राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
(मौखिक)
अपील संख्या:-286/2020
(जिला उपभोक्ता आयोग, वाराणसी द्धारा परिवाद सं0-16/2008 में पारित आदेश दिनांक 17.9.2019 के विरूद्ध)
हिन्दुस्तान मोटर्स लिमिटेड, 9/1, आर0एन0 मुखर्जी रोड़, कोलकाता-01 द्वारा मैनेजिंग डायरेक्टर।
........... अपीलार्थी/विपक्षी सं0-3
बनाम
1- वाराणसी विकास प्राधिकरण, पन्नालाल पार्क, वाराणसी द्वारा सचिव।
…….. प्रत्यर्थी/परिवादी
2- मैसर्स मोहम्मद इकराम खॉ एण्ड सन्स, इकराम खॉ बिल्डिंग वरूणापुल, वाराणसी।
…….. प्रत्यर्थी/विपक्षी सं0-1
समक्ष :-
मा0 न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष
मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्य
अपीलार्थी के अधिवक्ता : श्री महेन्द्र कुमार मिश्रा
प्रत्यर्थी के अधिवक्ता : श्री संजय कुमार वर्मा
दिनांक :- 23.8.2022
मा0 न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील, अपीलार्थी/हिन्दुस्तान मोटर्स लिमिटेड द्वारा इस आयोग के सम्मुख धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अन्तर्गत जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, वाराणसी द्वारा परिवाद सं0-16/2008 में पारित आदेश दिनांक 17.9.2019 के विरूद्ध योजित की गई है।
संक्षेप में वाद के तथ्य इस प्रकार है कि प्रत्यर्थी/परिवादी वाराणसी विकास प्राधिकरण एक अर्धसरकारी संस्था है तथा प्रत्यर्थी/परिवादी ने शासकीय कार्य के निमित्त एक ए0सी0 अम्बेस्डर कार यूरो-II मॉडल खरीदने हेतु अपीलार्थी/विपक्षी सं0-3 को पत्र दिनांक 07.06.2007 दिया। उपरोक्त पत्र के आधार पर
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प्रत्यर्थी/विपक्षी सं0-1 की फर्म ने प्रत्यर्थी/परिवादी का एक ए.सी. अम्बेडर कार दिनांक 18.06.2007 को विक्रय की। प्रत्यर्थी/विपक्षी सं0-1 अपीलार्थी/विपक्षी सं0-3 का डीलर है। प्रत्यर्थी/परिवादी ने उक्त अम्बेस्डर कार के मूल्य का पूर्ण भुगतान भी कर दिया, जिसके आधार पर प्रत्यर्थी/विपक्षी सं0-1 ने प्रत्यर्थी/परिवादी को सेल लेटर दिया तथा प्रत्यर्थी/परिवादी के उक्त अम्बेस्डर कार का चेचिस नं0 ए.एफ.जी. 912571 व इंजन नं0 ई.एल.ई.जी. 105320 है तथा उसका पंजीयन नं0 यू.पी.65 ए.जी. 0244 है। उक्त अम्बेस्डर कार का बीमा दिनांक 22.06.2007 से 21.06.2008 तक की अवधि के लिए था। उक्त कार की वारण्टी अवधि 01 वर्ष थी।
परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादी का कथन है कि उसने प्रत्यर्थी/विपक्षी सं0-1 से खरीदी गयी उक्त अम्बेस्डर कार की डिलीवरी लेने से 04 माह के भीतर ही कार में तकनीकी खराबी आने लगी और वाहन चालक महेश प्रसाद ने दिनांक 02.11.2007 को यह सूचना प्रत्यर्थी/परिवादी को दी कि उपरोक्त अम्बेस्डर कार के पाइप से अधिक धुऑ निकल रहा है तथा पेट्रोल की खपत अधिक हो रही है एवं उक्त कार जल्दी ही गर्म हो जा रही है व पिकअप नहीं ले रही है। वाहन चालक महेश प्रसाद की उपरोक्त सूचना पर विशेष कार्याधिकारी वाराणसी विकास प्राधिकरण ने अपने पत्र के द्वारा प्रत्यर्थी/विपक्षी सं0-1 को इस आशय की सूचना प्रेषित की कि अम्बेस्डर कार दिनांक 18.06.2007 को क्रय की गयी है तथा कार के इंजन से काफी धुआं निकल रहा है तथा र्इंधन की खपत भी ज्यादा हो रही है। प्रत्यर्थी/परिवादी के उपरोक्त पत्र के आधार पर प्रत्यर्थी/विपक्षी सं0-1 ने अपने पत्र दिनांक 30.11.2007 के द्वारा सूचित किया कि फ्री सर्विस बुक के साथ गाड़ी भेजे जिससे कि चेकअप व रिपेयरिंग वारण्टी पॉलिसी के अनुसार किया जा सके। प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा उक्त कार की प्रथम सर्विसिंग समय के भीतर करायी गयी तथा चेकअप भी कराया गया, किन्तु उक्त अम्बेस्डर
