Uttar Pradesh

Faizabad

CC/164/2009

Pehlwan Singh - Complainant(s)

Versus

Village Development Bank - Opp.Party(s)

04 Jan 2016

ORDER

DISTRICT CONSUMER DISPUTES REDRESSAL FORUM
Judgement of Faizabad
 
Complaint Case No. CC/164/2009
 
1. Pehlwan Singh
Sohawal Faizabad
...........Complainant(s)
Versus
1. Village Development Bank
Faizabad
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. JUSTICE MR. CHANDRA PAAL PRESIDENT
 HON'BLE MRS. MAYA DEVI SHAKYA MEMBER
 HON'BLE MR. VISHNU UPADHYAY MEMBER
 
For the Complainant:
For the Opp. Party:
ORDER

जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम फैजाबाद ।

 

उपस्थित -     (1) श्री चन्द्र पाल, अध्यक्ष
        (2) श्रीमती माया देवी शाक्य, सदस्या
(3) श्री विष्णु उपाध्याय, सदस्य

              परिवाद सं0-164/2009

               
पहलवान सिंह उम्र लगभग 60 वर्श जयराम सिंह निवासी अरथर पूरे दीवान परगना मंगलसी तहसील सोहावल जिला फैजाबाद।                                .............. परिवादी
बनाम
ग्राम्य विकास बैंक फैजाबाद द्वारा षाखा प्रबन्धक ग्राम्य विकास बैंक फैजाबाद।   
                                                                ........... विपक्षी
निर्णय दिनाॅंक 04.01.2016            
उद्घोषित द्वारा: श्रीमती माया देवी षाक्य, सदस्या।
                        निर्णय
    परिवादी के परिवाद का संक्षेप इस प्रकार है कि परिवादी सीमान्त कृशक है अपनी खेती से अपना एंव अपने परिवार वालों का भरण पोशण करता है। परिवादी ने सन् 2005 व 2006 डेरी के लिए विपक्षी के षाखा से भैंस खरीदने के लिए कर्ज लेने के वास्ते प्रार्थना पत्र दिया और सारी औपचारिकताएं पूरी होने के बाद विपक्षी के कार्यालय से अवैध धन की मांग की जाने लगी जिससे परिवादी गरीबी के कारण नहीं दे सका और विपक्षी ने परिवादी को भैंस खरीदने के लिए कोई ऋण मुहैइया नहीं कराया। दिनंाक 30-10-2008 को विपक्षी के कार्यालय से एक पत्र प्राप्त हुआ जिसमंे परिवादी द्वारा रुपये 54,000/- ऋण लेने की बात कही गयी थी और उसकी अदायगी के लिए बराबर दबाव बनाया जाने लगा। पत्र प्राप्त होने के बाद परिवादी ने ग्राम्य विकास बैंेक कार्यालय में दिनंाक 31-10-2008 को एवं ए0 आर0 कोपरेटिव में दिनंाक 09-01-2009 तथा 20-02-2009 व 08-04-2009 को प्रार्थना पत्र दिया और कहा कि परिवादी द्वारा कोई कर्ज नहीं लिया गया है, किन्तु उसके प्रार्थना पत्र पर आज तक कोई कार्यवाही नहीं हुई। परिवादी विपक्षी के कार्यालय जाकर अपनी पत्रावली का मुआइना करने का प्रयत्न किया किन्तु विपक्षी के कार्यालय में परिवादी को उसकी पत्रावली नहीं दिखाई गई। दिनंाक 21-05-2009 को परिवादी ने किसी तरीके से पत्रावली देखा तो परिवादी को मालूम हुआ परिवादी द्वारा दस्खत किये हुए कागजातों पर बैंक के कर्मचारियांे ने मिली भगत कर के रूपये 70,000/- निकाल लिये और उसी में इंष्येारेंस करना भी दिखा दिया, जब परिवादी को न तो कर्ज दिया गया और न ही उसे नियमतः भैंस खरीद कर दी गयी और किस भैंस का इंष्योरेंस कराया गया इसका भी कोई रिफेरेन्स पत्रावली पर उपलब्ध नहीं मिला। नियमतः कर्ज देने के पूर्व किसी व्यक्ति को सहकारी बैंक का सदस्य होना चाहिए। किन्तु न तो परिवाद सदस्य था और न ही परिवादी को कर्ज दिया गया और इस कारण परिवादी ने ग्राम्य