Uttar Pradesh

StateCommission

A/2008/964

M/s Kotak Mahindra Ltd - Complainant(s)

Versus

Vipin Saxena - Opp.Party(s)

G S Panday

03 Aug 2016

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/2008/964
(Arisen out of Order Dated in Case No. of District State Commission)
 
1. M/s Kotak Mahindra Ltd
a
...........Appellant(s)
Versus
1. Vipin Saxena
a
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. Ram Charan Chaudhary PRESIDING MEMBER
 HON'BLE MR. Raj Kamal Gupta MEMBER
 
For the Appellant:
For the Respondent:
Dated : 03 Aug 2016
Final Order / Judgement

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।

              अपील संख्‍या– 964/2008           सुरक्षित

(जिला उपभोक्‍ता फोरम, ।। मुरादाबाद द्वारा परिवाद सं0 70/2006 में पारित निर्णय/आदेश दिनांकित 08-01-2008 के विरूद्ध)           

मेसर्स कोटक महिन्‍द्रा प्रीमस लिमिटेड, लक्ष्‍मी नगर रूट्स टावर, 9वी फ्लोर, न्‍यू दिल्‍ली, लोकल पता- सरन चैम्‍बर, सेकेण्‍ड फ्लोर, हजरतगंज,लखनऊ द्वारा सेक्रेटरी अर्थारिटी श्री अरूण शर्मा।

                                                        ..अपीलार्थी/विपक्षी

                                बनाम

विपिन सक्‍सेना पुत्र श्री शिव शंकर सक्‍सेना, निवासी- सम्‍भल रोड़, दस सराय गली नं0-2 डवल फाटक मुरादाबाद।                                          

                                                         ...प्रत्‍यर्थी/परिवादी

समक्ष:-                  

माननीय श्री आर0सी0 चौधरी, पीठासीन सदस्‍य।

माननीय श्री राज कमल गुप्‍ता, सदस्‍य।

अपीलार्थी की ओर से उपस्थिति    : कोई नहीं।

प्रत्‍यर्थी की ओर से उपस्थिति      : श्री राम गोपाल, विद्वान अधिवक्‍ता।

दिनांक31-08-2016

माननीय श्री आर0सी0 चौधरी, पीठासीन सदस्‍य, द्वारा उद्घोषित

       निर्णय

      प्रस्‍तुत अपील जिला उपभोक्‍ता फोरम, ।। मुरादाबाद द्वारा परिवाद सं0 70/2006 में पारित निर्णय/आदेश दिनांकित 08-01-2008 के विरूद्ध प्रस्‍तुत की गई है, जिसमें जिला उपभोक्‍ता फोरम के द्वारा निम्‍न आदेश पारित किया गया है:-

      “परिवादी का परिवाद विपक्षी के विरूद्ध स्‍वीकार किया जाता है। विपक्षी को आदेशित किया जाता है कि परिवादी के वाहन सं0 यू0पी0 21 आर-7213 जो विपक्षी द्वारा बेची गई है, की क्षतिपूर्ति के रूप में परिवादी को एक लाख पच्‍चीस हजार रूपये अदा करें। परिवादी रूपया 2,000-00  परिवाद व्‍यय के रूप में विपक्षी से प्राप्‍त करने का अधिकारी है। पक्षकार निर्णय का अनुपालन एक माह में सुनिश्चित करें।”

      संक्षेप में केस के तथ्‍य इस प्रकार से है कि परिवादी द्वारा विपक्षी को 8/2004 में 61000-00 रूपये नकद तथा 4550-00 रूपये चेक द्वारा दिये थे। परिवादी ने कुल रूपया 2,90,000-00 का ऋण विपक्षी से लिया था और 6900-00 की 35 किश्‍तें व 4550-00 रूपये की 25 किश्‍तों में ऋण की अदायगी विपक्षी को करनी थी। परिवादी को रूपया 2,90,000-00  के स्‍थान पर रूपया 3,55,250-00 देने थे। अदायगी के लिए परिवादी द्वारा विपक्षी को 60 चेक  प्रथमा बैंक के भरकर दिये थे। परिवादी द्वारा आखिरी किश्‍त दिनांक 19-07-2005 को रसीद सं0 240660 द्वारा अदा की। परिवादी ने दो माह जुलाई व अगस्‍त 2005 की किश्‍त अदा नहीं

