जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, नागौर
परिवाद सं. 90/2015
सुषील सैन पुत्र श्री नारायणलाल सैन, जाति-सैन, निवासी-नया तेलीवाडा, भूतनाथ मंदिर के पास नागौर, तहसील व जिला-नागौर (राज.)। -परिवादी
बनाम
1. मालिक/प्रोपराईटर, वसुन्धरा एप्लाईसेंस, फोर्ट रोड, नागौर।
2. मैनेजर/एम.डी. हायर एप्लाईसेंस इंडिया प्रा.लि. मोहन को आॅपरेटिव इण्डस्ट्रीयल स्टेट, मथुरा रोड, नई दिल्ली-110044
-अप्रार्थीगण
समक्षः
1. श्री ईष्वर जयपाल, अध्यक्ष।
2. श्रीमती राजलक्ष्मी आचार्य, सदस्या।
3. श्री बलवीर खुडखुडिया, सदस्य।
उपस्थितः
1. श्री देवेन्द्र राज कल्ला, अधिवक्ता, वास्ते प्रार्थी।
2. श्री षफीक खिलजी, अधिवक्ता, वास्ते अप्रार्थीगण।
अंतर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम ,1986
आ दे ष दिनांक 27.04.2016
1. यह परिवाद अन्तर्गत धारा-12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 संक्षिप्ततः इन सुसंगत तथ्यों के साथ प्रस्तुत किया गया कि परिवादी ने अप्रार्थी संख्या 1 से, अप्रार्थी संख्या 2 द्वारा निर्मित एक हायर कम्पनी का एयर कण्डीषनर माॅडल नम्बर हायर ए.सी., एच.एस.यू. 18 के.ए.एस. 5 दिनांक 22.04.2015 को 30,000/- देकर खरीद किया। जिसका बिल अप्रार्थी संख्या 1 द्वारा परिवादी के नाम जारी किया गया तथा अप्रार्थीगण की ओर से उक्त ए.सी. पर एक वर्श की गारन्टी दी गई। परिवादी ने उक्त ए.सी. को अपने प्रतिश्ठान दर्पण स्मार्ट लुक पर लगाया लेकिन ए.सी. ने काम नहीं किया। ए.सी. के कुलिंग नहीं करने एवं उसमंे से पानी निकलने पर परिवादी ने उसी दिन दिनांक 22.04.2015 को अप्रार्थीगण को षिकायत की तो उन्होंने कोई कार्रवाई नहीं की। परिवादी व्यक्तिगत रूप से अप्रार्थी संख्या 1 के यहां गया तथा ए.सी. की षिकायत की तो उसने खुद की जिम्मेदारी से पल्ला झाडते हुए कहा कि विक्रय के पष्चात् हमारा कोई लेना देना नहीं है, कम्पनी के सर्विस सेंटर पर षिकायत करो। इस पर परिवादी ने अप्रार्थी संख्या 1 के बताये अनुसार काॅल सेंटर पर दिनांक 24.04.2015, 28.04.2015, 29.04.2015, 02.05.2015 एवं दिनांक 03.05.2015 को षिकायतें दर्ज करवाई, जिस पर उसकी षिकायत दर्ज कर आई.डी. नम्बर जे.ए.20150503100783 दिये गये। इसके बावजूद आज दिनांक तक न तो कम्पनी से कोई आदमी ए.सी. को चैक करने आया और न ही इसे ठीक किया गया और न ही बदला गया। इस तरह अप्रार्थीगण की ओर से परिवादी को निर्माण सम्बन्धी दोश से ग्रस्त ए.सी. विक्रय कर दी गई। जिसके चलते उपभोक्ता परेषान है। उसकी षिकायत पर भी कोई गौर नहीं किया गया और न ही उसकी ए.सी. को ठीक किया गया और ना ही बदला गया। अप्रार्थीगण का उक्त कृत्य सेवा दोश की श्रेणी में आता है। अतः परिवादी को विक्रय की गई उक्त विवादित ए.सी. प्राप्त कर उसे उसकी कीमत 30,000/- रूपये मय दिनांक 22.04.2015 से ब्याज सहित लौटाई जावे। साथ ही परिवादी को वाद पत्र में अंकितानुसार अनुतोश दिलाया जावे।