विकास एंव ए0 आर0 कोपरेटिव को अपने मसले को हल करने के लिए बार बार प्रार्थना पत्र दिया किन्तु बैंक कर्मचारी के मिली भगत के कारण परिवादी के उन प्रार्थना पत्र पर कोई निर्णय नहीं हो सका। परिवादी को बैंक द्वारा नोटिस देने के बाद मानसिक यंत्रणा से गुजरना पड़ा। परिवादी को मानसिक एवं षारीरिक क्षतिपूर्ति के मद में रूपये 20,000/- तथा वाद व्यय के मद में रुपये 5,000/- दिलाया जाय तथा रूपये 70,000/- जो कर्ज परिवादी को नहीं दिया गया वह भी उसे दिलाया जाये। 
    विपक्षी ने अपना लिखित कथन दाखिल किया है तथा कथन किया है, कि विपक्षी बैंक उ0प्र0 सहकारी ग्राम विकास बैंक लि0 षाखा फैजाबाद के नाम से जाना जाता है न कि ग्राम्य विकास बैंक फैजाबाद। जब कोई भी कृशक ऋण प्राप्त करने हेतु प्रार्थना पत्र देता है जो प्रथमतः बैंक की प्रबन्ध समिति प्रस्ताव पारित करके उसको सदस्य बनाती है, सदस्य बनने के पष्चात् ऋण राषि की मार्जिन मनी सदस्य द्वारा जमा कराई जाती है और सदस्य की भूमि बैंक के पक्ष में बन्धक रखने के उपरान्त ही ऋण दिया जाता है। परिवादी के बैंक का सदस्य बन जाने के उपरान्त परिवादी को डेयरी योजना के अन्र्तगत रूपये 70,000/- तीन किस्तों में 30-09-2005 को रूपये 1,000/-, 23-09-2005 को रूपये 30,000/- व दिनंाक 25-09-2005 को रूपये 30,000/- ए/सी पेई चेक द्वारा दिया गया। जिसका खाता संख्या डी वाई/854 है। परिवादी ने ऋण लेने के बाद एक रूपया भी अपने खाते में जमा नहीं किया जिस कारण उसके विरूद्व वसूली की कार्यवाही की जा रही है। परिवादी ने ऋण प्रस्तुत करने से पूर्व कोई नोटिस अन्तर्गत धारा 117 सहकारी समितियां उत्तर प्रदेष अधिनियम के अन्र्तगत नहीं दिया है। परिवादी का परिवाद धारा 70,71 व 111 सहकारी समितियां उत्तर प्रदेष अधिनियम से बधित है। परिवादी ने वसूली की कार्यवाही से बचने के लिए परिवाद दाखिल किया है। परिवादी का परिवाद उपरोक्त तथ्य व कथनों के आधार पर निरस्त होने योग्य है विपक्षी बैंक मय ब्याज व हर्जा खर्चा पाने का अधिकारी है। 
    पत्रावली का भली भांति परिषीलन किया। परिवादी ने अपने परिवाद के समर्थन में अपना षपथ पत्र, विपक्षी द्वारा जारी नोटिस, 30-10-2008 की मूल प्रति दाखिल की है। जो षामिल पत्रावली है। विपक्षी ने अपना लिखित कथन, वरिश्ठ प्रबन्धक विधि का षपथ पत्र दाखिल किया है जो षामिल पत्रावली है। परिवादी का यह कहना कि उसने बैेंक ने भैंस ऋण के लिए बात की थी और प्रार्थना पत्र दिया था, किन्तु परिवादी को ऋण नहीं दिया गया। परिवादी ने विपक्षी बैंक की नोटिस की प्रति दाखिल की है। जिसमें परिवादी का ऋण खाता संख्या डी 48/54 दिखाया गया हैं और बकाया रुपये 54,000/- दिनांक 30.10.2008 तक बकाया दिखाया गया है। परिवादी का कथन है कि उसे कर्ज देने से पहले विपक्षी बैंक का सदस्य नहीं बनाया गया है जब कि विपक्षी ने अपने कथन में कहा है कि परिवादी को बैंक का सदस्य बनाय गया है। विपक्षी का कथन परिवादी को सदस्य बनाया जाना प्रमाणित नहीं है क्यों कि विपक्षी इस बात का कोई प्रमाण दाखिल नहीं किया है और सदस्य बनाने के बाद परिवादी से कितनी मार्जिन मनी बैंक ने जमा करायी नहीं बताया है और न ही मार्जिन मनी के बारे में कोई प्रमाण दाखिल किया है। बैंक का कहना है कि परिवादी ने अपनी भूमि बैंक के पक्ष में बंधक रखी, उसके उपरान्त उसे ऋण दिया गया, मगर बैंक ने परिवादी की भूमि व ऋण सम्बन्धी कोई कागजात व प्रमाण दाखिल नहीं किये