Mayur Singh filed a consumer case on 17 Mar 2015 against Veesa Ram in the Jalor Consumer Court. The case no is C.P.A 113/2012 and the judgment uploaded on 27 Mar 2015.
न्यायालयःजिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच,जालोर
पीठासीन अधिकारी
अध्यक्ष:- श्री दीनदयाल प्रजापत,
सदस्यः- श्री केशरसिंह राठौड
सदस्याः- श्रीमती मंजू राठौड,
..........................
1.मयूरसिंह पुत्र चुन्नीलाल पुरोहित, जाति पुरोहित, उम्र- 27 वर्ष, निवासी- सत्यनारायण मन्दिंर के पीछे, पुरोहितो का वास, आहोर, जिला- जालोर।
.......प्रार्थी।
बनाम
1.वीसाराम पुत्र सोनाजी, जाति प्रजापत, निवासी- गुडा बालोतान, तहसील- आहोर , जिला- जालोर।
...अप्रार्थी।
सी0 पी0 ए0 मूल परिवाद सं0:-113/2012
परिवाद पेश करने की दिनांक:-14-09-2012
अन्तर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम ।
उपस्थित:-
1. श्री अभिनव सुथार, अधिवक्ता प्रार्थी।
2. श्री दिलीपकुमार शर्मा, अधिवक्ता अप्रार्थी।
निर्णय दिनांक: 17-03-2015
1. संक्षिप्त में परिवाद के तथ्य इसप्रकार हैं कि प्रार्थी ने परिवाद पेश कर कथन किये हैं कि अप्रार्थी पेशे से एक ठेकेदार हैं। जो प्रतिफल के बदले सेवाएं प्रदान करता हैं, तथा प्रतिवादी ने दिनांक 30-04-2012 को अपने घर का एवं पुरानी पोल का कलर, पुटट्ी, अस्तर और लकडी का काम, लोहे की जाली का कलर करने के लिए अप्रार्थी के साथ एक इकरारनामा किया था, तथा अप्रार्थी ने उक्त काम दिनांक 15-05-2012 को करना प्रारंभ्भ किया। तथा इकरारनामे के अनुसार केवल 4-5 दिन ही काम किया, तथा इकरारनामे की शर्त के अनुसार काम प्रारंभ्भ होने के पहले दिन 10,000/- रूपयै दिनांक 15-05-2012 को अप्रार्थी को अदा कर दिये। तथा अप्रार्थी ने 4-5 दिन में केवल 3500/- रूपयै का ही काम किया, जबकि प्रार्थी ने अप्रार्थी को रूपयै 10,000 का भुगतान किया। तथा प्रार्थी ने एक दिन अप्रार्थी को दीवार पर पानी मार कर काम शुरू करने के लिए कहा, तो उसने मना कर दिया और कहा कि मैं तुम्हारा नौकर नहीं हूं, जो तुम्हारे कहे अनुसार काम करूगंा। मेरी इच्छा नहीं होगी, तो काम नही करूगंा। इसके बाद अप्रार्थी ने प्रार्थी को एवं प्रार्थी की माता को बहुत बुरा-भला कहा, और अपने साथ लाए मजदूरो के साथ काम छोडकर चला गया। तब उसने चार बाल्टी अस्तर भी तैयार किया हुआ था, जो पडा-पडा खराब हो गया हैं, जिससे कुल 11400/- रूपयै का नुकसान हुआ हैं। तथा प्रार्थी ने अप्रार्थी को फोन करके शेष काम पूरा करने हेतु कहा, तथा उसके घर भी गया, लेकिन अप्रार्थी , प्रार्थी को एक माह तक काम पूरा करने के आश्वासन देता रहा, तथा आजकल में आउगंा, कहता-रहा। लेकिन जब प्रार्थी को संदेह होने लगा, तो दिनांक 15-07-2012 