(मौखिक)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-3315/2006
यूनियन आफ इण्डिया द्वारा स्टेशन मास्टर रेलवे स्टेशन, वाराणसी तथा दो अन्य
बनाम
विजय कुमार राम त्रिपाठी पुत्र त्रियम्बक राम तथा दो अन्य
समक्ष:-
1. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
2. माननीय श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य।
अपीलार्थीगण की ओर से उपस्थित : श्री एम.एच. खान।
प्रत्यर्थीगण की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक : 20.06.2024
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
1. परिवाद संख्या-218/2005, विजय कुमार राम त्रिपाठी तथा दो अन्य बनाम स्टेशन अधीक्षक, रेलवे स्टेशन वाराणसी तथा दो अन्य में विद्वान जिला आयोग, देवरिया द्वारा पारित निर्णय/आदेश दिनांक 27.11.2006 के विरूद्ध प्रस्तुत की गई अपील पर अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता श्री एम.एच. खान को सुना गया तथा प्रश्नगत निर्णय/आदेश एवं पत्रावली का अवलोकन किया गया। प्रत्यर्थीगण के विद्वान अधिवक्ता की मृत्यु होने पर कार्यालय द्वारा प्रत्यर्थीगण को सूचना प्रेषित की गई है। सूचना पत्र की एक प्रति पत्रावली पर उपलब्ध है तथा कार्यालय की टिप्पणी भी आदेश पंजिका
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के पुष्ट पर अंकित है कि प्रत्यर्थीगण को उनके अधिवक्ता की मृत्यु की सूचना प्रेषित कर दी गई है, परन्तु उनकी ओर से कोई उपस्थित नहीं है।
2. विद्वान जिला आयोग ने परिवादगण के पास वैध टिकट होने के बावजूद ट्रेन के टी.टी. द्वारा कोच से उतार दिए जाने के कारण उत्पन्न प्रताड़ना की मद में अंकन 45,000/-रू0 क्षतिपूर्ति का आदेश पारित किया है, होटल में रूकने की मद में अंकन 500/-रू0 तथा अधिवक्ता फीस की मद में अंकन 1,000/-रू0 अदा करने का ओदश पारित किया है साथ ही यह भी आदेशित किया है कि चूंकि टी.टी. द्वारा वैध टिकटधारक को कोच से उतारा गया है, इसलिए संबंधित टी.टी. के वेतन से इस राशि की वसूली की जा सकती है।
3. इस निर्णय/आदेश को इन आधारों पर चुनौती दी गई है कि टी.टी. के आचरण के संबंध में असत्य कथन किए गए हैं। विद्वान जिला आयोग, वाराणसी के समक्ष क्षेत्राधिकार उत्पन्न हुआ है, जबकि परिवाद देवरिया में प्रस्तुत किया गया है। साथ ही वाराणसी जंक्शन एन.ई.आर. प्रशासन के तहत आता है, उन्हें पक्षकार नहीं बनाया गया है। परिवादी सं0-1 को सह यात्री के साथ बर्थ उपलब्ध कराई गई थी तथा परिवादी सं0-2 एवं 3 को भी एक बर्थ संयुक्त उपयोग के लिए उपलब्ध हुई थी, जबकि परिवादीगण स्वतंत्र रूप से सीट चाहते थे। यह भी कथन किया गया है कि परिवादीगण द्वारा अपनी यात्रा पूरी की गई है, क्योंकि किसी अन्य ट्रेन से यात्रा पूरी करने का कोई सबूत प्रस्तुत नहीं किया गया है। बहस के दौरान
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अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता की ओर से यह अतिरिक्त तर्क प्रस्तुत किया गया कि विद्वान जिला आयोग ने अंकन 45,000/-रू0 की क्षतिपूर्ति का कोई वैधानिक आंकलन नहीं किया है और मनमाने तरीके से अंकन 45,000/-रू0 की क्षतिपूर्ति अधिरोपित की है, जिस पर अत्यधिक उच्च दर से ब्याज भी अदा करने का आदेश्ा दिया है।
