राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
परिवाद संख्या-54/2010
मै0 सुपर कोल्ड स्टोरेज प्रा0 लि0। ...........परिवादी
बनाम
मध्याचंल विद्युत वितरण निगम लि0 व एक अन्य।
.......विपक्षीगण
समक्ष:-
1. मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्य।
2. मा0 श्री विकास सक्सेना, सदस्य।
परिवादी की ओर से उपस्थित : श्री पियूष मणि त्रिपाठी, विद्वान
अधिवक्ता।
विपक्षी की ओर से उपस्थित : श्री इसार हुसैन के सहयोगी श्री कासिम जैदी, विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक 21.04.2023
मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
1. यह परिवाद विपक्षीगण के विरूद्ध विद्युत आपूर्ति में त्रुटि के कारण अंकन 3 लाख रूपये जनरेटर चलाने में खर्च की वापसी के लिए, आलू खराब होने पर किसानों बतौर क्षतिपूर्ति दी गई राशि दो लाख रूपये की आपूर्ति के लिए। विद्युत विभाग द्वारा अवैध रूप से मीटर बाक्स हटाने के कारण नया मीटर बाक्स लगाने में हुए खर्च अंकन एक लाख रूपये की प्राप्ति के लिए, सेवा में कमी के मद में 10 लाख रूपये, अनुचित व्यापार प्रणाली के मद में 10 लाख रूपये विभिन्न स्तरों पर वाद खर्चों में हुए राशि अंकन एक लाख रूपये की प्राप्ति के लिए तथा परिवाद व्यय के रूप में अंकन रू. 50000/- की प्राप्ति के रू. 868243/- अवैध रूप से वसूली गई राशि वापसी के लिए प्रस्तुत किया गया है
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2. परिवाद के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार हैं कि परिवादी अपने शीतगृह में किसानों का आलू सुरक्षित रखते हैं, जिसके लिए 11 केवीए
लाइन से 176 केवीए का विद्युत कनेक्शन प्राप्त किया हुआ है। इस मीटर सिस्टम को 25.05.2006 को चेक किया गया और कुछ पार्टस लगाए गए, जिसका प्रमाणपत्र जारी किया गया। पुन: दि. 03.08.2006 को मीटरिंग सिस्टम चेक किया गया और इसके बाद विद्युत अधिनियम की धारा 135 के अंतर्गत प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कराई गई तथा संपूर्ण मीटर बाक्स उखाड़कर ले गए और विद्युत आपूर्ति भंग कर दी गई। परिवादी ने उच्च अधिकारियों से विद्युत विभाग के अधिशासी अभियंता से आलू बेचने के उद्देश्य से विद्युत आपूर्ति प्रारंभ करने का अनुरोध किय। जिला हार्टीकल्चर अधिकारी को भी पत्र लिखे गए। 07.08.2006 को विद्युत विभाग द्वारा रू. 3035867/- मांग पत्र भेजा गया। मांग पत्र पर आपत्ति की गई, इसके बाद 07.08.06 को अंकन रू. 752074.86 पैसे का मांग पत्र भेजा गया, जिस पर परिवादी द्वारा मा0 उच्च न्यायालय इलाहाबाद के समक्ष पिटीशन संख्या 4005/2006 प्रस्तुत की गई। 25.08.06 को मा0 उच्च न्यायालय इलाहाबाद द्वारा चार लाख रूपये जमा करने का आदेश दिया गया। परिवादी ने 29.08.06 को यह राशि जमा करा दी, इसके बावजूद विभाग द्वारा रू. 550/- विद्युत संचालन के लिए वसूले गए, तत्पश्चात 31.08.06 को विद्युत आपूर्ति प्रारंभ कर दी गई। विवेचना करने के पश्चात पुलिस द्वारा 31.08.06 को अंतिम रिपोर्ट प्रस्तुत कर दी गई। परिवादी द्वारा 176 केवीए के स्थान 495 केवीए का लोड बढ़ाने का अनुरोध किया, परन्तु विद्युत विभाग द्वारा अंकन
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रू. 468243/- की अवैध मांग की गई। परिवादी द्वारा 31.05.2008 को यह राशि जमा कर दी गई, इसके बाद पुन: 05.06.2008 को इसी
धनराशि को जमा करने का एक नोटिस प्रेषित किया गया, जबकि यह धनराशि पूर्व में जमा की जा चुकी थी। दि. 03.08.2006 से 31.08.06 तक विद्युत आपूर्ति बाधित रही, जिसके कारण परिवादी को अत्यधिक नुकसान हुआ। जनरेटर चलाने में तीन लाख रूपये खर्च हुए। आलू खराब होने पर किसानों को दो लाख रूपये की क्षतिपूर्ति दी गई। अत्यधिक मानसिक प्रताड़ना कारित हुई। विद्युत विभाग द्वारा अवैधानिक रूप से अनुचित व्यापार प्रणाली अपनायी गई, इसलिए उपरोक्त वर्णित अनुतोषों की मांग के साथ परिवाद प्रस्तुत किया गया।