तक अप्रार्थी का इन्तजार किया, लेकिन वह नहीं आया, और अन्त में अप्रार्थी ने प्रार्थी को कहा कि आप किसी और से काम करवा लो । तब प्रार्थी को बलदेवराम को कुल 60,000/-रूपयै देकर काम करवाना पडा, उनके साथ में कुल 10 मजदूर थे, जिनका खाना- राशन भी प्रार्थी को अलग से देय करना पडा, जो कुल 10,988/- रूपयै देना पडा। अप्रार्थी के पास 6500/-रूपयै जमा हैं, जो अप्रार्थी नहीं दे रहा हैं। तथा अप्रार्थी ने एक झूठां मुकदमा श्रम कल्याण विभाग, जालोर के समक्ष किया, जिसकी वजह से 2000/- रूपयै देकर वकील नियुक्त करना पडा। उक्त मुकदमा झूठेें तथ्यों पर पेश किया गया, जिससे प्रार्थी को मानसिक परेशानी हुई । इसप्रकार प्रार्थी ने यह परिवाद अप्रार्थी के विरूद्व प्रस्तुत कर अर्जेन्ट में किसी अन्य से अतिरिक्त भुगतान देकर काम कराना पडा, जिसका अतिरिक्त व्यय 16000/-रूपयै भुगतान करना पडा। तथा अप्रार्थी के पास 6500/-रूपयै जमा हैं, जो अप्रार्थी नहीं दे रहे है, तथा अप्रार्थी ने एक झूठां मुकदमा श्रम कल्याण अधिकारी, जालोर के समक्ष पेश किया, जिसकी वजह से 2000/- रूपयै देकर वकील नियुक्त करना पडा, जिससे मानसिक परेशानी हुई, जिसका कुल हरजाना 50,000/-रूपयै हुआ तथा अप्रार्थी ने चार बाल्टी अस्तर तैयार किया था, जो पडे-पडे खराब हो गया, जिसका कुल 11,400/-रूपयै हुआ, जो दिलाये जाने हेतु यह परिवाद जिला मंच में पेश किया गया हैं।
2. प्रार्थी केे परिवाद को कार्यालय रिपोर्ट के बाद दर्ज रजिस्टर कर अप्रार्थी को जरिये रजिस्टर्ड ए0डी0 नोटिस जारी कर तलब किया गया। अप्रार्थी की ओर से अधिवक्ता श्री दिलीपकुमार शर्मा ने उपस्थिति पत्र प्रस्तुत कर पैरवी की। तथा अप्रार्थी ने प्रथम दृष्टया प्रार्थी का परिवाद अस्वीकार कर, जवाब परिवाद प्रस्तुत कर कथन किये, कि प्रार्थी ने परिवाद मे गलत तथ्य अंकित किये हैं। प्रार्थी माननीय मंच के समक्ष परिवाद संख्या- 112/12 के परिवादी चुन्नीलाल पुत्र नवाजी का पुत्र हैं। पिता व पुत्र दोनो गरीब मजदूरो की मजदूरी मुफ्त में कराना चाहते हैं व मजदूरी की मांग करने पर गलत रूप से परेशान करते हैं। तथा मुझ अप्रार्थी ने मयूरसिंह के यहंा कार्य नहीं किया हैं। तथा मकान बनवाने व निर्माण करवाने का कार्य उसने सकाराम से नहीं करवाया है। जब निर्माण का कार्य हुआ ही नहीं, तो कलर के कार्य होने की संभ्भावना ही नहीं है। मयूरसिंह स्वंय के कथनो के अनुसार चुन्नीलालजी के घर में बतौर कारीगर व मजदूर सकाराम ने मजदूरो राजू, रतियां, ओटाराम, कुयांराम, पैकाराम, गमनाराम, समाराम आदि कुल 55 मजदूरो व कारीगरो ने मकान निर्माण का कार्य किया, तथा अप्रार्थी ने चुन्नीलाल के यहंा कलर का कार्य मजदूरी पर किया। चुन्नीलाल व उसके पुत्र मयूरसिंह परिवादी ने मजदूरो