(मौखिक)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0 लखनऊ।
अपील संख्या : 580 / 2018
(जिला उपभोक्ता फोरम, गौतमबुद्ध नगर द्वारा परिवाद संख्या-234/2016 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 31-01-2018 के विरूद्ध)
- Liberty Videocon General Insurance Company Limited, Office : 10th Floor, Tower-A, Peninsula Business Park, Ganpatrao Kadam Marg, Gower Parel, Mumbai-400013, through General Manager/Authorized Signatory.
- Liberty Vikeocon General Insurance Company Limited, Branch Office-Front Block-2nd Floor, Alpus Building 56 Janpath, Delhi-110001, through Authorized Singnatory.
.....अपीलार्थी/विपक्षीगण
बनाम्
Vinod Kumar, son of Late Prahlad singh, Resident of Sarojini Nagar, Village Pilanji, Block-P, Delhi South, Delhi-110023, Current Address-E-20,Sector-55, Noida, Destrict Gautam Budha Nagar. ......प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष :-
1- मा0 न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष ।
उपस्थिति :
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित- श्री जे0 एन0 मिश्रा।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित- श्री नवीन तिवारी।
दिनांक : 29-08-2019
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मा0 न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उद्घोषित निर्णय
परिवाद संख्या-234/2016 विनोद कुमार बनाम् लिबटी बिडियोकॉन जनरल इंश्योरेंस कम्पनी लि0 व एक अन्य में जिला उपभोक्ता फोरम, गौतमबुद्ध नगर द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक 31-01-2018 के विरूद्ध यह अपील धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत राज्य आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गयी है।
आक्षेपित निर्णय और आदेश के द्वारा जिला फोरम ने परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए निम्न आदेश पारित किया है :-
‘’परिवादी का परिवाद, विपक्षीगण के विरूद्ध आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है, तथा विपक्षीगण को आदेश दिया जाता है कि वह आज से 30 दिन के अंदर परिवादी को 5,12,000/-रू0 में से नो-क्लेम बोनस की धनराशि कटौती करके शेष धनराशि 07 प्रतिशत ब्याज सहित, परिवाद योजित करने की तिथि से भुगतान करना सुनिश्चित करें। इसके अलावा परिवादी मानसिक संताप के मद में, 25,000/-रू0 व वाद व्यय के मद में, 5000/-रू0 भी पाने का अधिकारी होगा। निर्णय की प्रति उभयपक्ष को नियमानुसार निर्गत की जाये।‘’
जिला फोरम के निर्णय से क्षुब्ध होकर परिवाद के विपक्षीगण Liberty Videocon General Insurance Company Limited व एक अन्य ने यह अपील प्रस्तुत की है।
अपीलार्थीगण की ओर से विद्धान अधिवक्ता श्री जे0 एन0 मिश्रा उपस्थित आये। प्रत्यर्थी की ओर से विद्धान अधिवक्ता श्री नवीन तिवारी उपस्थित आए।
मैंने उभयपक्ष के विद्धान अधिवक्तागण के तर्क को सुना है और आक्षेपित निर्णय व आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया है।
अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्त सुसंगत तथ्य इस प्रकार है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने परिवाद जिला फोरम, गौतमबुद्ध के समक्ष इस कथन के साथ प्रस्तुत किया है कि प्रत्यर्थी/परिवादी मारूति स्विफ्ट कार संख्या-
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DL-8CU-8623 का पंजीकृत स्वामी है और उसने अपनी कार का बीमा विपक्षीगण की बीमा कम्पनी से कराया था। बीमा पालिसी संख्या-2011-200101-14-1002858-00-00 थी जो दिनांक 03-06-2014 से दिनांक 02-06-2015 तक की अवधि हेतु थी।
