राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-536/2016
(सुरक्षित)
(जिला उपभोक्ता फोरम-द्वितीय, लखनऊ द्वारा परिवाद संख्या 263/2015 में पारित आदेश दिनांक 06.02.2016 के विरूद्ध)
Madhyanchal Vidyut Vitran Nigam Limited, Electricity Distribution Division, Thakurganj, Lucknow, through its Executive Engineer. ....................अपीलार्थी/विपक्षी
बनाम
Vinod Kumar Gahlot son of Kamta Kumar Gahlot, Resident of Plot No. 8, Jal Nigam Road, Balaganj, Lucknow. ................प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष:-
1. माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष।
2. माननीय श्रीमती बाल कुमारी, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री संतोष कुमार मिश्रा,
विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : श्री अथर्व आर्या,
विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक: 22-02-2017
मा0 न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
परिवाद संख्या-263/2015 विनोद कुमार गहलोत बनाम मध्यांचल विद्युत वितरण निगम लि0 में जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम-द्वितीय, लखनऊ द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक 06.02.2016 के विरूद्ध यह अपील उपरोक्त परिवाद के विपक्षी मध्यांचल विद्युत वितरण निगम लि0 की ओर से धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गयी है।
आक्षेपित निर्णय और आदेश के द्वारा जिला फोरम ने उपरोक्त परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए अपीलार्थी/विपक्षी को आदेशित किया है कि वह निर्णय की तिथि से
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चार सप्ताह के अन्दर प्रत्यर्थी/परिवादी को भेजे गये 4,18,221/-रू0 के बिल को रद्द कर दें। इसके अतिरिक्त वह प्रत्यर्थी/परिवादी को मानसिक और शारीरिक कष्ट हेतु 10,000/-रू0 तथा 5000/-रू0 वाद व्यय अदा करें।
अपीलार्थी की ओर से उनके विद्वान अधिवक्ता श्री संतोष कुमार मिश्रा एवं प्रत्यर्थी की ओर से उनके विद्वान अधिवक्ता श्री अथर्व आर्या उपस्थित आए हैं।
हमने उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्तागण के तर्क को सुना है और पत्रावली का अवलोकन किया है।
वर्तमान अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्त सुसंगत तथ्य इस प्रकार हैं कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने उपरोक्त परिवाद जिला फोरम के समक्ष इस कथन के साथ प्रस्तुत किया है कि अपीलार्थी/विपक्षी ने बिल संख्या-056112115744 दिनांकित 26.03.2015 4,18,221/-रू0 के लिए उसे गलत तौर पर प्रेषित किया है। इस प्रकार उन्होंने सेवा में त्रुटि की है। प्रत्यर्थी/परिवादी ने परिवाद पत्र में कहा है कि उसने राहुल सिंह के साथ जूते व उससे सम्बन्धित वस्तुओं के निर्माण का साझा व्यापार जीविकोपार्जन हेतु स्वरोजगार के उद्देश्य से शुरू करना चाहा, परन्तु फैक्टरी शुरू करने के पहले ही राहुल सिंह की मृत्यु हो गयी और फैक्टरी शुरू नहीं हो सकी और इस तथ्य से अपीलार्थी/विपक्षी के जूनियर इंजीनियर और सीनियर डिवीजनल आफिसर अवगत हैं कि फैक्टरी बन्द है। उसमें कोई काम नहीं हो रहा है। फिर भी जो बिल अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा जारी किया गया है उसे प्रत्यर्थी/परिवादी ने नियमित रूप से जमा
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किया है और अन्तिम बिल दिनांक 20.01.2015 को 8,656/-रू0 का जमा किया है। उसके बाद अपीलार्थी/विपक्षी ने दिनांक 26.03.2015 को कम्प्यूटर से तैयार किया गया उपरोक्त बिल दिनांक 26.03.2015 का 4,18,221/-रू0 के लिए भेजा है। परिवाद पत्र में प्रत्यर्थी/परिवादी ने यह भी कहा है कि अपीलार्थी/विपक्षी ने कभी भी उन्हें यह सूचित नहीं किया था कि बिल का भुगतान MF Factor 40 बिल के अनुसार होगा। यदि उसे ऐसा मालूम होता तो वह अपना कनेक्शन कटवा देता। परिवाद पत्र में प्रत्यर्थी/परिवादी की ओर से यह भी कहा गया है कि उपरोक्त बिल दो साल के बाद भेजा गया है, जबकि इस सम्बन्धित धनराशि की कभी भी मांग पहले नहीं की गयी है। अत: इस कारण भी यह बिल अवैधानिक है।
प्रत्यर्थी/परिवादी ने परिवाद पत्र में उपशम चाही है कि उपरोक्त बिल निरस्त किया जाए और उसे अपीलार्थी/विपक्षी से क्षतिपूर्ति दिलायी जाए।
अपीलार्थी/विपक्षी की ओर से जिला फोरम के समक्ष लिखित कथन प्रस्तुत कर परिवाद का विरोध किया गया है और कहा गया है कि प्रत्यर्थी/परिवादी का कनेक्शन 20 बी0एच0पी0 (एल0एम0 वी-6) का है। अत: इस पर एम0एफ0-40 के तहत विद्युत बिल का भुगतान होना चाहिए था, परन्तु प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा एम0एफ0-1 के तहत भुगतान किया जा रहा था। अत: एम0एफ0-40 के अनुसार मार्च 2015 तक का संशोधित बिल 4,18,221/-रू0 बनता है, जो प्रत्यर्थी/परिवादी को प्रेषित किया गया है। लिखित कथन में अपीलार्थी/विपक्षी की ओर से यह भी कहा गया है कि प्रश्नगत