व कारीगरो की जब मजदूरी नहीं दी, व बकाया रखी, तब बकाया मजदूरी हेतु श्रम कल्याण अधिकारी के समक्ष मजदूरी हेतु प्रार्थनापत्र पेश किया गया । तब प्रार्थी ने अप्रार्थी को बकाया मजदूरी नहीं देने हेतु यह गलत व मनगढन्त तथ्यों को आधार बनाकर यह प्रार्थनापत्र पेश किया हैं। तथा प्रार्थी एवं अप्रार्थी के बीच बकाया मजदूरी को लेकर हूए इकरार को लेकर विवाद हैं। तथा प्रकरण के तथ्यों के अनुसार जटिल विवाद हैं, जिसका निस्तारण संक्षिप्त प्रकिय्रा से नहीं हो सकता हैं। इस कारण परिवाद के तथ्यों की जटिलता को देखते हूए उक्त विवाद सिविल प्रकृति का हैं, जो जिला मंच के श्रवण योग्य नही हैं, तथा प्रार्थी ने अप्रार्थी के विरूद्व कौन-कौन से झूठें कागज तैयार किये हैं, इसकी कोई जानकारी नहीं है। प्रार्थी ने झूठें व गलत दस्तावेज तैयार किये हैं, तथा गलत आधार बनाकर गलत परिवाद पेश किया गया हैं तथा प्रार्थी के स्वंय के तथ्यों के अनुसार प्रकरण विवाद बाबत् उपभोक्ता नहीं हैं, तथा विवाद बकाया मजदूरी की राशि को लेकर हैं, जो सिविल प्रकृति का होने से जिला मंच में चलने योग्य नहीं हैं। इसप्रकार अप्रार्थी ने जवाब परिवाद प्रस्तुत कर परिवाद मय खर्चा खारिज करने का निवेदन किया हैं।
3. हमने उभय पक्षो को साक्ष्य सबूत प्रस्तुत करने के पर्याप्त समय/अवसर देने के बाद, उभय पक्षो के विद्वान अधिवक्ताओं की बहस एवं तर्क-वितर्क सुने, जिन पर मनन किया तथा पत्रावली का ध्यानपूर्वक अवलोकन एवं अध्ययन किया, तो हमारे सामने मुख्य रूप से प्रथम विधिक विवाद बिन्दु उत्पन्न होता हैं कि क्या प्रार्थी अप्रार्थी का उपभोक्ता हैं ? उक्त विधिक विवाद बिन्दु के निस्तारण के पश्चात् ही प्रार्थी के परिवाद के परिवाद में मांगे गये अनुतोष पर विचार किया जा सकता हैं। उक्त विधिक विवाद बिन्दु को सिद्व एवं प्रमाणित करने का भार प्रार्थी पर हैं, तथा जिला मंच का भी सर्वप्रथम यह कर्तव्य हैं कि वह उक्त विधिक विवाद बिन्दु पर सर्वप्रथम विचार करे, क्यों कि जब तक परिवादी एक उपभोक्ता की तारीफ में नहीं आता हो, तब तक उसके द्वारा पेश किये गये परिवाद पर कोई विचार नहीं किया जा सकता हैं। उक्त विधिक विवाद बिन्दु के सम्बन्ध में प्रार्थी ने अपने परिवाद पत्र एवं साक्ष्य शपथपत्र प्रस्तुत कर कथन किये हैं कि अप्रार्थी पेशे से एक ठेकेदार हैं जो प्रतिफल के बदले सेवाएं प्रदान करता हैं। दिनांक 30-04-2012 को प्रार्थी के घर का एवं पुरानी पोल का कलर पुटट्ी, अस्तर, लकडी का काम, लोहे की जाली का कलर आदि करने के लिए अप्रार्थी के साथ इकरारनामा किया था। उक्त कथनो के सत्यापन हेतु प्रार्थी ने इकरारनामा की प्रति पेश की हैं, जो सादे पेपर पर अंकित हैं, जिसकी लिखावट इसप्रकार हैं कि आज दिनंाक 30-04-2012 को नये घर और पुरानी पोल का काम मयूरसिंह राजपुरोहित के द्वारा कलर, पुटट्ी, अस्तर और लकडे के पाॅलिश का काम विशारामजी पुत्र सोनाजी को दिया गया हैं। और लोखण्ड के जाली का का कलर का काम दिया गया हैं। उपर लिखा गया काम घर मालिक के अनुसार पूरी फिनीशिंग के साथ करके देना होगा,