3. परिवाद के समर्थन में शपथपत्र तथा एनेक्सर 1 लगायत 19 प्रस्तुत किए गए हैं।
4. विद्युत विभाग द्वारा लिखित कथन में प्रथम आपत्ति यह की गई कि परिवादी उद्योग का संचालन करता है, इसलिए उपभोक्ता परिवाद संधारणीय नहीं है। परिवादी के विरूद्ध रू. 3035687/- का विद्युत शुल्क बकाया है। विद्युत चोरी करने की रिपोर्ट दर्ज करायी गई थी। परिवादी के प्रत्यावेदन पर विद्युत शुल्क रू. 752074.86 पैसे आंका गया। यह परिवाद प्रस्तुत करने से पूर्व परिवादी द्वारा मा0 उच्च न्यायालय के समक्ष याचिका भी प्रस्तुत की गई थी। परिवादी से जो भी राशि वसूली गई है वह नियमानुसार वसूली गई है। आपराधिक तथ्यों से मुक्ति होने मात्र से विद्युत अधिनियम के अंतर्गत विद्युत शुल्क की निर्मुक्ति नहीं मानी जा सकती, इसलिए परिवादी अपने दायित्व से नहीं बच सकता।
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5. लिखित कथन के समर्थन में शपथपत्र प्रस्तुत किया गया। अन्य कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया गया।
6. दोनों पक्षकारों के विद्वान अधिवक्ताओं को सुना गया तथा पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्य का अवलोकन किया गया।
7. इस परिवाद के विनिश्चय के लिए प्रथम विनिश्चयात्मक बिन्दु यह उत्पन्न होता है कि क्या परिवादी उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 2(डी) के अंतर्गत उपभोक्ता की श्रेणी में आता है। मा0 सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सिविल अपील संख्या 5352, 5353/2007 नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लि0 बनाम हरसोलिया मोटर तथा अन्य में उपभोक्ता की व्याख्या की गई है और यह पाया कि शब्द उपभोक्ता में ऐसा व्यक्ति शामिल नहीं है जो पुन: विक्रय करने के लिए सामान क्रय करता है या व्यापारिक उद्देश्य के लिए सेवाएं प्राप्त करता है। इस अधिनियम की धारा 2(1)(एम) में किसी व्यक्ति के साथ-साथ फर्म भी शामिल है चाहे पंजीकृत हो या गैर पंजीकृत हो, जो उपभोक्ता की श्रेणी में आ सकती है। निर्णय पारित करते समय मा0 सर्वोच्च न्यायालय द्वारा लखनऊ विकास प्राधिकरण बनाम एम0के0 गुप्ता तथा लक्ष्मी इंजीनियर वर्क्स में दिए गए निर्णय का उल्लेख भी किया है और यह निष्कर्ष दिया कि कुछ परिस्थितियों में व्यापारिक उद्देश्य के लिए क्रय किए गए सामान यदि जीविकोपार्जन के लिए क्रय किए गए हैं तब भी क्रेता उपभोक्ता की श्रेणी में आता है। नजीर लीलावती कीर्ति लाल मेहता मेडिकल ट्रस्ट बनाम यूनिक शांति डेवलपर्स तथा अन्य में अस्पताल द्वारा अपने कर्मचारियों के लिए आवास क्रय किए गए थे, इस उद्देश्य के लिए अस्पताल को उपभोक्ता माना गया,
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क्योंकि फ्लैट खरीदने तथा अस्पताल की गतिविधियों में कोई संबंध नहीं था, क्योंकि फ्लैट का प्रयोग इलाज के लिए नहीं हो रहा था। नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लि0 बनाम हरसोलिया मोटर तथा अन्य में समस्त उपबंधों की व्याख्या करने के पश्चात मा0 सर्वोच्च न्यायालय द्वारा यह निष्कर्ष दिया कि क्षति की पूर्ति के लिए बीमा पालिसी प्राप्त करना व्यापारिक उद्देश्य नहीं है। कोई व्यक्ति उपभोक्ता है या नहीं यह प्रत्येक केस की परिस्थितियों पर निर्भर करता है।
