्‍ट्रीय आयोग के क्षेत्राधिकार के वादों में पारित आदेश का क्रियान्‍वयन सम्‍बन्धित आयोग द्वारा ही कराया जायेगा।

           ऐसी परिस्थिति में मेरे विचार से वर्तमान पुनरीक्षण याचिका में बल नहीं है। तदनुसार अंगीकरण किये जाने योग्‍य न पाते हुए इसी स्‍तर पर निरस्‍त होने योग्‍य है।

आदेश

           यह पुनरीक्षण याचिका अंगीकरण के स्‍तर पर ही निरस्‍त की जाती है।

           इस पुनरीक्षण का व्‍यय-भार पक्षकार अपना-अपना वहन करेंगे।

 

                                               (उदय शंकर अवस्‍थी)      

                                                 पीठासीन सदस्‍य

प्रमोद कुमार, 

वैयक्तिक सहायक ग्रेड-१,

कोर्ट नं0-१.

 

 

 

 

 

 

 

 

 
 
[HON'BLE MR. JUSTICE Virendra Singh]
PRESIDENT

Consumer Court Lawyer

Best Law Firm for all your Consumer Court related cases.

Bhanu Pratap

Featured Recomended
Highly recommended!
5.0 (615)

Bhanu Pratap

Featured Recomended
Highly recommended!

Experties

Consumer Court | Cheque Bounce | Civil Cases | Criminal Cases | Matrimonial Disputes

Phone Number

7982270319

Dedicated team of best lawyers for all your legal queries. Our lawyers can help you for you Consumer Court related cases at very affordable fee.