जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम फैजाबाद।
उपस्थित - (1) श्री चन्द्र पाल, अध्यक्ष
(2) श्रीमती माया देवी शाक्य, सदस्या
(3) श्री विष्णु उपाध्याय, सदस्य
परिवाद सं0-286/2014
पवन कुमार अग्रवाल पुत्र स्व0 श्री राजकुमार अग्रवाल मोहल्ला जमुनियाबाग षहर व जिला फैजाबाद। .............. परिवादी
बनाम
1. अयोध्या फैजाबाद विकास प्राधिकरण द्वारा सचिव परिक्रमा मार्ग सिविल लाइन्स षहर व जिला फैजाबाद।
2. उपाध्यक्ष अयोध्या फैजाबाद विकास प्राधिकरण परिक्रमा मार्ग सिविल लाइन्स षहर व जिला फैजाबाद। ........... विपक्षीगण
निर्णय दिनाॅंक 04.12.2015
उद्घोशित द्वारा: श्री विश्णु उपाध्याय, सदस्य।
निर्णय
परिवादी के परिवाद का संक्षेप इस प्रकार है कि परिवादी अपने स्वरोजगार व परिवार के जाविकोपार्जन के लिये चूड़ी के व्यवसाय हेतु विपक्षीगण की लायड गेट योजना में भूखण्ड के पंजीकरण हेतु आवेदन किया जिसके लिये विपक्षीगण ने पंजीकरण हेतु आवेदन आमंत्रित किये थे। जिसके अनुक्रम में परिवादी ने 20 मीटर भूखण्ड के पंजीकरण हेतु प्रार्थना पत्र विपक्षीगण के यहां दिया और निर्धारित पंजीकरण धनराषि चालान संख्या 17063 से दिनांक 27.04.2005 को विपक्षीगण के कोश में जमा किया। प्रष्नगत योजना में विपक्षीगण ने भूखण्ड संख्या 21 व 22 की रिक्तता बारे में सूचित किया। भूखण्ड संख्या 21 व 22 के सापेक्ष केवल दो ही आवेदक श्रीमती आषा रानी व परिवादी ( पवन कुमार अग्रवाल ) का पंजीकरण विपक्षीगण के द्वारा किया गया। परिवादी व आषा रानी के पंजीकरण को विपक्षीगण ने अनुमोदित किया। उक्त योजना में दो ही भूखण्ड थे और दो ही पंजीकृत व्यक्ति थे। उक्त योजना अलोकप्रिय घोशित थी और आवंटन की प्रक्रिया प्रथम आगत प्रथम स्वागत के सिद्धान्त पर की गयी थी। विपक्षीगण ने भूखण्ड संख्या 22 का आवंटन दिनांक 06.06.2005 को परिवादी के पक्ष में किया और दिनांक 18.06.2005 को आवंटन पत्र परिवादी के पक्ष में निर्गत किया। उक्त आवंटन पत्र के द्वारा परिवादी से रुपये 48,000/- की मंाग की गयी थी जिसे परिवादी ने जमा कर दिया। दिनांक 18.03.2006 को विपक्षीगण ने निबन्धन केे लिये सूचना दी जिसके विरुद्ध परिवादी ने विपक्षीगण के कोश में चालान स्वीकृत करा कर कुल धनराषि दिनांक 28.06.2007 को रुपये 1,98,822/- जमा कर दिया। भूखण्ड का वास्तविक मूल्य रुपये 1,76,451/- पंजीकरण के समय अवगत कराया गया था, जिसके सापेक्ष अन्य षुल्क सहित परिवादी से रुपये 1,98,822/- जमा कराया गया तथा विपक्षीगण ने निबन्धन हेतु स्टाम्प भी जमा करा लिया। सुसंगत षुल्क व निबन्धन के स्टाम्प जमा कराने के बाद भी विपक्षीगण ने परिवादी के पक्ष में भूखण्ड का निबन्धन नहीं किया जब कि विपक्षीगण परिवादी को निबन्धन का आष्वासन वर्श 2007 से बराबर देते रहे। भूखण्ड संख्या 21 व 22 का पंजीकरण श्रीमती आषा रानी अग्रवाल व परिवादी का एक साथ हुआ था और दोनों पंजीकृत व्यक्तियों को आवंटन पत्र निर्गत हुआ था। श्रीमती आषा रानी अग्रवाल के पक्ष में भूखण्ड संख्या 21 का निबन्धन विपक्षीगण द्वारा कर दिया गया और परिवादी के भूखण्ड का निबन्धन आज तक नहीं किया गया। जब परिवादी ने निबन्धन हेतु दबाव बनाया तो विपक्षी संख्या 1 ने दिनांक 04.02.2014 को सूचित किया कि विज्ञापन में मात्र एक भूखण्ड प्रकाषित कराया गया था जिसमें दो पंजीकरण प्राप्त हुए थे जिसमंे से भूखण्ड संख्या 21 श्रीमती आषा रानी के पक्ष में आवंटित किया गया उक्त पत्र में यह भी कहा गया कि यदि परिवादी के द्वारा पंजीकरण धनराषि के अतिरिक्त कोई धनराषि जमा की गयी हो तो उसकी मूल रसीद प्रस्तुत करें तथा पत्र मंे नीचे परिवादी की धनराषि वापस करने का निर्देष वित्त एवं लेखाधिकारी को किया गया था। दिनांक 04.02.2014 के पत्र को पढ़ने के बाद परिवादी हतप्रभ रह गया और परिवादी ने विपक्षीगण को प्रत्यावेदन दिया। वर्श 2005 से वर्श 2014 तक उक्त भूखण्ड के विरुद्ध धनराषि जमा करा कर परिवादी को भूखण्ड का आवंटन देने के बावजूद भूखण्ड का निबन्धन विपक्षीगण के द्वारा नहीं किया गया। विपक्षीगण परिवादी को भूखण्ड के निरस्तीकरण की धमकी दे रहे हैं, लेकिन भूखण्ड के आवंटन में परिवादी का कोई दोश विपक्षीगण द्वारा नहीं बताया जा रहा है। विपक्षीगण अपने अधिकारों का दुरुपयोग कर के अवैधानिक कृत्य परिवादी के प्रति कर रहे हैं, जिसका कारण विपक्षीगण ही बता सकते हैं। परिवादी ने आठ वर्श पूर्व आवंटित भूखण्ड के सापेक्ष विपक्षीगण के निर्देष के अनुसार उनके कोश में सम्पूर्ण धनराषि जमा कर दी है। जिसे विपक्षीगण स्वीकार करते हैं, मगर आवंटन करने के उपरान्त भूखण्ड का कब्जा व निबन्धन परिवादी के पक्ष में नहीं कर रहे हैं। विपक्षीगण का यह कृत्य अनुचित व्यापार व्यवहार के अन्दर आता है और विपक्षीगण ने अपनी सेवा में कमी की है। परिवादी विपक्षीगण को भूखण्ड का समस्त मूल्य अदा कर चुका है। विपक्षीगण कोे आदेषित किया जाय कि वह परिवादी के पक्ष में भूखण्ड संख्या 22 का कब्जा दें व निबन्धन करें और आवंटन निरस्त न करें। क्षतिपूर्ति विपक्षीगण से रुपये 3,00,000/- ब्याज तथा परिवाद व्यय परिवादी को दिलाया जाय।
विपक्षीगण ने अपना उत्तर पत्र प्रस्तुत किया है तथा परिवादी का स्वरोजगार व जीविकोपार्जन के लिये भूखण्ड के आवंटन से इन्कार किया है। परिवादी के परिवाद को झूठा व असत्य बताया है। उत्तरदातागण ने षासनादेष व नियमों के अन्दर ही समस्त कार्यवाही की है जो अनुचित व्यापार व्यवहार की श्रेणी में नहीं आता है। परिवादी का नाम आवंटन हेतु पंजीकरण करा लेनेे से अग्रेतर जब तक अन्य सम्पूर्ण औपचारिकतायें पूर्ण नहीं कर देता और वह भी विधि व नियमों के अन्तर्गत तब तक मान्य नहीं है। परिवादी का आवंटन व पंजीकरण त्रुटिपूर्ण व षासनादेष व नियमों के विपरीत होने के कारण उत्तरदतागण ने न तो निबन्धन