राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
मौखिक
अपील संख्या-2123/2001
ब्रांच मैनेजर इलाहाबाद बैंक, जी.टी. रोड एटा। .....अपीलार्थी@विपक्षी
बनाम
विश्वनाथ सिंह वर्मा पुत्र डा0 जगन्नाथ सिंह वर्मा निवासी
108 हिन्दूनगर एटा। .......प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष:-
1. मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्य।
2. मा0 श्री विकास सक्सेना, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री दीपक मेहरोत्रा के सहयोगी श्री मनोज
कुमार, विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक 08.12.2021
मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
1. परिवाद संख्या 105/99 श्री विश्वनाथ सिंह वर्मा बनाम शाखा प्रबंधक इलाहाबाद बैंक में पारित निर्णय व आदेश दिनांक 30.07.2001 के विरूद्ध यह अपील प्रस्तुत की गई है। जिला उपभोक्ता मंच द्वारा यह निर्देश दिया गया है कि ऋण लेते समय परिवादी द्वारा जो शैक्षिक दस्तावेज बतौर सुरक्षा बैंक में जमा किए गए हैं उन्हें वापस लौटा दिया जाए। यह दस्तावेज ऋण अदायगी के पश्चात तुरंत वापस न करने पर रू. 5000/- की क्षतिपूर्ति का भी आदेश दिया गया है।
2. परिवाद के तथ्य इस प्रकार हैं कि परिवादी ने विपक्षी बैंक से रू. 60000/- का ऋण अपने शैक्षिक दस्तावेज गिरवी रखकर प्राप्त किया था। यह ऋण राशि वापस लौटा दी गई, परन्तु बैंक ने शैक्षिक मूल दस्तावेज वापस नहीं लौटाया।
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3. विपक्षी का कथन है कि परिवादी को कर्ज दिया गया, परन्तु मूल दस्तावेज कर्ज की सुरक्षा के लिए प्राप्त नहीं किए गए थे, इसलिए उनके पास दस्तावेज नहीं हैं। ये दस्तावेज वापस नहीं लौटाए जा सकते।
4. जिला उपभोक्ता मंच ने दोनों पक्षकारों को सुनने के पश्चात यह निष्कर्ष दिया कि प्रधानमंत्री ऋण योजना के तहत जिन व्यक्ति को ऋण प्रदान किए जाते हैं उनके शैक्षिक प्रमाणपत्र बैंक द्वारा प्रदान किए जाते हैं, इसलिए बैंक द्वारा परिवादी से भी मूल दस्तावेज प्राप्त किए गए हैं, जिन्हें वापस लौटाया जाए, तदनुसार उपरोक्त वर्णित आदेश पारित किया गया।
5. अपील इस आधार पर प्रस्तुत की गई है कि जिला उपभोक्ता मंच द्वारा पारित निर्णय विधि विरूद्ध है, क्योंकि बैंक ने कभी भी मूल शैक्षिक दस्तावेज प्राप्त नहीं किए।
6. केवल अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता को सुना गया। उनका तर्क है कि निर्णय में वर्ष 1984 में बी.ए प्रथम वर्ष तथा वर्ष 1985 में बी.ए द्वितीय वर्ष पास करने का उल्लेख है, जबकि इन दोनों दस्तावेजों के साथ वर्ष 1985 के सनद की भी मांग की गई है। अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता शायद यह कहना चाहते हैं कि तत्समय ग्रेजुएशन 3 वर्ष की अवधि हो चुकी थी, इसलिए 2 वर्ष में बी.ए पास नहीं हो सकता, यह तर्क विधिसम्मत नहीं है, क्योंकि तत्समय आगरा विश्वविद्यालय में ग्रेजुएशन 3 वर्ष की हो चुकी हो ऐसा कोई प्रमाणपत्र प्रस्तुत नहीं किया गया। उपरोक्त तर्क के अलावा कोई अन्य तर्क नहीं उठाया गया।
7. जिला उपभोक्ता मंच ने श-शपथ साबित किया है कि उसने मूल दस्तावेज प्राप्त कराए थे। सुनील कुमार तिवारी नामक व्यक्ति का शपथपत्र प्रस्तुत कराया था। उस व्यक्ति से भी मूल दस्तावेज प्राप्त किए गए थे,
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इसलिए जिला उपभोक्ता मंच के समक्ष मौजूद साक्ष्य के आधार पर यह निष्कर्ष दिया गया है कि बैंक द्वारा मूल शैक्षिक दस्तावेज प्राप्त करने के पश्चात ही ऋण स्वीकार किया गया है, इसलिए मूल दस्तावेज लौटाया जाए। इस आदेश में किसी प्रकार की अवैधानिकता नहीं है, साक्ष्य पर आधारित आदेश पारित किया गया है। तदनुसार अपील खारिज होने योग्य है।
आदेश
अपील खारिज की जाती है।
उभय पक्ष अपना-अपना अपीलीय-व्यय भार स्वंय वहन करेंगे।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस आदेश को आयोग की वेबसाइड पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(विकास सक्सेना) (सुशील कुमार) सदस्य सदस्य
राकेश, पी0ए0-2
कोर्ट-2