जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम फैजाबाद ।
उपस्थित - (1) श्रीचन्द्र पाल, अध्यक्ष
(2) श्रीमती माया देवी शाक्य, सदस्या
(3) श्री विष्णु उपाध्याय, सदस्य
परिवाद सं0-48/2010
रामकुमार आयु लगभग 42 साल पुत्र रामनाथ यादव पूर्व पता म0नं0 39 लालबाग षहर व जिला-फैजाबाद हाल पता म0नं0 19 मिनी एम0 आई0 जी0 निरूपमा कालोनी स्टेनली रोड इलाहाबाद। .............. परिवादी
बनाम
सचिव अयोध्या फैजाबाद विकास प्राधिकरण फैजाबाद कार्यालय स्थित प्राधिकरण भवन निकट जिलाधिकारी आवास मोदहा चैराहा फैजाबाद। .......... विपक्षी
निर्णय दिनाॅंक 22.01.201
उद्घोषित द्वारा: श्रीमती माया देवी षाक्य, सदस्या।
निर्णय
परिवादी के परिवाद का संक्षेप इस प्रकार है कि परिवादी ने विपक्षी अयोध्या फैजाबाद विकास प्राधिकाण फैजाबाद की भाऊराव देवरस व अन्य वर्ग आवासीय योजना के तहत मिनी एम0 आई0 जी0 के लिए आवास प्राप्त करने हेतु दिनांक 16-01-2000 को आवेदन किया और पंजीकरण षुल्क के तौर पर रूपये 30,000/- विपक्षी के निेर्देष पर जमा कर दिया। परिवादी को उपरोक्त योजना के तहत आवास की कीमत लगभग सवा दो लाख रूपये बतायी गयी थी। विपक्षी ने लाट्री ड्रा के तहत दिनंाक 09-11-2000 को उक्त योजना में भवन सं0 7 आवंटित किया और दिनांक 15-12-2000 तक रूपये 30,000/- और जमा करने का निर्देष दिया। जिसका पत्र दिनंाक 17-11-2000 को भेजा गया। आवंटन सूचना में परिवादी को यह नहीं बताया गया कि भवन संख्या 7 भोैेतिक रूप से किस स्थान पर स्थित है और उसकी चैहद्दी या क्षेत्रफल कितना है। इसके बारे में कार्यालाय से पता करने पर परिवादी से कहा गया कि पहले रूपये 30,000/- जमा कीजिए तो पता चल जायेगा। परिवादी ने दिनंाक 12-12-2000 को उक्त रुपये 30,000/- विपक्षी के बैंक खाते में जमा कर केे रसीद प्राप्त कर ली। विपक्षी ने दिनांक 22.02.2001 को अपना पुनः एक पत्र भेजकर परिवादी को बताया कि भवन का अनुमानित लागत दोे लाख अठ्ठानबे हजार एक सौ हो गया है, जिसमें रुपये 60,000/- जमा धन को काटकर 2,38,100/- विपक्षी के कोश में जमा कर दंे। परिवादी की आर्थिक स्थिति कमजोर होने एवं भवन की लागत अत्यधिक बढ़ा दिये जाने के कारण तथा विपक्षी द्वारा भवन की वास्तविक स्थिति न बताने एवं बार-बार दफ्तर का चक्कर लगवाने के कारण आवंटित भवन लेने की स्थिति में नहीं रहा। परिवादी ने इस सम्बन्ध में विपक्षी को दिनंाक 27-04-2002 को आवंटन निरस्त कर जमा धनराषि वापस करने की मांग की। इस पत्र का जवाब विपक्षी द्वारा परिवादी को आज तक नहीं दिया और तरह-तरह से परेषान किया जाता रहा। परिवादी ने इस सम्बन्ध में तमाम षिकायती पत्र विपक्षी को दिये बाद में दिनंाक 20-10-2008 को जन सूचना अधिकार अधिनियम के तहत जमा धन वापसी के बारे में सूचना मांगी। विपक्षी ने गलत सूचना परिवादी को दी इस कारण परिवादी ने राज्य सूचना आयोग के समक्ष अपील प्रस्तुत की है जो अभी विचाराधीन है। परिवाद पत्र प्रस्तुत करने में देरी उपरोक्त कारणों से है। विपक्षी के रवैये से आजिज आकर कोई रास्ता न पाकर परिवादी को उपरोक्त वाद प्रस्तुत करना पड़ा। परिवादी डिप्टी कमिष्नर वाणिज्यकर के तौर पर तैनात है इस कारण उसे मानसिक आघात व सरकारी नौकरी में भी व्यवधान विपक्षी के कृत्यों के कारण हुआ। परिवादी को विपक्षी से जमा रूपये 60,000/- क्षतिपूर्ति रूपये 30,000/- तथा दोैड़ धूप में खर्च के तौर पर रूपये 10,000/-, 12 प्रतिषत ब्याज तथा परिवाद व्यय दिलाया जाय।
