Uttar Pradesh

StateCommission

A/1999/3267

Ansal Housing Construction Ltd - Complainant(s)

Versus

Vijay Kumar - Opp.Party(s)

Anil Kumar

08 Mar 2022

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/1999/3267
( Date of Filing : 04 May 1999 )
(Arisen out of Order Dated in Case No. of District )
 
1. Ansal Housing Construction Ltd
a
...........Appellant(s)
Versus
1. Vijay Kumar
a
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. Rajendra Singh PRESIDING MEMBER
 HON'BLE MR. SUSHIL KUMAR JUDICIAL MEMBER
 
PRESENT:
 
Dated : 08 Mar 2022
Final Order / Judgement

                                                           (सुरक्षित)

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ

अपील संख्‍या-3267/1999

(जिला उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष फोरम, द्वितीय लखनऊ द्वारा परिवाद संख्‍या-1157/1998 में पारित निणय/आदेश दिनांक 23.09.1999 के विरूद्ध)

                                    

दि जनरल मैनेजर, मै0 अंसल हाउसिंग एण्‍ड कंस्‍ट्रक्‍शन लि0, 6-तेज बहादुर सप्रू मार्ग, लखनऊ।

अपीलार्थी/विपक्षी

बनाम

विजय कुमार पुत्र श्री नानक चन्‍द्र, 3/2, विपुल खण्‍ड, गोमती न गर, लखनऊ तथा अन्‍य।

                                     प्रत्‍यर्थीगण/परिवादीगण

समक्ष:-                           

1. माननीय श्री राजेन्‍द्र सिंह, सदस्‍य।

2. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्‍य।

अपीलार्थी की ओर से     : श्री अंकित श्रीवास्‍तव, विद्वान अधिवक्‍ता।

प्रत्‍यर्थीगण की ओर से    : कोई नहीं।

दिनांक:   05.04.2022  

माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्‍य  द्वारा उद्घोषित                                                 

निर्णय

1.         परिवाद संख्‍या-1157/1998, विजय कुमार बनाम अंसल हाउसिंग में विद्वान जिला उपभोक्‍ता आयोग, द्वितीय लखनऊ द्वारा पारित प्रश्‍नगत निर्णय/आदेश दिनांक 23.09.1999 के विरूद्ध यह अपील योजित की गई है। इस निर्णय/आदेश द्वारा विद्वान जिला उपभोक्‍ता आयोग ने परिवाद स्‍वीकार करते हुए विपक्षी को आदेशित किया है कि परिवादी को अंकन 75,000/- रूपये तथा अंकन 2,000/- रूपये वाद व्‍यय के रूप में अदा किए जाए। यह भी आदेशित किया गया कि लखनऊ विकास प्राधिकरण से निबंधन की कार्यवाही 10 दिन के अन्‍दर पूरी कराई जाए तथा अतिरिक्‍त शुल्‍क वसूल करने के लिए विपक्षी को निषेधित किया गया। यह भी आदेशित किया गया कि निबंधन कार्यवाही में विलम्‍ब होने पर 06 माह तक अंकन 2,000/- रूपये प्रतिमाह और 06 माह से अधिक विलम्‍ब होने पर अंकन 3,000/- रूपये प्रतिमाह की क्षति‍पूर्ति देय होगी।

2.         परिवाद पत्र के तथ्‍यों के अनुसार परिवादी ने विपक्षी की योजना में एक भूखण्‍ड संख्‍या-के 140 जून 1990 में लेना तय किया था और 95 प्रतिशत मूल्‍य उसी समय जमा कर दिया था। दिनांक 28.01.1993 एंव 25.03.1993 द्वारा विपक्षी ने परिवादी से अतिरिक्‍त धनराशि की मांग की। परिवादी ने इस धनराशि का कारण पूछा तो विपक्षी ने अपने पत्र दिनांक 01.10.1993 द्वारा रू0 21,390.85 पैसे मांगे और साथ ही भूखण्‍ड का निबंधन परिवादी के नाम कराने के लिए शपथपत्र मांग। इसी बीच उसका भूखण्‍ड भी बदल दिया और आवंटित भूखण्‍ड के0 140 को 1224 करके उमा चौधरी को आवंटित कर दिया और परिवादी को भूखण्‍ड संख्‍या-के 1512 आवंटित कर दिया गया। विवश होकर परिवादी ने स्‍वीकृति दे दी और अंकन 63,440/- रूपये भी जमा कर दिए, परन्‍तु विपक्षी ने भूखण्‍ड फिर परिवर्तित करके 1207 कर दिया, इसलिए परिवाद प्रस्‍तुत किया गया।

