राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उत्तर प्रदेश, लखनऊ।
मौखिक
अपील संख्या-537/2013
(जिला उपभोक्ता आयोग, कानपुर नगर द्धारा परिवाद सं0-138/2007 में पारित प्रश्नगत आदेश दिनांक 19-02-2013 के विरूद्ध)
डॉ0 अजय कृष्ण मिश्रा (ए0के0 मिश्रा) पुत्र स्व0 श्री एस0के0 मिश्रा क्लीनिक-127/394, बारादेवी जूही, कानपुर नगर, परामर्श केन्द्र-128/179, के-ब्लॉक, किदवई नगर, निवासी-120/492, लाजपत नगर, कानपुर नगर।
........... अपीलार्थी/विपक्षी।
बनाम
श्रीमती विनीता देवी पत्नी स्व0 श्री भानु प्रताप सिंह, निवासी ग्राम व पोस्ट-लालपुर, शिवराजपुर, कानपुर देहात। …….. प्रत्यर्थी/परिवादिनी।
समक्ष :-
1. मा0 श्री विकास सक्सेना, सदस्य।
2. मा0 श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित :- श्री आलोक सिन्हा विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित :- श्री सुशील कुमार शर्मा विद्वान अधिवकत।
दिनांक :- 08-07-2024.
मा0 श्री विकास सक्सेना सदस्य, द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील, जिला उपभोक्ता आयोग, कानपुर नगर द्धारा परिवाद सं0-138/2007 में पारित प्रश्नगत आदेश दिनांक 19-02-2013 के विरूद्ध योजित की गई है।
विद्वान जिला आयोग ने आदेश दिनांक 19-02-2013 द्वारा परिवाद में एक पक्षीय रूप से निर्णय पारित करते हुए निम्नलिखित आदेश पारित किया :-
'' उपरोक्त कारणों से परिवादिनी द्वारा प्रस्तुत वाद विपक्षी के विरूद्ध एकपक्षीय रूप से स्वीकार किया जाता है। विपक्षी को निर्देशित किया जाता है कि निर्णय के 30 दिन के अन्दर परिवादिनी को रू0 3,00,000.00 क्षतिपूर्ति के रूप में अदा करे देवे। ''
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पीठ द्वारा उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्तागण को विस्तार से सुना गया तथा पत्रावली पर उपलब्ध समस्त प्रपत्रों एवं प्रश्नगत आदेश का सम्यक रूप से परिशीलन व परीक्षण किया गया।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा तर्क प्रस्तुत किया गया कि अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा विद्वान जिला आयोग के समक्ष परिवाद सं0-138/2007 में अपनी प्रारम्भिक आपत्ति क्षेत्राधिकार के सम्बन्ध में प्रस्तुत की गई थी। तदोपरान्त परिवाद को विद्वान जिला आयोग द्वारा दिनांक 21-10-2008 को अदम पैरवी में निरस्त कर दिया गया, जिसे आदेश दिनांक 01-03-2011 द्वारा अपने मूल नम्बर पर पुनर्स्थापित कर दिया गया। अधिवक्ता अपीलार्थी का कथन है कि अदम पैरवी में खारिज परिवाद को पुनर्स्थापित करने हेतु प्रस्तुत प्रार्थना पत्र के सन्दर्भ में अपीलार्थी/विपक्षी को कोई सूचना प्राप्त नहीं हुई, जिसके कारण अपीलार्थी/विपक्षी अपना पक्ष प्रस्तुत नहीं कर सका। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अन्तर्गत विद्वान जिला आयोग को अपने ही आदेश के पुनर्विलोकन का अधिकार प्राप्त नहीं है। अत: विद्वान जिला आयोग द्वारा परिवाद को पुनर्स्थापित करने का आदेश अविधिक होने के कारण निरस्त होने योग्य है और ऐसी स्थिति में परिवाद में पारित अन्तिम आदेश दिनांकित 19-02-2013 भी विधि सम्मत न होने के कारण अपास्त होने योग्य है। अधिवक्ता अपीलार्थी का यह भी तर्क है कि अपीलार्थी/विपक्षी को परिवाद के गुणदोष के आधार पर सुनवाई का अवसर प्रदान किया जाना चाहिए।
प्रत्यर्थी के विद्वान अधिवक्ता का यह तर्क है कि चूँकि अपीलार्थी/विपक्षी ने परिवाद के विरूद्ध अपनी प्रारम्भिक आपत्ति प्रस्तुत की थी और उसके पश्चात् उसने परिवाद की कार्यवाही में भाग नहीं लिया। इस प्रकार स्पष्ट है कि अपीलार्थी/विपक्षी को परिवाद की जानकारी थी। विद्वान जिला आयोग का आदेश विधि अनुकूल है। अत: अपील निरस्त होने योग्य है।
