राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
(मौखिक)
अपील संख्या-203/2009
लक्ष्मण सिंह पुत्र श्री कामता प्रसाद
बनाम
दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम लि0 व एक अन्य
समक्ष:-
माननीय न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
प्रत्यर्थीगण की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक: 23.04.2024
माननीय न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील इस न्यायालय के सम्मुख जिला उपभोक्ता आयोग, चित्रकूट द्वारा परिवाद संख्या-97/2007 लक्ष्मण सिंह बनाम उपखण्ड अधिकारी दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम लि0 व एक अन्य में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 07.01.2009 के विरूद्ध योजित की गयी है। प्रस्तुत अपील विगत लगभग 15 वर्ष से लम्बित है।
उभय पक्ष की ओर से कोई उपस्थित नहीं है। मेरे द्वारा प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश तथा पत्रावली पर उपलब्ध समस्त प्रपत्रों का सम्यक परीक्षण व परिशीलन किया गया।
संक्षेप में वाद के तथ्य इस प्रकार हैं कि परिवादी द्वारा वर्ष 2002 में स्वरोजगार हेतु ग्रेनाइट स्टोन क्रेसिंग हेतु एक उद्योग लगाया गया, जिसके संचालन हेतु विद्युत संयोजन कराया गया। उक्त संयोजन में लगे मीटर संख्या-ईएस 1474 में वोल्टेज के घट-बढ़ जाने के कारण स्पार्किंग होती थी, जिसकी सूचना परिवादी द्वारा दिनांक 31.08.2007 को विपक्षी संख्या-2 अधिशाषी अभियन्ता दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम लि0 के कार्यालय में लिखित रूप से दी गयी, परन्तु विपक्षीगण द्वारा कोई कार्यवाही नहीं की गयी।
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परिवादी का कथन है कि दिनांक 12.09.2007 को रात्रि लगभग 09.00 बजे परिवादी के संयोजन में लगे मीटर में हाई वोल्टेज के कारण तेज स्पार्किंग हुई, जिससे मीटर में आग लग गयी व मीटर जल गया, जिस कारण विद्युत आपूर्ति बन्द हो गयी। परिवादी द्वारा अगले दिन दिनांक 13.09.2007 को विपक्षी संख्या-1 उपखण्ड अधिकारी दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम लि0 के कार्यालय में लिखित रूप से सूचना दी गयी तथा जले मीटर को बदलकर नया मीटर लगाने व विद्युत आपूर्ति बहाल करने का अनुरोध किया गया। परिवादी द्वारा पुन: दिनांक 15.09.2007 को विपक्षी संख्या-1 के कार्यालय में व्यक्तिगत रूप से सम्पर्क किया गया तो उनके द्वारा आश्वासन दिया गया कि एक दो दिन में मीटर बदलकर विद्युत आपूर्ति बहाल कर दी जायेगी, परन्तु उनके द्वारा कोई कार्यवाही नहीं की गयी।
परिवादी का कथन है कि परिवादी के औद्योगिक प्रतिष्ठान की विद्युत आपूर्ति बहाल न होने के कारण उसे गम्भीर रूप से आर्थिक क्षति हो रही थी तथा यह कि परिवादी द्वारा बार-बार विपक्षीगण के कार्यालय में सम्पर्क किया जाता रहा, परन्तु उनके द्वारा परिवादी को परेशान करने की नियत से जानबूझकर टालमटोल किया जाता रहा। परिवादी को अंतिम बिल दिनांकित 19.09.2007 उपभोग अवधि दिनांक 20.07.2007 से दिनांक 20.08.2007 तक देय तिथि 20.09.2007 का प्राप्त हुआ, जिसमें पिछली रीडिंग 35856 व वर्तमान रीडिंग 39692 उल्लिखित की गयी, जिसे परिवादी द्वारा दिनांक 29.09.2007 को जमा कर दिया गया। विपक्षीगण द्वारा मीटर बदलने में की जा रही देरी के कारण परिवादी को लगभग 5000/-रू0 प्रतिदिन की दर से आर्थिक क्षति पहुँच रही थी।
परिवादी का कथन है कि चूँकि मीटर विपक्षीगण की लापरवाही के कारण जल गया था, इस कारण परिवादी से मीटर की कीमत वसूल नहीं किया जाना चाहिए, परन्तु परिवादी द्वारा मीटर
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की कीमत जमा करने हेतु निवेदन किया गया ताकि विद्युत आपूर्ति के अभाव में व्यापारिक क्षति अधिक न हो, परन्तु विपक्षीगण द्वारा कोई उचित कार्यवाही नहीं की गयी। परिवादी द्वारा जले मीटर के स्थान पर नये मीटर की कीमत ड्राफ्ट के माध्यम से पंजीकृत डाक से दिनांक 09.10.2007 को विपक्षी संख्या-2 अधिशाषी अभियन्ता के कार्यालय में प्रेषित की गयी, जिसे विपक्षी संख्या-2 द्वारा स्वीकार किया गया। परिवादी द्वारा विपक्षीगण से सम्पर्क कर लिखित प्रार्थना पत्र दिनांक 18.10.2008 प्रस्तुत कर नया मीटर लगाकर विद्युत आपूर्ति करने हेतु निवेदन किया गया, परन्तु विपक्षीगण की ओर से कोई कार्यवाही नहीं की गयी, जो उनके द्वारा की गयी सेवा में कमी का प्रतीक है।