1 पेमेन्ट पहले दिन काम शुरू होने के दिन 10,000/- रूपयै दिया जायेगा।
2 15 दिनो के बाद में 10,000/- रूपयै और दिये जायेगें।
3 बाकि का हिसाब काम पूरा होने के बाद किया जायेगा।
4 पूरा काम 55,000/-रूपयै में पक्का किया गया हैं।
उक्त एग्रीमैन्ट की लिखावट के नीचे विसाराम अप्रार्थी के हस्ताक्षर हैं, तथा प्रार्थी मयूरसिंह के भी हस्ताक्षर हैं। उक्त इकरारनामा की शब्दावली एवं लिखावट के अनुसार अप्रार्थी ठेकेदार होना, अंकित नहीं हैं। तथा प्रार्थी ने अप्रार्थी के ठेकेदार होने सम्बन्धी कोई पंजीयन प्रमाणपत्र आदि प्रस्तुत नहीं किया हैं। तथा प्रार्थी ने अपने घर का कार्य कराने हेतु कोई सार्वजनिक निविदा आमंत्रित करना परिवाद में अंकित नहीं किया हैं, और न ही पत्रावली पर ऐसा कोई सबूत पेश किया गया हैं। प्रार्थी द्वारा अपने घर का कार्य का मूल्याकंन किसी तकनीकि विशेषज्ञ इंजिनियर या सक्षम अधिकारी से करवा कर अप्रार्थी को कार्य दिया हो, ऐसा कोई सबूत पत्रावली पर पेश नहीं किया गया हैं। तथा प्रार्थी द्वारा प्रस्तुत एग्रीमैन्ट नान ज्युडिशयल स्टाम्प पर नहीं हैं तथा भुगतान की गई राशि के सम्बन्ध में रेवेन्यू स्टाम्प लगी रसीद भी पेश नहीं है, तथा प्रार्थी द्वारा प्रस्तुत एग्रीमैन्ट भी रजिस्टर्ड/पंजीबद्व किया हुआ नहीं हैं तथा प्रार्थी उक्त इकरारनामे के अनुसार कार्य ठेका पर देना कह रहा हंैं जो विधिवत रूप से उक्त संविदा नहीं हैं, तथा उक्त एग्रीमैन्ट की लिखावट के अनुसार ऐसा एग्रीमैन्ट अविधिक, अपूर्ण, एवं अनियमित इकरार हैं। प्रार्थी एवं अप्रार्थी के मध्य निजी एवं व्यक्तिगत संविदा हैं, तथा प्रार्थी अधिवक्ता ने प्रार्थी को उपभोक्ता मानने के सम्बन्ध में दौराने बहस न्यायिक दृष्टान्त माननीय उच्चतम न्यायालय, के निर्णय ब्पअपस ।चचमंस छवण् 6237 व ि 1990ए स्नबादवू क्मअमसवचउमदज ।नजीवतपजल अध्े उण ळनचजं में पारित निर्णय दिनांक 05-11-1993 व ब्पअपस ।चचमंस छवण् 4432.4450 व ि 2012, डध्ै छंतदम ब्वदेजतनबजपवद चण् स्जकण् अध्े न्दपवद व ि पदकपं वतेण् म्जबण् में पारित निर्णय दिनांक 10-05-2012 की प्रतियां पेश की हैं। हमने माननीय उच्चतम न्यायालय के उक्त निर्णयों का ससम्मान अध्ययन किया, माननीय उच्चतम न्यायालयों के पारित निर्णयो एवं हस्तगत परिवाद की विषय वस्तु ,कथन, प्रकृति एवं परिस्थिति भिन्न-भिन्न हैं जो एक समान नहीं होने से माननीय उच्चतम न्यायालनय के उक्त निर्णय हस्तगत