(सुरक्षित)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-1134/1999
(जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, वाराणसी द्वारा परिवाद संख्या-219/1996 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 01.04.1999 के विरूद्ध)
1. Union of India, through the Secretary, Department of Telecommunication, New Delhi.
2. The Superintendent of Post Offices, West Division, Cantt Varanasi.
अपीलार्थीगण/विपक्षीगण
बनाम
1. Sri Vinai Rai Son of Sri K.K. Rai, Resident of Plot No. 12, Shivaji Nagar, Mahmoor Ganj, Varanasi.
2. Sri Mukund Kumar Singh Son of Sri S.N. Singh, Plot No. 12, Shivaji Nagar Colony, Mahmoor Ganj, Varanasi.
प्रत्यर्थीगण/परिवादीगण
समक्ष:-
1. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
2. माननीय श्री विकास सक्सेना, सदस्य।
अपीलार्थीगण की ओर से : डा0 उदय वीर सिंह, विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थीगण की ओर से : श्री विकास अग्रवाल, विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक: 03.03.2021
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उद्घोषित
निर्णय
1. परिवाद संख्या-219/1996, विनय राय तथा एक अन्य बनाम यूनियन आफ इण्डिया तथा एक अन्य में विद्वान जिला उपभोक्ता फोरम/आयोग, वाराणसी द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 01.04.1999 के विरूद्ध उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम-1986 की धारा-15 के अन्तर्गत यह अपील प्रस्तुत की गई है। इस निर्णय एवं आदेश द्वारा विद्वान जिला उपभोक्ता फोरम/आयोग ने परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए विपक्षीगण को आदेशित किया है कि परिवादीगण को अंकन 1,25,000/- रूपये एवं क्षतिपूर्ति अंकन 5,000/- रूपये दो माह के अन्दर प्रदान किया जाए तथा दो माह के अन्दर उपरोक्त धनराशि अदा न करने पर 15 प्रतिशत ब्याज अदा करने का भी आदेश दिया है।
2. परिवाद पत्र के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार हैं परिवादी ने चार एल्यूमुनियम बक्सों में बंद सामान यूक्रेन (यूरोप) के लिए भेजा था, जिसका मूल्य लगभग 3,787 अमेरिकी डालर होता है। भारतीय मुद्रा में जिसका मूल्य अंकन 1,32,578.95 होता है। पार्सल से भेजा गया सामान यूक्रेन में प्राप्त नहीं हुआ। सम्पर्क करने पर विपक्षीगण के कर्मचारियों ने सही जवाब नहीं दिया, इसलिए परिवाद प्रस्तुत किया गया।
3. विपक्षीगण को यह तथ्य स्वीकार है कि परिवादी ने डाक विभाग के माध्यम से पार्सल भेजा था। ये पार्सल गन्तव्य स्थान तक नहीं पहुँचने पर परिवादी से सही पता उपलब्ध कराने के लिए कहा गया, परन्तु परिवादी द्वारा सूचना उपलब्ध नहीं कराई गई।
4. दोनों पक्षकारों की साक्ष्य पर विचार करने के पश्चात् विद्वान जिला उपभोक्ता फोरम/आयोग द्वारा यह निष्कर्ष दिया गया कि डाक विभाग की लापरवाही साबित है और इस प्रकार तदनुसार उपरोक्त वर्णित निर्णय/आदेश पारित किया गया।