(2)

की, क्‍योंकि दिनांक 15-09-2005 को विपक्षी द्वारा किशत की राशि बैंक से नहीं निकाली, जबकि परिवादी के खाते में 7000-00 रूपये जमा थे। विपक्षी द्वारा दिनांक 19-09-2005 को गैर कानूनी ढंग से परिवादी की गाड़ी से छीन ली गई, जिसकी रिपोर्ट परिवादी द्वारा थाना कठघर में दी गई थी। विपक्षी के इस कृत्‍य के कारण परिवादी को लगातार रूपया 20000-00 हर माह की हानि हो रही है। परिवादी की इस कार में कीमती उपकरण लगे है। इस प्रकार अब तक परिवादी को रूपया 3,00,000-00 की आर्थिक क्षति हो चुकी है।

      जिला उपभोक्‍ता फोरम के समक्ष प्रतिवादी द्वारा अपना प्रतिवाद पत्र दाखिल किया गया, जिसमें कहा गया है कि उक्‍त कार परिवादी द्वारा खरीदी गई थी, जिसको विपक्षी द्वारा फाइनेंस किया गया था। परिवादी द्वारा करार पर हस्‍ताक्षर किये गये थे कि किश्‍तों की अदायगी न करने पर वाहन रिपजेस कर लिया जायेगा। विपक्षी दिनांक 01-03-2005 को परिवादी को अपने अधिवक्‍ता के माध्‍यम से इस आशय का नोटिस दिया गया कि पिछली कई किश्‍तें टूट चुकी है। पुन: दिनांक 14-07-2005 को इसी आशय का नोटिस परिवादी को दिया गया। इसी प्रकार दिनांक 20-05-2005 व 02-08-2005 को भी परिवादी को नोटिस दिये गये थे, परन्‍तु परिवादी ने विपक्षी के पास किश्‍तों का पैसा जमा नहीं कराया। इस प्रकार मजबूर होकर दिनांक 19-09-2005 को परिवादी का वाहन हायर परचेज एक्‍ट  के करार के तहत रिपजेस कर लिया। विपक्षी द्वारा पुन: दिनांक 21-09-2005 को परिवादी को इस आशय का नोटिस दिया कि किश्‍तों की अदायगी करके अपना वाहन विपक्षी से प्राप्‍त कर ले। परिवादी ने नोटिस की अनदेखी कर दी। परिवादी द्वारा लिखाई गई प्रथम सूचना रिपोर्ट अभियोग ठीक न पाये जानेपर मुकदमा समाप्‍त कर दिया गया। इससे स्‍पष्‍ट है कि परिवादी का कथन झूठा है। परिवादी द्वारा कीमती सामान व उपकरण गाडी में लगे होने की बात गलत व झूठा है। परिवादी द्वारा दिनांक 21-09-2005 के विपक्षी द्वारा भेजे नोटिस की प्र‍ाप्ति दिनांक 23-09-2005 परिवादी द्वारा की गई है, पर कोई ध्‍यान न देने के कारण परिवादी की प्रर्याप्‍त प्रतीक्षा करने उपरान्‍त भी कोई ध्‍यान दिये जाने कारण यह निश्चित हो गया कि परिवादी अब अपना वाहन भुगतान के बाद लेने नहीं आयेगा। अत: विपक्षी द्वारा वाहन को बेचकर अपने ऋण के पैसे की वसूली कर ली। वाहन के बेचने से विपक्षी को रूपया 18,000-00 का नुकसान हुआ है। इसका नोटिस विपक्षीने परिवादी को दिया था, क्‍योंकि इस राशि का मय ब्‍याज के भुगतान करने से परिवादी बचना चाहता है।

 

(3)