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विद्युत संयोजन वाणिज्यिक उद्देश्य के लिए लिया गया है। अत: परिवाद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत ग्राह्य नहीं है।
जिला फोरम ने उभय पक्ष के अभिकथन और पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्यों पर विचार के उपरान्त यह निष्कर्ष निकाला है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने कनेक्शन जीविकोपार्जन हेतु स्वरोजगार के उद्देश्य से लिया है। अत: वह उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत उपभोक्ता है। इसके साथ ही जिला फोरम ने यह भी निष्कर्ष निकाला है कि विवादित बिल की धनराशि धारा-56 (2) विद्युत अधिनियम 2003 के प्राविधान के विपरीत है।
उपरोक्त निष्कर्षों के आधार पर ही जिला फोरम ने परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए आक्षेपित निर्णय और आदेश उपरोक्त प्रकार से पारित किया है।
अपीलार्थी/विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश साक्ष्य और विधि के विरूद्ध है। जिला फोरम ने प्रत्यर्थी/परिवादी को जो उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत उपभोक्ता माना है वह विधि विरूद्ध है।
अपीलार्थी/विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम ने धारा-56 (2) विद्युत अधिनियम 2003 को सही ढंग से नहीं पढ़ा है और त्रुटिपूर्ण आदेश पारित किया है।
प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश साक्ष्य और
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विधि के अनुकूल है। अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा जारी प्रश्नगत बिल धारा-56 (2) विद्युत अधिनियम 2003 के विरूद्ध है। अत: जिला फोरम ने उसे निरस्त कर कोई गलती नहीं की है।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता ने अपने तर्क के समर्थन में माननीय उच्च न्यायालय, इलाहाबाद द्वारा SHYAM FERROUS LIMITED VERSUS STATE OF U.P. and others 2016 (115) ALR 122 के वाद में दिए गए निर्णय की नजीर प्रस्तुत की है।
प्रत्यर्थी की ओर से उनके विद्वान अधिवक्ता ने रिट याचिका संख्या-9090/2012 सत्य नारायण बनाम यू0पी0 पावर कारपोरेशन लि0 व अन्य के वाद में माननीय उच्च न्यायालय, इलाहाबाद की माननीय पीठ लखनऊ द्वारा पारित निर्णय दिनांक 22.05.2013 एवं Misc. Single No. 4237/2008 दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम लि0 बनाम विद्युत लोकपाल लखनऊ व अन्य में माननीय उच्च न्यायालय, इलाहाबाद द्वारा पारित निर्णय दिनांक 06.01.2012 की प्रति प्रस्तुत की है।
प्रत्यर्थी के विद्वान अधिवक्ता ने पुनरीक्षण याचिका संख्या-3639/2009 KERALA STATE ELECTRICITY BOARD & ANR. Versus YESU ADIMANADAR (NOW DEAD) THROUGH LRS. में माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा पारित निर्णय दिनांक 09.09.2015 की प्रति भी प्रस्तुत की है।
हमने उभय पक्ष के तर्क पर विचार किया है और उपरोक्त न्यायिक निर्णयों का अवलोकन किया है।
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प्रत्यर्थी/परिवादी ने परिवाद पत्र में स्पष्ट रूप से कहा है कि उसने जीविकोपार्जन हेतु स्वरोजगार के उद्देश्य से राहुल सिंह की साझादारी में जूता निर्माण का व्यापार करना चाहा, परन्तु व्यापार प्रारम्भ होने के पहले ही राहुल सिंह की मृत्यु हो गयी और फैक्टरी प्रारम्भ नहीं हुई। अपीलार्थी/विपक्षी ने लिखित कथन में परिवाद पत्र के उपरोक्त कथन से इंकार नहीं किया है केवल इतना कहा है कि फैक्टरी चल रही है। अत: यह स्पष्ट है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने फैक्टरी जीविकोपार्जन हेतु स्वरोजगार के उद्देश्य से शुरू किया है। अत: वह धारा-2 (1) (डी) उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के स्पष्टीकरण के अनुसार उपभोक्ता है। जिला फोरम ने इस सन्दर्भ में जो निष्कर्ष निकाला है वह उचित है। उसमें हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।
जिला फोरम ने धारा-56 (2) विद्युत अधिनियम 2003 के आधार पर विवादित बिल दिनांक 26.03.2015 निरस्त किया है।
धारा-56 (2) विद्युत अधिनियम 2003 निम्न है:-
“56(2) Notwithstanding anything contained in any other law for the time being in force, no sum due from any consumer, under this section shall be recoverable after the period of two years from the date when such sum became first due unless such sum has been shown continuously as recoverable as arrear of charges for electricity supplied and the licensee shall not cut off the supply of the electricity.”
