राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उत्तर प्रदेश, लखनऊ।
सुरक्षित
अपील सं0-528/2018
(जिला उपभोक्ता आयोग, अमरोहा द्वारा परिवाद सं0-52/2016 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 23-01-2018 के विरूद्ध)
कोटक महिन्द्रा लाइफ इंश्योरेंस कं0लि0, 7वॉं तल, कोटक इनफिनिटी बिल्डिंग नं0-21, इनफिनिटी पार्क, निकट डब्लू.ई. हाईवे जनरल ए के वैद्य मार्ग, मलाड़ ईस्ट, मुम्बई-400097.
...........अपीलार्थी/विपक्षी।
बनाम
वीरेन्द्र सिंह पुत्र स्व0 हरवंश, ग्राम करनपुर माफी, थाना-हसनपुर, हसनपुर, अमरोहा-244241. ................. प्रत्यर्थी/परिवादी।
समक्ष:-
1. मा0 श्री राजेन्द्र सिंह, सदस्य।
2. मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित: श्री शिखर श्रीवास्तव विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : श्री ए0के0 पाण्डेय विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक :- 10-03-2023.
मा0 श्री राजेन्द्र सिंह, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
यह अपील, जिला उपभोक्ता आयोग, अमरोहा द्वारा परिवाद सं0-52/2016 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 23-01-2018 के विरूद्ध योजित की गयी है।
संक्षेप में अपीलार्थी का कथन है कि उसने बीमित व्यक्ति क्रान्ति जिसकी मृत्यु दिनांक 20-10-12 को हो गई थी, से विधिवत भरा हुआ प्रस्ताव पत्र दिनांक 25-10-2012 को प्राप्त किया था और यह बीमा कोटक एण्डाउनमेण्ट प्लान के अन्तर्गत है। प्रस्ताव पत्र में भरे गए तथ्यों की सत्यता पर विश्वास करते हुए पालिसी सं0-02625615 निर्गत की गई। तत्पश्चात् एक मृत्यु दावा की सूचना दिनांक 31-07-2005 को प्राप्त हुई
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जिसको नामित व्यक्ति ने भेजा था और बताया था कि बीमित व्यक्ति क्रान्ति की मृत्यु दिनांक 20-10-2013 को हो गई। इस मामले में अन्वेषक की नियुक्ति हुई जिन्होंने यह पाया कि बीमा प्रस्ताव को भरने से पूर्व ही मृतक व्यक्ति की मृत्यु हो चुकी थी। प्रस्ताव पत्र दिनांक 25-10-2012 को भरा गया जबकि मृत्यु दिनांक 20-10-2012 को हो चुकी थी। इस सम्बन्ध में प्रधान का प्रमाण पत्र भी लिया गया। राजकीय स्कीम से सम्बन्धित दो महिलाओं के भी पत्र लिए गए जिन्होंने भी मृत्यु दिनांक 20-10-2012 को होने की पुष्टि की। इससे स्पष्ट है कि दुराशय से बीमा प्रस्ताव भरा गया था और वह उससे अनुचित लाभ प्राप्त करना चाहता है और इसी आधार पर बीमा दावा को निरस्त किया गया।
प्रत्यर्थी ने एक परिवाद विद्वान जिला आयोग में प्रस्तुत किया जिसका प्रत्युत्तर अपीलार्थी ने दिया। विद्वान जिला आयोग ने इस मामले में निम्नांकित आदेश पारित किया :-
‘’ परिवादी का परिवाद आंशिक रूप से 4000/- रूपये (रूपये चार हजार मात्र) सहित विपक्षी बीमा कम्पनी के विरूद्ध इस आदेश के साथ स्वीकार किया जाता है कि विपक्षी बीमाकम्पनी परिवादी को 2,91,000/- रूपये (रूपये दो लाख इक्यानवे हजार मात्र) मय 6 प्रतिशत साधारण वार्षिक ब्याज की दर से परिवाद प्रस्तुत करने की तिथि 22-4-16 से अदायगी तक अदा करें। विपक्षी बीमा कम्पनी, परिवादी को मानसिक एवं शारीरिक पीड़ा हेतु 3000/- रूपये (रूपये तीन हजार मात्र) का भुगतान करे।
आदेश का अनुपालन आज से 30 दिन के भीतर किया जाये। ‘’