5. इस निर्णय/आदेश को इन आधारों पर चुनौती दी गई है कि यह निर्णय/आदेश विधि विरूद्ध है। परिवादी की शिकायत पर ही नियम 307 के अन्तर्गत जांच फीस 10/- रूपये, प्रेषक एवं प्राप्तकर्ता का पूरा पता, खाता संख्या तथा प्रेषित किए गए माल की कीमत, वजन आदि के बारे में सूचनाएं मांगी गई थी, परन्तु परिवादी द्वारा ये सूचनाएं उपलब्ध नहीं कराई गईं। प्राप्तकर्ता का लिखित कथन भी इस बिन्दु पर प्रस्तुत नहीं किया गया कि उन्हें माल प्राप्त नहीं हुआ। नियम 124 A के अन्तर्गत परिवादी क्षतिपूर्ति प्राप्त करने के लिए अधिकृत नहीं है। स्वंय परिवादी ने पार्सल से संबंधित सूचनाएं प्रस्तुत नहीं की। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 14 (2) (a) के अनुसार अध्यक्ष द्वारा निर्णय पारित नहीं किया गया है। मंच के अध्यक्ष श्री डी.आर. सिंह 1999 में सेवानिवृत्त हो चुके थे और सदस्या श्रीमती प्रेमा देवी अध्यक्ष के रूप में कार्य नहीं कर सकती। पार्सल का बीमा नहीं कराया गया था, इसलिए इस आधार पर भी पोस्ट आफिस क्षतिपूर्ति अदा करने के लिए उत्तरदाई नहीं है।
6. अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता डा0 उदय वीर सिंह तथा प्रत्यर्थीगण के विद्वान अधिवक्ता श्री विकास अग्रवाल की बहस सुनी गई तथा प्रश्नगत निर्णय/आदेश एवं पत्रावली का अवलोकन किया गया।
7. अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता का यह तर्क है कि पोस्ट आफिस एक्ट की धारा 6 के अनुसार डाक विभाग के माध्यम से प्रेषित किए गए सामान के खोने, अनुचित व्यक्ति को प्रदान करने, देरी या नुकसान होने के आधार पर सरकार का उत्तरदायित्व नहीं होगा, जबतक कि विशिष्ठ संविदा के तहत यह उत्तरदायित्व स्वीकार न कर लिया गया हो। अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि प्रस्तुत केस पर पक्षकार के मध्य ऐसी स्पष्ट संविदा निष्पादित नहीं हुई, जिसके आधार पर इण्डियन पोस्ट आफिस एक्ट की धारा 6 के द्वितीय भाग को लागू किया जा सके।
8. प्रत्यर्थीगण के विद्वान अधिवक्ता का यह तर्क है कि पोस्ट आफिस खोए हुए सामान की कीमत तथा अन्य क्षतिपूर्ति अदा करने के लिए बाध्य हैं। नजीर भारत संघ बनाम फर्म राम गोपाल हुकुम चंद तथा अन्य AIR 1960 इलाहाबाद 672 में V.P. पार्सल प्राप्तकर्ता को दे दिया गया था, परन्तु प्रेषक को धन अदा नहीं किया गया तब पोस्ट आफिस को संविदा भंग के लिए उत्तरादाई ठहराया गया। इसी नजीर में व्यवस्था दी गई है कि V.P. आर्टिकल प्राप्तकर्ता को नहीं दिया गया और उस सामान का कुछ पता भी नहीं है तब पोस्ट आफिस का यह दायित्व है कि वह यह बताए कि उस सामान के साथ क्या हुआ और अधिनियम की धारा 6 पोस्ट आफिस को संरक्षा इस बिन्दु पर प्रदान नहीं करती।