किया और न ही कब्जा दिया। उत्तरदातागण ने चैक स्थित लायड गेट योजना के अन्दर व्यावसायिक भूखण्ड संख्या 21 व 22 के आवंटन के लिये प्रकाषन कराया उस प्रकाषन के परोक्ष श्रीमती आषा रानी अग्रवाल पत्नी स्व0 राज कुमार अग्रवाल व पवन कुमार अग्रवाल पुत्र स्व0 राज कुमार अग्रवाल ने व्यावसायिक भूखण्ड के आवंटन के लिये दिनंाक 27-04-2005 को पंजीकरण षुल्क रुपये 18,000/- जमा किया तदुपरान्त परिवादी का पंजीकरण दिनांक 06-06-2005 को उपाध्यक्ष महोदय द्वारा स्वीकृत किया गया, जिसकी सूचना पत्र संख्या 1956/05 द्वारा दिनांक 18-06-2005 से परिवादी को अवगत कराते हुए आवंटन धनराषि रुपये 48,000/- प्राधिकरण कोश में दिनांक 30.06.2005 को जमा करने का निर्देष सषर्त दिया कि परिवादी उक्त तिथि तक आवंटन धनराषि जमा नहीं करता है तो परिवादी का आवंटन स्वतः निरस्त माना जायेगा। लेकिन नियत तिथि 30.06.2005 तक परिवादी द्वारा आवंटन धनराषि जमा नहीं की गयी, जिसके कारण परिवादी का आवंटन स्वतः निरस्त हो गया। तय सीमा के बाद परिवादी ने उत्तरदातागण के कोश में जो भी धनराषि जमा की है वह अनियमित जमा की गयी है जिसकी जिम्मेदारी स्वयं परिवादी की है। उत्तरदातागण के सक्षम प्राधिकारी ने पत्र संख्या 1828 वि0प्रा0अ0फै0/सम्पत्ति 2004-05 दिनांक 18.09.2006 को परिवादी को सूचित किया कि परिवादी दिनांक 31.03.2006 तक अवषेश पैसा विपक्षीगण के कोश में जमा कर के निबन्धन करा ले, लेकिन परिवादी ने पुनः टाल मटोल किया, इस प्रकार परिवादी का स्वयं का कृत्य लापरवाही पूर्ण एवं उपेक्षित रहा जिसका उत्तरदायित्व स्वयं परिवादी पर है। षासनादेष व प्राधिकरण की आवंटन नियमावली के अन्तर्गत अयोध्या फैजाबाद विकास प्राधिकरण फैजाबाद परिक्षेत्र के अन्तर्गत कोई भी व्यावसायिक भूखण्ड परिवार के केवल एक सदस्य को ही आवंटित की जा सकती है। उक्त षासनादेष व नियमावली के अन्तर्गत उत्तरदातागण द्वारा परिवादी की माता श्रीमती आषा रानी पत्नी स्व0 राज कुमार अग्रवाल के नाम व्यावसायिक भूखण्ड संख्या 21 लायड गेट आवंटित कर के उनके पक्ष में निबन्धन की कार्यवाही सम्पादित कर दी गयी है। षासनादेष व प्राधिकरण की आवंटन नियमावली के विपरीत परिवादी का आवंटन दिनांक 19.09.2013 को निरस्त कर दिया गया है। उत्तर प्रदेष नगर नियोजन व विकास अधिनियम के प्राविधानों के अन्तर्गत परिवादी यदि निरस्तीकरण दिनंाक 19.09.2013 से क्षुब्ध था तो उसके विरुद्ध सक्षम फोरम में अपील कर सकता था, लेकिन परिवादी ने विधि अनुसार अपील नहीं किया। इस कारण आदेष दिनांक 19.09.2013 परिपक्व हो चुका है, जो स्टापेल/रेसजुडिकेटा के सिद्धान्त तथा धारा 3 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम से बाधित है तथा निरस्त होने योग्य है। परिवादी के पत्र दिनांक 15.05.2014 से स्पश्ट है कि परिवादी को उत्तरदातागण द्वारा आवंटन के निरस्तीकरण की जानकारी फरवरी 