Rajasthan

Ajmer

CC/391/2013

RENU KUMAR JAIN - Complainant(s)

Versus

VODAFONE - Opp.Party(s)

ADV PREM SWAROOP DAGDI

12 Feb 2015

ORDER

Heading1
Heading2
 
Complaint Case No. CC/391/2013
 
1. RENU KUMAR JAIN
BEAWAR
...........Complainant(s)
Versus
1. VODAFONE
AJMER
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
  Gautam prakesh sharma PRESIDENT
  vijendra kumar mehta MEMBER
  Jyoti Dosi MEMBER
 
For the Complainant:
For the Opp. Party:
ORDER

जिला    मंच,      उपभोक्ता     संरक्षण         अजमेर

रेणु कुमार जैन पुत्र श्री रतन लाल जैन, जाति- जैन,  आयु- 39 वर्ष, निवासी- प्रो0 गणधर रोकटेक, षास्त्री मार्केट,भगत चैराहा, ब्यावर, जिला-अजमेर -305901
                                                             प्रार्थी

                            बनाम

1ण्     ज्ीम डंदंहपदह क्पतमबजवतए टवकंविदम प्दकपं स्पउपजमकए च्मदपदेनसं ब्वतचवतंजम च्ंताए ळंदचंजतंव ज्ञंकंउ डंतहए स्वूमत च्ंतमसए डनउइंप. 400013
2ण्    ज्ीम त्ंरंेजींद ब्पतबसम व्ििपबमतए टवकंविदम प्दकपं स्पउपजमकए ळंनतंअ ज्वूमतेए डंसंअपलं छंहंतए श्रंपचनतण्
3ण्     ज्ीम ठतंदबी व्ििपबमतए टवकंविदम प्दकपं स्पउपजमकए 4जी थ्सववतए ज्ञ ब् ब्वउचसमगए व्चच क्ंनसंज ठंहीए ।रउमत. त्ंरंेजींद
4ण्      ज्ीम ।चचमससंजम ।नजीवतपजलए ।टच्ए ब्वनेजवउमत ैमतअपबमए टवकंविदम प्दकपं स्पउपजमकए ब.48ए वीसं प्दकनेजतपंसए ।तमं च्ींेम.2ए क्मसीप. 110042
                                                      अप्रार्थीगण 
                    परिवाद संख्या 391/2013

                            समक्ष
                   1.  गौतम प्रकाष षर्मा    अध्यक्ष
            2. विजेन्द्र कुमार मेहता   सदस्य
                   3. श्रीमती ज्योति डोसी   सदस्या

                           उपस्थिति
                  1.श्री प्रेमस्वरूप दगदी, अधिवक्ता, प्रार्थी
                  2.श्री ए.एस,ओबराय,अधिवक्ता अप्रार्थीगण 