हैं। बैंक ने परिवादी को रूपये 70,000/- तीन किस्तों ममें दिया जाना बताया है मगर विपक्षी बैंक ने अपने लिखित कथन में जो विवरण दिया है उसमंे केवल रुपये 61,000/- दिया जाना लिखा गया है। विपक्षी बैंक ने परिवादी को जो नोटिस दिया है उसमें परिवादी का ऋण खाता संख्या डी 48/54 लिखा है जब कि विपक्षी ने अपने लिखित कथन में परिवादी का ऋण खाता संख्या डी वाई 854 बताया है। बैंक का कथन है कि परिवादी ने ऋण लेने के बाद एक भी रूपया जमा नहीं किया है, इसलिए उसके विरूद्व वसूली नोटिस जारी की गयी, मगर विपक्षी बैंक ने परिवाद द्वारा ऋण लिये जाने का कोई प्रमाण दाखिल नहीं किया है। परिवादी का कथन कि उसे ऋण नहीं दिया गया, इस आधार पर सही प्रतीत होता है कि बैंक ने न तो भैंस के खरीदे जाने का रवन्ना, पषु चिकित्सक का प्रमाण पत्र, बीमा कम्पनी का कवर नोट, भैंस का टैंग नम्बर दाखिल नहीं किया है, इसलिये बैंक के कथन प्रमाणित नहीं हैं। विपक्षी ने यह भी नही बताया है कि परिवादी ने कितनी भैंस खरीदी। विपक्षी बैंक ने परिवादी द्वारा हस्ताक्षरित कोई भी कागज या प्रमाण पत्रावली में दाखिल नहीं किया। विपक्षी बैंक के द्वारा मात्र यह कह देने से कि परिवादी को तीन किस्तों में ऋण की धनराषि दी गयी है प्रमाणित नहीं होता है। विपक्षी बैंक ने परिवादी का कोई बैंक स्टेटमेंट नहीं लगाया है। इस प्रकार विपक्षी परिवादी के ़ऋण को प्रमाणित करने में असफल रहे हंै। विपक्षीगण का यह कहना है कि परिवादी का परिवाद सहकारी समितियां उत्तर प्रदेष अधिनियम की धारा 70,71 व 111 से बाधित है गलत है क्यों कि विपक्षी बैंक ने स्वयं गलत कार्य किया है। विपक्षी परिवादी द्वारा लिये गये ऋण को प्रमाणित करने में असफल रहा है और परिवादी को वसूली नोटिस जारी करके विपक्षी ने अपनी सेवा में घोर कमी की है। विपक्षी बैंक को अपना वसूली नोटिस वापस मंगाने के लिये आदेषित किया जाना आवष्यक है। परिवादी अपना परिवाद प्रमाणित करने में सफल रहा है। परिवादी का परिवाद आंषिक रूप से स्वीकार किये जाने योग्य है।     
आदेश
    परिवादी का परिवाद अंाशिक रुप से स्वीकार किया जाता है। विपक्षी परिवादी से ऋण की कोई भी धनराषि वसूल न करें। विपक्षी को आदेशित किया जाता है कि वह परिवादी कोेे क्षतिपूर्ति के मद में रुपये 5,000/- तथा परिवाद व्यय के मद में रुपये 3,000/- आदेष की दिनंाक से 30 दिन के अन्दर अदा करें। उक्त धनराषि रूपये 8,000/- निर्धारित अवधि 30 दिन में भुगतान न करने पर आदेष की दिनंाक से रुपये 8,000/- पर विपक्षी को 12 प्रतिषत साधारण वार्शिक ब्याज तारोज वसूली की दिनंाक तक परिवादी को देना होगा। विपक्षी द्वारा परिवादी को जारी वसूली नोटिस निरस्त किया जाता है।  
          (विष्णु उपाध्याय)         (माया देवी शाक्य)             (चन्द्र पाल)              
              सदस्य                  सदस्या                   अध्यक्ष      
निर्णय एवं आदेश आज दिनांक 04.01.2016 को खुले न्यायालय में हस्ताक्षरित एवं उद्घोषित किया गया।

          (विष्णु उपाध्याय)         (माया देवी शाक्य)             (चन्द्र पाल)           
              सदस्य                  सदस्या                    अध्यक्ष

 

 
 
[HON'BLE MR. JUSTICE MR. CHANDRA PAAL]
PRESIDENT
 
[HON'BLE MRS. MAYA DEVI SHAKYA]
MEMBER
 
[HON'BLE MR. VISHNU UPADHYAY]
MEMBER

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