2014 में हो गयी थी फिर भी परिवादी ने परिवाद दाखिल कर के उत्तरदातागण की साख को धूमिल किया है व हैरान व परेषान कर रहा है। परिवादी को परिवाद दाखिल करने का कोई कार्य कारण उत्पन्न नहीं हुआ है। परिवादी का परिवाद फोरम के क्षेत्राधिकार से बाहर है। परिवादी का परिवाद समय सीमा से बाहर है। उत्तरदातागण ने हमेषा परिवादी को उसके द्वारा जमा धनराषि वापस करने का प्रयास किया लेकिन परिवादी अपना जमा धन लेने में हीला हवाली कर रहा है और अपना परिवाद प्रस्तुत कर दिया है। परिवादी ने विभिन्न तिथियों में उत्तरदातागण के कोश में व दिनांक 28-06-2006 को रुपये 1,98,822/- जमा किया, लेकित आवंटन व पंजीकरण त्रुटिपूर्ण होने के कारण पंजीकरण निरस्त करने की सूचना उत्तरदाता द्वारा परिवादी को दे कर उसे अपनी धनराषि वापस लेने को कहा गया था। जब परिवादी उत्तरदाता के कार्यालय में उपस्थित नहीं हुआ तो विपक्षीगण का प्रोसेस सर्वर परिवादी की जमा धनराषि का चेक ले कर परिवादी के निवास स्थान पर गया, परिवादी से मिला लेकिन परिवादी ने जमा धनराषि लेने से साफ इन्कार कर दिया। तत्पष्चात उत्तरदातागण ने परिवादी की जमा धनराषि का चेक डाक से उसके निवास के पते पर भेजा लेकिन पुनः परिवादी ने उसे लेने से इन्कार कर दिया। इस प्रकार परिवादी को कभी दौड़ धूप नहीं करनी पड़ी, न ही हैरान व परेषान होना पड़ा और न ही कोई षारीरिक, मानसिक व आर्थिक क्षति परिवादी का उठानी पड़ी। केवल परिवाद को मूर्त रुप देने के लिये झूठा व मनगढंन्त परिवाद दाखिल किया गया है क्यों कि परिवादी स्वयं अपना धन उत्तरदातागण के प्रयास के बावजूद नहीं ले रहा है उसमें उत्तरदातागण का कोई दोश नहीं है। परिवादी किसी प्रकार का उपषप पाने का अधिकारी नहीं है। अतः परिवादी का परिवाद विषेश हर्जा व खर्चा के साथ निरस्त किये जाने योग्य है।
पत्रावली का भली भंाति परिषीलन किया। परिवादी एवं विपक्षीगण द्वारा दाखिल साक्ष्यों व प्रपत्रों का अवलोकन किया। परिवादी ने अपने पक्ष के समर्थन मंे अपना षपथ पत्र, प्राधिकरण के कार्यालय आदेष संख्या 21668 दिनांक 06.06.2005 की छाया प्रति जिसमें दिनांक 16.08.2006 तक की टिप्पणियां व आदेष अंकित हैं, परिवादी की दी गयी चेक लिस्ट दिनंाक 15.11.2006 की छाया प्रति, प्राधिकरण के पत्र दिनांक 18.06.2005 की छाया प्रति, प्राधिकरण के पत्र संख्या 1828 दिनांक 18.03.2006 की छाया प्रति, प्राधिकरण में जमा की गयी धनराषि की रसीदों की छाया प्रतियां, परिवादी के पत्र दिनांक 09.11.2006 की छाया प्रति, प्राधिकरण के पत्र दिनांक 04.02.2014 की छाया प्रति, प्राधिकरण के पत्र दिनांक 02-07-2014 की छाया प्रति, साक्ष्य में षपथ पत्र तथा फैजाबाद विकास प्राधिकरण की आवंटन सम्बन्धी नियमावली की छाया प्रति दाखिल की है जो षामिल पत्रावली है। विपक्षीगण ने अपने पक्ष के समर्थन मंे अपना लिखित कथन तथा मुन्ना लाल पुत्र स्व0 