मौखिक
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ०प्र० लखनऊ
अपील संख्या- 205/2011
यू०पी० प्रोजेक्ट्स कारपोरेशन लि0 व एक अन्य
बनाम
वीरेन्द्र सिंह व अन्य
समक्ष:-
- माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य
- माननीय श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्या
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : विद्वान अधिवक्ता श्री आई०एम० पाण्डेय
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : विद्वान अधिवक्ता श्री आर०के० गुप्ता
दिनांक- 10.01.2024
माननीय सदस्या श्रीमती सुधा उपाध्याय द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील, अपीलार्थी यू०पी० प्रोजेक्ट्स कारपोरेशन लि0 व एक अन्य की ओर से विद्वान जिला आयोग, प्रथम आगरा द्वारा परिवाद संख्या– 76/2003 वीरेन्द्र सिंह बनाम अधिशाषी अभियन्ता, लघु सिंचाई विभाग व तीन अन्य में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक- 26-10-2010 के विरूद्ध योजित की गयी है।
अपील की सुनवाई के समय अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री आई०एम० पाण्डेय उपस्थित हुए। प्रत्यर्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री आर०के० गुप्ता उपस्थित हुए।
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पीठ द्वारा उभय-पक्ष के विद्वान अधिवक्तागण के तर्क को सुना गया तथा पत्रावली पर उपलब्ध समस्त प्रपत्रों का सम्यक रूप से परिशीलन किया गया।
जिला आयोग द्वारा परिवाद स्वीकार करते हुए विपक्षीगण को आदेशित किया है कि आदेश के दिनांक से 30 दिन के भीतर 1,14,518/-रू० 06 प्रतिशत ब्याज सहित वाद प्रस्तुत करने की दिनांक से वास्तविक भुगतान की दिनांक तक अदा करें। साथ ही 3000/-रू० परिवाद व्यय भी अदा करें।
जिला आयोग द्वारा पारित उपरोक्त निर्णय के विरूद्ध यह अपील योजित की गयी है।
परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादी ने विपक्षी संख्या-1 के माध्यम से विपक्षी संख्या-3 से स्वीकृति होने पर दिनांक 21-09-2000 को 45,000/-रू० जमा किये। दिनांक 13-12-2000 को बोरिंग का का शुरू किया गया तथा दिनांक 16-12-2000 को समाप्त किया गया। प्रत्यर्थी/परिवादी से 70,000/-रू० जमा कराए गये परन्तु पानी का प्रेशर सही न होने के कारण विपक्षी संख्या-3 से बजरी डालने के लिए कहा गया। परन्तु 15 घन मीटर बजरी की जगह 08 घन मीटर बजरी डाली गयी। इस पर भी प्रेशर नहीं बना तब दिनांक 21-11-2001 को बोरिंग की पुन: जांच करायी गयी। दिनांक 29-11-2001 को कम्प्रेशर लगाने के लिए 10,000/-रू० जमा कराए गये। दिनांक 10-12-2001 को कम्प्रेशर चालू किया गया जो 20 मिनट काम करने के बाद बन्द हो गया। दिनांक 13-03-2002 को
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कम्प्रेशर चालू किया गया तो केवल ढाई इंच तक पानी निकला इसके बाद ट्यूबवेल बोरिंग ने काम करना बन्द कर दिया। शिकायत करने पर विपक्षी द्वारा केवल ट्यूबवेल ठीक करने का आश्वासन दिया गया परन्तु ठीक नहीं किया गया, इसलिए उपभोक्ता आयोग के समक्ष परिवाद योजित किया गया।
विपक्षी संख्या-1 व 3 ने लिखित कथन प्रस्तुत कर कथन किया है कि दिनांक 10-04-2002 को प्रत्यर्थी/परिवादी ने स्वयं लिखकर दिया कि ट्यूबवेल सही काम कर रहा है, बोरिंग के संचालन में परिवादी से लापरवाही हुयी है। परिवाद पोषणीय नहीं है, निरस्त किये जाने योग्य है।
विपक्षी संख्या– 2 व 4 की ओर से भी लिखित कथन प्रस्तुत कर कथन किया गया है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने विपक्षी संख्या-2 से बोरिंग करायी थी, बोरिंग सही करके दी गयी थी। प्रत्यर्थी/परिवादी ने दो वर्ष के बाद तहसील दिवस में शिकायत की थी। प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा 15 एच०पी० के स्थान पर 20 एच०पी० की मोटर चलायी गयी जिससे पानी के साथ बालू आने लगी जिसका निदान कम्प्रेशर डालकर कर दिया गया। दिनांक 10-04-2002 को पुन: बोरिंग सही करके दी गयी।