अत: उसने यह परिवाद मा0 फोरम के समक्ष प्रस्‍तुत किया है। फोरम को परिवाद सुनने का क्षेत्राधिकार नहीं है।

      जिला उपभोक्‍ता फोरम के द्वारा पारित निर्णय/आदेश दिनांकित 08-01-08 का अवलोकन किया गया तथा अपील आधार का अवलोकन किया गया और प्रत्‍यर्थी के विद्वान अधिवक्‍ता श्री राम गोपाल की बहस सुनी गई। सुनवाई की तिथि 03-08-2016 को अपीलार्थी के तरफ से कोई उपस्थित नहीं था। प्रत्‍यर्थी की ओर से माननीय उच्‍चतम न्‍यायालय की रूलिंग दाखिल की गई है, जो अपील सं0- 267/2007 मैनेजर आई0सी0आई0सी0आई0 बैंक लि0 बनाम प्रकाश कौर एवं अनरू निर्णय तिथि 26-02-2007 को पेश किया गया, जिसमें माननीय उच्‍च न्‍यायालय के निर्णय का हवाला अपने निर्णय में दिया है।

      In conclusion, we say that we are governed by a rule of law in the country. The recovery of  loans  or  seizure of vehicles could be done only through legal  means. The Banks cannot employ goondas to take possession by force.

      जिला उपभोक्‍ता फोरम ने केस के सारे तथ्‍यों व साक्ष्‍यों का विश्‍लेषण करते हुए कहा है कि पक्षकारों को यह तथ्‍य स्‍वीकार है कि वाहन सं0 यू0पी0 21-आर-7213 विपक्षी द्वारा रूपया 2,90,000-00 के ऋण उपलब्‍ध कराये जाने पर मै0 बृज मोटर्स प्रा0लि0 से परिवादी ने खरीदी थी। इस ऋण की अदायगी परिवादी द्वारा विपक्षी को रूपया 6900-00 की 35 किश्‍तें तथा 4558-00 की 25 किश्‍तों में करनी थी। इस अदयगी हेतु परिवादी द्वारा 60 चेक भरकर प्रथम बैंक के पोस्‍ट डेटेड ही उपलब्‍ध करा दिये गये थे। यह तथ्‍य भी विपक्षी ने कहीं पर अस्‍वीकार नहीं किया है और न अपनी अस्‍वीकृति का कोई प्रमाण आधार सहित उपलब्‍ध कराया है। परिवादी के अनुसार उसने आखिरी किश्‍त दिनांक 19-07-2005 को विपक्षी के पास जमा कराई। परिवादी का यह भी कथन है कि परिवादी द्वारा जुलाई व अगस्‍त 2005 की किश्‍त की अदायगी नहीं की, क्‍योंकि 15-09-2005 को परिवादी द्वारा अपने खातें में 7000-00 रूपये जमा करा दिये थे। किश्‍त अदायगी की निर्धारित तिथि निकल जाने के कारण विपक्षी द्वारा अपनी किश्‍त बैंक में जमा राशि से नहीं निकाली। इसके बदले में परिवादी से वाहन छीन लेना ही उचित समझा और दिनांक 19-09-2005 को परिवादी से उसका वाहन विपक्षी द्वारा खिंचवा लिया गया। यह तथ्‍य दोनों पक्षकारों को स्‍वीकार है कि विपक्षी के विरूद्ध वाहन छीनने की प्रथम

(4)