9. एक अन्य नजीर दि सेक्रेटरी आफ स्टेट बनाम राधे लाल AIR 1924 इलाहाबाद 692 (1) में व्यवस्था दी गई है कि पार्सल से भेजा गया सामान रास्ते में खोया नहीं था, परन्तु पार्सल पर चसपा लेबल फट चुका था, इसलिए सही पते पर नहीं भेजा जा सका। इस प्रृकति के मामलों में पोस्ट आफिस एक्ट की धारा 6, 34 को लागू होना नहीं माना गया। प्रस्तुत केस में अधिनियम की धारा 6 में जिन शब्दों का उल्लेख किया गया है उनमें पार्सल का खोना, सही व्यक्ति के बजाए गलत व्यक्ति को सुपुर्द कर देना, देरी या क्षति होने के आधार पर उत्तरदायित्व से छूट प्रदान करना। यद्यपि यह छूट भी पूर्ण (Absolute) नहीं है। प्रस्तुत केस में पोस्ट आफिस द्वारा उपरोक्त वर्णित किसी भी तथ्य का उल्लेख अपने लिखित कथन में नहीं किया गया। पोस्ट आफिस का यह कहना नहीं है कि पार्सल से भेजा गया सामान खो गया था या सही पता न होने के कारण किसी अन्य व्यक्ति को दे दिया गया, रास्ते में क्षति हुई या देरी के कारण प्राप्त कराया गया। लिखित कथन में केवल यह उल्लेख किया गया कि शिकायतकर्ता को यह सूचित किया गया था कि अधूरा पता होने के कारण जांच असंभव है। पोस्ट आफिस की ओर से देरी पर भी उल्लेख नहीं किया है गया। उपरोक्त चारों स्थितियों में कोई स्थिति मौजूद नहीं है। अत: स्पष्ट है कि प्रस्तुत केस में पोस्ट आफिस एक्ट की धारा 6 का कोई लाभ अपीलार्थीगण को प्रदान नहीं किया जा सकता।
10. अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता का यह तर्क है कि स्वंय परिवादी ने वांछित सूचनाएं उपलब्ध नहीं कराई। वांछित सूचनाएं उपलब्ध कराना द्वितीय स्तर की कार्यवाही है। प्रथमत: स्वंय पोस्ट आफिस को यह जाहिर करना है कि परिवादी द्वारा जो पार्सल प्रेषित किए गए, उन पार्सल के संबंध में क्या घटना घटित हुई और चूंकि पोस्ट आफिस द्वरा अपने उत्तरदायित्व की पूर्ति नहीं की गई, इसलिए पाश्चात्यवर्ती स्थिति में परिवादी द्वारा दायित्व अधिरोपित करना पोस्ट आफिस का छदम कृत्य है। अत: इस आधार पर भी अपीलार्थीगण लाभ प्राप्त करने के लिए अधिकृत नहीं है।
11. उपरोक्त विवेचना का निष्कर्ष है कि डाक विभाग परिवादी द्वारा भेजे गए पार्सल के मूल्य की क्षतिपूर्ति करने के लिए उत्तरदायी है और पोस्ट आफिस को अधिनियम की धारा 6, 34 का कोई लाभ प्राप्त नहीं हो सकता।
12. अब इस बिन्दु पर विचार करना है कि क्या विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग, वाराणसी द्वारा पारित निर्णय/आदेश उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 14 (2) (a) के प्रावधानों के अनुसार पारित किया गया है ? नजीर गुलजारी लाल अग्रवाल बनाम अकाउण्ट आफिसर (1996) 10 सुप्रीम कोर्ट केसेस 590 में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 14 (2) & (2-A), 18, 29-A, 2(jj), 9(b), 116 & 30(2) की व्याख्या की गई है, जिसमें व्यवस्था दी गई है कि यदि मंच के अध्यक्ष का पद खाली है तब वरिष्ठतम सदस्य कार्यभार ग्रहण प्राप्त कर लेता है और इस प्रकार व्यवस्था दी गई है कि अध्यक्ष की अनुपस्थिति में मंच द्वारा पारित किया गया आदेश अवैध या शून्य नहीं होता। इस नजीर के आलोक में कहा जा सकता है कि अध्यक्ष की अनुपस्थिति में दो सदस्यों द्वारा पारित किया गया निर्णय/आदेश विधिसम्मत है। अपील तदनुसार खारिज होने योग्य है।
आदेश
13 प्रस्तुत अपील खारिज की जाती है।
14. अपील में उभय पक्ष अपना-अपना व्यय स्वंय वहन करेंगे।
(विकास सक्सेना) (सुशील कुमार)
सदस्य सदस्य
लक्ष्मन, आशु0,
कोर्ट-2