3.         विपक्षी का कथन है कि लखनऊ विकास प्राधिकरण द्वारा विपक्षी से अतिरिक्‍त विकास शुल्‍क मांगा गया, इसलिए परिवादी से अतिरिक्‍त धनराशि की मांग की गई। लखनऊ विकास प्राधिकरण द्वारा योजना के ले आउट में परिवर्तन किए जाने के कारण भूखण्‍ड संख्‍या-के 140 की नयी संख्‍या-के 1512 हो गई। कुछ कानूनी दिक्‍कतों के कारण उक्‍त भूखण्‍ड नहीं दिया जा सका, उसके स्‍थान पर 1207 दिया गया, जिसे परिवादी ने स्‍वीकार कर लिया।

4.         दोनों पक्षकारों की साक्ष्‍य पर विचार करने के पश्‍चात विद्वान जिला उपभोक्‍ता आयोग द्वारा यह निष्‍कर्ष दिया गया कि निबंधन कार्यवाही आदि विपक्षी को ही लखनऊ विकास प्राधिकरण से पूरी कराकर कब्‍जा परिवादी को दिया जाना चाहिए। तदनुसार उपरोक्‍त वर्णित निर्णय/आदेश पारित किया गया।

5.         इस निर्णय/आदेश के विरूद्ध अपील इन आधारों पर प्रस्‍तुत की गई है कि विद्वान जिला उपभोक्‍ता आयोग ने अवैध तथा मनमाना निर्णय पारित किया है तथा साक्ष्‍यों पर आधारित नहीं है।

6.         अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्‍ता उपस्थित आए। प्रत्‍यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ। केवल अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्‍ता को सुना गया तथा प्रश्‍नगत निर्णय/आदेश एवं पत्रावली का अवलोकन किया गया।

7.         अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्‍ता का यह तर्क है कि परिवादी ने भूखण्‍ड योजना सहर्ष स्‍वीकार की थी तथा परिवर्तन यूनिट भी स्‍वीकार कर ली थी। वैध‍ानिक बाध्‍यता से बचने के लिए के 1512 के स्‍थान पर के 1207 आवंटित किया गया था, जो करार के अनुसार था। विद्वान जिला उपभोक्‍ता आयोग ने निर्माण मूल्‍य की मद में अंकन 50,000/- रूपये का अवार्ड पारित किया है, जो क्षेत्राधिकार से बाहर है, क्‍योंकि मूल्‍य निर्धारण का दायित्‍व विद्वान जिला उपभोक्‍ता आयोग का नहीं है। इसी प्रकार मानसिक प्रताड़ना की मद में अनावश्‍यक रूप से अंकन 25,000/- रूपये अदा करने का आदेश दिया गया है। विद्वान जिला उपभोक्‍ता आयोग ने निष्‍कर्ष दिया है कि लखनऊ विकास प्राधिकण द्वारा ले आउट प्‍लान बदले जाने के संबंध में विपक्षी द्वारा कोई साक्ष्‍य प्रस्‍तुत नहीं की गई। विद्वान जिला उपभोक्‍ता आयोग ने यह भी निष्‍कर्ष दिया है कि लखनऊ विकास प्राधिकरण के अकाउण्‍टेंट द्वारा लिखा गया था कि परिवादी को आवंटित भूखण्‍ड उमा चौधरी को आवंटित कर दिया गया और बिना पंजीकृत कराए कब्‍जा भी दे दिया गया। विपक्षी से इस तथ्‍य को स्‍पष्‍ट करने के लिए भी कहा गया। अत: विद्वान जिला उपभोक्‍ता आयोग का यह निष्‍कर्ष साक्ष्‍य पर आधारित है कि परिवादी के साथ सेवा में कमी करते हुए उसे आवंटित भूखण्‍ड उमा चौधरी को दे दिया गया। विद्वान जिला उपभोक्‍ता आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश में हस्‍तक्षेप करने का कोई औचित्‍य प्रतीत नहीं होता है। अपील तदनुसार खारिज होने योग्‍य है।

आदेश

 

8.         प्रस्‍तुत अपील खारिज की जाती है।

           पक्षकार इस अपील का व्‍यय भार स्‍वंय वहन करेंगे।

           आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।

 

 

  (राजेन्‍द्र सिंह)                           (सुशील कुमार)

   सदस्‍य                                 सदस्‍य

 

निर्णय/आदेश आज खुले न्‍यायालय में हस्‍ताक्षरित, दिनांकित होकर उद्घोषित किया गया।

                   

 

 

(राजेन्‍द्र सिंह)                           (सुशील कुमार)

 सदस्‍य                                  सदस्‍य

 

 

लक्ष्‍मन, आशु0,

    कोर्ट-2 

 
 
[HON'BLE MR. Rajendra Singh]
PRESIDING MEMBER
 
 
[HON'BLE MR. SUSHIL KUMAR]
JUDICIAL MEMBER
 

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