विद्वान जिला आयोग ने कहा कि उसे साक्षियों को बुलाने का अधिकार नहीं है और बीमा कम्पनी यह सिद्ध करे कि दुराशय से पालिसी ली गई। विद्वान जिला आयोग का निर्णय विधि विरूद्ध, मनमाना है। विद्वान जिला आयोग को शक्ति प्राप्त है कि वह किसी साक्ष्य या अभिलेख को
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समन कर सकती है। विद्वान जिला आयोग ने इस तथ्य को संज्ञान में नहीं लिया कि बीमित व्यक्ति की मृत्यु दिनांक 20-10-2012 को हुई। अत: ऐसी स्थिति में मा0 राज्य आयोग से निवेदन है कि विद्वान जिला आयोग का प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश अपास्त होने एवं अपील स्वीकार होने योग्य है।
हमने उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्तागण को सुना एवं पत्रावली का सम्यक रूप से परिशीलन किया।
विद्वान जिला आयोग ने अपने निर्णय में लिखा है कि विपक्षी बीमा कम्पनी की ओर से कोई ऐसा साक्ष्य नहीं दिया गया कि जिससे बीमाधारक की मृत्यु और बीमा पालिसी के भुगतान में कोई व्यतिक्रम हुआ हो।
हमने बीमा प्रस्ताव का अवलोकन किया। इस मामले में एक मृत्यु प्रमाण पत्र प्रस्तुत किया गया है जिसमें दिखाया गया है कि स्व0 क्रान्ति देवी की मृत्यु दिनांक 20-10-2013 को हुई। अपीलार्थी ने प्रधान का प्रमाण पत्र दिया है जिसमें यह कहा है कि स्व0 क्रान्ति देवी की मृत्यु दिनांक 20-10-2012 को कैन्सर के कारण हुई। इसके अतिरिक्त दो महिलाओं का एक हस्तलिखित प्रमाण पत्र दिया गया जिसमें यह कहा गया कि श्रीमती क्रान्ति देवी की मृत्यु दिनांक 20-10-2012 को हुई। यहॉं पर यह प्रश्न उठता है कि इन सभी अभिलेखों में से किस अभिलेख का साक्ष्य अधिनियम के अन्तर्गत महत्व का है।
उत्तर प्रदेश शासन द्वारा निर्गत मृत्यु प्रमाण-पत्र, जो जन्म मृत्यु रजिस्ट्रीकरण अधिनियम, 1969 की धारा 12/17 एवं उत्तर प्रदेश जन्म मृत्यु रजिस्ट्रीकरण नियम 2003 के नियम 8 के अधीन जारी किया गया, वह साक्ष्य में ग्राह्य होगा। अपीलार्थी द्वारा इस मृत्यु प्रमाण पत्र को फर्जी या छल-कपट से प्राप्त करने का कोई कथन नहीं किया गया है और न ही ऐसा कोई साक्ष्य दिया गया है जिससे यह सिद्ध हो सके कि यह प्रमाण पत्र विधि विरूद्ध या गलत तरीके से जारी किया गया है। ऐसी स्थिति में इस
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मृत्यु प्रमाण पत्र को न मानने का कोई औचित्य नहीं है।
हमने विद्वान जिला आयोग के प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश का अवलोकन किया। वर्तमान मामले के उपरोक्त तथ्यों एवं परिस्थितियों को दृष्टिगत रखते हुए हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा दिया गया प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश विधि सम्मत है और इसमें किसी प्रकार के हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है। तद्नुसार वर्तमान अपील निरस्त किए जाने योग्य है।
आदेश
वर्तमान अपील निरस्त की जाती है। जिला उपभोक्ता आयोग, अमरोहा द्वारा परिवाद सं0-52/2016 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 23-01-2018 की पुष्टि की जाती है।
अपील व्यय उभय पक्ष पर।
उभय पक्ष को इस निर्णय की प्रमाणित प्रति नियमानुसार उपलब्ध करायी जाए।
वैयक्तिक सहायक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(सुशील कुमार) (राजेन्द्र सिंह)
सदस्य सदस्य
निर्णय आज खुले न्यायालय में हस्ताक्षरित, दिनांकित होकर उद्घोषित किया गया।
(सुशील कुमार) (राजेन्द्र सिंह)
सदस्य सदस्य
प्रमोद कुमार
वैय0सहा0ग्रेड-1,
कोर्ट नं.-2.