Uttar Pradesh

StateCommission

A/343/2022

ICICI Prudential Life Insurance Co. Ltd. - Complainant(s)

Versus

Vinay Kumar Yadav - Opp.Party(s)

Angrej Nath Shukla

05 Apr 2024

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/343/2022
( Date of Filing : 06 May 2022 )
(Arisen out of Order Dated 21/03/2022 in Case No. CC/268/2011 of District Gorakhpur)
 
1. ICICI Prudential Life Insurance Co. Ltd.
Mumbai
...........Appellant(s)
Versus
1. Vinay Kumar Yadav
Gorakhpur
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. JUSTICE ASHOK KUMAR PRESIDENT
 
PRESENT:
 
Dated : 05 Apr 2024
Final Order / Judgement

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ

(मौखिक)

अपील संख्‍या-343/2022

मै0 आई0सी0आई0सी0आई0 प्रूडेंशियल लाइफ इंश्‍योरेंस कम्‍पनी लि0 व एक अन्‍य

बनाम

विनय कुमार यादव पुत्र श्री विनोद कुमार यादव

समक्ष:-

माननीय न्‍यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्‍यक्ष।

अपीलार्थीगण की ओर से उपस्थित : श्री अंग्रेज नाथ शुक्‍ला,  

                              विद्वान अधिवक्‍ता।

प्रत्‍यर्थी की ओर से उपस्थित : श्री संजय कुमार वर्मा,  

                          विद्वान अधिवक्‍ता।

दिनांक: 05.04.2024

माननीय न्‍यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्‍यक्ष द्वारा उदघोषित

निर्णय

प्रस्‍तुत अपील इस न्‍यायालय के सम्‍मुख जिला उपभोक्‍ता           आयोग, गोरखपुर द्वारा परिवाद संख्‍या-268/2011 विनय कुमार यादव बनाम आई0सी0आई0सी0आई0 प्रूडेंशियल लाइफ इंश्‍योरेंश कं0लि0 व एक अन्‍य में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 21.03.2022 के विरूद्ध योजित की गयी है।

मेरे द्वारा अपीलार्थीगण की ओर से उपस्थित विद्वान अधिवक्‍ता श्री अंग्रेज नाथ शुक्‍ला एवं प्रत्‍यर्थी की ओर से उपस्थित विद्वान अधिवक्‍ता श्री संजय कुमार वर्मा को सुना गया तथा प्रश्‍नगत निर्णय एवं आदेश तथा पत्रावली पर उपलब्‍ध समस्‍त प्रपत्रों का अवलोकन किया गया।

संक्षेप में वाद के तथ्‍य इस प्रकार हैं कि परिवादी के दादा द्वारा परिवादी की शैक्षणिक एवं अन्‍य आवश्‍यकताओं की भविष्‍य में

 

 

-2-

पूर्ति हेतु विपक्षीगण से पालिसी सं0 12534778 वर्ष 2009 में ली गयी थी, जिसकी वार्षिक किस्‍त 40,000/-रू0 थी। परिवादी के दादा द्वारा ही उक्‍त किस्‍तें जमा की जाती थी। परिवादी के दादा की मृत्‍यु दिनांक 30.09.2010 को हो गयी। उस समय तक परिवादी के दादा द्वारा दो वर्ष की किस्‍त जमा की जा चुकी थी।

परिवादी का कथन है कि विपक्षी बीमा कम्‍पनी द्वारा प्रस्‍तावक की मृत्‍यु होने के उपरान्‍त बकाया किस्‍तें वेव की जानी थी एवं सम एश्‍योर्ड रकम परिवादी को दी जानी थी। विपक्षी बीमा कम्‍पनी द्वारा बीमा पालिसी का लाभ न दिये जाने के कारण परिवादी द्वारा विपक्षीगण को दिनांक 27.08.2011 को पत्र भेजा गया, परन्‍तु विपक्षीगण द्वारा कोई उत्‍तर नहीं दिया गया। अत: क्षुब्‍ध होकर परिवादी द्वारा विपक्षीगण के विरूद्ध परिवाद जिला उपभोक्‍ता आयोग के सम्‍मुख प्रस्‍तुत करते हुए वांछित अनुतोष की मांग की गयी।

विद्वान जिला उपभोक्‍ता आयोग के सम्‍मुख विपक्षीगण की ओर से लिखित उत्‍तर प्रस्‍तुत किया गया तथा मुख्‍य रूप से यह कथन किया गया कि परिवादी द्वारा गलत तथ्‍यों के आधार पर परिवाद प्रस्‍तुत किया गया। परिवादी कोई धनराशि प्राप्‍त करने का अधिकारी नहीं है। परिवादी एवं विपक्षी के बीच उपभोक्‍ता एवं सेवा प्रदाता का सम्‍बन्‍ध नहीं है। परिवादी उत्‍तराधिकारी नहीं है। यदि परिवादी को विपक्षीगण की स्‍कीम पसन्‍द नहीं थी तो उसे लुक  फ्री