                              
मंच द्वारा           :ः- आदेष:ः-      दिनांकः- 12.03.2015


1.         प्रार्थी रेणुकुमार जैन जो कि गणधर रोकटेक का मालिक है, की ओर से यह परिवाद अप्रार्थीगण के विरूद्व प्रस्तुत करते हुए बतलाया कि उसके द्वारा अप्रार्थी संख्या 3 के मार्फत अपनी घरेलु आवष्यकतावष परिवाद की चरण संख्या 2 में वर्णित 22 मोबाईल सिमे खरीदी तथा  सिमे क्रय किए जाते समय अप्रार्थी को बतला दिया गया था कि इन सीमों के लिए रू. 200/- प्रतिमाह की क्रेडिट लिमिट तक ही वार्ता करने  तक की वेल्यू  की  ही सेवाएं देवे  तथा यह भी बतला दिया गया था कि रू. 200/- से अधिक राषि  होते ही  इन सीमों से वार्ता करवाना बन्द कर देवे । अप्रार्थी ने इन दोनों बातों को स्वीकार करते हुए  प्रष्नगत सीमे जारी की किन्तु इन सीमो के संबंध में क्रेडिट वेल्यू रू. 200/- से बढाकर रू. 3000/- कर दी  तथा बढे हुए क्रेडिट वेल्यू के बिल भेज दिए । चूंकि प्रार्थी अत्यधिक व्यस्त था इसलिए उन बिलों की राषि जमा करवा दी । प्रार्थी ने अप्रार्थीगण को कई बार  मौखिक रूप से  षिकायत की तथा दिनंाक 11.6.2011 को लिखित में  देने  के  बाद भी बिलों  में सुधार नहीं किया और  ना ही बिलों की राषि वापस नहीं लौटाई ।  परिवाद की चरण संख्या 7,8,9 व 10 में वर्णितानुसार  कई सीमों ने काम  करना बन्द कर दिया जिसके संबंध में वर्ष 2011 में उसने  विभिन्न तारीखों को अप्रार्थीगण को सूचत भी किया । प्रार्थी द्वारा अप्रार्थीगण को इस संबंध में नोटिस भी दिए गए  किन्तु कोई कार्यवाही नहीं किए जाने पर यह परिवाद पेष करते हुए परिवाद में वर्णित अनुतोष चाहा है । 
2.    अप्रार्थीगण की ओर से जवाब पेष हुआ एवं प्रारम्भिक आपत्तियों में दर्षाया कि  प्रार्थी ने ये सीमे अपनी फर्म गणधर रोकटेक के नाम से ली है तथा इन सीमों का प्रयोग  प्रार्थी अपने व्यावसायिक कार्यो में करता है । अतः प्रार्थी उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आता है । इसी  तरह से धारा 7(बी) भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम के आधार पर  भी मंच द्वारा सुनवाई योग्य नहीं है और भी अन्य एतराजात लिए गए । आगे मदवार जवाब पेष करते हुए प्रार्थी के कथनों को गलत होना  बतलाया । चूंकि प्रार्थी ने ये सीमे व्यावसायिक  उपयोग हेतु ली थी । अतः प्रार्थी उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आने से भी  परिवाद खारिज होने योग्य है । 
3.          हमारे समक्ष निर्णय हेतु निम्न बिन्दु है:-
     (1)    क्या धारा 7 (बी) भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम के अनुसार यह परिवाद इस मंच में सुनवाई योग्य नहीं है ?
     (2)    क्या  प्रष्नगत सीमे  फर्म गणधर रोकटेक के नाम से एवं इस फर्म के लिए ली गई, जो व्यावसायिक उपयोग उपभोग हेतु ली  गई। अतः  प्रार्थी उपभोक्ता की श्रेणी में  नहीं आता ?
     (3)    क्या अप्रार्थीगण के विरूद्व सेवा में कमी का बिन्दु सिद्व है ?     