4. परिवाद पत्र में यह कथन है कि परिवादी सं0-1 एवं 2 परिवादी सं0-3 का इलाज कराने के लिए डा0 के पास वाराणसी गए थे और वाराणसी से वापस लौटने के लिए लार रोड तक की यात्रा हेतु अपना टिकट बनवाया था, परन्तु टी.टी. द्वारा ट्रेन में नहीं चढ़ने दिया गया और यह कहकर उतार दिया गया कि स्लीपर क्लास में चढ़ने के लिए अंकन 250/-रू0 अतिरिक्त जमा करे, अन्यथा इस कोच में नहीं चढ़ सकते। यह सही है कि टिकट वाराणसी से कराया गया था, परन्तु टिकट लार रोड तक के लिए था, जो जनपद देवरिया में पड़ता है। यात्रा के दौरान यात्रा स्थल प्रारम्भ करने के स्थान से लेकर यात्रा की समाप्ति स्थल तक लगातार वाद कारण एवं क्षेत्राधिकार उपलब्ध रहता है, इस संबंध में परिवादी का अधिकार है कि वह किसी भी क्षेत्र में आने वाले सक्षम न्यायालय/ट्रिब्यूनल के समक्ष अपना वाद/परिवाद प्रस्तुत कर सकते हैं, इसलिए इस तर्क में वैधानिक बल नहीं है कि केवल वाराणसी स्थित उपभोक्ता आयोग को सुनवाई का क्षेत्राधिकार प्राप्त है।
5. यह सही है कि परिवाद पत्र में एनईआर को पक्षकार नहीं बनाया गया है और विपक्षी सं0-3 भारत संघ द्वारा प्रधान प्रबंधक
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पूर्वोत्तर रेलवे गोरखपुर को पक्षकार बनाया गया है। लिखित कथन वरिष्ठ वाणिज्यिक प्रबंधक वास्ते भारत संघ द्वारा प्रस्तुत किया गया है, इस लिखित कथन में पक्षकारों के संयोजन/असंयोजन के बिन्दु पर कोई आपत्ति नहीं की गई है, इसलिए इस बिन्दु को अपील में नहीं उठाया जा सकता।
6. लिखित कथन के अवलोकन से यह भी जाहिर होता है कि परिवादीगण द्वारा वाराणसी के अलावा लार रोड तक का स्लीपर कोच में आरक्षण नहीं कराया गया था, बल्कि स्वीकार किया गया है कि उन्हें बर्थ संख्या-39 आंशिक रूप से एवं बर्थ संख्या-47 परिवादीगण सं0-2 एवं 3 के लिए आरक्षित हुई थी, परन्तु इस आरक्षण के बावजूद संबंधित टी.टी. द्वारा परिवादीगण को ट्रेन से उतार दिया गया, जिसकी पुष्टि शपथ पत्र से की गई है, इसलिए संबंधित टी.टी. के स्तर से परिवादीगण के प्रति निश्चित रूप से सेवा में कमी की गई है, जिसके लिए वह क्षतिपूर्ति प्राप्त करने के लिए अधिकृत हैं।
7. अब इस बिन्दु पर विचार किया जाता है कि क्या अंकन 45,000/-रू0 की क्षतिपूर्ति का आदेश विधिसम्मत है ?
8. इस संबंध में विधिक स्थिति स्पष्ट है कि अपकृत्य के अंतर्गत दूरवर्ती क्षतिपूर्ति प्रदत्त किए जाने की कोई व्यवस्था नहीं है, इसलिए अंकन 45,000/-रू0 की क्षतिपूर्ति प्रदान करने का कोई औचित्य विद्वान जिला आयोग द्वारा जाहिर नहीं किया गया है। परिवादीगण के पक्ष में केवल अंकन 500/-रू0 होटल में रूकने तथा
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अंकन 1,000/-रू0 प्रत्येक यात्री खर्चा-खुराक में खर्च राशि तथा वाराणसी से लार रोड देवरिया आने तक प्रत्येक व्यक्ति खर्च राशि अंकन 1,000/-रू0 कुल 6500/-रू0 तथा मानसिक प्रताड़ना एवं शारीरिक प्रताड़ना की मद में अंकन 5,000/-रू0 कुल अंकन 11,500/-रू0 अदा करने का आदेश पारित किया जाना चाहिए था। तदनुसार प्रस्तुत अपील आंशिक रूप से स्वीकार होने योग्य है।
आदेश
9. प्रस्तुत अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है। विद्वान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश दिनांक 27.11.2006 इस सीमा तक परिवर्तित किया जाता है कि परिवादीगण केवल 11,500/-रू0 की क्षतिपूर्ति प्राप्त करने के लिए अधिकृत हैं। शेष निर्णय/आदेश पुष्ट किया जाता है।
प्रस्तुत अपील में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गई हो तो उक्त जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित संबंधित जिला आयोग को यथाशीघ्र विधि के अनुसार निस्तारण हेतु प्रेषित की जाए।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।
(सुधा उपाध्याय) (सुशील कुमार(
सदस्य सदस्य
लक्ष्मन, आशु0,
कोर्ट-2