कालूराम प्रभारी वाद, अयोध्या फैजाबाद विकास प्राधिकरण का षपथ पत्र दाखिल किया है जो षामिल पत्रावली है। मंच ने फैजाबाद विकास प्राधिकरण फैजाबाद की आवंटन नियमावली का अवलोकन किया जिसमें परिवार की परिभाशा दी गयी है के अनुसार परिवार में पति/पत्नी व अवयस्क बच्चे आयेंगे। इस प्रकार विपक्षीगण का यह कहना कि परिवादी एवं श्रीमती आषा रानी अग्रवाल एक ही परिवार की श्रेणी में आते हैं गलत है, क्यों कि परिवादी बालिग है। प्राधिकरण की आवंटन नियमावली में यह भी कहा गया है कि आवेदक के पास प्राधिकरण की किसी अन्य योजना में पहले से कोई अन्य संपत्ति नहीं होनी चाहिए, इस प्रकार परिवादी के नाम प्राधिकरण की कोई अन्य संपत्ति भी नहीं है। प्राधिकरण का यह कहना है कि प्रष्नगत योजना में एक ही भूखण्ड के लिये विज्ञापन दिया गया था किन्तु प्रष्नगत भूखण्ड के सापेक्ष दो पंजीकरण हुए थे, विपक्षीगण का यह कहना भी गलत है क्यों कि विपक्षीगण ने अपने लिखित कथन के विषेश कथन की धारा 12 में लिखा है एवं स्वीकार किया है कि भूखण्ड संख्या 21 व 22 के आवंटन के लिये प्रकाषन कराया गया था इस प्रकार यह प्रमाणित है कि विपक्षीगण के पास दो भूखण्ड थे और दो भूखण्ड के सापेक्ष दो ही आवेदन आये थे इसलिये विपक्षीगण द्वारा लाटरी निकाला जाना बताया जाना भी अवैध है। यदि प्राधिकरण के पास एक ही भूखण्ड था तो प्राधिकरण ने प्रष्नगत भूखण्ड संख्या 22 परिवादी को कैसे आवंटित कर दिया। विपक्षीगण ने अपने पत्र दिनांक 04.02.2014 में कथित किया है कि दिनांक 10.09.2013 को लाटरी निकाली गयी जिसमें श्रीमती आषा रानी अग्रवाल सफल रही और उन्हें भूखण्ड संख्या 21 आवंटित किया गया। विपक्षीगण ने लाटरी निकाले जाने की दिनांक की सूचना परिवादी को नहीं दी यदि दी होती तो परिवादी भी लाटरी के समय लाटरी निकाले जाने के स्थल पर मौजूद रहता। इसलिये विपक्षीगण का यह कहना गलत है कि विपक्षीगण ने लाटरी दिनांक 10-09-2013 को निकाली थी। विपक्षीगण ने लाटरी निकाले जाने के प्रमाण स्वरुप कोई कागजात दाखिल नहीं किये हैं। विपक्षीगण का यह कहना भी गलत है कि विपक्षीगण के पास एक ही भूखण्ड था। विपक्षीगण के पास दो भूखण्ड थे जिसमें से भूखण्ड संख्या 21 का आवंटन श्रीमती आषा रानी अग्रवाल के नाम किया गया और उसका निबन्धन भी करा दिया गया। दूसरा भूखण्ड संख्या 22 था जो विपक्षीगण ने परिवादी के नाम आवंटित किया था और परिवादी से आवंटन के बाद भूखण्ड का समस्त रुपया जमा करा लिया और निबन्धन के लिये स्टाम्प भी परिवदी से जमा करा लिये। इसके बाद नियम विरुद्ध तरीके से विपक्षीगण ने परिवादी का आवंटन दिनांक 10-09-2013 को निरस्त करते हुए दिनांक 04.02.2014 के पत्र द्वारा परिवादी को सूचित किया। यदि भूखण्ड संख्या 22 नहीं था तो परिवादी को उक्त भूखण्ड कैसे आवंटित कर दिया गया। एक भूखण्ड के लिये विज्ञापन किया जाना अलग बात है और यदि दो भूखण्ड थे