अपील पत्रावली पर विद्वान जिला आयोग द्वारा पारित आदेश दिनांक 21-10-2008 की प्रति (कागज सं0-35) एवं पुनर्स्थापन आदेश दिनांकित 01-03-2011 की प्रति (कागज सं0-36) उपलब्ध है। स्पष्ट है कि विद्वान जिला आयोग द्वारा परिवाद दिनांक
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21-10-2008 को परिवादी की अनुपस्थिति में खारिज किया गया और आदेश दिनांकित 01-03-2011 द्वारा परिवाद को मूल नम्बर पर पुनर्स्थापित किया गया। पत्रावली पर प्रत्यर्थी की ओर से ऐसा कोई साक्ष्य उपलब्ध नहीं कराया गया है कि पुनर्स्थापन प्रार्थना पत्र की सुनवाई के सन्दर्भ में अपीलार्थी/विपक्षी को कोई सूचना दी गई, क्योंकि अपीलार्थी का कथन है कि उसे इस सन्दर्भ में कोई सूचना प्राप्त नहीं हुई।
मा0 सर्वोच्च न्यायालय द्वारा Rajeev Hitendra Pathak & Ors. Vs. Achyut Kashinath Karekar & Anr. on 19 August, 2011 in Civil Appeal no.4307 of 2007; with Civil Appeal no..8155 OF 2001; M.O.H. Leathers Versus United Commercial Bank के मामले में यह अवधारित किया गया है कि जिला उपभोक्ता आयोग एवं राज्य उपभोक्ता आयोग को अपने ही किसी आदेश के पुनर्विलोकन का अधिकार प्राप्त नहीं है।
मा0 उच्च न्यायालय इलाहाबाद द्वारा लॉग लाइफ कार्पेट्स इण्डस्ट्रीज बनाम केसर जहॉं, A I R 1998 All . 55 में यह अवधारित किया गया है कि यदि परिवादी की अनुपस्थिति में परिवाद को अदम पैरवी में खारिज किया गया हो और उस समय विपक्षी उपस्थित हो तब ऐसी दशा में पुनर्स्थापन प्रार्थना पत्र के सन्दर्भ में विपक्षी को सूचना देना अनिवार्य है।
वर्तमान मामले में विद्वान जिला आयोग के आदेश दिनांक 21-10-2008 के अवलोकन से स्पष्ट होता है कि दिनांक 28-10-2008 को परिवादी की अनुपस्थिति के कारण जब परिवाद को विद्वान जिला आयोग द्वारा खारिज किया गया था तब उस दिन विपक्षी उपस्थित था। अत: ऐसी दशा में पुनर्स्थापन प्रार्थना पत्र की सुनवाई के सन्दर्भ में विपक्षी को विद्वान जिला आयोग द्वारा सूचना दिया जाना अनिवार्य था, परन्तु विद्वान जिला आयोग द्वारा ऐसा नहीं किया गया। इस सम्बन्ध में अपील पत्रावली पर भी ऐसा कोई साक्ष्य उपलब्ध नहीं है, जिससे यह साबित हो सके कि पुनर्स्थापन प्रार्थना पत्र की सुनवाई के पूर्व अपीलार्थी/विपक्षी को सूचना दी गई थी।
उपरोक्त विवेचन एवं न्याय निर्णयों के प्रकाश में पीठ के अभिमत में अपीलार्थी/विपक्षी को न्यायहित में परिवाद की सुनवाई का एक अवसर प्रदान किया
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जाना उपयुक्त प्रतीत होता है। तदनुसार बिना किसी गुणदोष पर विचार किए हुए प्रस्तुत अपील अन्तिम रूप से निर्णीत करते हुए प्रकरण सम्बन्धित जिला आयोग को प्रतिप्रेषित किए जाने योग्य है।
आदेश
तदनुसार अपील स्वीकार की जाती है। जिला उपभोक्ता आयोग, कानपुर नगर द्धारा परिवाद सं0-138/2007 में पारित प्रश्नगत आदेश दिनांक 19-02-2013 अपास्त किया जाता हैतथा प्रकरण प्रतिप्रेषित करते हुए विद्वान जिला आयोग को निर्देशित किया जाता है कि परिवाद सं0-138/2007 को अपने मूल नम्बर पर पुनर्स्थापित करते हुए परिवाद के दोनों पक्षकारों को साक्ष्य एवं सुनवाई का विधि अनुसार समुचित अवसर प्रदान करते हुए यथा सम्भव 06 माह की अवधि में परिवाद सं0-138/2007 को गुणदोष के आधार पर निस्तारित किया जावे। किसी भी पक्षकार को बिना किसी उपयुक्त कारण के स्थगन की अनुमति न प्रदान की जावे।
इस निर्णय की प्रमाणित प्रतिलिपि दोनों पक्षकारों अथवा उनके अधिवक्तागण द्वारा दिनांक 05-08-2024 को अथवा उससे पूर्व सम्बन्धित जिला उपभोक्ता आयोग, के सम्मुख प्रस्तुत की जावे।
अपील व्यय उभय पक्ष अपना-अपना स्वयं वहन करेंगे।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(सुधा उपाध्याय) (विकास सक्सेना)
सदस्य सदस्य
दिनांक : 08-07-2024.
प्रमोद कुमार,
वैयक्तिक सहायक ग्रेड-1.
कोर्ट नं0-3.