(सुरक्षित)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील सं0- 2779/2006
(जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, जे0पी0 नगर, अमरोहा द्वारा परिवाद सं0- 33/2005 में पारित निर्णय व आदेश दिनांक 19.09.2006 के विरुद्ध)
1. Union of India through Secretary Ministry of Post & Communication New Delhi.
2. Sr. Superintendent of Post Offices Moradabad Division Moradabad.
……..Appellants
Versus
Vidyawati Lal Singh High School, Kuui Buderana Tehsil/Pargana Amroha, Distt. J.P. Nagar through Manager Smt. Vidyawati Chauhan.
……..Respondent
समक्ष:-
मा0 श्री विकास सक्सेना, सदस्य।
मा0 श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य।
अपीलार्थीगण की ओर से उपस्थित : श्री कृष्ण पाठक, विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : श्री एस0के0 शुक्ला, विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक:- 04.09.2023
मा0 श्री विकास सक्सेना, सदस्य द्वारा उद्घोषित
निर्णय
1. परिवाद सं0- 33/2005 विद्यावती लाल सिंह बनाम भारत सरकार द्वारा गृह सचिव भारत सरकार नई दिल्ली व 02 अन्य में जिला उपभोक्ता आयोग, जे0पी0 नगर, अमरोहा द्वारा पारित निर्णय व आदेश दि0 19.09.2006 के विरुद्ध यह अपील प्रस्तुत की गई है।
2. प्रत्यर्थी/परिवादिनी का कथन परिवाद पत्र में इस प्रकार है कि प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने अपने प्रबंधक के पदीय हैसियत से मान्यता प्राप्त संस्था विद्यावती लाल सिंह, अमरोहा के पक्ष में किसान विकास पत्र दि0 19.06.1999 को क्रय किये थे। परिपक्वता तिथि पर दि0 12.07.2005 को डाकघर, अमरोहा जाने पर विपक्षी सं0- 3 असिस्टेंट पोस्ट मास्टर, प्रधान डाकघर, अमरोहा ने यह कहा कि किसान विकास पत्र नियम के विरुद्ध जारी हुये हैं तथा इस प्रकार लाभांश नहीं दिया जायेगा। कुल मूलधन ही प्रदान किया जा सकता है। प्रत्यर्थी/परिवादिनी के अनुसार नियम विरुद्ध किसान विकास पत्र जारी होने में प्रत्यर्थी/परिवादिनी का कोई दोष नहीं है तथा अपीलार्थी/विपक्षी लाभांश देने का उत्तरदायित्व रखते हैं। इस आधार पर यह परिवाद प्रस्तुत किया गया।
3. अपीलार्थी/विपक्षी की ओर से प्रतिवाद पत्र प्रस्तुत करते हुये मुख्य रूप से प्रतिवाद पत्र के प्रस्तर 4 में यह कथन किया गया है कि प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने किसान विकास पत्र लेते समय विधिवत फार्म दस्तख्त करके संस्थागत संस्थान के नाम क्रय किये थे, जिन पर कानूनन लाभांश देय नहीं है तथा प्रत्यर्थी/परिवादिनी केवल जमाशुदा धनराशि प्राप्त करने का अधिकार रखती है।
4. विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादिनी का परिवाद स्वीकार करते हुय किसान विकास पत्रों के परिपक्वता की धनराशि दिलाये जाने और रू0 500/- वाद व्यय दिलाये जाने के आदेश पारित किये गये हैं जिससे व्यथित होकर यह अपील प्रस्तुत की गई है।
5. अपील में मुख्य रूप से यह आधार लिये गये हैं कि विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग का निर्णय विधि विरुद्ध है तथा गलत तथ्यों के आधार पर पारित किया गया है। किसान विकास पत्र के विशिष्ट नियमों के आधार पर कोई संस्थान या संगठन उक्त पत्रों को नहीं खरीद सकता है। ये केवल व्यक्तिगत रूप से क्रय किये जा सकते हैं। नियमों में यह भी प्रदान किया गया है कि ऐसे मामलों में किसान विकास पत्रों का लाभांश देय नहीं है और केवल जमा की गई धनराशि ही वापस की जा सकती है।
6. हमने अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता श्री कृष्ण पाठक तथा प्रत्यर्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री एस0के0 शुक्ला को सुना। प्रश्नगत निर्णय व आदेश तथा पत्रावली पर उपलब्ध अभिलेखों का सम्यक परिशीलन किया।
7. इस पीठ के समक्ष एक मात्र प्रश्न यह है कि यदि प्रश्नगत किसान विकास पत्र दोनों पक्षों के कानूनन अनभिज्ञता के आधार पर जारी कर दिये गये हैं तो क्या इन किसान विकास पत्रों पर जारीकर्ता डाक विभाग की गलती मानते हुये नियम के विरुद्ध लाभांश प्रत्यर्थी/परिवादिनी को दिलवाया जा सकता है अथवा नहीं।
