राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
(सुरक्षित)
अपील संख्या-2190/2015
(जिला उपभोक्ता फोरम, गोण्डा द्वारा परिवाद संख्या 28/2014 में पारित आदेश दिनांक 28.09.2015 के विरूद्ध)
Branch Manager
Allahabad Bank,
Branch Dhanepur,
District-Gonda. ....................अपीलार्थी/विपक्षी सं01
बनाम
1. Shri Vindhyachal Sharma
S/o Ram Deen Sharma
R/o Maharajganj, Secular Road,
Tehsil Gonda,
District-Gonda.
2. Branch Manager,
Universal Sompo General Insurance company,
Branch Varanasi,
District Varanasi.
3. Chief Manager,
Universal Sompo General Insurance company,
Crystal Plaza, Infinity Mall Link Road,
Andheri (West), Mumbai 400058.
................प्रत्यर्थीगण/परिवादी एवं विपक्षीगण सं0 2 व 3
एवं
अपील संख्या-2375/2015
(जिला उपभोक्ता फोरम, गोण्डा द्वारा परिवाद संख्या 28/2014 में पारित आदेश दिनांक 28.09.2015 के विरूद्ध)
Universal Sompo General Insurance Company Limited, 401, fourth floor, Shalimar Logix 4, Rana Pratap Marg Lucknow through Universal Sompo General Insurance Company Limited, Unit No. 401, 4th Floor, Sangam Complex, 127 Andheri Kurla Road,
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Andheri (East), Mumbai its Manager.
....................अपीलार्थी/विपक्षीगण सं0 2 व 3
बनाम
1. Vindhyachal Sharma S/o Ram Deen Sharma,
resident of Mohalla-Marajganj, Curculer Road,
Tehsil and Distt. – Gonda.
2. Allahabad Bank, branch – Dhaneypur, District –
Gonda through its Branch Manager.
................प्रत्यर्थीगण/परिवादी व विपक्षी सं01
समक्ष:-
माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष।
परिवादी की ओर से उपस्थित : श्री राम गोपाल,
विद्वान अधिवक्ता।
विपक्षी इलाहाबाद बैंक की ओर उपस्थित : श्री शरद कुमार शुक्ला,
विद्वान अधिवक्ता।
विपक्षी बीमा कं0 की ओर से उपस्थित : श्री दिनेश कुमार,
विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक: 04-07-2017
मा0 न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
जिला फोरम, गोण्डा ने परिवाद संख्या-28/2014 विन्ध्याचल शर्मा बनाम इलाहाबाद बैंक आदि निर्णय और आदेश दिनांक 28.09.2015 के द्वारा दोनों विपक्षीगण बीमा कम्पनी और बैंक के विरूद्ध स्वीकार करते हुए निम्न आदेश पारित किया है:-
''परिवादी का परिवाद स्वीकार किया जाता है। विपक्षी बीमा कं0 व बैंक को निर्देशित किया जाता है कि वे आगजनी से हुई हानि मु0 516854.00 रूपये की धनराशि संयुक्त रूप से बराबर-बराबर परिवादी को अदा करें। दौड़ धूप व मानसिक कष्ट के
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लिए मु0 5000.00 रूपये एवं वाद व्यय मु0 2000.00 रूपये भी संयुक्त रूप से परिवादी को अदा करें। आदेश का अनुपालन एक माह के अन्दर सुनिश्चित होवे अन्यथा 9% ब्याज सहित अदायगी की तिथि तक अदा करना होगा।''
जिला फोरम के उपरोक्त निर्णय और आदेश से क्षुब्ध होकर विपक्षी इलाहाबाद बैंक की ओर से अपील संख्या-2190/2015 ब्रांच मैनेजर, इलाहाबाद बैंक बनाम विन्ध्याचल शर्मा आदि और विपक्षी बीमा कम्पनी की ओर से अपील संख्या-2375/2015 यूनिवर्सल सोम्पो जनरल इंश्योरेंस कम्पनी लि0 बनाम विन्ध्याचल शर्मा व एक अन्य धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गयी है। दोनों अपीलें एक ही निर्णय के विरूद्ध अलग-अलग विपक्षी द्वारा अलग-अलग प्रस्तुत की गयी हैं। अत: दोनों अपीलों का निस्तारण एक साथ संयुक्त निर्णय के द्वारा किया जा रहा है।
