राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
अपील संख्या-367/2009
(जिला उपभोक्ता फोरम, मुजफ्फरनगर द्वारा परिवाद संख्या 77/2003 में पारित निर्णय दिनांक 04.12.2004के विरूद्ध)
जनरल मैनेजर टीवीएस मोटर कंपनी लि0 के-23, प्रथम तल,
लाजपत नगर।। न्यू दिल्ली। .......अपीलार्थी/विपक्षी
बनाम्
1.वीरेन्द्र त्यागी पुत्र श्री प्रहलाद सिंह निवासी 229/1 इंदिरा कालोनी
मुजफ्फरनगर।
2.प्रिंस आटोमोबाइल्स टीवीएस रोड रंजीत नगर बैरी बाग, सहारनपुर
(अथराइज्ड डीलर टीवीएस सुजूकी लि0)
3.रियासत खान पुत्र अमौनुल्लाह खान बुकिंग क्लर्क प्रिंस आटोमोबाइल्स।
......प्रत्यर्थीगण/परिवादीगण
समक्ष:-
1. मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य।
2. मा0 श्री गोवर्द्धन यादव, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री मनीष निगम, विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक 15.03.2019
मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
यह अपील जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम मुजफ्फरनगर द्वारा परिवाद संख्या 77/2003 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दि. 04.12.2004 के विरूद्ध योजित की गई है।
संक्षेप में तथ्य इस प्रकार है कि परिवादी के कथनानुसार परिवादी ने दि. 16.12.2001 को प्रिंस आटो मोबाइल पंचेडा रोड गांधी कालोनी, रायल बुलेटिन के सामने जो अपीलकर्ता का अधिकृत बुकिंग सेन्टर था पर रू. 5000/- टीवीएस विक्टर मोटरसाइकिल खरीदने हेतु एडवान्स जमा किया। मोटरसाइकिल बुक कराने के उपरांत दि. 19.12.01 को रू. 40800/- स्टेट
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बैंक आफ पटियाला कोर्ट रोड मुजफ्फरनगर का बैंक ड्राफ्ट भी दिया गया। उक्त वाहन क्रय करने हेतु परिवादी ने रू. 30000/- की धनराशि स्टेट बैंक आफ पटियाला से बतौर ऋण प्राप्त की थी। परिवादी परिवाद के विपक्षी संख्या 1 व 2 से अपनी बुक कराई गई मोटरसाइकिल की डिलेवरी के बारे में पुछताछ करता रहा। परिवादी को यह सूचित किया गया कि एक-दो महीने में मोटरसाइकिल आ जाएगी। कई माह गुजरने के बावजूद जब मोटरसाइकिल की डिलेवरी प्राप्त नहीं हुई तब परिवादी ने दि. 09.04.02 को एक नोटिस अपने वकील के माध्यम से परिवाद के विपक्षी संख्या 1 को भेजी, किंतु विपक्षी संख्या 1/प्रत्यर्थी संख्या 2 ने नोटिस का कोई जवाब नहीं दिया। नोटिस देने के 15 दिन गुजर जाने के बाद परिवादी स्वयं प्रत्यर्थी संख्या 2 के कार्यालय गया तब वहां पता चला कि प्रत्यर्थी संख्या 2 द्वारा परिवादी की कोई बुकिंग बावत मोटरसाइकिल टीवीएस विक्टर नहीं की गई। प्रत्यर्थी संख्या 2 ने परिवादी को आश्वासन दिया कि उक्त विषय की जांच करके वादी को सूचित किया जाएगा। परिवादी ने इस संबंध में अपीलकर्ता के कार्यालय में भी संपर्क किया, किंतु वहां से भी कोई संतोषजनक उत्तर प्राप्त नहीं हुआ। परिवादी ने अंतिम बार दि. 25.02.03 को प्रत्यर्थी संख्या 2 के कार्यालय से अपनी बुकिंग कराई गई मोटरसाइकिल की डिलवरी के बारे में जानकारी चाही तथा यह कहा कि परिवादी के पैसे वापस कर दें, किंतु प्रत्यर्थी संख्या 2 ने वादी के पैसे वापस नहीं किए और न ही मोटरसाइकिल वापस दी, अत: प्रत्यर्थी संख्या 2 व 3 द्वारा जानबूझकर परिवादी के पैसे गलत ढंग से अवैध लाभ उठाने की नीयत से परिवादी को धोखा देकर हजम कर लेना अभिकथित करते हुए परिवाद जिला मंच के समक्ष योजित किया, अत: यह अनुतोष चाहा गया कि अपीलकर्ता तथा
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प्रत्यर्थी संख्या 2 व 3 से रू. 45800/- मय ब्याज बुकिंग के दिन से दिलाया जाए तथा रू. 30000/- क्षतिपूर्ति के रूप में दिलाई जाए।