परिवाद पत्र के अनुसार परिवादी का कथन है कि बीमा कराते समय उसने विपक्षी बीमा कम्पनी के एजेन्ट को यह बताया था कि उसकी उक्त कार पूर्व में दि न्यू इण्डिया इंश्योरेंस कम्पनी से बीमित थी। पूर्व बीमा पालिसी और आर0सी0 की प्रति भी परिवादी ने विपक्षी बीमा कम्पनी के एजेन्ट को उपलब्ध करा दी थी। उसके बाद विपक्षीगण के एजेन्ट ने परिवादी को कार का बीमा परिवादी के हाल पते-ई-20, सेक्टर-55 नोएडा में आकर किया और बीमा की राशि का भुगतान चेक के माध्यम से उसी दिन परिवादी द्वारा कर दिया गया।
परिवाद पत्र के अनुसार परिवादी का कथन है कि उसकी उपरोक्त कार दिनांक 07-12-2014 व दिनांक 08-12-2014 की दरमियानी रात में चोरी हो गयी जिसकी प्रथम सूचना रिपोर्ट परिवादी द्वारा दिनांक 09-12-2014 को थाना सेक्टर-58, नोएडा में दर्ज कराई गयी और अपराध संख्या-2015/2014 थाना में पंजीकृत किया गया। परिवादी द्वारा कार चोरी की सूचना विपक्षीगण की बीमा कम्पनी को भी दी गयी।
पुलिस द्वारा कार की तलाश व जॉंच की गयी किन्तु कार बरामद नहीं हो सकी और अंत में पुलिस द्वारा एफ0आर0 (अंतिम रिपोर्ट) लगा दी गयी जिसे न्यायालय द्वारा दिनांक 26-03-2015 को स्वीकार कर लिया गया।
परिवाद पत्र के अनुसार परिवादी ने क्लेम हेतु क्लेम फार्म भरकर समस्त कागजात सहित विपक्षी को प्रेषित किया, जिस पर विपक्षी द्वारा उसे क्लेम नम्बर-200101201114110293801 दिया गया।
परिवाद पत्र के अनुसार परिवादी का कथन है कि विपक्षीगण के एजेन्ट द्वारा कोई भी प्रपोजल फार्म परिवादी से नहीं भरवाया गया था
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और न ही परिवादी से किसी फार्म पर हस्ताक्षर कराये गये थे। परिवादी का यह भी कथन है कि विपक्षीगण द्वारा परिवादी की पालिसी संख्या-2011-200101-14-1002858-00-000 को कभी भी कैन्सिल या निरस्त नहीं किया गया था। परिवादी का कथन है कि समस्त सूचनाऍं व कागजात उपलब्ध कराने के बावजूद विपक्षीगण ने गलत व गैर कानूनी तरीके से परिवादी का क्लेम पत्र दिनांक 10-04-2015 के द्वारा यह कहते हुए निरस्त कर दिया कि वर्तमान पालिसी हेतु नो-क्लेम बोनस गलत तौर पर लिया गया है। अत: क्षुब्ध होकर परिवादी ने परिवाद जिला फोरम के समक्ष प्रस्तुत कर निम्न अनुतोष चाहा है :-
- यह कि परिवादी को विपक्षीगण से कार संख्या–DL-8CU-8623 के क्लेम की धनराशि अंकन 5,12,000/-रू0 मय 18 प्रतिशत वार्षिक ब्याज के साथ दिलायी जाए।
- यह कि परिवादी को विपक्षीगण से शारीरिक व मानसिक पीड़ा व क्षति के लिए अंकन 7,00,000/- दिलाया जाए।
- यह कि परिवादी को विपक्षीगण से परिवाद व्यय व अधिवक्ता शुल्क रू0 15,000/- दिलाया जाए।
- यह कि अन्य अनुतोष जो मा0 फोरम उचित समझे, परिवादी को विपक्षीगण से दिलाया जाए।
जिला फोरम के समक्ष विपक्षीगण की ओर से लिखित कथन प्रस्तुत किया गया है, जिसमें कथन किया गया है कि प्रश्नगत दुर्घटना के समय परिवादी का वाहन विपक्षी बीमा कम्पनी के यहॉं बीमित था परन्तु परिवादी का क्लेम इस आधार पर खारिज किया गया है कि परिवादी ने पूर्व पालिसी का नो-क्लेम बोनस गलत कथन कर लिया था और वास्तविक तथ्यों को छिपाकर बीमा पालिसी प्राप्त की थी। अत: परिवादी का बीमा दावा अस्वीकार किये जाने हेतु उचित आधार है।
अपीलार्थीगण के विद्धान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम का निर्णय तथ्य और विधि के विरूद्ध है। विवेचना में यह तथ्य प्रकाश में आया
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है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने पूर्व पालिसी का क्लेम लिया था और उसने गलत कथन कर पूर्व पालिसी का नो-क्लेम बोनस गलत तौर पर लिया है। अत: अपीलार्थी बीमा कम्पनी को प्रत्यर्थी/परिवादी का बीमा दावा अस्वीकार करने का अधिकार है, क्योंकि पालिसी गलत कथन के आधार पर कपटपूर्ण ढंग से प्राप्त की गयी है।
