( मौखिक )
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0 लखनऊ।
पुनरीक्षण वाद संख्या : 59/2023
नवाब हसन पुत्र श्री अहमद हसन
बनाम्
वसीम पुत्र श्री मीर हसन व सात अन्य
समक्ष :-
1-मा0 न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष।
उपस्थिति :
पुनरीक्षणकर्ता की ओर से उपस्थित- श्री अशोक कुमार शुक्ला।
विपक्षी की ओर से उपस्थित- श्री इसार हुसैन।
दिनांक : 21-12-2023
मा0 न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित निर्णय
प्रस्तुत पुनरीक्षण याचिका विद्धान जिला आयोग, शामली द्वारा वाद संख्या-04/2018 वसीम आदि बनाम तहसीलदार में दिनांक 25-05-2023 को पारित आदेश एवं आदेश दिनांक 19-01-2018 के विरूद्ध प्रस्तुत पुनरीक्षण याचिका इस न्यायालय के सम्मुख प्रस्तुत की गयी है।
विद्धान जिला आयोग के सम्मुख परिवादी ने प्रस्तुत परिवाद निम्न अनुतोष प्रदान किये जाने हेतु प्रस्तुत किया था:-
1-यह कि प्रतिवादी नं0-1 ता 4 को निर्देशित किया जावे कि उनके द्वारा की गयी दोषपर्णू त्रुटि व सेवा में कमी को दुरूस्त कर परिवादी को उसके हिस्से
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की फसलों को बोने, काटने व परवरिश करने को निर्बाधित रूप से कराना सुनिश्चित करें।
2-यह कि प्रतिवादी संख्या-1 ता 4 के द्वारा की गयी दोषपूर्ण त्रुटि व सेवा में कमी व प्रतिवाद संख्या-5 की जाल साजियों के कारण हुए फसली नुकसान अंकन 2,50,000/-रू0 व सम्पत्ति के नुकसान अंकन 12,00,000/-रू0 व मानसिक क्षतिपूर्ति अंकन 2,50,000/-रू0 व ऋण की धनराशि अंकन 1,31,100/-रू0 व उसकी टाईम आफ मनी दोनों कुल 2,00,000/-रू0 कुल 19,00,000/-रू0 परिवादीगणों को प्रतिवादीगणों से क्षतिपूर्ति के तौर पर दिलाया जावे एवं प्रतिवादी नं0-6 को आदेशित किया जावे कि दौरान वाद उक्त खसरा नम्बरान में किसी भी विक्रय की रजिस्ट्री न करें।
3- यह कि बजरिये अस्थायी निषेधाज्ञा प्रतिवादी नं0-1 ता 2 को आदेशित किया जावे कि दौरान वाद उक्त खसरा नम्बरान की किसी भी प्रकार की म्यूटेशन, हार्ड, रहन बैनामा आदि की प्रक्रिया पूर्णरूपेण स्थगित की रखी जावे एवं प्रतिवादी संख्या-5 को आदेशित किया जावे कि वह दौरान वाद उक्त वर्णित खसरा नम्बरान में परिवादीगणों के हिस्से में खड़ी फसल को काटने, फसलों को बोने व परवरिश करने में मदाखलत किसी भी प्रकार की न करें।
- यह कि वाद का सम्पूर्ण खर्च परिवादीगणों को प्रतिवादीगणों से दिलाया जावे।
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5- यह कि अन्य अनुतोष जो राय अदालत मुफीद वादी खिलाफ प्रतिवादीगण साहिदर फरमायी जावे, कृपा करें।
लगभग 05 वर्ष की अवधि व्यतीत होने के पश्चात विद्धान जिला आयोग द्वारा आदेश दिनांक 25-05-2023 पारित किया गया है :-
दिनांक 25-05-2023
पत्रावली पेश हुई। परिवादी के विद्धान अधिवक्ता उपस्थित। परिवादी द्वारा प्रार्थना पत्र 31ग मय शपथ पत्र 32ग व साक्ष्य 34ग इस आशय का प्रस्तुत किया गया कि मा0 न्यायालय ने दिनांक 19-01-2018 को वि0गण को विवादित सम्पत्ति हस्तान्तरित करने, बंधक रखने धारणाधिकार नामान्तरण करने से विप0गण को निषेधित किया गया था तथा उसके (परिवादी) शान्तपूर्ण अध्यासन में हस्तक्षेप करने से भी निषेधित किया गया था, परन्तु विपक्षीगण द्वारा दिनांक 21-03-2022 को विवादित सम्पत्ति के संदर्भ में इकरारनामा बैनामा के संबंध में दिनांक 23-03-2022 को निष्पादित किया गया था जो मा0 न्यायालय द्वारा दिये गये आदेश दिनांक 19-01-2018 का स्पष्ट उल्लंघन है और न्यायालय के आदेश की अवमानना है इस संबंध में वि0गण के विरूद्ध धारा-71 की नोटिस जारी की जाती है। पत्रावली वास्ते सुनवाई दिनांक 19-06-2023 को पेश हो। नियत तिथिपर पक्षकारव्यक्तिगत रूप से पेश होंगे। उपस्थित न होने पर उनके विरूद्ध धारा-72 की नोटिस प्रेषित की जाएगी1।‘’