परिवादी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री राम गोपाल, विपक्षी इलाहाबाद बैंक की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री शरद कुमार शुक्ला और विपक्षी बीमा कम्पनी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री दिनेश कुमार उपस्थित आए हैं।
मैंने उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्तागण को दोनों अपीलों में सुना है और आक्षेपित निर्णय और आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया है।
वर्तमान दोनों अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्त सुसंगत तथ्य
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इस प्रकार हैं कि परिवादी विन्ध्याचल शर्मा ने उपरोक्त परिवाद जिला फोरम, गोण्डा के समक्ष इस कथन के साथ प्रस्तुत किया है कि उसने विपक्षी इलाहाबाद बैंक की शाखा धानेपुर जिला गोण्डा से जनरल स्टोर की दुकान खोलने हेतु वित्तीय सहायता (सी0सी0 लिमिट मु0 6,00,000/-रू0) प्राप्त करके धानेपुर बाजार में किराये की दुकान लेकर दुकान खोला था, परन्तु भवन मालिक ने बीच में अपनी निजी जरूरत बताकर भवन खाली करवा लिया। अत: परिवादी ने अपनी उक्त दुकान स्थानान्तरित कर सरकुलर रोड निकट मनकापुर बस स्टाप गोण्डा में कायम करके चलाने लगा।
परिवाद पत्र के अनुसार परिवादी का कथन है कि विपक्षीगण संख्या-2 व 3 अर्थात् यूनिवर्सल सोम्पो जनरल इंश्योरेंस कं0लि0 की शाखा प्रबन्धक वाराणसी एवं मुख्य प्रबन्धक मुम्बई की सम्बद्धता विपक्षी संख्या-1 इलाहाबाद बैंक से थी। अत: विपक्षी इलाहाबाद बैंक ने परिवादी को 6,00,000/-रू0 के कैश क्रेडिट लिमिट की सहायता प्रदान करते हुए उसकी दुकान के सामानों का 6,00,000/-रू0 का बीमा विपक्षीगण संख्या-2 व 3 से करा दिया, जो दिनांक 22.07.2011 से 21.07.2012 तक प्रभावी था। विपक्षी बैंक द्वारा प्रीमियम और सर्विस टैक्स 1324/-रू0 वार्षिक परिवादी के खाते से काटकर बीमा कम्पनी को प्रदान किया जाता था और बीमा किश्त को अदा करने की जिम्मेदारी बैंक की थी। इस प्रकार बीमा पालिसी प्रत्येक वर्ष के माह अगस्त के 3 दिवस को प्रारम्भ होकर एक वर्ष तक के लिए प्रभावी रहती थी। दुकान का बीमा
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वर्ष 2013 में भी प्रभावी रखने हेतु विपक्षी संख्या-1 इलाहाबाद बैंक ने 1348/-रू0 परिवादी के खाते से काट लिया था। अत: परिवादी आश्वस्त था कि दुकान बीमित है। इस बीच दिनांक 1 व 2 जून की मध्य रात्रि में वर्ष 2013 में शार्ट सर्किट से परिवादी की दुकान में आग लग जाने से दुकान में रखा सारा सामान कीमती 6,00,000/-रू0 जलकर नष्ट हो गया, जिसकी सूचना विपक्षीगण को परिवादी ने दी और विपक्षी संख्या-2 बीमा कम्पनी से 6,00,000/-रू0 का दावा किया, किन्तु कोई सुनवाई नहीं हुई। तब उसने विपक्षीगण को नोटिस भेजा। फिर भी कोई कार्यवाही नहीं हुई। उसके बाद जब परिवादी ने विपक्षीगण संख्या-2 व 3 की बीमा कम्पनी के कार्यालय से सम्पर्क किया तो पता चला कि बैंक द्वारा किश्त ही अदा नहीं की गयी है। इस कारण उसका दावा भुगतान नहीं हो सकता है।