और दो ही आवेदन आये थे तो विपक्षीगण को लाटरी नहीं निकालनी चाहिए थी जब कि विपक्षीगण द्वारा लाटरी का निकाला जाना भी संदिग्ध है। विपक्षीगण ने किसी अन्य को लाभ पहुंचाने के लिये परिवादी का भूखण्ड निरस्त किया है। भूखण्ड संख्या 22 आवंटित किया जाना प्रमाणित करता है कि विपक्षीगण के पास दो भूखण्ड थे और अभी भी उक्त भूखण्ड संख्या 22 रिक्त पड़ा हुआ है। विपक्षीगण ने परिवादी को पत्र दिनांक 18.03.2006 (जिसे विपक्षीगण ने अपने लिखित कथन में पत्र दिनांक 18.09.2006 कहा है) भेज कर परिवादी से यह कहा था कि 31 मार्च 2006 के पूर्व धनराषि जमा कर देते हैं तो परिवादी निबन्धन के स्टाम्प षुल्क में छूट पाने का अधिकारी होगा और निबन्धन षुल्क में छूट लेने के लिये परिवादी इस अवसर का लाभ उठाये, किन्तु परिवादी ने यदि दिनांक 30.06.2005 के बाद आवंटन धनराषि जमा कर दी गयी और जिसे विपक्षीगण ने स्वीकार कर लिया है तो परिवादी का पंजीकरण स्वतः निरस्त नहीं माना जायेगा। परिवादी ने अपने पत्र दिनांक 09.11.2006 जो विपक्षीगण के आयुक्त/सचिव को लिखा है उसमें परिवादी ने भूखण्ड की अवषेश धनराषि बताने व निबन्धन कराने का निवेदन किया है जिसे विपक्षीगण के अधिकारियों ने स्वीकृत कर के धनराषि परिवादी से जमा करा ली है, इस आधार पर भी परिवादी का पंजीकरण निरस्त नहीं माना जायेगा। परिवादी का आवंटन दिनांक 19.09.2013 को निरस्त किया गया जब कि परिवादी ने सम्पूर्ण रुपया दिनांक 26.06.2007 तक जमा कर दिया था। परिवादी का आवंटन इस आधार पर निरस्त किया गया है कि आवंटन में प्राधिकरण आवंटन नियमावली के विरुद्ध परिवादी को भूखण्ड आवंटित हो गया था। किन्तु प्राधिकरण की आवंटन नियमावली के अनुसार परिवादी का आवंटन केवल इस आधार पर निरस्त हो सकता है कि परिवादी व आषा रानी अग्रवाल एक ही परिवार के सदस्य हों जब कि परिवादी एक ही परिवार के सदस्य की परिभाशा से बाहर है, क्यों कि प्राधिकरण नियमावली में परिवार के सदस्य पति/पत्नी व अवयस्क बच्चे ही आते हैं जब कि परिवादी बालिग है। इस प्रकार विपक्षीगण ने परिवादी का आवंटन गलत तरीके व आधार पर निरस्त किया है। विपक्षीगण का कथन है कि भूखण्ड संख्या 21 का ही विज्ञापन दिया गया था जब कि मौके पर भूखण्ड संख्या 22 भी था जिसे विपक्षीगण ने परिवादी को आवंटित किया था और विपक्षीगण को उक्त भूखण्ड को निरस्त करने का अधिकार नहीं था। इस प्रकार विपक्षीगण ने परिवादी का भूखण्ड संख्या 22 निरस्त कर के अपनी सेवा में कमी की है।