2. अप्रार्थी संख्या 1 एवं 2 की ओर से प्रस्तुत जवाब परिवाद के सार संकलन के अनुसार परिवादी के अधिकांष अभिकथनों को अस्वीकार करते हुए परिवादी द्वारा विवादित ए.सी. खरीद किया जाना स्वीकार किया है। जवाब में अप्रार्थी संख्या 1 ने कहा कि परिवादी ने ए.सी. के सम्बन्ध में कम्पनी के मानदण्डों की पालना नहीं की है बल्कि खुद ने ही अपने स्तर पर अयोग्य कार्मिक से ए.सी. का इन्स्टालेषन करवाया। इस बाबत् परिवादी ने अप्रार्थी संख्या 2 को कोई राषि अदा नहीं की है। अप्रार्थीगण ने परिवादी को ए.सी. के सम्बन्ध में कोई एक वर्श की गारन्टी नहीं दी थी। परिवादी की षिकायत पर कम्पनी के सर्विस सेंटर से आदमी गया तथा ए.सी. चालू कर आ गया। विक्रय की गई ए.सी में कोई विनिर्माण दोश नहीं है। परिवादी विक्रय की गई ए.सी. के बदले अप्रार्थी संख्या 1 से रकम वापस लेना चाहता है। अतः परिवाद परिवादी मय खर्चा खारिज किया जावे।
3. अप्रार्थी संख्या 2 ने अपने जवाब में परिवादी की ओर से खरीद की गई ए.सी. पर एक वर्श की गारन्टी नहीं बल्कि एक वर्श की वारंटी दिया जाना स्वीकार किया है। अप्रार्थी संख्या 2 ने भी अपने जवाब में मुख्य रूप से यह कहा कि परिवादी ने ए.सी. अपने स्तर पर अयोग्य कार्मिकों से संस्थापित करवाई, जिसके लिए वह स्वयं जिम्मेदार है। अप्रार्थीगण की ओर से विक्रय की गई ए.सी. में कोई विनिर्माण दोश नहीं रहा है। फिर भी यदि परिवादी कोई खराबी बताता है तो अप्रार्थीगण के सर्विस सेंटर से रिपेयर करवा सकता है। इस मामले में परिवादी को सर्विस सेंटर के कर्मचारी ने ए.सी. को सही रूप में चलाकर संतुश्ट किया है। अतः परिवादी की ओर से बेवजह पेष किये गये परिवाद को मय खर्चा खारिज किया जावे।
4. दोनों पक्षों की ओर से अपने-अपने षपथ-पत्र एवं दस्तावेजात पेष किये गये।
5. बहस अंतिम योग्य अधिवक्ता पक्षकारान सुनी गई एवं अभिलेख का ध्यानपूर्वक अवलोकन किया गया।
6. परिवादी द्वारा प्रस्तुत षपथ-पत्र एव ंक्रय बिल की प्रति से यह स्पश्ट है कि परिवादी ने अप्रार्थी संख्या 1 से दिनांक 22.04.2015 को हायर कम्पनी का एक एयर कण्डीषनर माॅडल नम्बर हायर ए.सी., एच.एस.यू. 18 सी.के.ए.एस. 5, 30,000/- रूपये देकर खरीद किया। अप्रार्थी संख्या 2 ए.सी. निर्माता कम्पनी है। इस प्रकार परिवादी दोनों अप्रार्थीगण का उपभोक्ता होना पाया जाता है।
7. परिवादी मुख्यतः अपना परिवाद इस आधार पर लेकर उपस्थित हुआ कि ए.सी. लगाये जाने के दिन से ही उसमें कुलिंग नहीं होने तथा ए.सी. से पानी निकलने के कारण दिनांक 22.04.2015 को ही षिकायत दर्ज करवाई गई, लेकिन गारंटी अवधि में होने के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं हुई तथा उसके बाद भी अनेक बार षिकायत दर्ज करवाने के बावजूद ए.सी. में व्याप्त खराबी को दूर नहीं किया गया तथा न ही ए.सी. बदलकर दी गई जबकि ए.सी. में विनिर्माण सम्बन्धी तकनीकी खराबी थी। उक्त के विपरित अप्रार्थी पक्ष का तर्क है कि विक्रय किये गये ए.सी. की कोई गारंटी नहीं थी बल्कि एक वर्श की वारंटी थी तथा षिकायत मिलने पर सर्विस सेंटर के मार्फत ए.सी. को सही कर परिवादी को संतुश्ट कर दिया गया था, ए.सी. में कोई विनिर्माण सम्बन्धी तकनीकी खराबी नहीं रही है तथा यदि ए.सी. सही काम नहीं कर रहा हो तो अप्रार्थीगण आज भी उसे रिपेयर करने हेतु तत्पर है लेकिन परिवादी ए.सी. के बदले रकम प्राप्त करना चाहता है। अप्रार्थीगण का तर्क रहा है कि उनका कोई सेवा दोश नहीं रहा है। ऐसी स्थिति में परिवाद पोशणीय न होने से खारिज किया जावे।