परिवाद पत्र में परिवादी का कथन है कि बैंक द्वारा उसके खाते से भुगतान हेतु किश्त की धनराशि काटी गयी है। फिर भी उसका भुगतान बीमा कम्पनी को नहीं किया गया है। अत: क्षुब्ध होकर उसने परिवाद जिला फोरम के समक्ष प्रस्तुत किया है।
जिला फोरम के समक्ष विपक्षी इलाहाबाद बैंक ने लिखित कथन प्रस्तुत कर यह स्वीकार किया कि परिवादी को उसके द्वारा कैश क्रेडिट लिमिट की सुविधा प्रदान की गयी है।
लिखित कथन में विपक्षी इलाहाबाद बैंक की ओर से कहा गया है कि परिवादी ने अपना व्यवसाय धानेपुर बाजार से हटाकर
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सरकुलर रोड निकट मनकापुर बस स्टाप गोण्डा में बैंक से पूर्व अनुमति के बिना किया था।
लिखित कथन में विपक्षी इलाहाबाद बैंक की ओर से यह भी कहा गया है कि बैंक बीमा नहीं कराता है। बीमा बैंक और ऋणी दोनों की आवश्यकता है।
लिखित कथन में विपक्षी इलाहाबाद बैंक की ओर से यह भी कहा गया है कि परिवादी के खाते से बीमा की कोई धनराशि बैंक द्वारा नहीं निकाली गयी है और न बैंक ने कोई सेवा में त्रुटि की है।
जिला फोरम के समक्ष विपक्षी बीमा कम्पनी की ओर से भी लिखित कथन प्रस्तुत कर कहा गया है कि परिवादी की दुकान का बीमा दिनांक 22.07.2011 से 21.07.2012 तक Theft and Burglary के लिए किया गया था।
लिखित कथन में विपक्षी बीमा कम्पनी की ओर से यह भी कहा गया है कि परिवादी ने आगजनी के लिए दुकान बीमित नहीं करायी थी और न ही कोई किश्त अदा किया था।
जिला फोरम ने उभय पक्ष के अभिकथन एवं उपलब्ध साक्ष्यों पर विचार करने के उपरान्त यह निष्कर्ष निकाला है कि बैंक बीमा कराने की बात स्वीकार कर चुकी है। इस स्थिति में बैंक द्वारा दूसरी किश्त न दिया जाना और बीमा कम्पनी को न प्राप्त होना इसकी जिम्मेदारी परिवादी की कतई नहीं है। जिला फोरम ने यह भी निष्कर्ष निकाला है कि विपक्षी बीमा कम्पनी व बैंक ने
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सॉंठ गॉंठ करके आपसी साजिश के तहत बीमा किश्त का जमा न होना तथा बैंक द्वारा किश्त का आहरण परिवादी के खाते से न किये जाने की बात एकदम आधारहीन और बनावटी प्रतीत होती है। अत: जिला फोरम ने अग्निकाण्ड से परिवादी की दुकान को हुई क्षति की पूर्ति हेतु परिवादी का परिवाद स्वीकार किए जाने हेतु उचित आधार माना है और तदनुसार परिवाद स्वीकार करते हुए उपरोक्त प्रकार से आदेश पारित किया है।
विपक्षी इलाहाबाद बैंक के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम ने बैंक द्वारा परिवादी को स्वीकृत ऋण के सैंक्शन लेटर पर विचार नहीं किया है, जिसमें बीमा कराने का दायित्व ऋणी का है, बैंक का नहीं। विपक्षी इलाहाबाद बैंक ने संगत वर्ष के बीमा के लिए परिवादी के खाते से कोई कटौती नहीं किया है।
विपक्षी इलाहाबाद बैंक के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश तथ्य और साक्ष्य के विरूद्ध है।
विपक्षी इलाहाबाद बैंक के विद्वान अधिवक्ता का यह भी तर्क है कि परिवादी को कथित अग्निकाण्ड में कुल क्षति 90,000/-रू0 की पायी गयी है। उसने 6,00,000/-रू0 की क्षतिपूर्ति गलत मांगा है।
विपक्षी इलाहाबाद बैंक के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि स्वयं परिवादी ने अपनी दुकान का बीमा कराने में लापरवाही की है और अपनी गलती के लिए वह बैंक को दोषी नहीं ठहरा सकता है।