सूचना रिपोर्ट परिवादी ने कठघर थाना में लिखाई थी तथा पुलिस ने इसमें कोई कार्यवाही उचित न समझते हुए फाइनल रिपोर्ट लगा दी थी। यह तथ्‍य परिवादी द्वारा अपने रिज्‍वाइनडर के पैरा-13 में स्‍वीकार किया गया है। विपक्षी द्वारा कई नोटिस परिवादी को भेजे जाने की बात कहीं है और यह भी कहा है कि उसकी कई किश्‍तों का भुगतान परिवादी ने नहीं किया। इसी कारण से उसने परिवादी से विषयगत वाहन को अधिगृहीत कर लिया। विपक्षी का कथन है कि परिवादी द्वारा वाहन का सामान लाने ले जाने में प्रयोग किया है। परिवादी द्वारा जिस कीमती सामान को वाहन में लगे होने की बात कही है, वह भी असत्‍य है, स्‍वीकार्य नहीं है। विपक्षी द्वारा परिवादी को नोटिस भेजे जाने के एक माह के अन्‍दर धन अदा न किये जाने पर एक माह के बाद वाहन को बेंच देने की बात भी कही है। इसी की अनुसार विपक्षी द्वारा विषयगत वाहन को बेंचकर अपने ऋण की वसूली की है। वाहन के बेचने से भी विपक्षी को कुल 18000-00 रूपये की हानि हुई है। विपक्षी द्वारा कहीं पर भी यह स्‍पष्‍ट नहीं किया गया है कि विपक्षी की कितनी और कौन सी किश्‍तें परिवादी पर शेष रह गई है तथा कितनी राशि परिवादी से प्राप्‍त  हो चुकी है। परिवादी ने स्‍पष्‍ट कहा है कि जुलाई और अगस्‍त 2005 की दो किश्‍तें विपक्षी की शेष रह गई थी, जिसके लिये थोडें विलम्‍ब से परिवादी ने बैंक में पैसा जमा कर दिया था। जिसको देरी हो जाने के कारण विपक्षी ने बैंक से वसूल नहीं किया इसके लिए विपक्षी द्वारा बल प्रयोग करते हुए वाहन को परिवादी से खिंचवा लिया। विपक्षी ने भी इस कृत्‍य को स्‍वीकारा है। यदि यह सच भी है कि परिवादी द्वारा कुछ किश्‍तों का भुगतान विपक्षी को नहीं किया गया तब भी विपक्षी को वाहन को बल पूर्वक छीनने का अधिकार प्राप्‍त नहीं होता। इस सम्‍बन्‍ध में परिवादी द्वारा मा0 सर्वोच्‍च न्‍यायालय भारत संघ की सम्‍मानित व्‍यवस्‍था जो 2007 (2) सी.सी.एस.सी. 1003 (एस.सी.) जो प्रबन्‍धक आई0सी0आई0सी0आई0 बैंकलि0 बनाम प्रकाश कौर एवं अन्‍य के मामले में दाखिल अपील सं0-267/2007 दिनांक 26 फरवरी 2007 को विनिश्चित करते हुए दी है, की ओर फोरम का ध्‍यान आकृष्‍ट किया है। सम्‍मानित व्‍यवस्‍था में यह अवधारित किया गया है कि बैंक को चाहिए कि वह ऋणी के व्‍यक्तिक्रम पर यान का कब्‍जा ग्रहण करने के लिए विधि द्वारा मान्‍य प्रक्रिया का अश्रय लें। माननीय सर्वोच्‍च न्‍यायालय ने इसी सम्‍मानित व्‍यवस्‍था में यह भी अवधारित किया है कि वसूली अभिकर्ताओं को जो ताकतवर व्‍यक्ति है, भाड़े पर रखने की प्रथा की निन्‍दा किये जाने की आवश्‍यकता है। सम्‍मानित विधि व्‍यवस्‍था के पैरा-11 व 15 में यह भी कहा गया है कि गैर सरकारी बैंकों द्वारा ऋण की वूसली हम देख्‍श के विधि शासन

(5)

द्वारा शासित-ऋणों की वूसली या यानों का अधिगृहण केवल विधिक साधनों से ही किया जा सकता है। बैंक बल द्वारा कब्‍जा ग्रहण करने के लिए गुण्‍डों को नियोजित नहीं कर सकती, यदि अभिकरण प्रणाली अपरिहार्य – तो भी अभिकरण को चाहिए कि वह परीक्षा संचालित करने के बाद जारी  अनुज्ञप्ति से युक्‍त हो। इस सम्‍मानित व्‍यवस्‍था के आधार पर हम इस निष्‍कर्ष पर पहुंचते है कि विपक्षी द्वारा परिवादी के वाहन को रिपजेस किया जाना विधि सम्‍मत नहीं है, चाहे वह पक्षकारों के आपसी समझौते में ही क्‍यों न शामिल कर लिया गया हो। विपक्षी को स्‍थापित विधि के अनुसार ही परिवादी से अपनी ऋण राशि को प्राप्‍त करने का अधिकार है, न कि अविधिक तरीके अपना कर।