परिवादी का कथन है कि विपक्षीगण द्वारा परिवादी के संयोजन में नया मीटर लगाने व विद्युत आपूर्ति बहाल करने के बजाय फर्जी तरीके से तैयार किया गया गैरकानूनी राजस्व निर्धारण का अनन्तिम पत्र संख्या-2273 दिनांकित 01.10.2007 जरिये पंजीकृत डाक से प्रेषित किया, जिसमें निरीक्षण रिपोर्ट व राजस्व निर्धारण रिपोर्ट संलग्न नहीं थी। परिवादी द्वारा अधूरी अनन्तिम राजस्व निर्धारण पत्र पर लिखित आपत्ति दिनांक 24.11.2007 को दी गयी, परन्तु विपक्षीगण द्वारा कोई कार्यवाही नहीं की गयी। अत: क्षुब्ध होकर परिवादी द्वारा विपक्षीगण के विरूद्ध परिवाद जिला उपभोक्ता आयोग के सम्मुख प्रस्तुत करते हुए वांछित अनुतोष की मांग की गयी।
विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग के सम्मुख विपक्षीगण की ओर से प्रतिवाद पत्र प्रस्तुत किया गया तथा मुख्य रूप से यह कथन किया गया कि परिवादी द्वारा राजस्व निर्धारण की धनराशि का भुगतान न किये जाने के कारण विद्युत आपूर्ति बहाल नहीं की गयी तथा परिवादी के विरूद्ध विद्युत चोरी के कारण राजस्व निर्धारण की धनराशि का भुगतान शेष है। परिवादी विद्युत का
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व्यवसायिक उपभोग करने वाला कनेक्शन धारक है। परिवादी द्वारा दिनांक 31.08.2007 के जिस पत्र द्वारा मीटर स्पार्किंग की सूचना देने की बात कही गयी है, उस रिसीविंग में डाक रिसीविंग का कोई नम्बर व पत्रांक नम्बर अंकित नहीं है। उक्त पत्र दिनांक 31.08.2007 फर्जी व कूटरचित है। दिनांक 25.09.2007 को कनेक्शन व मीटर की जांच करने पर पाया गया कि मीटर को विद्युत चोरी के लिए जानबूझकर जला दिया गया, अत: परिवादी के विरूद्ध विद्युत अधिनियम 2003 के अन्तर्गत अपराध संख्या-750/07 थाना कोतवाली कर्वी में पंजीकृत कराया गया तथा विद्युत कनेक्शन विच्छेदित किया गया। परिवादी के विरूद्ध विद्युत चोरी का राजस्व निर्धारण रू0 6,08,592.15 किया गया, जिसे परिवादी द्वारा जमा नहीं किया गया। परिवादी राजस्व निर्धारण के विरूद्ध कोई भी अपील अपीलीय प्राधिकरण को राजस्व निर्धारण की 1/2 भाग धनराशि जमा करने के पश्चात् ही कर सकता है। बिना राजस्व निर्धारण की धनराशि के भुगतान के परिवादी विद्युत कनेक्शन जुड़वा पाने का कानूनन अधिकारी नहीं है। परिवादी द्वारा राजस्व निर्धारण की धनराशि न तो भुगतान की गयी तथा न ही अपीलीय प्राधिकरण में कोई अपील प्रस्तुत की गयी। परिवाद पोषणीय नहीं है। परिवादी किसी प्रकार के अनुतोष को प्राप्त करने का अधिकारी नहीं है। परिवाद निरस्त होने योग्य है।
विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा उभय पक्ष के अभिकथन एवं उपलब्ध साक्ष्यों/प्रपत्रों पर विचार करने के उपरान्त यह पाया गया कि प्रश्नगत प्रकरण में मीटर जलाकर विद्युत चोरी का आरोप लगाकर प्रोविजनल राजस्व निर्धारण किया गया है। प्रश्नगत अपराध की विवेचना के सम्बन्ध में चोरी का आरोप साबित नहीं किया जा सका है तथा यह कि विपक्षीगण द्वारा विद्युत चोरी का लगाया गया आरोप न्यायालय विशेष न्यायाधीश विद्युत अधिनियम
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चित्रकूट के समक्ष साबित नहीं किया जा सका। तदनुसार विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा परिवाद निर्णीत करते हुए निम्न आदेश पारित किया गया है:-
''परिवादी का परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है। विपक्षीगण द्वारा पत्रांक संख्या- 2273 दिनांक 01.10.07 के द्वारा परिवादी के विरूद्ध लगाया गया राजस्व निर्धारण निरस्त किया जाता है। दिनांक 12.9.07 से लेकर दिनांक 12.01.08 तक की अवधि के बिल निरस्त किये जाते हैं। विपक्षीगण को आदेशित किया जाता है कि परिवादी को वाद व्यय के रूप में 1000.00 और मानसिक क्षतिपूर्ति के रूप में 2000.00रू0 भी परिवादी को अदा करें।''
सम्पूर्ण तथ्यों एवं परिस्थितियों को दृष्टिगत रखते हुए तथा जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश का परिशीलन व परीक्षण करने के उपरान्त मैं इस मत का हूँ कि विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा समस्त तथ्यों का सम्यक अवलोकन/परिशीलन व परीक्षण करने के उपरान्त विधि अनुसार निर्णय एवं आदेश पारित किया गया, जिसमें किसी प्रकार के हस्तक्षेप की कोई आवश्यकता नहीं है।
तदनुसार प्रस्तुत अपील निरस्त की जाती है।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार)
अध्यक्ष
जितेन्द्र आशु0
कोर्ट नं0-1