विपक्षीगण का कहना है कि उत्तर प्रदेष नगर नियोजन व विकास अधिनियम के प्राविधानों के अन्तर्गत परिवादी यदि निरस्तीकरण दिनंाक 19.09.2013 से क्षुब्ध था तो उसके विरुद्ध सक्षम फोरम में अपील कर सकता था, लेकिन परिवादी ने विधि अनुसार अपील नहीं किया। इस कारण आदेष दिनांक 19.09.2013 परिपक्व हो चुका है, जो स्टापेल/रेसजुडिकेटा के सिद्धान्त तथा धारा 3 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम से बाधित है तथा निरस्त होने योग्य है। विपक्षीगण का यह कहना गलत है कि परिवादी का प्रकरण उत्तर प्रदेष नगर नियोजन व विकास अधिनियम के प्राविधानों के अन्तर्गत आता है। विपक्षीगण पर फैजाबाद विकास प्राधिकरण फैजाबाद के नियम लागू होेते हैं न कि उत्तर प्रदेष नगर नियोजन व विकास अधिनियम के, फैजाबाद विकास प्राधिकरण अपनी आवंटन नियमावली सेे बंधा हुआ है जिसमें अपील का कोई प्रावधान नहीं है। इस प्रकार विपक्षीगण ने उत्तर प्रदेष नगर नियोजन व विकास अधिनियम की बात कह कर फोरम को गुमराह करने की कोषिष की है। परिवादी पर स्टापेल/रेसजुडिकेटा लागू नहीं होता है और न ही परिवादी का परिवाद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 3 से बाधित है। विपक्षीगण ने कहा है कि उन्होंने परिवादी को अपने प्रोसेस सर्वर से रुपये वापस करने का चेक भेजा था जिसे परिवादी ने लेने से इन्कार कर दिया। प्रोसेस सर्वर विभागीय होता है, इसलिये प्रोसेस सर्वर की रिपोर्ट विष्वसनीय नहीं होती है, जब कि उक्त रिपोर्ट दाखिल भी नहीं की गयी है। विपक्षीगण द्वारा परिवादी को डाक से पैसा वापस किये जाने की पुश्टि नहीं होती है। विपक्षीगण ने डाक का कोई पत्र या कार्यालय रिपोर्ट या प्रमाण दाखिल नहीं किया है। विपक्षीगण द्वारा परिवादी का आवंटन दिनांक 19.09.2013 को निरस्त किया गया गलत है। परिवादी को यदि फरवरी 2014 मंे आवंटन निरस्त होने की जाकारी हो गयी थी तो परिवादी फरवरी 2014 के बाद 2 वर्श तक अपना परिवाद दाखिल कर सकता है इस प्रकार परिवादी का परिवाद काल बाधित नहीं है। परिवादी अपना परिवाद प्रमाणित करने में सफल रहा है। विपक्षीगण ने परिवादी का आवंटन निरस्त कर के अपनी सेवा में कमी की है। परिवादी का परिवाद विपक्षीगण के विरुद्ध आंषिक रुप से स्वीकार एवं अंाषिक रुप से खारिज किये जाने योग्य है।
आदेश
परिवादी का परिवाद विपक्षीगण के विरुद्ध अंाषिक रुप से स्वीकार एवं अंाषिक रुप से खारिज किये जाने योग्य है। विपक्षीगण को आदेषित किया जाता है कि वह परिवादी को भूखण्ड का कब्जा दें और भूखण्ड संख्या 22 का निबन्धन परिवादी के पक्ष में आदेष की दिनांक से 30 दिन के अन्दर करें। विपक्षीगण परिवादी को क्षतिपूर्ति के मद में रुपये 10,000/- तथा परिवाद व्यय के मद में रुपये 3,000/- का भी भुगतान करेंगे। निर्धारित अवधि 30 दिन में यदि विपक्षीगण परिवादी को रुपये 13,000/- का भुगतान नहीं करते हैं तो आदेष की दिनांक से तारोज वसूली की दिनांक तक उक्त धनराषि पर 9 प्रतिषत साधारण वार्शिक ब्याज भी देय होगा।
(विष्णु उपाध्याय) (माया देवी शाक्य) (चन्द्र पाल)
सदस्य सदस्या अध्यक्ष
निर्णय एवं आदेश आज दिनांक 04.12.2015 को खुले न्यायालय में हस्ताक्षरित एवं उद्घोषित किया गया।
(विष्णु उपाध्याय) (माया देवी शाक्य) (चन्द्र पाल)
सदस्य सदस्या अध्यक्ष