उभय-पक्षकारों के साक्ष्यों पर विचार करने के उपरान्त जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा यह निष्कर्ष दिया गया कि स्वयं विपक्षीगण के कथनों से स्पष्ट होता है कि बोरिंग बार-बार खराब हुयी है जिसे सही करके दिया गया और बोरिंग ने कभी-भी सही ढंग से कार्य नहीं किया है। इसलिए बोरिंग सही न करने के कारण विपक्षीगण की सेवा में कमी मानते हुए प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा खर्च की गयी धनराशि
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अंकन 1,14,518/-रू० प्रत्यर्थी/परिवादी को वापस किये जाने का आदेश पारित किया गया है।
जिला आयोग द्वारा पारित उपरोक्त निर्णय के विरूद्ध यू०पी० प्रोजेक्ट्स कारपोरेशन लि0 की ओर से यह अपील योजित की गयी है।
अपील इन आधारों पर प्रस्तुत की गयी है कि अपीलार्थी के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादी की बोरिंग सही प्रकार से स्थापित की गयी थी। अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का कथन है कि प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा 15 एच०पी० के स्थान पर 20 एच०पी० की मोटर चलायी गयी जिससे पानी के साथ बालू आने लगी जिसका निदान कम्प्रेशर डालकर कर दिया गया। प्रत्यर्थी/परिवादी ने उच्च पावर की मोटर चलाने से इन्कार नहीं किया है।
पत्रावली के अवलोकन से ज्ञात होता है कि अपीलार्थी द्वारा बोरिंग के सम्बन्ध में कार्यवाही समय-समय पर सम्पादित की गयी जो अपीलार्थी/विपक्षीगण द्वारा जिला आयोग के समक्ष प्रस्तुत लिखित कथन से साबित भी होता है। बोरिंग ने सही ढंग से कार्य नहीं किया और यह बार-बार खराब हुयी है। बोरिंग सही से कार्य न करने का तथ्य साबित होता है। परन्तु चूँकि अपीलार्थी का कार्य बोरिंग लगाना है इसलिए बोरिंग फेल होने के बावत धनराशि वापस लौटाने का आदेश उचित नहीं प्रतीत होता है अपितु बोरिंग को पुन: स्थापित किये जाने का आदेश विधि सम्मत प्रतीत होता है।
उपरोक्त समस्त तथ्यों पर विचार करने के उपरान्त पीठ इस मत की है कि जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश इस
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प्रकार परिवर्तित किया जाता है कि पूर्व में किये गये साधनों का उपयोग करते हुए अपीलार्थीगण द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादी के खेत में पानी की उपलब्धता को दृष्टिगत रखते हुए सही स्थिति में बोरिंग का संचालन किया जाए। इस आदेश का अनुपालन अगले तीन माह की अवधि में सुनिश्चित किया जाए। तदनुसार प्रस्तुत अपील आंशिक रूप से स्वीकार किये जाने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है। जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश इस प्रकार परिवर्तित किया जाता है कि पूर्व में किये गये साधनों का उपयोग करते हुए अपीलार्थीगण द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादी के खेत में पानी की उपलब्धता को दृष्टिगत रखते हुए सही स्थिति में बोरिंग का संचालन किया जाए। इस आदेश का अनुपालन अगले तीन माह की अवधि में सुनिश्चित किया जाए।
यदि तीन माह की अवधि में बोरिंग का संचालन करते हुए प्रत्यर्थी/परिवादी को सही बोरिंग उपलब्ध नहीं करायी जाती है तब प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा खर्च की गयी राशि को वापस लौटाने का आदेश लागू रहेगा।
यदि तीन माह के अन्दर बोरिंग का संचालन सही हालत में करके प्रत्यर्थी/परिवादी को उपलब्ध करा दिया जाता है तब अपीलार्थीगण द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादी को कोई राशि देय नहीं होगी।.
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प्रस्तुत अपील में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गयी हो तो उक्त जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित संबंधित जिला आयोग को यथाशीघ्र विधि के अनुसार वापस की जाए।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(सुधा उपाध्याय) (सुशील कुमार)
सदस्य सदस्य
कृष्णा–आशु0 कोर्ट नं0 3