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कार के अंदर की तकनीकी खराबियों को प्रत्यर्थी/विपक्षी सं0-1 द्वारा ठीक नहीं किया गया। उक्त ए.सी. अम्बेस्डर कार के वारण्टी पीरियड में ठीक न होने पर वाहन चालक महेश प्रसाद ने पुन: प्रभारी अधिकारी स्टोर वाराणसी विकास प्राधिकरण को सूचित किया कि दिनांक 29.11.2007 को प्रत्यर्थी/विपक्षी सं0-1 को कार दिखाये जाने के बावजूद कार की तकनीकी खराबी ठीक नहीं हो सकी। अत: पुन: अम्बेस्डर कार की तकनीकी खराबियों को दूर कराने का कष्ट करें, जिसके आधार पर विशेष कार्याधिकारी ने पुन: पत्र दिनांक 10.01.2008 द्वारा प्रत्यर्थी/विपक्षी सं0-1 को वाहन की तकनीकी खराबियों को तत्काल ठीक करने के लिए पत्र प्रेषित किया, किन्तु प्रत्यर्थी/विपक्षी सं0-1 ने कोई सुनवाई नहीं की और न ही अम्बेस्डर कार के इंजन की तकनीकी खराबियों को ठीक करने का प्रयास किया। विशेष कार्याधिकारी वाराणसी विकास प्राधिकरण द्वारा स्वयं दिनांक 15.01.2008 को जब प्रत्यर्थी/विपक्षी सं0-1 के यहां उपस्थित होकर अवगत कराया कि आप द्वारा विक्रय की गयी अम्बेस्डर कार बहुत जल्दी गरम/हीट हो जा रही है और पिकअप भी नहीं ले रही है तथा कार से धुआं बहुत अधिक निकल रहा है एवं ईंधन की भी खपत अधिक हो रही है, जिसके संबंध में विपक्षीगण को पूर्व में भी अम्बेस्डर कार में तकनीकी खराबियों के संबंध में पत्र द्वारा व टेलीफोन द्वारा सूचित किया गया था, किन्तु उसकी मरम्मत प्रत्यर्थी/विपक्षीगण द्वारा नहीं की गयी। अत: विवश होकर प्रत्यर्थी/विपक्षीगण से प्रश्नगत अम्बेस्डर कार को बदलकर नयी कार दिलाये जाने अथवा उसकी कीमत 4,23,048/- मय 18 प्रतिशत वार्षिक ब्याज की दर से तथा क्षतिपूर्ति एवं वाद व्यय का अनुतोष दिलाये जाने हेतु परिवाद जिला उपभोक्ता आयोग के सम्मुख प्रस्तुत किया गया है।
प्रत्यर्थी/विपक्षी सं0-1 की ओर से जिला उपभोक्ता आयोग के समक्ष अपना प्रतिवाद पत्र प्रस्तुत कर परिवाद पत्र के कथनों से इंकार किया गया तथा यह
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कथन किया गया कि परिवाद पोषणीय नहीं है। प्रत्यर्थी/परिवादी ने अपने परिवाद में मेसर्स मो0 इकराम खॉ एण्ड सन्स को बतौर प्रत्यर्थी/विपक्षी सं0-1 पक्षकार बनाया है, जो गलत है। असल फर्म मेसर्स मो0 इकराम खॉ एण्ड सन्स स्थित इकराम बिल्डिंग वरूणा पुल वाराणसी एक पंजीकृत फर्म है जिसको प्रत्यर्थी/परिवादी ने पक्षकार मुकदमा नहीं बनाया है। प्रत्यर्थी/परिवादी ने इनाम खॉ को विपक्षी सं0-2 इस परिवाद में बतौर पक्षकार बनाया है विपक्षी सं0-2 का देहांत दिनांक 30.12.2007 को परिवाद दाखिल करने के पहले ही हो चुका है, इस प्रकार इनाम खॉ जो मृत व्यक्ति है उसके खिलाफ यह परिवाद नहीं चल सकता, क्योंकि मरे हुए व्यक्ति के खिलाफ परिवाद कानूनन पोषणीय नहीं है। प्रत्यर्थी/परिवादी व्यवसायिक गतिविधियों में लिप्त है और कन्ज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट की धारा-2(i)(ii) के अंतर्गत उपभोक्ता नहीं है।