8. नजीर यूपी पावर कारपोरेशन लि0 बनाम अनीस अहमद 2013(3) पेज 1 में मा0 सर्वोच्च न्यायालय द्वारा यह व्यवस्था दी गई है कि यदि निश्चित मूल्य से अधिक मूल्य की वसूली अनुचित व्यापार प्रणाली या प्रतिबंधित व्यापार प्रणाली का आरोप हो तब उपभोक्ता परिवाद संधारणीय है, साथ ही यह भी व्यवस्था दी गई है कि धारा 126, 135 व 140 के अंतर्गत कार्यवाही की गई हो तब उपभोक्ता परिवाद संधारणीय नहीं है, परन्तु चूंकि प्रस्तुत केस में परिवादी का यह कथन है कि विद्युत विभाग द्वारा मनमाने तरीके से चोरी की प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करायी गई, जबकि यथार्थ में चोरी का कोई अपराध कारित नहीं हुआ था, इसलिए पुलिस द्वारा विवेचना करने के पश्चात अंतिम रिपोर्ट प्रस्तुत कर दी गई। चूंकि प्रस्तुत केस में विद्युत विभाग द्वारा मनमाने तौर पर कार्यवाही की गई, इसलिए विद्युत विभाग अधिनियम धारा 126, 135 व 140 के प्रावधान लागू नहीं होते और यह निष्कर्ष इस तथ्य पर आधारित है कि प्रारंभ में विद्युत विभाग द्वारा रू. 3035867/- की वसूली की गई, जो बाद में
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संशोधित करते हुए केवल 7 लाख रूपये कर दी गई। यह प्रक्रिया दर्शित करता है कि विद्युत विभाग द्वारा उपभोक्ता के विरूद्ध अनुचित व्यापार प्रणाली अपनाई गई, इसलिए इस नजीर में दी गई व्यवस्था के अनुसार उपभोक्ता परिवाद संधारणीय है।
9. नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लि0 वाली उपरोक्त नजीर में मा0 सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दी गई व्यवस्था के आलोक में इस बिन्दु पर विचार करना है कि क्या विद्युत आपूर्ति का परिवादी के लाभ में सीधा संबंध है। विद्युत का उपभोग करते हुए परिवादी किसानों का आलू सुरक्षित रखता है और उसके बदले किसानों से भाड़े के रूप में कुछ शुल्क प्राप्त करता है, जिसमें शीतगृह के भवन का निर्माण मशीनों की स्थापना, लेबर आदि खर्च शामिल हैं। शीतगृह के निर्माण, मशीनों की स्थापना के पश्चात जो लाभ प्राप्त करता है वह लाभ व्यापारिक लाभ की श्रेणी में रखा जा सकता है, परन्तु इस लाभ को प्राप्त करने के लिए वह जिस विद्युत का उपभोग कर रहा है उस उपभोग को लाभ से प्रत्यक्ष नहीं जोड़ा जा सकता, इसलिए प्रस्तुत केस में उपभोक्ता परिवाद संधारणीय है। इस स्थिति में परिवादी द्वारा विद्युत विभाग के विरूद्ध अवैध, अनुचित व्यापार प्रणाली अपनाने का आरोप लगाया गया है, जो स्वयं विद्युत विभाग के आचरण से जाहिर भी होता है, जैसाकि प्रथम बार रू. 3035867/- की राशि का मांग पत्र भेजा गया जो बाद में इसे एक चौथाई से भी कम करते हुए केवल 7 लाख रूपये तक ही सीमित कर दिया गया, अत: उपरोक्त विवेचना का निष्कर्ष है कि प्रस्तुत केस में उपभोक्ता परिवाद संधारणीय है।
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10. अब इस बिन्दु पर विचार करना है कि परिवादी किस अनुतोष को प्राप्त करने के लिए अधिकृत है। चूंकि परिवादी के विरूद्ध विद्युत चोरी का कोई आरोप नहीं पाया गया। परिवादी के परिसर से मीटर अवैध रूप से उखाड़ा गया, परिवादी द्वारा अपना मीटर स्थापित किया गया, विद्युत आपूर्ति भी अवैध रूप से बाधित की गई, इसलिए परिवादी को व्यापारिक नुकसान हुआ। चूंकि विद्युत चोरी का दायित्व साबित नहीं है, इसलिए परिवादी से जो राशि वसूल की गई है परिवादी उस राशि को वापस प्राप्त करने के लिए अधिकृत है, परन्तु इस राशि पर 24 प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से ब्याज की मांग करना अनुचित है। यह राशि केवल 06 प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से अदा करने का आदेश दिया जाना उचित है। परिवादी द्वारा विद्युत आपूर्ति में बाधा के दौरान जनरेटर में खर्च में तीन लाख रूपये की मांग की गई है, परन्तु इस अवधि में विद्युत शुल्क भी परिवादी द्वारा देय होता, इसलिए यह राशि 50 प्रतिशत की दर से परिवादी को प्राप्त कराई जा सकती है, अत: परिवादी इस मद में अंकन रू. 150000/- प्राप्त करने के लिए अधिकृत है।