विपक्षी ने अपना जवाब दावा दाखिल किया है तथा कथन किया है कि परिवादी को उक्त भवन की कीमत की सूचना रूपये 2,98,100/- लिखित रूप से दी गयी थी। परिवादी को दिनंाक 22-02-2001 के पत्र द्वारा प्रष्नगत भवन का क्षेत्रफल एवं मूल्य व स्थान आदि की सूचना प्राप्त करा दी गयी है, जो परिवादी ने प्राप्त करके अपना हस्ताक्षर बनाया है। परिवादी ने अपने पत्र दिनंाक 27-04-2002 के माध्यम से अपना आवटंन निरस्त करने की मांग किया है। परिवादी के पंजीकरण दिनंाक 16-10-2000 के अनुक्रम में परिवादी को भवन संख्या-7 मिनी एम0 आई0 जी0 दिनंाक 09-11-2000 को आवंटित हुआ, जिसकी सूचना पत्रांक दिनंाक 17-11-2000 द्वारा परिवादी को दी गयी। जिसके अनुपालन में परिवादी ने आवंटन रूपये 30,000/- दिनंाक 12-12-2000 को विपक्षी के बैंक खाते में जमा किया, तत्पष्चात परिवादी को नियमानुसार किस्तों की सूचना रजिस्टर्ड पत्रंाक - 7854 के माध्यम से दिनंाक 22-01-2001 को दिया गया कि माह फरवरी 2001 से चार त्रैमासिक किस्तें रूपये 59,525/- प्रति किस्त की दर से माह नवम्बर 2001 तक समस्त किस्तें जमा करनी होगीं। उरोक्त किस्तों के विशय में सूचना प्राप्त करने के बाद ही परिवादी लापरवाही करते हुए नियमानुसार किस्तों की देयता अवधि समाप्ति होने के पष्चात दिनंाक 27-04-2004 को अपने आवेदन पत्र के माध्यम से परिवादी ने आवटित भवन संख्या -7 के निरस्त करके जमा धनराषि वापस करने की मांग विपक्षी से किया। परिवादी ने अपने समस्त आवेदन पत्रों में आवंटित सम्पत्ति एवं पंजीकरण में दर्षित पत्र का उल्लेख नहीं किया, जिससे बनी भ्रम की स्थिति के समाधान हेतु परिवादी से अभिलेखों की मांग की गयी थी। लेकिन परिवादी द्वारा सदा तथ्यों को छिपाने की दृश्टि से निम्न प्रकार कथन किया गया है। रामकुमार वास्ते राजितराम 39 लालबाग स्थायी पता ग्राम कमिया बहादुरपुर पोस्ट अखण्डनगर सुल्तानपुर का मूल निवासी है। ऐसी स्थिति में परिवादी द्वारा कोई धनराषि नहीं जमा है। यदि परिवादी ने अपना पता परिवर्तन किया था तो पता परिवर्तन को विपक्षी के संज्ञान में लाना चाहिए था। परिवादी ने ऐसा नहीं किया है। भवन पंजीकरण पुस्तिका की धारा-25 में स्पश्ट उल्लेख है कि आवंटन के पष्चात् भवन/भूखण्ड न लेने पर पंजाकरण धनराषि की 25 प्रतिषत कटौेेेती करते हुए षेश धनराषि बिना ब्याज वापस कर दी जायेगी। लेकिन परिवादी द्वारा आवंटन के तुरन्त बाद निरस्तीकरण हेतु कोई आवेदन नहीं किया जिसके कारण परिवादी कटौती के भागीदार हैं यहां तक कि किस्तें प्रारम्भ होनेे के बाद भी न तो किष्तों के रुप में कोई धनराषि परिवादी द्वारा जमा की गयी और न ही वापसी की मांग की गयी जिसकी वजह से पर्यापत समय तक विपक्षी की प्रष्नगत