प्रकरण क्र.सी.सी./14/333
प्रस्तुती दिनाँक 16.10.2014
सहिन्दर पाल सिंह भाटिया, आ. त्रिलोचन सिंह भाटिया, आयु-51 वर्ष, लगभग, निवासी- न्यू दीपक नगर, दुर्ग थाना-मोहन नगर, तह व जिला-दुर्ग (छ.ग.)
- - - - परिवादी
विरूद्ध
विकास नेमा, डायरेक्टर, विक्रांत टेªडकम प्रा.लि.मि., पता-विक्रांत 02 फ्लोर, सुखेजा टाॅवर, राईट टाउन, जबलपुर (छ.ग.)
- - - - अनावेदकगण
आदेश
(आज दिनाँक 31 मार्च 2015 को पारित)
श्रीमती मैत्रेयी माथुर-अध्यक्ष
परिवादी द्वारा अनावेदक से रू. मय ब्याज, मानसिक कष्ट हेतु रू., वाद व्यय व अन्य अनुतोष दिलाने हेतु यह परिवाद धारा-12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अंतर्गत प्रस्तुत किया है।
(2) प्रकरण में अनावेदक के विरूद्ध एकपक्षीय कार्यवाही की गई।
परिवाद-
(3) परिवादी का परिवाद संक्षेप में इस प्रकार है कि अनावेदक के द्वारा परिवादी से फ्रीज़ो कंपनी की आईसक्रीम विक्रय करनें हेतु 50,00,000रू के आईसक्रीम विक्रय पर 3,86,830रू का लाभांश होनें का कथन करते हुए एक एग्रीमेंट परिवादी तथा अनावेदक के मध्य निष्पादित किया गया था, अनावेदक के द्वारा परिवादी को यह विश्वास दिलाया गया था कि उक्त कंपनी की आईसक्रीम शीघ्र ही बिक जावेगी, किंतु परिवादी के द्वारा एक वर्ष मे केवल 11,31,692रू की आईक्रीम ही विक्रय हुई जिसके कारण परिवादी लाभांश की राशि 3,86,830रू प्राप्त नहीं कर सका, जिसे परिवादी अनावेदक से प्राप्त करनें का अधिकारी है परिवादी के द्वारा अनावेदक को अपनें अधिवक्ता मार्फत नोटिस दि.13.05.14 को प्रेषित किया गया था किंतु अनावेदक के द्वारा उक्त संबंध में कोई जवाब परिवादी को नहीं दिया गया। इस प्रकार अनावेदक के द्वारा की गई सेवा मे कमी के लिए परिवादी को आईसक्रीम विक्रय में हुई क्षति राशि 3,86,830रू तथा आईसक्रीम व्यवसाय को करनें में बिजली बिल, गोदाम खर्च, स्टाफ खर्च, मासिक किराया की राशि 2,50,000रू व मानसिक एवं शारीरिक परेशानी हेतु 40,000रू इस प्रकार कुल 10,36,830रू दिलाया जावे।
(4) उभयपक्ष के अभिकथनों के आधार पर प्रकरण मे निम्न विचारणीय प्रश्न उत्पन्न होते हैं, जिनके निष्कर्ष निम्नानुसार हैं:-
1. क्या परिवादी, अनावेदक से आईसक्रीम विक्रय में हुई क्षति राशि 3,86,830रू तथा आईसक्रीम व्यवसाय को करनें में बिजली बिल, गोदाम खर्च, स्टाफ खर्च, मासिक किराया की राशि 2,50,000रू प्राप्त करने का अधिकारी है? नहीं
2. क्या परिवादी, अनावेदक से मानसिक परेशानी के एवज में 40,000रू प्राप्त करने का अधिकारी है? नहीं
3. अन्य सहायता एवं वाद व्यय? आदेशानुसार खारिज
निष्कर्ष के आधार
(5) प्रकरण का अवलोकन कर सभी विचारणीय प्रश्नों का निराकरण एक साथ किया जा रहा है।
फोरम का निष्कर्षः-
(6) प्रंकरण के अवलोकन से स्पष्ट है कि स्वयं परिवादी ने अपनें परिवाद पत्र में अपनें अभिकथित विवाद के व्यापार एवं व्यवसाय के संबंध में उल्लेख किया है तथा अभिकथित अनुबंध में ंडिस्ट्रब्यूटरशिप के संबंध में लिखा जाना उल्लेखित है। अनावेदक के द्वारा भी अभिकथित एग्रीमेंट के निष्पादन से इंकार नहीं किया गया है। अनावेदक का तर्क है कि यदि परिवादी सही तरीके सं मार्केट में अभिकथित माल सप्लाई कर 5,00,000रू का माल विक्रय करता तो उसे 5,00,000रू मार्जिन का लाभ होता परंतु परिवादी नें ऐसा नहीं किया।
(7) उपरोक्त तथ्यों से यह स्पष्ट है कि अभिकथित अनुबंध व्यापार के लिए हुआ था जो कि एनेक्सर एन.ए.3 के दस्तावेज से भी स्पष्ट होता है, जिसके अनुसार अनावेदक नें परिवादी के साथ पत्राचार किया है कि परिवादी के अभिकथित माल की मार्केटिंग नहीं की है इसलिए अनावेदक कंपनी नें परिवादी से एनेक्सर एन.ए.3 में बताई राशि की मांग की है।
(8) इन परिस्थितयों में यही सिद्ध होता है कि परिवादी नें अनावेदक से व्यवसायिक प्रयोजन हेतु माल क्रय किया था अतः परिवादी उपभोक्ता की होनें की श्रेणी में नहीं आता है।
(9) प्रस्तुत परिस्थितियों में हम परिवादी के द्वारा प्रस्तुत परिवाद स्वीकृत करनें का कोई उचित आधार नहीं पाते है तथा अनावेदक को प्रस्तुत न्यायदृष्टांतों नेश्नल इंश्योरेंस कंपनी लिमि विरूद्ध सत्यपाल तुली, स्।ॅै;छब्द्ध2003.7.160 , मेसर्स लोहिया स्टारलिंगर लिमि. विरूद्ध मेसर्स जे़सिथ कम्प्यूटर्स लिमि., 1(1991)सी.पी.जे. 145, वेस्टर्न इंडिया स्टेट मोटर्स विरूद्ध सौभागमल मीणा एवं अन्य, 1(1991)सी.पी.जे.44 तथा डालमिया रिसाॅर्टस् इंटरनेशनल प्रा.लिमि. विरूद्ध डाॅ.रंजना गुप्ता एवं अन्य, 1(1997)सी.पी.जे 63, एन.सी. का लाभ देते हुए यह परिवाद खारिज करते है।
(10) प्रकरण के तथ्य एवं परिस्थितियों को देखते हुए पक्षकार अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।