(राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0 प्र0 लखनऊ)
सुरक्षित
अपील संख्या 2889/2001
(जिला मंच द्वितीय लखनऊ द्वारा परिवाद सं0 963/2000 में पारित निर्णय/आदेश दिनांकित 22/10/2001 के विरूद्ध)
फस्ट फ्लाइट कोरियर प्राइवेट लिमिटेड, द्वारा एरिया मैनेजर, एफ-5, प्रथम तल, धन निर्माण काम्प्लेक्स, 15, अशोक मार्ग, लखनऊ।
…अपीलार्थी/विपक्षी
बनाम
विकास मिश्रा, वयस्क पुत्र स्व0 श्री रमाकर मिश्रा निवासी 4/541, विकास नगर, कुर्सी रोड, लखनऊ।
.........प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष:
1. मा0 श्री आलोक कुमार बोस, पीठासीन सदस्य ।
2. मा0 श्री संजय कुमार, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक 28-01-2015
मा0 श्री संजय कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित ।
निर्णय
प्रस्तुत अपील परिवाद सं0 963/2000 विकास मिश्रा बनाम मे0 फस्ट फ्लाइट कोरियर लि0 , विद्वान जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, द्वितीय, लखनऊ के निर्णय/आदेश दिनांक 22/10/2001 से क्षुब्ध होकर प्रस्तुत की गई है। विद्वान जिला पीठ ने विपक्षी को निर्देशित किया है कि परिवादी को एक माह के अंदर मु0 2021/00 रूपये अदा करें, अन्यथा इस समस्त धनराशि पर 15 प्रतिशत वार्षिक ब्याज देय होगा।
संक्षेप में तथ्य इस प्रकार है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने अपीलार्थी फस्ट फ्लाईट कोरियर सर्विस के माध्यम से 21/ रूपये सेवा शुल्क जमा करके कुछ अभिलेख इलाहाबाद भेजते समय लिफाफा पूरी तरह से सील किया था किन्तु इलाहाबाद में प्राप्त कराते समय वह लिफाफा फटा हुआ था और उसके अंदर रखे हुए अभिलेख गायब थे जिसकी सूचना प्रत्यर्थी/परिवादी ने अपीलार्थी को 20/07/2000 को दी किन्तु उसके द्वारा इस पर कोई कार्यवाही नहीं की गई। मूल अभिलेखों को पुन: बनवाने में उसे 10,000/ रूपये व्यय करने पड़े। विपक्षी द्वारा उसे दी जाने वाली कोरियर सेवा त्रुटिपूर्ण होने के कारण उसे जो क्षति हुई है उसके लिए परिवाद दायर कर परिवादी ने विपक्षी से मु0 20,500/ रूपये अनुतोष की मांग की। विपक्षी को लिखित उत्तर प्रस्तुत करने हेतु समय दिया गया परन्तु ऐसा न करने पर उसके विरूद्ध एक पक्षीय कार्यवाही
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करते हुए दिनांक 22/10/2001 को एक पक्षीय आदेश पारित किया गया। इसी आदेश के विरूद्ध प्रस्तुत अपील योजित की गई है।
दिनांक 19/01/2014 को अपील सुनवाई हेतु ली गई। उक्त तिथि पर पक्षकार अनुपस्िथत रहे। चूंकि अपील पिछले 14 वर्ष से निस्तारण हेतु लम्बित चली आ रही थी। अत: पीठ द्वारा यह समीचीन पाया गया कि इसका निस्तारण पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर किया जाये। दिनांक 23/10/2013, 10/01/2014, 21/04/2014 व 20/08/2014 को भी उभय पक्ष की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ। ऐसा प्रतीत होता है कि अपीलार्थी को अपील को चलाने में कोई रूचि नहीं है। आधार अपील एवं संपूर्ण पत्रावली का परिशीलन किया जिससे यह प्रतीत होता है कि विद्वान जिला पीठ द्वारा अपीलार्थी/विपक्षी को नोटिस पंजीकृत डाक से भेजी गई थी और विपक्षी पर तामिला पर्याप्त था। विपक्षी को प्रतिवाद पत्र प्रस्तुत करने के लिए अनेक अवसर दिया गया परन्तु विपक्षी की ओर से कोई उत्तर पत्र दाखिल न करने के कारण विद्वान जिला पीठ ने एकपक्षीय कार्यवाही करते हुए आदेश पारित किया है, जो विधि अनुकूल है। विद्वान जिला पीठ के निर्णय/आदेश में किसी भी प्रकार का कोई त्रुटि नहीं है। अत: इसमें हस्तक्षेप करने का कोई औचित्य नहीं है। अपील सारहीन पाया जाता है जो निरस्त करने योग्य है।
आदेश
अपील निरस्त की जाती है। उभय पक्ष अपना अपीलीय व्यय स्वयं वहन करेंगे। उभय पक्ष को इस निर्णय की सत्य प्रमाणित प्रति नियमानुसार उपलब्ध कराई जाय।
(आलोक कुमार बोस)
पीठासीन सदस्य
(संजय कुमार)
सदस्य
सुभाष चन्द्र आशु0 ग्रेड 2
कोर्ट नं0 4