(सुरक्षित)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-816/2011
(जिला उपभोक्ता आयोग, इलाहाबाद द्वारा परिवाद संख्या-184/2007 में पारित निणय/आदेश दिनांक 31.03.2011 के विरूद्ध)
लाइफ इंश्योरेंस कारपोरेशन आफ इण्डिया, डिवीजन आफिस, 19ए, टैगोर टाऊन, जिला इलाहाबाद द्वारा मैनेजर (लीगल), डिवीजन आफिस, 30, हजरतगंज, लखनऊ।
लाइफ इंश्योरेंस कारपोरेशन आफ इण्डिया, नार्थ सेन्ट्रल जोनल आफिस, 16/98, महात्मा गांधी मार्ग, कानपुर द्वारा मैनेजर (लीगल), डिवीजन आफिस, 30, हजरतगंज, लखनऊ।
अपीलार्थीगण/विपक्षीगण
बनाम
विनोद कुमार केसरवानी पुत्र श्री गनेश प्रसाद केसरवानी, निवासी 668, मालवीय नगर, जिला इलाहाबाद।
प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष:-
1. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
2. माननीय श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य।
अपीलार्थीगण की ओर से उपस्थित : श्री अरविन्द तिलहरी।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक: 02.12.2024
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उद्घोषित
निर्णय
1. परिवाद संख्या-184/2007, विनोद कुमार केसरवानी बनाम वरिष्ठ शाखा प्रबंधक, भारतीय जीवन बीमा निगम तथा एक अन्य में विद्वान जिला आयोग, इलाहाबाद द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय/आदेश दिनांक 31.3.2011 के विरूद्ध प्रस्तुत की गई अपील पर अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता को सुना गया तथा प्रश्नगत निर्णय/आदेश एवं पत्रावली का अवलोकन किया गया। प्रत्यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं है।
2. विद्वान जिला आयोग ने परिवाद स्वीकार करते हुए बीमा निगम को आदेशित किया है कि बीमा पालिसी सं0-310861492 के परिप्रेक्ष्य में बीमा क्लेम की राशि अंकन 1,00,000/-रू0 परिवादी को 8 प्रतिशत ब्याज के साथ भुगतान करे तथा मानसिक प्रताड़ना की मद में अंकन 5,000/-रू0 तथा परिवाद व्यय के रूप में अंकन 1,000/-रू0 अदा करने के लिए भी आदेशित किया है।
3. परिवाद के तथ्यों के अनुसार परिवादी की पत्नी श्रीमती ममता रानी गुप्ता उर्फ ममता केसरवानी ने दिनांक 28.12.2003 को अंकन 1,00,000/-रू0 का बीमा विपक्षीगण से कराया था, जिसकी पालिसी उपरोक्त है। बीमाधारिका की मृत्यु दिनांक 2.6.2004 को हो गई, जिनके नामिनी परिवादी हैं, ने मृत्यु की सूचना बीमा निगम को दी, परन्तु बीमा निगम द्वारा क्लेम का भुगतान करने से मना कर दिया।
4. बीमा निगम का कथन है कि बीमा दिनांक 28.12.2003 को कराया गया और बीमाधारिका की मृत्यु दिनांक 2.6.2004 को हो गई, इसलिए जांच करायी गयी, जिसमें पाया गया कि जीवन ज्योति अस्पताल, इलहाबाद में मृत्यु का कारण निमोनिया सेप्टीसीमिया एवं एआरडीएस जैसी अनेक बीमारियों का होना बताया गया। दिनांक 2.11.2003 को जीवन ज्योति हॉस्पिटल में भर्ती होकर इलाज कराया गया था, लेकिन बीमा कराते समय इस तथ्य को छिपाया गया, इसलिए बीमा धोखा देकर प्राप्त किया गया था।
5. दोनों पक्षों की साक्ष्य पर विचार करने के पश्चात विद्वान जिला आयोग ने यह निष्कर्ष दिया कि चूंकि बीमा पालिसी जारी करने से पूर्व बीमा निगम द्वारा नियुक्त डा0 द्वारा स्वास्थ्य परीक्षण किया गया था, इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि पुरानी बीमारी को छिपाया गया। तदनुसार उपरोक्त वर्णित निर्णय/आदेश पारित किया गया।
