जिला फोरम उपभोक्ता विवाद प्रतितोष, झुन्झुनू (राज0)
परिवाद संख्या - 205/15
समक्ष:- 1. श्री सुखपाल बुन्देल, अध्यक्ष।
2. श्रीमती शबाना फारूकी, सदस्या।
3. श्री अजय मिश्रा, सदस्य।
सुरेश सैनी उम्र 36 साल पुत्र श्री रिछपाल जाति माली निवासी ढाणी मूला पटेल की माहवा तहसील नीमकाथाना पुलिस थाना सदर नीमकाथाना जिला सीकर (राज.)
- परिवादी
बनाम
बिशम्भरलाल सी0 से0 स्कूल, बगड़ जरिये डायरेक्टर प्रमोद गंगवाल बिशंभरलाल सी0 से0 स्कूल, बगड जिला झुंझुनू (राज.) - विपक्षी
परिवाद पत्र अन्तर्गत धारा 12 उपभोक्ता सरंक्षण अधिनियम 1986
उपस्थित:-
1. श्री उम्मेदराज सैनी, एडवोकेट-परिवादी की ओर से।
2. श्री अशोक कुमार शर्मा, एडवोकेट -विपक्षी की ओर से।
- निर्णय - दिनांक 03.08.2017
परिवादी ने यह परिवाद पत्र मंच के समक्ष पेष किया, जिसे दिनांक 19.06.2015 को संस्थित किया गया।
विद्वान अधिवक्ता परिवादी ने परिवाद पत्र मे अंकित तथ्यों को उजागर करते हुए बहस के दौरान यह कथन किया है कि परिवादी ने दिनांक 07.07.2014 को अपने पुत्र अभिषेक का विपक्षी के यहां कक्षा 5 में अध्ययन हेतु नियमित छात्र के रूप में प्रवेश करवाया था। परिवादी ने अपने पुत्र अभिषेक के लिये विपक्षी संस्थान में 8000/-रूपये अध्ययन फीस, 1800/-रूपये एडमिशन एवं एडमीशन फार्म फीस, 4250/-रूपये ट्यूसन फीस तथा 7000/-रूपये जमा करवाये। इस प्रकार परिवादी ने अपने पुत्र अभिषेक के अध्ययन व छात्रावास शुल्क के कुल 21050/-रूपये विपक्षी संस्थान में जमा करवाये। परिवादी के पुत्र अभिषेक ने प्रवेश के बाद संस्थान में अध्ययन शुरू कर दिया। विपक्षी संस्थान के छात्रावास के खाने से परिवादी के पुत्र का स्वास्थ्य खराब रहने लगा। विपक्षी संस्थान ने परिवादी को बताया कि अभिषेक का स्वास्थ्य यहां ठीक नहीं रहता तथा आप बच्चे के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुये यहां से ले जाओ। विपक्षी संस्थान ने परिवादी को उसके पुत्र अभिषेक की टी.सी. काटकर दे दी। विपक्षी संस्थान ने परिवादी को आश्वास्त किया कि उसने जो फीस विपक्षी संस्थान में जमा कराई गई है वह नियमानुसार वापिस लौटादी जावेगी। परिवादी अपने पुत्र अभिषेक की टी.सी. लेकर चला गया तथा अभिषेक को नीमकाथाना में दूसरी शिक्षण संस्थान में दिनांक 27.07.2014 को प्रवेश दिलाया । परिवादी ने विपक्षी संस्थान में जमा कराई गई राशि वापिस प्राप्त करने के लिये बार-बार निवेदन किया तथा चक्कर लगाये परन्तु विपक्षी संस्थान ने परिवादी द्वारा जमा कराई गई फीस एवं छात्रावास आदि की राशि आज तक वापिस नहीं लौटाई। इस प्रकार विपक्षी के उक्त कृत्य से परिवादी को शारीरिक व मानसिक पीडा हुई तथा भारी आर्थिक हानि हुई। जो विपक्षी की सेवा में कमी की श्रेणी में आता है।
अन्त में विद्वान् अधिवक्ता परिवादी ने परिवाद पत्र मय खर्चा स्वीकार कर विपक्षी से जमा कराई गई फीस 21050/-रुपये मय ब्याज भुगतान दिलाये जाने का निवेदन किया।
विद्वान अधिवक्ता विपक्षी ने जवाब मे अंकित तथ्यों को उजागर करते हुए बहस के दौरान यह कथन किया है कि परिवादी द्वारा स्कूल व होस्टल फीस जमा कराई जाने पर परिवादी के पुत्र को विधिवत शिक्षा एवं होस्टल निवास की सुविधा प्रदान करदी गई थी। विपक्षी के छात्रावास में छात्रों को बेहतरीन पोष्टिक एवं स्वास्थ्यवर्धक भोजन उपलब्ध कराया जाता है। स्कूल एवं होस्टल में एडमिशन लेने से पहले परिवादी को स्कूल एवं होस्टल की शर्ते व फीस से संबंधित सभी प्रकार की शर्ते समझा दी गई थी। परिवादी का पुत्र व उसके भाई हरिराम के पुत्र उद्दण्ड प्रवृति के थे जो स्कूल एवं होस्टल के नियमों में बंधकर नहीं रहना चाहते थे। इसलिये परिवादी स्वयं ही अपने पुत्र अभिषेक की टी.