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विपक्षी बीमा कम्पनी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि आक्षेपित निर्णय और आदेश जिला फोरम के दो सदस्यों द्वारा अध्यक्ष की अनुपस्थिति में पारित किया गया है। अत: जिला फोरम का आक्षेपित निर्णय और आदेश विधि विरूद्ध है।
विपक्षी बीमा कम्पनी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि कथित अग्निकाण्ड के समय परिवादी की दुकान का बीमा विपक्षी बीमा कम्पनी से नहीं था और पूर्व बीमा पालिसी समाप्त हो चुकी थी। अत: जिला फोरम ने परिवादी को क्षतिपूर्ति की अदायगी हेतु जो विपक्षी बीमा कम्पनी को उत्तरदायी माना है, वह उचित नहीं है।
परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश विधि अनुकूल है। बीमा कराने का दायित्व विपक्षी इलाहाबाद बैंक पर था। उसने विगत वर्षों में स्वयं परिवादी की दुकान का बीमा कराया था और संगत वर्ष के बीमा हेतु उसने परिवादी के खाते से प्रीमियम धनराशि की कटौती भी की थी। फिर भी उसने बीमा पालिसी प्राप्त नहीं की। अत: क्षतिपूर्ति की अदायगी हेतु विपक्षी बैंक उत्तरदायी है।
मैंने उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्तागण के तर्क पर विचार किया है।
निर्विवाद रूप से परिवादी ने अपनी दुकान हेतु विपक्षी इलाहाबाद बैंक से 6,00,000/-रू0 की ऋण सुविधा प्राप्त की थी और उक्त ऋण सुविधा के सम्बन्ध में इलाहाबाद बैंक ने सैंक्शन
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लेटर जारी किया था। बैंक का उक्त सैंक्शन लेटर अपील संख्या-2190/2015 ब्रांच मैनेजर, इलाहाबाद बैंक बनाम विन्ध्याचल शर्मा आदि के पृष्ठ 16 व 17 पर संलग्न है। इस सैंक्शन लेटर के प्रस्तर 16 में अंकित है कि, ''बीमा प्रीमियम आपके खाते के नामे करके बीमा करा लिया जायेगा, फिर भी स-समय बीमा कराने की जिम्मेदारी आपकी होगी। बीमा न होने की दशा में क्षति हेतु आप पूर्ण उत्तरदायी होंगे, बैंक किसी प्रकार की जिम्मेदारी नहीं लेगा।''
परिवादी ने परिवाद पत्र की धारा-7 में यह कथन किया है कि उसके जनरल स्टोर के दुकान के सामानों का बीमा वर्ष 2013 में प्रभावी हेतु विपक्षी संख्या-1 अर्थात् इलाहाबाद बैंक द्वारा उसके खाते से मु0 1348/-रू0 की रकम प्रीमियम के मद में जमा करने हेतु पूर्व की भांति बैंक द्वारा काट ली गयी थी और परिवादी भी आश्वस्त था कि उसकी दुकान के सामान बीमा से सुरक्षित हैं, परन्तु परिवादी अपने खाते से विपक्षी बैंक द्वारा बीमा पालिसी के प्रीमियम की उक्त कथित धनराशि डेबिट किया जाना अपनी पासबुक प्रस्तुत कर प्रमाणित नहीं कर सका है। इसके विपरीत परिवादी के खाते का जो स्टेटमेंट आफ एकाउण्ट बैंक द्वारा अपील की पत्रावली में संलग्न किया गया है, उसमें वर्ष 2013 के लिए कोई बीमा प्रीमियम की धनराशि की कटौती परिवादी के खाते से होना अंकित नहीं है। जिला फोरम के आक्षेपित निर्णय और आदेश से यह स्पष्ट है कि जिला फोरम ने अपने निर्णय में विपक्षी बैंक द्वारा वर्ष 2012-2013 के बीमा के लिए परिवादी के खाते से
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प्रीमियम धनराशि की कटौती किए जाने के सम्बन्ध में कोई विवेचना नहीं की है और न कोई निष्कर्ष निकाला है। अत: पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर यह मानने हेतु उचित आधार नहीं है कि बैंक ने परिवादी के खाते से बीमा प्रीमियम की धनराशि की कटौती की, परन्तु बीमा कम्पनी को प्रेषित नहीं किया। अत: इस सन्दर्भ में परिवाद पत्र में किया गया कथन विश्वास योग्य नहीं है।