8. पक्षकारान के विद्वान अधिवक्तागण द्वारा दिये तर्कों पर मनन कर पत्रावली का अवलोकन करें तो यह स्वीकृत स्थिति है कि परिवादी द्वारा दिनांक 22.04.2015 को हायर कम्पनी का एक एयर कंडीषनर अप्रार्थी संख्या 1 से क्रय किया गया था तथा इस एयर कंडीषनर बाबत् एक वर्श की वारंटी थी। अप्रार्थीगण ने अपने जवाब में यह कथन किया है कि परिवादी ने स्वयं अपने स्तर पर अनभिज्ञ व तकनीकी रूप से अयोग्य कार्मिक से ए.सी. का इंस्टालेषन करवाया, जिसके कारण ए.सी. की खराबी हेतु परिवादी जिम्मेवार है। लेकिन इस सम्बन्ध में पत्रावली पर उपलब्ध सामग्री से स्पश्ट है कि ए.सी. क्रय किये जाने के दिन ही अप्रार्थीगण के सर्विस सेंटर से तकनीकी रूप से जानकार व्यक्ति ने मौके पर जाकर ए.सी. की जांच की है, जो कि अप्रार्थी द्वारा प्रस्तुत जाॅब षीट प्रदर्ष ए 2 से स्पश्ट है। ऐसी स्थिति में यदि यह मान भी लिया जाये कि परिवादी द्वारा स्वयं के स्तर पर किसी अयोग्य कार्मिक से ए.सी. का इंस्टालेषन करवाया था तो भी जाॅब षीट प्रदर्ष ए 2 को देखते हुए स्पश्ट है कि मौके पर ए.सी. सही रूप से संस्थापित किया गया था। पत्रावली पर उपलब्ध सामग्री से स्पश्ट है कि ए.सी. संस्थापित करने के बाद भी सही रूप से काम नहीं कर रहा था इसी कारण परिवादी द्वारा बार-बार षिकायत की गई। अप्रार्थी पक्ष द्वारा आज बहस के दौरान प्रस्तुत दस्तावेज जाॅब षीट प्रदर्ष ए 3 के अनुसार दिनांक 01.05.2015 को भी अप्रार्थीगण के अधिकृत इंजीनियर/तकनीकी अधिकारी ने मौके पर जाकर ए.सी. की जांच/मरम्मत की थी। इसी प्रकार जाॅब षीट प्रदर्ष ए 1 के अनुसार भी दिनांक 06.05.2015 को अप्रार्थीगण के अधिकृत इंजीनियर/तकनीकी अधिकारी ने मौके पर जाकर ए.सी. की जांच/मरम्मत की है। यद्यपि परिवादी का यह तर्क रहा है कि बार-बार षिकायत करने के बावजूद अप्रार्थी कम्पनी का कोई व्यक्ति न तो चैक करने आया तथा न ही ए.सी. में व्याप्त खराबी को दूर किया गया। लेकिन अप्रार्थी पक्ष द्वारा प्रस्तुत जाॅब षीट क्रमषः प्रदर्ष ए 1, प्रदर्ष ए 2 एवं प्रदर्ष ए 3 के अवलोकन पर स्पश्ट है कि अप्रार्थीगण की कम्पनी के अधिकृत इंजीनियर/तकनीकी अधिकारी द्वारा मौके पर जाकर ए.सी. की जांच कर उसे ठीक किया गया है। अप्रार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि वे आज भी ए.सी. में व्याप्त किसी खराबी की जांच कर उसे रिपेयर करने हेतु तत्पर हैं।