सम्पत्ति परिवादी के अनिर्णय की स्थिति में प्रतिबन्धित रही इस कारण किस्तों पर लगने वाले बिलम्ब ब्याज की कटौती करते हुए परिवादी के आवेदन पत्र दिनंाक 27-04-2002 के क्रम में वापसी योग्य धनराषि चेक संख्या 150563 को दिनंाक 20-06-2002 /25-01-2003 को कोरियर द्वारा परिवादी के दर्षित पते पर भेजा गया जिसे परिवादी लेने से स्वयं इन्कार कर दिया। परिवादी ने स्वयं वापसी धन न लेकर मा0 राज्य सूचना आयोग में अपील प्रस्तुत कर दिया जिसके अनुक्रम में परिवादी को चेक संख्या 083506 दिनांक 14-12-2010 को मा0 आयोग द्वारा राम कुमार परिवादी को उपलब्ध कराया जा चुका है, फिर भी परिवादी ने बदनियती से प्रस्तुत वाद दायर किया है। जो निरस्त होने योग्य है। परिवादी का परिवाद काल बाधित है जिसका कोई समुचित कारण नहीं दर्षाया गया है, इस कारण परिवाद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 24ए से बाधित है। प्रस्तुत परिवाद विपक्षी को हैरान व परेषान करने की नीयत से दायर किया गया है, जो हर्जा खर्चा विषेश धारा-26 के अधीन खारिज होने योग्य है।
पत्रावली का भली भंाति परिषीलन किया। परिवादी एवं विपक्षी द्वारा साक्ष्यों व प्रपत्रों का अवलोकन किया। परिवादी ने अपने परिवाद के समर्थन में षपथ पत्र, रुपये 30,000/- जमा किये जाने की रसीद दिनांक 16.10.2000 तथा रुपये 30,000/- जमा किये जाने की रसीद दिनांक 12.12.2000 की छाया प्रतियां, विपक्षी के पत्र दिनांक 17.11.2000 की छाया प्रति, विपक्षी के पत्र दिनांक 22.02.2001 की छाया प्रति, परिवादी के पत्र दिनांक 27-04-2002 की छाया प्रति, जनसूचना में विपक्षी द्वारा परिवादी को दी गयी सूचना के पत्र दिनांक 21.10.2008 की मूल प्रति तथा परिवादी के पत्र दिनांक 23.07.2009 की छाया प्रति दाखिल की है जो षामिल पत्रावली है। विपक्षी ने अपने पक्ष के समर्थन मंे अपना लिखित कथन तथा आलोक कुमार सचिव अयोध्या फैजाबाद विकास प्राधिकरण का षपथ पत्र दाखिल किया है जो षामिल पत्रावली है। परिवादी एवं विपक्षी द्वारा दाखिल साक्ष्यों व प्रपत्रों से प्रमाणित है कि परिवादी ने अपनी किष्तों को जमा करने का समय बीत जाने के बाद धनराषि को वापस किये जाने की मांग की थी। इस हिसाब से नियमानुसार परिवादी की जमा धनराषि में से 25 प्रतिषत कटौती करने के बाद ही परिवादी को जमा धनराषि बिना ब्याज वापस की जा सकती है। विपक्षी ने अपने लिखित कथन मंे कहा है कि परिवादी को चेक द्वारा राज्य सूचना आयोग में प्रष्नगत जमा धनराषि वापस की जा चुकी है। अतः परिवादी का विपक्षी से उपभोक्ता होने का सम्बन्ध समाप्त हो गया है। परिवादी अपना परिवाद प्रमाणित करने मंे असफल रहा है। विपक्षी ने अपनी सेवा में कोई कमी नहीं की है। परिवादी का परिवाद खारिज किये जाने योग्य है।
आदेश
परिवादी का परिवाद खारिज किया जाता है।
(विष्णु उपाध्याय) (माया देवी शाक्य) (चन्द्र पाल)
सदस्य सदस्या अध्यक्ष
निर्णय एवं आदेश आज दिनांक 22.01.2016 को खुले न्यायालय में हस्ताक्षरित एवं उद्घोषित किया गया।
(विष्णु उपाध्याय) (माया देवी शाक्य) (चन्द्र पाल)
सदस्य सदस्या अध्यक्ष