निर्विवाद रूप से परिवादी की दुकान का विगत वर्ष का बीमा बैंक द्वारा कराया गया था और प्रीमियम की धनराशि परिवादी के खाते से काटी गयी थी, परन्तु विगत वर्ष की जो बीमा पालिसी अपील संख्या-2375/2015 यूनिवर्सल सोम्पो जनरल इंश्योरेंस कम्पनी लि0 बनाम विन्ध्याचल शर्मा व एक अन्य की पत्रावली में संलग्न की गयी है, वह स्वीकृत रूप से परिवादी की दुकान की पिछले वर्ष अर्थात् दिनांक 22.07.2011 से दिनांक 21.07.2012 तक की अवधि के लिए प्रभावी बीमा पालिसी थी। इस बीमा पालिसी का शीर्षक “BURGLARY POLICY SCHEDULE” अंकित है। इस पालिसी का प्रपोजल फार्म अपील संख्या-2375/2015 की पत्रावली का कागज संख्या-25 है। यह प्रस्ताव पत्र BURGLARY के जोखिम हेतु है। वर्ष 2011-2012 की पालिसी का कोई विवाद प्रत्यर्थी/परिवादी ने नहीं किया है। अत: यह स्पष्ट है कि पिछले वर्ष जो परिवादी की दुकान का बीमा विपक्षी बैंक ने कराया था वह आग से हुई क्षति को कवर नहीं करता था, मात्र बरग्लरी और चोरी तक
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ही सीमित था। परिवादी के ऋण का बैंक द्वारा जो सैंक्शन लेटर जारी किया गया है, उसके प्रस्तर 16 में केवल बीमा प्रीमियम परिवादी के खाते के नामे बैंक द्वारा किया जाना अंकित है, बीमा किस श्रेणी का होगा यह अंकित नहीं है। अत: पिछले वर्ष की पालिसी के आधार पर यह मानने हेतु उचित आधार है कि बैंक को जो बीमा कराना था, वह BURGLARY पालिसी का कराना था, जो आग से हुई क्षति के जोखिम को कवर नहीं करती थी। अत: वर्ष 2013 का बीमा कराने में बैंक की यदि चूक मानी जाये तो भी पिछले वर्ष की पालिसी को देखते हुए आग से हुई क्षति की पूर्ति हेतु बैंक को उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है क्योंकि जो बीमा होना था वह BURGLARY व चोरी के जोखिम का था, आग से हुई क्षति का नहीं।
वर्ष 2012-2013 का कोई प्रीमियम बीमा कम्पनी को मिला नहीं है और न ही उसने वर्ष 2012-2013 हेतु कोई पालिसी जारी की है। अत: बीमा कम्पनी को जो क्षतिपूर्ति हेतु जिला फोरम ने उत्तरदायी माना है, वह पूर्णतया विधि विरूद्ध है।
उपरोक्त विवेचना एवं ऊपर निकाले गये निष्कर्ष के आधार पर जिला फोरम का निर्णय स्पष्टतया तथ्य व विधि के विरूद्ध है। अत: दोनों अपीलें स्वीकार करते हुए जिला फोरम का आक्षेपित निर्णय और आदेश अपास्त कर परिवाद निरस्त किया जाना उचित है।
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आदेश
अपील संख्या-2190/2015 एवं अपील संख्या-2375/2015 दोनों स्वीकार की जाती हैं और जिला फोरम का आक्षेपित निर्णय और आदेश अपास्त करते हुए परिवाद निरस्त किया जाता है।
दोनों अपील में उभय पक्ष अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
अपील संख्या-2190/2015 एवं अपील संख्या-2375/2015 में धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत जमा की गयी धनराशि ब्याज सहित उक्त दोनों अपीलों के अपीलार्थी को नियमानुसार वापस कर दी जाएगी।
इस निर्णय की एक प्रति अपील संख्या-2375/2015 में भी रखी जाए।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान)
अध्यक्ष
जितेन्द्र आशु0
कोर्ट नं0-1