11. परिवादी द्वारा श-शपथपत्र साबित किया गया है कि विद्युत आपूर्ति में बाधा के कारण जो विद्युत विभाग की अनुचित व्यापार प्रणाली के कारण घटित हुई है, आलू का नुकसान हुआ है और किसानों को दो लाख रूपये की क्षतिपूर्ति अदा करनी पड़ी, इस तथ्य को श-शपथ साबित किया गया है, इसलिए परिवादी इस मद में अंकन रू. 200000/- की क्षतिपूर्ति प्राप्त करने के लिए अधिकृत है।
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12. परिवादी ने श-शपथ साबित किया है कि विपक्षी द्वारा मीटर सिस्टम उखाड़ा गया, जो परिवादी द्वारा पुन: स्थापित किया गया और एक लाख रूपये खर्च हुए, क्योंकि चोरी का कोई तथ्य साबित नहीं है, इसलिए यह आरोप भी साबित है। विद्युत विभाग द्वारा मनमाने तौर
पर मीटर सिस्टम को उखाड़ा गया। परिवादी का श-शपथ बयान है कि पुन: सिस्टम को स्थापित करने के लिए एक लाख रूपये खर्च हुए हैं।
13. परिवादी द्वारा मानसिक प्रताड़ना के मद में 10 लाख रूपये तथा अनुचित व्यापार प्रणाली के मद में 10 लाख रूपये की मांग की गई है, परन्तु यह मांग अनुचित है। चूंकि अनुचित व्यापार प्रणाली का दायित्व विद्युत विभाग के कर्मचारियों के आचरण के अनुसार स्थापित है। परिवादी के विरूद्ध असत्य रिपोर्ट दर्ज कराई गई। इसी अवसर पर विद्युत विभाग के अधिवक्ता के इस तर्क का उल्लेख करना आवश्यक होगा कि किसी आपराधिक विचारण में निर्मुक्ति का तात्पर्य यह नहीं है कि विद्युत शुल्क के दायित्व से परिवादी उन्मोचित हो चुका है, परन्तु प्रस्तुत केस में परिवादी के विरूद्ध आरोप पत्र ही पेश नहीं हुए यानी विवेचना में इस स्तर का मामला नहीं पाया गया कि परिवादी के विरूद्ध आरोप पत्र तक प्रेषित किए जा सके, इसलिए इस तर्क में कोई बल नहीं है कि आपराधिक कार्यवाही से उन्मोचित होने पर सिविल दायित्व बरकार बना रहता है, क्योंकि प्रस्तुत केस में सिविल दायित्व स्थापित ही नहीं है। विद्युत विभाग द्वारा परिवादी पर मनमाना आचरण किया गया है, इसलिए परिवादी इन दोनों मदों में अंकन रू. 200000/- का प्रतिकर प्राप्त करने के लिए अधिकृत है तथा परिवाद
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व्यय के रूप में अंकन रू. 50000/- भी प्राप्त करने के लिए अधिकृत है।
आदेश
14. परिवाद स्वीकार किया जाता है:-
(ए). विपक्षी को आदेशित किया जाता है परिवादी से जो राशि रू. 868243/- वसूल की गई है, वह राशि 06 प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से अदा किया जाए।
(बी). परिवादी विपक्षी से विद्युत आपूर्ति में बाधा के दौरान हुए खर्च में अंकन रू. 150000/- प्राप्त करने के लिए अधिकृत है।
(सी). परिवादी विपक्षी से आलू नुकसान के मद में अंकन रू. 200000/- की क्षतिपूर्ति प्राप्त करने के लिए अधिकृत है।
(डी). परिवादी विपक्षी से मानसिक प्रताड़ना तथा अनुचित व्यापार प्रणाली के मद में अंकन रू. 200000/- का प्रतिकर प्राप्त करने के लिए अधिकृत है
(ई). परिवादी विपक्षी से परिवाद व्यय के रूप में रू. 50000/- प्राप्त करने के लिए भी अधिकृत है।
उपरोक्त समस्त धनराशि का भुगतान 3 माह के अंदर किया जाए और यदि इस 3 माह के अंदर भुगतान नहीं किया जाता तब समस्त राशि पर 09 प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से ब्याज भी देय होगा। ब्याज की गणना परिवाद प्रस्तुत करने की तिथि से की जाएगी।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस आदेश को
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आयोग की वेबसाइड पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(विकास सक्सेना) (सुशील कुमार) सदस्य सदस्य
राकेश, पी0ए0-2
कोर्ट-3