सी. लेकर गया था। परिवादी द्वारा अपने पुत्र अभिषेक को स्कूल से निकालकर ले जाने के बाद दिनांक 05.08.2014 को अभिषेक व परिवादी के भाई के पुत्रगण विक्रम, राहुल की फीस वापस प्रदान करने का एक सम्मिलित प्रार्थना पत्र विपक्षी संस्थान में पेश किया था। परिवादी के प्रार्थना पत्र पर विपक्षी संस्थान द्वारा परिवादी के भाई के पुत्रगण विक्रम सैनी, राहुल सैनी तथा परिवादी के पुत्र अभिषेक तीनों की काशन मनी के रूप में जमा 9000/-रूपये (प्रत्येक के तीन हजार रूपये) तथा मैस खाने में शेष रही राशि 3768/-रूपये तीनों विद्यार्थियों के कुल 12768/-रूपय,े का चैक दिनांकित 22.08.2014 जारी कर दिया जो स्कूल के नियमानुसार तीनो छात्रों के लोकल गार्जियन श्री गिरधारी लाल सैनी के पक्ष में जारी किया गया। परिवादी ने जानबूझकर बैंक आफ बडौदा का उक्त चैक लेने से इन्कार कर दिया तथा अपने द्वारा जमा कराई गई सम्पूर्ण राशि की मांग की। परिवादी के पक्ष में देय राशि 12768/-रूपये विपक्षी संस्थान हमेशा देने को तैयार है, जो परिवादी किसी भी कार्य दिवस में चैक लोकल गार्जियन के साथ आकर ले सकता है।
अन्त में विद्वान् अधिवक्ता विपक्षी ने परिवादी का परिवाद पत्र मय खर्चा खारिज किये जाने का निवेदन किया।
उभयपक्ष के तर्को पर विचार किया गया। पत्रावली का ध्यानपूर्वक अवलोकन किया गया।
विद्वान् अधिवक्ता परिवादी का बहस के दौरान यह कथनहोना कि परिवादी ने अपनेे पुत्र अभिषेक का 5वीं कक्षा में अध्ययन हेतु नियमित छात्र के रूप में प्रवेष कराया तथा नियमानुसार स्कूल फीस व छात्रावास फीस जमा कराई थी। परिवादी के पुत्र का स्वास्थ्य ठीक नहीं रहने के कारण उसे विपक्षी के संस्थान से टी.सी. लेकर अन्यत्र संस्थान में प्रवेश लेना पडा, जिसके फलस्वरूप परिवादी ने अभिषेक की विपक्षी संस्थान में जमा कराई गई स्कूल फीस, छात्रावास फीस व अन्य खर्चा वापिस लौटाये जाने का निवेदन विपक्षी को किये जाने पर विपक्षी द्वारा उक्त स्कूल व छात्रावास फीस व खर्चा वापिस लौटाने से इन्कार कर दिया।
विद्वान् अधिवक्ता परिवादी के उक्त तर्को के खण्डन में हमारे द्वारा न्यायदृष्टांत III (2016)CPJ 230 (NC) – ANURUDH TAMRAKAR V. GLOBAL ENGINEERING COLLEGE JABALPUR & ORS, III (2014) CPJ 120 (NC) – REGIONAL INSTITUTE OF COOPERATIVE MANAGEMENT VS NAVEEN KUMAR CHAUDHARY, SHITANSHU RANJAN, ANAMIKA SINGH, NISHA, AARIF FARIDI का सूक्ष्म एंव सावधानीपूर्वक अवलेाकन किया गया।
उपरोक्त न्यायदृष्टांतों में माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा यह सिद्वंात प्रतिपादित किया हंै कि किसी भी षिक्षण संस्थान University/Boardतक का विधार्थी उपभोक्ता की श्रेणी में नही आता है। उक्त न्यायदृष्टांत इस प्रकरण के तथ्य व परिस्थितियों के अनुकूल होने से पूर्णरूप से चस्पा होते हैं।
न्यायदृष्टांत III (2010) CPJ 19 (SC) -Maharishi Dayanand University Vs Surjeet Kaur में भी माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निम्न सिद्धांत प्रतिपादित किया गया हैः-
Education Jurisdiction of District Forum-
“Respondent as a student is neither a consumer nor is appellant rendering service - Claim of respondent to award B.Ed. degree was almost in the nature of relief praying for directrion to Appellant to act contrary to its own rules - Appellant is an autonomous body and decision of appellant and statutory provisions to be implemented through its officers - District Forum had no jurisdiction to entertain any such complaint.”
इस प्रकार उपरोक्त न्यायदृष्टांतों में माननीय सर्वोच्च न्यायालय एवं माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा जो सिद्धांत प्रतिपादित किये गये हैं, उनमें यह स्पष्ट किया गया है कि विपक्षी षिक्षण संस्थान University/Board सेवा प्रदाता नहीं है तथा विद्यार्थी उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आता है।
अतः उपरोक्त विवेचन एंव उक्त न्यायदृष्टांतों की रोषनी में परिवादी का परिवाद पत्र इस मंच के क्षेत्राधिकार में नहीं होने से चलने योग्य नहीं है, जो निरस्त किया जाता है।
पक्षकारान खर्चा मुकदमा अपना-अपना वहन करेंगे।
निर्णय आज दिनांक 03.08.2017 को लिखाया जाकर मंच द्धारा सुनाया गया।