9. परिवादी द्वारा यह बताया गया है कि अप्रार्थीगण द्वारा विक्रय किये गये एयर कंडीषनर के सम्बन्ध मंे एक वर्श की गारंटी अवधि थी। ऐसी स्थिति में या तो नया ए.सी. दिया जावे अथवा ए.सी. की कीमत 30,000/- रूपये मय ब्याज लौटाई जावे। लेकिन इस सम्बन्ध में कोई गांरटी कार्ड पेष नहीं किया गया है तथा न ही अन्य कोई ऐसा प्रलेख पत्रावली पर लाया गया है, जिसके आधार पर यह माना जा सके कि अप्रार्थीगण द्वारा विक्रय किये गये एयर कंडीषनर बाबत् एक वर्श की गांरटी अवधि रही हो। अप्रार्थीगण ने स्पश्ट किया है कि विक्रय किये गये एयर कंडीषनर बाबत् एक वर्श की गांरटी नहीं थी बल्कि एक वर्श की वारंटी अवष्य दी गई थी। परिवादी द्वारा इस बाबत् में कोई स्पश्ट साक्ष्य पेष नहीं की गई है जिसके आधार पर यह माना जा सके कि अप्रार्थीगण द्वारा विक्रय किये गये एयर कंडीषनर में विनिर्माण सम्बन्धी ऐसी कोई तकनीकी खराबी रही हो जिसे रिपेयर करके ठीक नहीं किया जा सकता हो। ऐसी स्थिति में परिवादी को ए.सी. की पूर्ण कीमत 30,000/- रूपये मय ब्याज लौटाये जाने का आदेष दिया जाना न्यायोचित नहीं होगा। तथापि पत्रावली पर उपलब्ध सामग्री से स्पश्ट है कि परिवादी द्वारा क्रय किया गया ए.सी. प्रारम्भ से ही सही हालत में काम नहीं कर रहा है ऐसी स्थिति में अप्रार्थीगण को यह आदेष दिया जाना न्यायोचित होगा कि उनके द्वारा परिवादी को विक्रय किये गये ए.सी. को किसी योग्य इंजीनियर से पूर्ण रूप से सही करवाकर संतुश्ट करें तथा यदि किसी कारणवष यह ए.सी. सुचारू रूप से काम करने हेतु पूर्णतया सही नहीं होता है तो इस ए.सी. के बदले इसी कम्पनी का व इसी माॅडल/कीमत का नया ए.सी. परिवादी को प्रदान करें।
10. पत्रावली पर उपलब्ध सामग्री से यह भी स्पश्ट है कि परिवादी द्वारा यह ए.सी. दिनांक 22.4.2015 को क्रय किया गया था लेकिन ए.सी. के सही रूप से काम नहीं करने के कारण परिवादी को बार-बार ठीक करवाने हेतु षिकायत करनी पडी लेकिन उसके बावजूद एक लम्बी अवधि तक ए.सी. सही नहीं हुआ, जिसके कारण परिवादी को मानसिक परेषानी हुई तथा इसी कारण परिवादी को यह परिवाद प्रस्तुत करना पडा। ऐसी स्थिति में अप्रार्थीगण के सेवा दोश के कारण परिवादी को हुई मानसिक परेषानी की क्षतिपूर्ति किया जाना भी न्यायोचित होगा।
आदेश
11. परिवादी सुषील सैन द्वारा प्रस्तुत परिवाद अन्तर्गत धारा-12, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 विरूद्ध अप्रार्थीगण स्वीकार कर आदेष दिया जाता है कि अप्रार्थीगण द्वारा परिवादी को विक्रय किये गये ए.सी. को किसी योग्य इंजीनियर से पूर्ण रूप से सही करवाकर संतुश्ट करें तथा यदि किसी कारणवष यह ए.सी. सुचारू रूप से काम करने हेतु पूर्णतया सही नहीं होता है तो इस ए.सी. के बदले इसी कम्पनी का व इसी माॅडल/कीमत का नया ए.सी. परिवादी को प्रदान करें। यह भी आदेष दिया जाता है कि परिवादी को मानसिक रूप से हुई परेषानी हेतु 5,000/- रूपये एवं परिवाद व्यय के 3,000/- रूपये भी अदा करें। आदेष की पालना एक माह में की जावे।
12. निर्णय व आदेष आज दिनांक 27.04.2016 को लिखाया जाकर खुले मंच में सुनाया गया।
नोटः- आदेष की पालना नहीं किया जाना उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा 27 के तहत तीन वर्श तक के कारावास या 10,000/- रूपये तक के जुर्माने से दण्डनीय अपराध है।
।बलवीर खुडखुडिया। ।ईष्वर जयपाल। ।श्रीमती राजलक्ष्मी आचार्य। सदस्य अध्यक्ष सदस्या