 

 

-3-

पालिसी के 15 दिन के अन्‍दर बाण्‍ड वापस कर बीमा संविदा खण्डित करने का विकल्‍प था, जो परिवादी द्वारा नहीं किया गया। परिवाद निरस्‍त होने योग्‍य है।

विद्वान जिला उपभोक्‍ता आयोग द्वारा उभय पक्ष के अभिकथन एवं उपलब्‍ध साक्ष्‍यों/प्रपत्रों पर विचार करने के उपरान्‍त अपने निर्णय में समस्‍त तथ्‍यों की विस्‍तृत रूप से विवेचना करते हुए निम्‍न तथ्‍य उल्लिखित किये गये:-

''अभिलेख के अवलोकन एवं माननीय राज्य उपभोक्‍ता आयोग, लखनऊ के प्रत्यावर्तन आदेश दि० 15.01.20 के अवलोकन से जिला आयोग यह पाता है कि राज्य आयोग ने लिखा है कि प्रत्यर्थी/विपक्षीगण के कथन में स्पष्ट रूप से अंकित है कि विनय कुमार यादव अर्थात परिवादी लाइफ एश्योर्ड है, इसलिए जिला आयोग का यह निष्कर्ष विधि विरूद्ध है एवं अपीलार्थी/परिवादी और प्रत्यर्थी/विपक्षीगण बीमा कम्पनी के बीच उपभोक्ता एवं सेवा प्रदाता का सम्बन्ध नहीं है और पालिसी अपीलार्थी/परिवादी के नाम है। अतः पालिसी के सम्बन्ध में प्रत्यर्थी/विपक्षीगण की सेवा में किसी कमी हेतु परिवाद प्रस्तुत करने का उसे अधिकार है।

उल्लेखनीय है कि यह बिन्दु माननीय अपीलीय न्यायालय द्वारा स्पष्ट कर दिया गया है कि परिवादी और विपक्षी के बीच उपभोक्ता एवं सेवा प्रदाता का सम्बन्ध है, इसलिए परिवादी को परिवाद प्रस्तुत करने का अधिकार है। माननीय अपीलीय न्यायालय का उपरोक्त निष्कर्ष जिला आयोग के निष्कर्ष पर अधिभावी है, जिसमे जिला आयोग ने परिवादी और विपक्षी के बीच उपभोक्‍ता सेवा प्रदाता का सम्बन्ध नहीं माना  था।

 

 

-4-

इस आयोग को इस बिन्दु पर निर्णय देना है कि परिवादी के दादा की मृत्यु के बाद अपीलार्थी/परिवादी अपने प्रश्‍नगत बीमा पालिसी के भुगतान और छूट पाने का अधिकारी है और यह छूट प्रत्यर्थी/विपक्षीगण की बीमा कम्पनी ने उसे न देकर सेवा में कमी की है।

दोनों पक्षों के विद्वान अधिवक्‍ताओं की बहस के क्रम में परिवादी के विद्धान अधिवक्‍ता ने तर्क दिया कि बीमा प्रस्ताव पत्र जिसे परिवादी ने दाखिल किया है, में ऐसी शर्त नहीं है कि बीमा के प्रस्तावक, जो परिवादी के दादा कविलास राय यादव थे और वे बीमा के प्रिमियम का भुगतान किया था, उनकी मृत्यु के बाद बीमा की किश्‍त परित्यजित (वेव) नहीं होगी और बीमित व्यक्ति पालिसी की धनराशि प्राप्‍त करने का हकदार नहीं होगा। परिवादी ने यह कहा है कि उसके दादा कविलास राय यादव की मृत्यु दि० 03.09.10 को हो गई, जबकि उससे पहले परिवादी के दादा ने विपक्षीगण को 2 वर्ष का टर्म पालिसी किस्त जमा किया था, इस बात से विपक्षी इन्कार नहीं कर सके हैं। परिवादी के विद्धान अधिवक्ता का अगला तर्क था कि बीमा पालिसी बाण्ड परिवादी को नहीं दिया गया। बीमा पालिसी बाण्ड यदि उसे उपलब्ध कराया गया होता तो उस स्थिति में विपक्षी आपत्ति कर सकता था कि वेभर का सिद्धान्त लागू नहीं होगा। विपक्षी के विद्धान अधिवक्ता द्वारा इस तर्क का कोई जवाब नहीं दिया जा सका। ऐसी परिस्थिति में आयोग इस निष्कर्ष पर पहुंचता है कि परिवादी विनय कुमार यादव जो अपने दादा के माध्यम से बीमित थे, दादा की मृत्यु के बाद वेभर के सिद्धान्त से आच्छादित है, उनका तर्क था कि यदि आयोग परिवादी के विद्धान अधिवक्ता द्वारा उठाए गए इस तर्क से सहमत है कि बाण्ड परिवादी को प्राप्त कराने का कोई प्रमाण