      अपील आधार में कहा गया है कि जिला उपभोक्‍ता फोरम के द्वारा जो निर्णय/आदेश पारित किया गया है, उसे निरस्‍त किया जाय और यह भी कहा गया है कि साक्ष्‍यों की अनदेखी की गई है। प्रत्‍यर्थी रूपये की अदायगी के लिए जिम्‍मेदार था, जिला उपभोक्‍ता फोरम ने बिना तथ्‍यों को ध्‍यान दिये आदेश पारित कर दिया है। प्रत्‍यर्थी को लीगल नोटिस दिनांक 01-03-2005 ,14-07-2005,20-05-2005 एवं 2-08-2005 को भेजी गई थी, लेकिन उसको ध्‍यान नहीं दिया और कानून के अनुसार गाड़ी को कब्‍जे में विपक्षी के द्वारा ले लिया गया और प्रत्‍यर्थी को नोटिस दिनांक 19-09-2005 को भेजा गया, जिसमें कहा गया कि यदि अपनी कार को वापस पा सकते है तो बकाया देने के बाद और जिला उपभोक्‍ता फोरम ने न्‍यायिक मस्तिष्‍क का प्रयोग नहीं किया है और तथ्‍यों पर ध्‍यान नहीं दिया है और पुलिस विवेचना पर भी ध्‍यान नहीं दिया है।

      पत्रावली पर उपलब्‍ध साक्ष्‍य से यह स्‍पष्‍ट है कि परिवादी किश्‍तें लगातर जमा करता रहा जो दो किश्‍तें नहीं जमा हो पायीं उसके लिए स्‍वयं अपीलार्थी/विपक्षी जिम्‍मेदार है, क्‍योंकि परिवादी द्वारा दी गई दोनों चेक अपीलार्थी/विपक्षी के पास थी। विपक्षी ने जिला मंच के समक्ष जमा किश्‍तों का कोई लेखा-जोखा नहीं प्रस्‍तुत किया। यदि यह मान भी लिया जाय कि अन्तिम दो किश्‍तें विपक्षी के पास नहीं जमा हुई। तब भी अपीलार्थी को यह अधिकार प्राप्‍त नहीं था कि वे बलपूर्वक परिवादी के वाहन को अपने कब्‍जे में लेते। अत: निश्चित रूप से अपीलार्थी/विपक्षी का कृत्‍य सेवा में कमी व अनुचित व्‍यापार पद्धति की श्रेणी में आता है।

      केस के तथ्‍यों परिस्थितियों को देखते हुए और प्रत्‍यर्थी को सुनने के उपरान्‍त और माननीय सर्वोच्‍च न्‍यायालय के उक्‍त रूलिंग को देखते हुए हम यह पाते हैं कि जिला उपभोक्‍ता

(6)

फोरम ने जो निर्णय/आदेश पारित किया है, वह तथ्‍यों परिस्थितियों में न्‍यायोचित आदेश है। अपीलकर्ता की अपील खारिज होने योग्‍य है।

आदेश

      अपीलकर्ता की अपील खारिज की जाती है।

      उभय पक्ष अपना-अपना व्‍यय भार स्‍वयं वहन करेंगे।

 

   (आर0सी0 चौधरी)                                    ( राज कमल गुप्‍ता)

    पीठासीन सदस्‍य                                          सदस्‍य,

आर.सी.वर्मा, आशु.

 कोर्ट नं0-3

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
 
[HON'BLE MR. Ram Charan Chaudhary]
PRESIDING MEMBER
 
[HON'BLE MR. Raj Kamal Gupta]
MEMBER

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