8. प्रत्यर्थी/परिवादिनी की ओर से केन्द्रीय सरकार द्वारा जारी नोटीफिकेशन सं0- G & SR सं0- 118(E, 119,120) पर बल दिया गया जिसके अनुसार कोई भी सावधि जमा किसी संस्थान के नाम से दि0 01.04.1995 के उपरांत नहीं जारी हो सकती है।
9. उक्त नोटीफिकेशन के अनुसार यदि गलती से नियम के विरुद्ध यह किसान विकास पत्र जारी कर दिया गया है तो इस पर लाभांश बीमाकर्ता को देय नहीं होगा एवं केवल जमा धनराशि ही उसे वापस की जा सकती है।
10. इस सम्बन्ध में भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 की धारा 21 यह प्रदान करती है कि भारत के अन्दर लागू विधि के विरुद्ध यदि दोनों पक्षों के भ्रमवश कोई संविदा की जाती है तो उसका वही प्रभाव होगा। किसी तथ्य की अनभिज्ञता के कारण दोनों पक्ष संविदा करते हैं तो धारा 20 भारतीय संविदा अधिनियम यह प्रदान करता है कि यदि संविदा के पक्षकार किसी तथ्य की अनभिज्ञता के कारण और किसी संविदा में कोई संविदा करते हैं तो यह संविदा शून्य होगी। इस प्रकार भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 20 तथा 21 के प्रभाव से प्रस्तुत मामले में यह संविदा शून्य मानी जा सकती है, क्योंकि पोस्ट आफिस तथा प्रत्यर्थी/परिवादिनी दोनों के द्वारा उपरोक्त नोटीफिकेशन के विधिक प्रभाव की अनभिज्ञता के आधार पर किसान विकास पत्र की संविदा की गई थी तो शून्य मानी जायेगी।
11. धारा 65 भारतीय संविदा अधिनियिम के अनुसार किसी संविदा के शून्य हो जाने पर जिस व्यक्ति द्वारा इस संविदा के अंतर्गत कोई लाभ प्राप्त किया गया है तो वह उस लाभ को वापस देने के लिए बाध्य होता है। प्रस्तुत मामले में धारा 65 भारतीय संविदा अधिनियम के अनुसार केवल पोस्ट आफिस द्वारा जमा की गई धनराशि प्राप्त की गई है, जिसे वापस करने के लिए पोस्ट आफिस बाध्य है।
12. उपरोक्त सिद्धांत को मा0 सर्वोच्च न्यायालय द्वारा Arulmighu Dhandayupaniswamy Vs. Dir. General of Post Offices & Ors. III(2011)CPJ 25(SC) में निष्कर्षित किया गया है। इस मामले में भी एक संस्थान द्वारा किसान विकास पत्र के लिये धनराशि दी गई तथा किसान विकास पत्र संस्थान के नाम जारी हो गये यह किसान विकास पत्र उपरोक्त नोटीफिकेशन की अनभिज्ञता में दोनों पक्षों ने संविदा करते हुये जारी किये गये थे। मा0 सर्वोच्च न्यायालय द्वारा यह निर्णीत किया गया कि किसान विकास पत्र जो नियमों के विरुद्ध जारी हुये हैं उनकी धनराशि वापस लौटाया जाना उचित है तथा इसका लाभांश प्रत्यर्थी/परिवादिनी उपभोक्ता को नहीं दिया जा सकता है।
13. मा0 सर्वोच्च न्यायालय के उपरोक्त निर्णय एवं भारतीय संविदा अधिनियम के उपरोक्त कथित प्रावधानों को दृष्टिगत करते हुये प्रस्तुत मामले में नियम विरुद्ध जारी किसान विकास पत्रों की जमाशुदा धनराशि अपीलार्थी/विपक्षी प्राप्त करने के अधिकारी है। किसान विकास पत्र की संविदा के अनुसार लाभांश की धनराशि उपभोक्ता प्रत्यर्थी/परिवादिनी प्राप्त करने का अधिकारिणी नहीं है। विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने उपरोक्त तथ्यों को नजरंदाज करते हुय समस्त लाभांश सहित परिपक्वता की धनराशि दिलाये जाने का आदेश पारित किया है जो अपास्त किये जाने योग्य है। तदनुसार अपील स्वीकार किये जाने योग्य है।
आदेश
14. अपील स्वीकार की जाती है। विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय व आदेश अपास्त किया जाता है।
अपील में उभयपक्ष अपना-अपना व्यय स्वयं वहन करेंगे।
प्रस्तुत अपील में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गई हो तो उक्त जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित अपीलार्थी को यथाशीघ्र विधि के अनुसार वापस की जाये।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय व आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(सुधा उपाध्याय) (विकास सक्सेना)
सदस्य सदस्य
शेर सिंह, आशु0,
कोर्ट नं0- 3