6. इस इस निर्णय/आदेश के विरूद्ध प्रस्तुत की गई अपील के ज्ञापन तथा मौखिक तर्कों का सार यह है कि बीमाधारिका कई दिनों से बीमार थी। श्री विनोद कृष्ण मालवीय, श्री ए.के. शुक्ला, श्री दिनेश बाबू वर्मा एवं श्री गोपाल कृष्ण कपूर ने बीमाधारिका के संबंध में कथन किया है कि जो अनेक्जर सं0-5 लगायत 8 है। बीमाधारिका दिनांक 3.10.2003 से दिनांक 20.10.2003 तक इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती हुई थी, उन्हें ARDS, Bronchitis Asthma, Diabetes Mellitus, Hypothyroidism तथा Anemia की बीमारी थी। जीवन ज्योति हॉस्पिटल की डिसचार्ज स्लिप अनेक्जर सं0-9 एवं 10 है। चूंकि बीमारी के तथ्य को छिपाया गया है, इसलिए बीमा क्लेम देय नहीं है।
7. अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता का यह तर्क है कि बीमा पालिसी लेने के 6 माह के आस-पास बीमाधारिका की मृत्यु हुई है, इसलिए जांच की गई, जांच में पाया गया कि वह गंभीर रूप से बीमारी थी और बीमारी के तथ्य को छिपाया गया। बीमा निगम के डा0 द्वारा गहराई से बीमित व्यक्ति के स्वास्थ्य की जांच नहीं की जाती, अपितु केवल सामामन्य जांच की जाती है, इसलिए सामान्य जांच के आधार पर यह निष्कर्ष दिया जाना अनुचित है कि बीमाधारिका ने बीमारी के तथ्य को नहीं छिपाया। इस पीठ का भी मत है कि केवल इस आधार पर यह निष्कर्ष नहीं दिया जा सकता कि बीमारी के किसी तथ्य को नहीं छिपाया गया, क्योंकि बीमा निगम के डा0 द्वारा बीमा पालिसी जारी करने से पूर्व बीमित व्यक्ति का सामान्य परीक्षण किया गया था, इस बिन्दु पर पूर्व से स्थित बीमारी के संबंध में स्पष्ट निष्कर्ष दिया जाना चाहिए। अनेक्जर सं0-5 लगायत 8 में सामान्य व्यक्तियों द्वारा जो विनोद कुमार केसरवानी के पड़ोसी हैं, ने बीमाधारिका का नियमित रूप से बीमार होने का कथन किया है। जीवन ज्योति हॉस्पिटल की डिसचार्ज स्लिप में भी उपरोक्त बीमारियों का उल्लेख है। इसी प्रकार आनन्द हॉस्पिटल में इलाज के दस्तावेज अनेक्जर सं0-11 पर मौजूद हैं, यह दस्तावेज दिनांक 6.3.2004 का है, जो इलाज कराने से संबंधित शुल्क वसूल करने का दस्तावेज है। अनेक्जर सं0-13 परिवादी द्वारा बीमा निगम को दिया गया दस्तावेज है, इसमें स्वीकार किया गया है कि अक्टूबर 2003 में बीमाधारिका का इलाज कराया गया। बीमाधारिका की मृत्यु दिनांक 2.6.2004 को हुई, जबकि बीमा पालिसी दिनांक 28.12.2003 को ली गई। परिवादी ने अक्टूबर 2003 में इलाज कराना स्वीकार किया है। अत: बीमा लेने से पूर्व इलाज कराना और इस इलाज के संबंध में बीमा निगम को पालिसी लेते समय कोई सूचना न देने का तथ्य साबित है। अत: बीमा निगम द्वारा वैधानिक रूप से बीमा क्लेम नकारा गया है। विद्वान जिला आयोग ने सरसरी तौर पर अपना निर्णय/आदेश पारित किया है। बीमा क्लेम नकारने के वास्तविक बिन्दु पर कोई विचार नहीं किया गया। तदनुसार प्रश्नगत निर्णय/आदेश अपास्त होने और प्रस्तुत अपील स्वीकार होने योग्य है।
आदेश
8. प्रस्तुत अपील स्वीकार की जाती है। विद्वान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश अपास्त किया जाता है।
प्रस्तुत अपील में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गई हो तो उक्त जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित अपीलार्थी को यथाशीघ्र विधि के अनुसार वापस की जाए।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।
(सुधा उपाध्याय) (सुशील कुमार)
सदस्य सदस्य
लक्ष्मन, आशु0,
कोर्ट-2