 

 

-5-

विपक्षी ने नहीं दिया है, इसलिए यह प्रतीत नहीं होता कि फ्रीलुक पीरियड के अन्दर बाण्ड प्राप्ति के 15 दिन के अन्दर परिवादी बाण्ड में उल्लिखित शर्तों से असहमत होने पर पालिसी को खण्डित करने के लिए आवेदन दे सकता था। इसलिए जिला आयोग मानता है कि परिवादी के कथन को उक्त के सम्बन्ध में विपक्षी आक्षेपित करने में सक्षम नहीं है।

विपक्षी ने यह स्वीकार किया है कि परिवादी की तरफ से बीमा प्रस्ताव दि० 07.09.09 को हस्ताक्षरित हुआ, जिसके सम्बन्ध में बीमा दि० 12.09.09 को निर्गत किया गया। अतः आयोग इस निष्कर्ष पर पहुंचता है कि परिवादी का परिवाद स्वीकृत होने योग्य है और वह विपक्षी से 10 वर्ष बाद बीमित धनराशि 200000.00 रू० प्राप्त करने का हकदार है।

उपर्युक्त विवेचना के आधारों पर जिला आयोग इस निष्कर्ष पर पहुंचता है कि परिवादी एवं विपक्षीगण के बीच उपभोक्ता एवं सेवा प्रदाता का सम्बन्ध है। ऐसी स्थिति विपक्षीगण उसे पालिसी बाण्ड देने के लिए बाध्य थे। परन्तु उसने कोई ऐसा प्रमाण नहीं दिया है, जिससे यह स्पष्ट हो कि पालिसी बाण्ड परिवादी को दिया गया ताकि तथकथित शर्त उसके उपर बाध्यकारी है।''

 तदनुसार विद्वान जिला उपभोक्‍ता आयोग द्वारा परिवाद स्‍वीकार करते हुए निम्‍न आदेश पारित किया गया है:-

''उपर्युक्त विवेचना के आधारों पर परिवादी का परिवाद विरूद्ध विपक्षीगण स्वीकार किया जाता है। विपक्षीगण को आदेश दिया जाता है कि वह निर्णय व आदेश के दिनांक से 2 माह की अवधि के अन्दर बाकी किस्तों को वेव (WAIVE) करे और बीमा पालिसी के धनराशि जमा

 

 

-6-

करने की तिथि से 10 वर्ष के पश्‍चात 200000.00 (दो लाख रू०) परिवादी को प्रदान करे। इसके अतिरिक्त शारीरिक, मानसिक कष्ट के लिए 10000.00 रु० (दस हजार) एवं वाद व्यय के रूप में 6,000.00 रू० (छः हजार) की धनराशि भी परिवादी को प्रदान करे। चूक की स्थिति में विपक्षीगण से उपरोक्त समस्त धनराशि 10 प्रतिशत वार्षिक ब्याज सहित विधि अनुसार वसूल की जाएगी।''

उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्‍तागण को सुनने तथा समस्‍त          तथ्‍यों एवं परिस्थितियों को दृष्टिगत रखते हुए तथा जिला उपभोक्‍ता           आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश का परिशीलन व परीक्षण  करने के उपरान्‍त मैं इस मत का हूँ कि विद्वान जिला उपभोक्‍ता               आयोग द्वारा समस्‍त तथ्‍यों का सम्‍यक अवलोकन/परिशीलन व परीक्षण करने के उपरान्‍त विधि अनुसार निर्णय एवं आदेश पारित किया गया, जिसमें किसी प्रकार के हस्‍तक्षेप की कोई आवश्‍यकता नहीं है।

तदनुसार प्रस्‍तुत अपील निरस्‍त की जाती है।

अपीलार्थीगण द्वारा प्रत्‍यर्थी/परिवादी को सम्‍पूर्ण आदेशित/देय धनराशि इस निर्णय की तिथि से एक माह की अवधि में प्रदान की जावे अन्‍यथा की स्थिति में सम्‍पूर्ण आदेशित/देय धनराशि पर परिवाद प्रस्‍तुत किये जाने की तिथि से भुगतान की तिथि तक               12 प्रतिशत वार्षिक ब्‍याज भी देय होगा।

प्रस्‍तुत अपील में अपीलार्थीगण द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की  गयी  हो  तो  उक्‍त  जमा  धनराशि  अर्जित  ब्‍याज  सहित

 

 

-7-

सम्‍बन्धित जिला उपभोक्‍ता आयोग को यथाशीघ्र विधि के अनुसार निस्‍तारण हेतु प्रेषित की जाए।

आशुलिपि‍क से अपेक्षा की जाती है कि‍ वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।

 

     (न्‍यायमूर्ति अशोक कुमार)

अध्‍यक्ष

जितेन्‍द्र आशु0

कोर्ट नं0-1

 

 
 
[HON'BLE MR. JUSTICE ASHOK KUMAR]
PRESIDENT
 

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