प्रत्यर्थी संख्या 2 व 3 की ओर से प्रतिवाद पत्र जिला मंच के समक्ष प्रस्तुत किया गया। प्रत्यर्थी संख्या 2 व 3 द्वारा यह अभिकथित किया गया कि स्टेट बैंक आफ इंडिया पटियाला कोर्ट रोड, मुजफ्फरनगर द्वारा जारी किए गए रू. 40800/- का बैंक ड्राफ्ट जिस व्यक्ति द्वारा अपना कहते हुए प्रस्तुत किया गया उसी को मोटरसाइकिल बेची गई। प्रत्यर्थी संख्या 1 द्वारा कोई बैंक ड्राफ्ट प्रस्तुत नहीं किया गया।
विद्वान जिला मंच ने प्रश्नगत निर्णय द्वारा परिवादी का परिवाद आंशिक रूप से अपीलकर्ता तथा प्रत्यर्थी संख्या 2 व 3 के विरूद्ध स्वीकार करते हुए अपीलकर्ता तथा प्रत्यर्थी संख्या 2 व 3 को निर्देशित किया कि रू. 40800/- मय ब्याज परिवादी को अदा करे। इस धनराशि पर निर्णय की तिथि से 2 माह के अंदर 9 प्रतिशत ब्याज परिवादी प्राप्त करने का अधिकारी होगा। इसके अतिरिक्त् यह भी निर्देशित किया गया कि परिवादी को ढाई हजार रूपये हर्जे के रूप में तथा रू. 1000/- वाद व्यय के रूप में अपीलकर्ता तथा प्रत्यर्थी संख्या 2 व 3 परिवादी को भुगतान करेंगे। इस निर्णय से क्षुब्ध होकर यह अपील योजित की गई।
हमने अपीलकर्ता के विद्वान अधिवक्ता श्री मनीष निगम के तर्क सुने। प्रत्यर्थी संख्या 2 व 3 पर नोटिस की तामीला आदेश दि. 03.05.18 द्वारा पर्याप्त मानी गई। प्रत्यर्थी संख्या 1 पर नोटिस की तामीला आदेश दि. 25.02.19 द्वारा पर्याप्त मानी गई। प्रत्यर्थीगण की ओर से तर्क प्रस्तुत करने हेतु कोई उपस्थित नहीं हुआ।
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उल्लेखनीय है कि प्रस्तुत अपील विलम्ब से योजित की गई है। विलम्ब को क्षमा किए जाने हेतु प्रार्थना पत्र अपीलकर्ता द्वारा प्रस्तुत किया गया है। प्रार्थना पत्र के समर्थन में श्री शिवबहादुर सिंह का शपथपत्र संलग्न किया गया है, जिसके द्वारा कोई प्रतिशपथ पत्र प्रत्यर्थी की ओर से प्रस्तुत नहीं किया गया है, अत: शपथपत्र में उल्लिखित तथ्यों में वर्णित स्पष्टीकरण को पर्याप्त पाते हुए अपील के प्रस्तुतीकरण में हुए विलम्ब को क्षमा किया जाता है।
उल्लेखनीय है कि अपीलकर्ता परिवादी द्वारा कथित रूप से क्रय की गई मोटरसाइकिल की निर्माता कंपनी का जनरल मैनेजर है। अपीलकर्ता का यह कथन है कि प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा कथित रूप से क्रय की गई मोटरसाइकिल तथा इस क्रय हेतु जमा की गई धनराशि के क्रियाकलापों में अपीलकर्ता की कोई भूमिका नहीं है। प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा जिला मंच में प्रस्तुत किए गए परिवाद की फोटोप्रति अपीलकर्ता ने अपील मेमो के साथ दाखिल की है। परिवाद के अभिकथनों के अवलोकन से यह विदित होता है कि स्वयं प्रत्यर्थी/परिवादी ने कथित रूप से क्रय की मोटरसाइकिल से संबंधित धनराशि की अदायगी अपीलकर्ता को किया जाना नहीं अभिकथित किया है। स्वयं परिवादी ने प्रत्यर्थी संख्या 2 व 3 द्वारा उसके साथ धोखा किया जाना अभिकथित किया है। ऐसी परिस्थिति में अपीलकर्ता के विरूद्ध धनराशि की अदायगी हेतु आदेश पारित किए जाने का कोई औचित्य प्रतीत नहीं होता। जिला मंच ने पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्य का तथा पक्षकारों के अभिकथनों का परिशीलन न करते हुए प्रश्नगत निर्णय पारित किया है, अत: अपील स्वीकार किए जाने तथा प्रश्नगत निर्णय अपीलकर्ता के विरूद्ध अपास्त किए जाने योग्य है।
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आदेश
प्रस्तुत अपील स्वीकार की जाती है। जिला मंच द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय अपीलकर्ता के विरूद्ध निरस्त किया जाता है।
उभय पक्ष अपना-अपना अपीलीय व्यय स्वयं वहन करेंगे।
निर्णय की प्रतिलिपि पक्षकारों को नियमानुसार उपलब्ध कराई जाए।
(उदय शंकर अवस्थी) (गोवर्द्धन यादव) पीठासीन सदस्य सदस्य
राकेश, पी0ए0-2
कोर्ट-2