4.    हमने उपरोक्त कायम किए गए निर्णय बिन्दुओं पर पक्षकारान को सुना ।  उपरोक्त निर्णय बिन्दुओं का निर्णय  क्रमषः इस तरह से किया जा रहा है । 
5.    निर्णय बिन्दु संख्या 1:-  इस निर्णय बिन्दु को सिद्व करने का भार अप्रार्थी कम्पनी पर था । उनकी ओर से अधिवक्ता ने अपने जवाब की प्रारम्भिक आपत्तियों में वर्णित पैरा संख्या 4,5,6 व 7 के अनुसार बहस की और यह बतलाया कि  इण्डियन टेलीग्राफ एक्ट की धारा 7(बी) जिसके अनुसार  कि जहां ऐसा कोई विवाद हो तो उन विवादों को आरबीट्रेषन को रेफर किया जाना चाहिए  इस आषय का प्रतिपादिन माननीय उच्चतम न्यायालय के निर्णय ।प्त्  2010 ैनचतमउम ब्वनतज 90 ळमदमतंस डंदंहमतए ज्मसमबवउ टे डण् ज्ञतपेीदंद ंदक ।दतण्   में बखूबी हुआ है । अधिवक्ता प्रार्थी कम्पनी की इस संबंध में बहस  है कि अप्रार्थी कम्पनी भारत सरकार द्वारा संचालित कोई कम्पनी नहीं है । अतः इण्डियन टेलीग्राफ एक्ट के प्रोविजन इस संबंध में उन पर लागू नहीं होते है एवं अप्रार्थी कम्पनी की यह आपत्ति चलने योग्य नहीं है ।  
            हमने पक्षकारान की ओर से उपरोक्त अनुसार की गई बहस पर गौर किया तथा दृष्टान्त ळमदमतंस डंदंहमतए ज्मसमबवउ टे डण् ज्ञतपेीदंद ंदक ।दतण्    एवं  इण्डियन टेलीग्राफ अधिनियम की धारा 7(बी) का अध्ययन किया  साथ ही भारत सरकार के ळवअमतदउमदज व िप्दकपंए डपदपेजतल व िब्वउउनदपबंजपवदे - प्ज् क्मचंतजउमदज व िज्मसमबवउउनदपबंजपवदे द्वारा जारी दिषा निर्देष  व स्पष्टीकरण दिनांक 24.1.2014 जिसकी प्रति उचित माध्यम से अर्थात राज्य आयोग से 
इस मंच को प्रेषित की है, का भी अध्ययन किया । भारत सरकार के दिषा निर्देष (उपरोक्त) दिनांक 24.1.2014 के पैरा 4 में उल्लेख किया है कि  इण्डियन टेलीफोन एक्ट की धारा 7 (बी)  में  विवाद जो टेलीग्राफ आथिरिटी व उपभोक्ताओं के मध्य हो तो ऐसे विवाद को मध्यस्थ को रेफर किया जावेगा , वर्णित है  एवं इसी पैरा में वर्णितानुसार भारत सरकार के डपदपेजतल व िब्वउउनदपबंजपवदे - प्ज् क्मचंतजउमदज व िज्मसमबवउउनदपबंजपवदे (उपरोक्त) दिषा निर्देष में यह भी बतलाया है कि टेलीफोन से संबंधित प्राईवेट कम्पनीस् तथा भारत दूर संचार निगम लिमिटेड में से कोई भी टेलीग्राफ आथिरिटी की श्रेणी में नहीं आता है ।  अतः माननीय उच्चतम न्यायालय के निर्णय ळमदमतंस डंदंहमतए ज्मसमबवउ टे डण् ज्ञतपेीदंद ंदक ।दतण् में प्रतिपादित  मत ऐसे प्रकरणों में लागू होना नहीं माना  है। इस प्रकार इस विवेचन से हमारा निष्कर्ष है कि इस विवाद को इस मंच को सुनवाई का क्षेत्राधिकार है । इस प्रकार इस निर्णय बिन्दु का निर्णय इसी अनुरूप किया जाता है ।   
6.         निर्णय बिन्दु संख्या 2:- परिवाद की  चरण संख्या 1 में वर्णित सभी मोबाईल कनेक्षन्स प्रार्थी गणधर रोकटेक कम्पनी के नाम से है । इस संबंध में अधिवक्ता प्रार्थी कम्पनी की बहस रही है कि ये सभी कनेक्षन्स प्रार्थी कम्पनी के नाम अवष्य है लेकिन इन्हें प्रार्थी कम्पनी के कर्मचारीगण को उनकी सुविधा हेतु दे रखा है जिनका वे अपनी सुविधानुसार उपयोग व उपभोग में ही काम में ले रहे है । कम्पनी के व्यवसाय से  इन कनेक्षन्स का कोई लेना देना नहीं है । अधिवक्ता अप्रार्थी कम्पनी की बहस है कि प्रार्थी एक कम्पनी है तथा रेणु कुमार जैन  इसके मालिक है । एक ही कम्पनी के नाम में 22 कनेक्षन्स  लिए हुए है । निष्चित तौर पर इन कनेक्षन्स का उपयोग उपभोग प्रार्थी कम्पनी के व्यावसायिक कार्य हेतु ही हो रहा है । प्रार्थी कम्पनी की बहस है कि इन कनेक्षन्स को  प्रार्थी कम्पनी के कर्मचारियों को उनकी सुविधा हेतु दिया गया है । प्रथमतः  इस आषय की कोई साक्ष्य नही ंहै । इसके अतिरिक्त  इसे सहीं मान भी लिया जावे तब भी वे सभी  इस कम्पनी के कर्मचारी है तथा उनके पास मोबाईल होने से कम्पनी द्वारा कम्पनी के कार्य हेतु  आवष्यक निर्देष आदि देने में सुविधा के मद्देनजर ही ये कनेक्षन्स उन्हें दिए गए है । इन सभी कनेक्षन्स का उपयोग उपभोग प्रार्थी कम्पनी के व्यावसायिक कार्य हेतु बखूबी पाया गया है । 
    अप्रार्थी कम्पनी के नाम 22 कनेक्षन्स है । प्रार्थी कम्पनी का यह कथन रहा है कि ये कनेक्षन्स  उनके कर्मचारियों को अलग अलग  उनकी सुविधा हेतु दिए गए है लेकिन इस आषय की कोई साक्ष्य नहीं है । इसके अतिरिक्त उन कर्मचारियों को ऐसे कनेक्षन्स से  सुविधा हो रही है अथवा नहीं   यह अलग बात है लेकिन  प्रार्थी कम्पनी को उन्हें उचित निर्देष  व आदेष देनेे हेतु इन कनेक्षन्स का उपयोग उपभोग अवष्य होता रहा है, तथ्य की अवधारणा ली जा सकती है  । सभी कनेक्षन्स  प्रार्थी कम्पनी के नाम है यह तथ्य निर्विवाद है । अतः हमारे विनम्र मत में ये कनेक्षन्स  प्रार्थी कम्पनी द्वारा स्वयं के नाम से लिए है जिनका उपयोग उपभोग प्रार्थी कम्पनी के व्यावसायिक कार्य में होना सिद्व हुआ है । अतः इन कनेक्षन्स का उपयोग व्यावसायिक उपयोग में होना पाया जाने से  प्रार्थी कम्पनी उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आती है  एव प्रार्थी का यह परिवाद इस आधार पर चलने योग्य नहीं है ।  इस निर्णय बिन्दु का निर्णय इसी अनुरूप किया जाता है । 
7.      निर्णय बिन्दु संख्या 3:-  निर्णय बिन्दु संख्या 2 के अनुसार  प्रार्थी कम्पनी को उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं माना है एवं परिवाद इस आधार पर चलने योग्य नहीं होना भी माना गया है । अतः इस निर्णय बिन्दु संख्या 3 पर कोई विवेचना  या निर्णय देने की हम आवष्यकता नहीं समझते । 
8.    निर्णय बिन्दु संख्या 1 के अनुसार प्रार्थी का परिवाद इस मंच में चलने योग्य पाया गया है किन्तु निर्णय बिन्दु संख्या  2 के अनुसार प्रार्थी फर्म  उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आती है । अतः प्रार्थी कम्पनी  का यह परिवाद चलने योग्य नहीं  होने से खारिज होने योग्य है  एवं आदेष है कि 
                     -ःः आदेष:ः-
9.            प्रार्थी का परिवाद स्वीकार होने योग्य नहीं होने से अस्वीकार  किया जाकर  खारिज किया जाता है । खर्चा पक्षकारान अपना अपना स्वयं वहन करें ।

(विजेन्द्र कुमार मेहता)  (श्रीमती ज्योति डोसी)    (गौतम प्रकाष षर्मा) 
                सदस्य              सदस्या               अध्यक्ष

10.        आदेष दिनांक 12.3.2015  को  लिखाया जाकर सुनाया गया ।

              सदस्य             सदस्या             अध्यक्ष

 
 

 
 
[ Gautam prakesh sharma]
PRESIDENT
 
[ vijendra kumar mehta]
MEMBER
 
[ Jyoti Dosi]
MEMBER

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