(सुरक्षित)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-95/2008
(जिला आयोग, मेरठ द्वारा परिवाद संख्या-550/2004 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 10.12.2007 के विरूद्ध)
दि नैनीताल बैंक लि0, मेरठ ब्रांच, निकट बच्चा पार्क, सिटी सेन्टर के सामने, द्वारा ब्रांच मैनेजर।
अपीलार्थी/विपक्षी
बनाम
विनोद कुमार शर्मा पुत्र स्व0 प्यारे लाल शर्मा, निवासी 10, 11 सूरज कुण्ड, स्पोर्ट्स कालोनी, मेरठ।
प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष:-
1. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
2. माननीय श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री प्रशान्त कुमार श्रीवास्तव।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक: 09.07.2024
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उद्घोषित
निर्णय
1. परिवाद संख्या-550/2004, विनोद कुमार शर्मा बनाम दि नैनीताल बैंक लि0 में विद्वान जिला आयोग, मेरठ द्वारा पारित निर्णय/आदेश दिनांक 10.12.2007 के विरूद्ध प्रस्तुत की गई अपील पर अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता को सुना गया तथा प्रश्नगत निर्णय/आदेश एवं पत्रावली का अवलोकन किया गया। प्रत्यर्थी की ओर से तामील के बावजूद कोई उपस्थित नहीं है।
2. विद्वान जिला आयोग ने परिवाद स्वीकार करते हुए परिवादी द्वारा जमा राशि की परिपक्वता राशि 12 प्रतिशत ब्याज के साथ अदा करने का आदेश पारित किया है साथ ही अंकन 5,000/-रू0 क्षतिपूर्ति एवं अंकन 3,000/-रू0 परिवाद व्यय भी अधिरोपित किया गया है।
3. परिवाद के तथ्यों के अनुसार परिवादी द्वारा विपक्षी बैंक में स्वंय तथा परिवार के सदस्यों के साथ मिलकर अंकन 70,000/-रू0 संयुक्त नाम से जमा किए गए। विपक्षी द्वारा सावधि जमा राशि की 6 रसीदें जारी की गईं। परिपक्वता के पश्चात परिवादी नवीनीकरण के लिए गया, परन्तु नवीनीकरण से इंकार कर दिया गया, इसके बाद दिनांक 19.2.2001 को परिवादी की साली, श्रीमती निर्मल शर्मा, जो सावधि जमा धारक भी हैं, की मृत्यु हो गई। परिवादी की माता श्रीमती शकुन्तला देवी शर्मा की मृत्यु दिनांक 5.10.1998 को हो गई और भाई रमेश कुमार शर्मा की दिनांक 10.11.1994 को हो गई। इन सब की मृत्यु के पश्चात परिवादी एकल तथा संयुक्त रूप से समस्त राशि पाने के लिए अधिकृत है, परन्तु विपक्षी द्वारा न तो राशि अदा की गई और न ही नवीनीकरण किया गया।
4. लिखित कथन में यह उल्लेख किया गया कि मृतक की अनुपस्थिति में परिवाद पोषणीय नहीं है। परिवादी द्वारा सावधि जमा की रसीदें जमा नहीं की गई हैं।
5. पक्षकारों की साक्ष्य पर विचार करने के पश्चात विद्वान जिला आयोग ने जमा राशि परिवादी के पक्ष में ब्याज सहित अदा करने का आदेश पारित किया है।
6. अपीलार्थी बैंक के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि एफडीआर के प्रथम धारक ने बैंक से ऋण प्राप्त किया था, इसलिए आंशिक संतुष्टि में एफडीआर की राशि को समायोजित कर लिया गया। बैंक को इस संबंध में धारणा अधिकार प्राप्त है। दिनांक 11.12.1995 को कैश क्रेडिट सुविधा प्राप्त की गई थी, इसलिए उसे राशि देय नहीं है।
7. अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का यह भी तर्क है कि परिवादी द्वारा लिए गए ऋण एवं गारण्टी के कारण एफडीआर गिरवी रखी गई थी। ऋण की अदायगी नहीं की गई, इसलिए एफडीआर की राशि को समयोजित किया गया। एफडीआर का विवरण भी अपील के ज्ञापन के साथ प्रस्तुत किया गया है तथा ऋण की राशि के समायोजन का विवरण भी प्रस्तुत किया गया है। चूंकि गिरवी रखी गई एफडीआर को ऋण खाते में समायोजित करने का बैंक का अधिकार भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 171 के अंतर्गत उपलब्ध है, जिसका प्रयोग बैंक द्वारा किया गया है। अत: विद्वान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश अपास्त होने, परिवाद खारिज होने और अपील स्वीकार होने योग्य है।
आदेश
8. प्रस्तुत अपील स्वीकार की जाती है। विद्वान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश दिनांक 10.12.2007 अपास्त किया जाता है तथा परिवाद खारिज किया जाता है।
प्रस्तुत अपील में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गई हो तो उक्त जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित अपीलार्थी को यथाशीघ्र विधि के अनुसार वापस की जाए।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।
(सुधा उपाध्याय) (सुशील कुमार)
सदस्य सदस्य
लक्ष्मन, आशु0,
कोर्ट-2