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पुनरीक्षण वाद की सुनवाई के समय पुनरीक्षणकर्ता के विद्धान अधिवक्ता श्री अशोक कुमार शुक्ला उपस्थित आए। विपक्षी की ओर से विद्धान अधिवक्ता श्री इसार हुसैन उपस्थित आए।
पुनरीक्षणकर्ता के विद्धान अधिवक्ता का तर्क है कि विद्धान जिला आयोग द्वारा पारित आदेश साक्ष्य एवं विधि के विरूद्ध है और प्रस्तुत परिवाद जिला आयोग के सम्मुख पोषणीय नहीं है अत: पुनरीक्षण याचिका स्वीकार करते हुए जिला आयोग द्वारा पारित आदेश को अपास्त किया जावे।
विपक्षी के विद्धान अधिवक्ता को तर्क है कि विद्धान जिला आयोग द्वारा समस्त तथ्यों पर गहनतापूर्वक विचार करने के पश्चात विधि अनुसार आदेश पारित किया गया है अत: प्रस्तुत पुनरीक्षण याचिका निरस्त किये जाने योग्य है।
मेरे द्वारा उभयपक्ष के विद्धान अधिवक्तागण को विस्तारपूर्वक सुना गया तथा पत्रावली पर उपलब्ध समस्त प्रपत्रों एवं जिला आयोग द्वारा पारित आदेश का सम्यक परिशीलन एवं परीक्षण किया गया।
विशेष रूप से परिवादी द्वारा परिवाद पत्र में उल्लिखित तथ्यों एवं परिवाद पत्र में मांगे गये अनुतोषों को दृष्टिगत रखते हुए मेरे विचार से उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम-1986 के अन्तर्गत उपभोक्ता परिवाद योजित किये जाने का कोई औचित्य नहीं पाया जाता है और जहॉं पर परिवाद में उल्लिखित विशेष बिन्दु है उपरोक्त के संबंध में वास्तव में परिवादीगण को जिला आयोग के सम्मुख परिवाद प्रस्तुत न करते हुए सक्षम न्यायालय के
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सम्मुख वाद योजित किया जाना चाहिए था जो प्रस्तुत न करते हुए जिला आयोग के सम्मुख वाद योजित किया गया है ।
विपक्षी के विद्धान अधिवक्ता श्री इसार हुसैन द्वारा मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा पारित Shri Prabhakar Vyankoba Aadone Vs. Superintendent, Civil Court on 08 July, 2002 & Dipak Pralhad ingle Vs. Deputy Superintendent on 26 July, 2022 न्याय निर्णयों की ओर मेरा ध्यान आकर्षित किया गया।
मेरे द्वारा उपरोक्त दाखिल किये गये न्यायिक निर्णयों का सम्यक परिशीलन एवं परीक्षण किया गया, उपरोक्त न्यायिक निर्णयों का परिशीलन एवं परीक्षण करने के उपरान्त मेरे द्वारा यह स्पष्ट रूप से पाया गया कि उपरोक्त निर्णय से संबंधित तथ्य प्रस्तुत वाद से संबंधित तथ्यों से पूर्णतया भिन्न है। उपरोक्त निर्णय में वास्तव में मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा विपक्षीगण द्वारा की गयी सेवा में कमी पायी गयी है जो कि वास्तव में विपक्षीगण द्वारा अपेक्षित भूमि, नाप व कब्जा से संबंधित है। प्रस्तुत वाद में ऐसा कोई भी तथ्य नहीं पाया गया जो उपरोक्त निर्णयों से संबंधित है। तदनुसार प्रस्तुत पुनरीक्षण याचिका स्वीकार किये जाने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत पुनरीक्षण याचिका स्वीकार की जाती है और विद्धान जिला आयोग द्वारा पारित आदेश दिनांक 25-05-2023 एवं आदेश दिनांक 19-01-2018 अपास्त किया जाता है साथ ही परिवाद भी निरस्त किया जाता है
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और परिवाद के परिवादीगण को आदेशित किया जाता है कि यदि वह चाहे तो सक्षम न्यायालय में अपना वाद प्रस्तुत करने हेतु स्वतंत्र है।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार)
अध्यक्ष
प्रदीप मिश्रा, आशु0 कोर्ट नं0-1