प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्धान अधिवक्ता का तर्क है कि अपीलार्थी/विपक्षी ने नो-क्लेम बोनस के संबंध में कोई गलत कथन नहीं किया है और यदि कोई गलत तथ्य अंकित किया गया है तो वह बीमा कम्पनी के एजेन्ट की गलती है प्रत्यर्थी/परिवादी की नहीं। इसके साथ ही प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्धान अधिवक्ता का यह भी तर्क है कि नो-क्लेम बोनस गलत तौर पर लिये जाने के आधार पर अपीलार्थीगण की बीमा कम्पनी प्रत्यर्थी/परिवादी का बीमा दावा अस्वीकार नहीं कर सकती है, क्योंकि उसने Indian Motor Tariff के नियम-27 के अन्तर्गत निर्धारित समय के अंदर नो-क्लेम बोनस का सत्यापन कर नो-क्लेम बोनस की धनराशि की मांग नहीं की है और न ही प्रत्यर्थी/परिवादी की बीमा पालिसी को निरस्त किया है।
मैंने उभयपक्ष के तर्क पर विचार किया है।
प्रत्यर्थी/परिवादी की प्रश्नगत बीमा पालिसी अपीलार्थी/विपक्षी की बीमा कम्पनी द्वारा दिनांक 03-06-2014 को जारी की गयी है और प्रत्यर्थी/परिवादी के प्रश्नगत वाहन की चोरी की कथित घटना 7-12-2014/8-12-2014 की दरमियानी रात की है अर्थात बीमा पालिसी जारी किये जाने के करीब 06 महीने बाद की है परन्तु इस अवधि में Indian Motor Tariff के नियम-27 के अनुसार अपीलार्थीगण की बीमा कम्पनी ने प्रत्यर्थी/परिवादी के प्रीमियम धनराशि में दिये गये नो-क्लेम बोनस का सत्यापन कर बीमा पालिसी निरस्त नहीं की है और न ही गलत तौर पर नो-क्लेम बोनस के आधार पर ली गयी छूट की धनराशि की मांग की है अत: ऐसी स्थिति में बीमा कम्पनी प्रत्यर्थी/परिवादी का बीमा दावा गलत
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तौर पर नो-क्लेम बोनस लिये जाने के आधार पर पूर्ण रूप से निरस्त नहीं कर सकती है। ऐसी स्थिति में गलत तौर पर परिवादी को दी गयी नो-क्लेम बोनस की छूट की धनराशि के अनुपात में बीमित धनराशि से कटौती कर प्रत्यर्थी/परिवादी का बीमा दावा तय किया जाना उचित और विधि सम्मत है। मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा अंजनी गुप्ता बनाम फ्यूचर जनरली इण्डिया इंश्योरेंस कम्पनी के वाद में दिया गया निर्णय जो 2018 (1) सी.पी.आर.522 एन.सी. में प्रकाशित है, में मा0 राष्ट्रीय आयोग ने गलत तौर पर नो-क्लेम बोनस के आधार पर प्रीमियम धनराशि में ली गयी छूट के संबंध में विचार किया है और मा0 राष्ट्रीय आयोग की पूर्ण पीठ द्वारा पुनरीक्षण याचिका संख्या-1836/2016 ब्रांच मैनेजर नेशनल इंश्योरेंस कम्पनी बनाम नरेश कुमार में पारित निर्णय दिनांकित 20-02-2017 में प्रतिपादित सिद्धांत का समर्थन किया है।
पुनरीक्षण याचिका संख्या-1836/2016 ब्रांच मैनेजर नेशनल इंश्योरेंस कम्पनी लि0 बनाम नरेश कुमार में मा0 राष्ट्रीय आयोग की पूर्ण पीठ द्वारा पारित निर्णय का संगत अंश नीचे उद्धरत किया जा रहा है :-
“(a) The cases in which it is established that the insured by making wrongful declaration has taken benefit of No Claim Bonus and the insurer had means to verify the correctness of the declaration of the insured seeking. No Claim Bonus by exercising ordinary diligence of verifying the truthfulness of the claim from the insurer’s own record, Exception to 19 of Indian Contract Act would come into play and the insurer would come into play and the insurer would not be justified in repudiationg the insurance claim on the ground of misrepresentation or concealment of fact. However, because the insured had taken
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benefit of No Claim Bonus and paid less premium the insurance Claim would be reduced proportionately.