धारा-56 (2) विद्युत अधिनियम 2003 से स्पष्ट है कि कोई विद्युत देय, देय होने की तिथि से दो साल बाद वसूली योग्य नहीं
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होगा यदि उसे बराबर वसूल होने वाले अवशेष के रूप में दिखाया नहीं गया है।
विवादित विद्युत बिल किस अवधि की देयता के सम्बन्ध में है यह स्पष्ट नहीं है। प्रत्यर्थी/परिवादी का कनेक्शन कब से है यह भी स्पष्ट नहीं है। अपीलार्थी/विपक्षी ने अपील में लिखित तर्क के साथ एक बिल दिनांक 30.09.2012 प्रस्तुत किया है। प्रत्यर्थी/परिवादी ने इससे इंकार किया है। यह बिल प्रत्यर्थी/परिवादी को दिया गया है और इसके देय को बराबर देय अवशेष के रूप में प्रत्यर्थी/परिवादी के बिलों में दर्शित किया गया है, यह अपीलार्थी/विपक्षी साबित नहीं कर सका है। इसके विपरीत यह स्पष्ट है कि दिनांक 20.01.2015 तक के प्रत्यर्थी/परिवादी को दिये गये बिलों में यह अवशेष दर्शित नहीं किया गया है। अत: यह मानने हेतु उचित आधार है कि विवादित बिल दिनांक 26.03.2015 की मांग प्रत्यर्थी/परिवादी से पहली बार दिनांक 26.03.2015 को की गयी है। अपीलार्थी/विपक्षी का कथन है कि प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्युत कनेक्शन पर एम0एफ0-40 के अनुसार देयता बनती है, जबकि उसने बिल एम0एफ0-1 की दर से अदा किया है। प्रत्यर्थी/परिवादी ने इस बात से इंकार नहीं किया है कि उसके कनेक्शन पर एम0एफ0-40 की दर से देयता बनती है। उसका कथन है कि विद्युत विभाग ने जो बिल दिया है और देयता बतायी है, उसने उसे जमा किया है। अत: दो साल के बाद उससे अब कोई वसूली नहीं की जा सकती है।
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स्वीकृत रूप से बिल के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादी ने धनराशि जमा की है। गलत बिल अपीलार्थी/विपक्षी के कर्मचारियों द्वारा जारी किया गया है। प्रत्यर्थी/परिवादी की उसमें कोई भूमिका नहीं रही है। अत: दो साल की अवधि समाप्त होने के बाद पुन: प्रत्यर्थी/परिवादी से पुनरीक्षित बिल के द्वारा अवशेष धनराशि की वसूली धारा-56 (2) विद्युत अधिनियम 2003 से बाधित है। इस सन्दर्भ में भी जिला फोरम द्वारा निकाला गया निष्कर्ष उचित है, परन्तु जिला फोरम ने जो पूरा विवादित बिल निरस्त किया है वह उचित नहीं है। वास्तव में विवादित बिल दिनांक 26.03.2015 से दो वर्ष पूर्व अर्थात् दिनांक 27.03.2013 के पूर्व की अवधि की देयता के सम्बन्ध में ही निरस्त किये जाने योग्य है। दिनांक 27.03.2013 के बाद की अवधि की देयता के सम्बन्ध में यह बिल विधिसम्मत है। अत: जिला फोरम का आक्षेपित निर्णय और आदेश तदनुसार संशोधित किये जाने योग्य है।
उपरोक्त विवेचना के आधार पर हम इस मत के हैं कि जिला फोरम ने अपीलार्थी/विपक्षी से प्रत्यर्थी/परिवादी को जो क्षतिपूर्ति दिलायी है, उसे निरस्त किया जाना उचित है। जिला फोरम ने जो 5000/-रू0 वाद व्यय अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा दिये जाने का आदेश दिया है, उसे भी समाप्त किया जाना उचित है।
उपरोक्त निष्कर्षों के आधार पर अपील आंशिक रूप से स्वीकार कर जिला फोरम का आक्षेपित निर्णय और आदेश उपरोक्त प्रकार से संशोधित किया जाना उचित है।
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आदेश
अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है। जिला फोरम का आक्षेपित निर्णय और आदेश दिनांक 06.02.2016 संशोधित किया जाता है और विवादित विद्युत बिल दिनांक 26.03.2015 केवल दिनांक 27.03.2013 के पूर्व की अवधि की देय धनराशि के सम्बन्ध में अपास्त किया जाता है। अपीलार्थी/विपक्षी दिनांक 27.03.2013 के बाद की अवधि की देय धनराशि के सम्बन्ध में पुनरीक्षित बिल प्रत्यर्थी/परिवादी को जारी कर उसकी वसूली विधि के अनुसार करने हेतु स्वतंत्र है।
परिवाद एवं अपील दोनों में उभय पक्ष अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान) (बाल कुमारी)
अध्यक्ष सदस्य
जितेन्द्र आशु0
कोर्ट नं0-1