परिवाद पर पूर्णतया लागू नहीं होते हैं। तथा अप्रार्थी ने जवाब परिवाद में कथन किया हैं कि अप्रार्थी गरीब मजदूर हैं, तथा प्रार्थी ने मजदूरी पर अप्रार्थी को कार्य दिया हैं, लेकिन प्रार्थी ने अप्रार्थी की मजदूरी नहीं दी, तब अप्रार्थी ने श्रम कल्याण अधिकारी , जालोर के समक्ष मजदूरी दिलाने का प्रार्थनापत्र पेश किया था, तथा मामला मजदूरी बकाया होने का हैं। उक्त कथनो के सत्यापन हेतु अप्रार्थी ने श्रम कल्याण अधिकारी के समक्ष चले प्रकरण की आदेशिका दिनांक 04-09-2012 की प्रति पेश की हैं। जिसमें श्रम कल्याण अधिकारी ने प्रार्थी को मजदूर/श्रमिक तथा प्रार्थी को नियोक्ता मानकर बकाया मजदूरी एवं बकाया कार्य करवाने सम्बन्धी समझौता करवाने का प्रयास किया हैं, लेकिन अप्रार्थी श्रमिक व नियोक्ता प्रार्थी के मध्य समझौता पर सहमति नहीं बन सकी हैं। उक्त आदेशिका के अनुसार प्रार्थी श्रमिक होना सिद्व एवं प्रमाणित हैंै, तथा शारीरिक श्रम कर दैनिक मजदूरी प्राप्त करना सेवा प्रतिफल की परिभाषा में नहीं आता हैं। इसप्रकार प्रार्थी , अप्रार्थी का उपभोक्ता होना सिद्व एवं प्रमाणित नहीं होता हैं। तथा प्रार्थी मयूरसिंह का यह विवाद पूर्व में श्रम कल्याण अधिकारी के यहंा विचारण हो चुका हैं। तथा पत्रावली पर उक्त तथ्य एवं वर्णित विषय वस्तु के अनुसार प्रकरण व्यक्तिगत सेवा संविदा का जटिल एवं विस्तृत साक्ष्य से परिक्षित कराकर सिद्व करने का सिविल नेचर का होने से सिविल न्यायालय के विचारण का विषय प्रकट होता हैं। तथा मामला दैनिक मजदूरी एवं शारीरिक श्रम के प्रतिफल अदा करने का विवाद होने से प्रार्थी, अप्रार्थी का उपभोक्ता होना सिद्व नहीं होता है। इसी प्रकार उक्त विवाद जिला मंच के क्षैत्राधिकार का नहीं होना माना जाता है।
आदेश
अतः प्रार्थी मयूरसिंह का परिवाद विरूद्व अप्रार्थी वीसाराम पुत्र सोनाजी, जाति प्रजापत, निवासी- गुडा बालोतान, तहसील- आहोर , जिला- जालोर के विरूद्व प्रार्थी, अप्रार्थी का उपभोक्ता सिद्व नहीं होने से एवं व्यक्तिगत सेवा संविदा पर आधारित तथा दैनिक मजदूरी एवं शारीरिक श्रम के प्रतिफल अदा करने का विवाद होने से होने से मामला पेचिदा एवं विस्तृत साक्ष्य तथा गहन अन्वीक्षा से साबित करने का विषय प्रकट होने से एवं परिवाद उपभोक्ता विवाद नहीं होने के कारण अस्वीकार कर खारिज किया जाता हैं। तथा अप्रार्थी को सलाह दी जाती हैं कि वह सक्षम सिविल न्यायालय में ऐसा वाद प्रस्तुत कर सकता हैं। खर्चा पक्षकारान अपना-अपना वहन करे।
निर्णय व आदेश आज दिनांक 17-03-2015 को विवृत मंच में लिखाया जाकर खुले मंच में सुनाया गया।
मंजू राठौड केशरसिंह राठौड दीनदयाल प्रजापत
सदस्या सदस्य अध्यक्ष
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