(b) In Cases of the insured taking the insurance policy of the vehicle from new insurance company and it is established that the insured by making wrongful declaration has taken benefit of No Claim Bonus and where the insurer had failed to seek confirmation regarding correctness of the declaration submitted by the insured in support of plea for No Claim Bonus within the stipulated period as provided in GR-27 of Indian Motor Tariff, the insurer would not be justified in repudiating the insurance claim. However, because the insured had taken benefit of No Claim Bonus by making false declaration his insurance claim would be reduced proportionately.
It would therefore be seen that if No Claim Bonus is wrongfully taken by the insured, the claim would still be payable on a non-standard basis, if the insurer had the means to verify the correctness of the declaration make by the insured, while claiming the No Claim Bonus, In the present case also, the respondent had an opportunity to verifythe correctness or otherwise of the declaration made by the petitioner/complainant by making necessary enquiry from the concerned insurer. That having not been done, the complainant is entitled to reimbursement of the loss sustained by him, subject of course to proportionate deduction. Since the No Claim Bonus was availed by the complainant @ 25% the amount payable to the complainant/petitioner has to be reduced in the same proportion.”
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निर्विवाद रूप से प्रत्यर्थी/परिवादी की प्रश्नगत बीमा पालिसी की प्रीमियम की धनराशि में प्रत्यर्थी/परिवादी की पूर्व बीमा पालिसी के नो-क्लेम बोनस के आधार पर 20 प्रतिशत छूट दी गयी है अत: उपरोक्त विवेचना एवं मा0 राष्ट्रीय आयोग के उपरोक्त निर्णयों में प्रतिपादित सिद्धांत के आधार पर प्रश्गनत वाहन की बीमित धनराशि रू0 5,12,000/- में से 20 प्रतिशत की कटौती कर प्रत्यर्थी/परिवादी को वाहन की क्षपिूर्ति हेतु रू0 4,09,600/- प्रदान किया जाना उचित है और जिला फोरम का निर्णय तद्नुसार संशोधित किये जाने योग्य है।
जिला फोरम ने जो 07 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज परिवाद प्रस्तुत करने की तिथि से अदायगी की तिथि तक दिया है वह उचित है उसमें किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है। जिला फोरम ने जो 5,000/-रू0 वाद व्यय दिया है वह भी उचित है, परन्तु जिला फोरम ने जो 25,000/-रू0 मानसिक कष्ट हेतु क्षतिपूर्ति प्रदान किया है वह उचित नहीं है, क्योंकि बीमित धनराशि पर प्रत्यर्थी/परिवादी को ब्याज दिया जा रहा है। अत: जिला फोरम द्वारा मानसिक कष्ट हेतु आदेशित क्षतिपूर्ति की धनराशि 25,000/- अपास्त किया जाना उचित है।
उपरोक्त निष्कर्ष के आधार पर अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है और अपीलार्थी/विपक्षीगण को आदेशित किया जाता है कि वह प्रत्यर्थी/परिवादी को बीमित धनराशि 4,09,600/- परिवाद प्रस्तुत करने की तिथि से अदायगी की तिथि तक 07 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज के साथ अदा करें। साथ ही उसे जिला फोरम द्वारा आदेशित वाद व्यय की धनराशि 5,000/-रू0 भी अदा करें।
जिला फोरम ने जो प्रत्यर्थी/परिवादी को 25,000/-रू0 मानसिक संताप हेतु क्षतिपूर्ति प्रदान की है उसे अपास्त किया जाता है।
अपील में उभयपक्ष अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
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धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत अपील में जमा धनराशि 25,000/-रू0 आर्जित ब्याज सहित जिला फोरम को इस निर्णय के अनुसार निस्तारण हेतु प्रेषित की जाए।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान)
अध्यक्ष
कोर्ट नं0-1 प्रदीप मिश्रा, आशु0