प्रश्नगत अम्बेस्डर कार शासकीय कार्य के निमित्त खरीदी गयी थी कहना बिल्कुल गलत है। प्रश्नगत कार का उपयोग व्यवसायिक कार्यों के लिए किया जाता है इसलिए प्रत्यर्थी/परिवादी उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आता है। प्रश्नगत वाहन के साथ अपीलार्थी/विपक्षी सं0-3 द्वारा लिखित वारण्टी शर्तों के साथ दी गयी है, जिससे स्पष्ट है कि दी गयी वारण्टी 16,000 किमी गाड़ी के चलने तक अथवा एक वर्ष की अवधि पूरे होने तक जो पहले समाप्त हो तक वैध होगी। वारण्टी में दी गई शर्तों की बाध्यता ग्राहक यानि प्रत्यर्थी/परिवादी पर भी पूर्णरूप से लागू होती है। प्रत्यर्थी/परिवादी का यह कथन कि प्रश्नगत कार की डिलीवरी लेने के 04 माह की अवधि में ही कार में तकनीकी खराबी आने लगी, बिल्कुल गलत है।
प्रत्यर्थी/परिवादी ने वाहन चालक महेश प्रसाद के पत्र दिनांक 02.11.2007 के द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादी को तकनीकी खराबी के बावत जो सूचना दी थी, वह बिल्कुल गलत है, क्योंकि वाहन चालक महेश प्रसाद के पास कोई टेक्निकल डिग्री
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या आटोमोबाइल इंजीनियर की डिग्री नहीं है और न तो वह उसका एक्सपर्ट है। प्रत्यर्थी/विपक्षी सं0-1 द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादी के पत्र दिनांक 29.11.2007 पर तत्काल कार्यवाही करते हुए प्रत्यर्थी/परिवादी को सूचित किया गया कि फ्री सर्विस बुक के साथ प्रश्नगत गाड़ी भेजे ताकि चेकअप व रिपेयरिंग का कार्य वारण्टी पॉलिसी के शर्तों के अनुसार किया जा सके। प्रत्यर्थी/परिवादी का यह कथन कि प्रश्नगत कार के अंदर की तकनीकी खराबियों को ठीक नहीं किया गया, गलत एवं झूठ है। दिनांक 14.08.2007 को फ्री सर्विसिंग और गाड़ी की पूरी चेकिंग करके प्रश्नगत गाड़ी प्रत्यर्थी/परिवादी के वाहन चालक महेश प्रसाद को डिलीवर कर दी गयी, जिसकी बावत वाहन चालक द्वारा पूर्णरूप से संतुष्ट होकर बाउचर पर अपना हस्ताक्षर किया गया एवं दिनांक 02.11.2007 को प्रत्यर्थी/विपक्षी सं0-1 के वर्कशाप पर प्रत्यर्थी/परिवादी की प्रश्नगत कार में जो खराबियां थी उनको दूर कर दिया गया तथा वाहन चालक महेश प्रसाद ने पूर्णरूप से संतुष्ट होने के पश्चात बाउचर पर अपना हस्ताक्षर किया एवं पुन: दिनांक 06.12.2007 को भी जो कुछ डिफेक्ट बताया गया उसकी फ्री सर्विस कर दूर किया गया। प्रत्यर्थी/परिवादी की ओर से एक पत्र दिनांक 10.01.2008 का जवाब प्रत्यर्थी/विपक्षी सं0-1 द्वारा पत्र दिनांक 12.01.2008 से प्रेषित किया गया, जिसमें स्पष्ट रूप से कहा गया कि प्रश्नगत कार की खराबी को दूर कर दिया गया है, फिर भी प्रत्यर्थी/परिवादी की संतुष्टि के लिए प्रत्यर्थी/विपक्षी सं0-1 द्वारा अपीलार्थी/विपक्षी सं0-3 के टेरीटरी सर्विस मैनेजर लखनऊ को सूचित किया गया कि वह वाराणसी आकर प्रत्यर्थी/परिवादी की प्रश्नगत कार को प्रत्यर्थी/विपक्षी सं0-1 के वर्कशाप में चेक कर लें और इसी अनुक्रम में प्रत्यर्थी/विपक्षी सं0-1 ने प्रत्यर्थी/परिवादी को दिनांक 16.01.2008 को सूचित किया कि टेरीटरी सर्विस मैनेजर लखनऊ आ रहे हैं और वह दिनांक 17.01.2008 व 18.01.2008 को वाराणसी में उपलब्ध रहे, परंतु प्रत्यर्थी/परिवादी ने प्रश्नगत कार को प्रत्यर्थी/विपक्षी सं0-1 के वर्कशाप पर जांच के
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लिए नहीं भेजा, बल्कि दुर्भावना से ग्रस्त होकर दिनांक 17.01.2008 को ही परिवादी झूठे कथनों एवं तथ्यों के साथ प्रस्तुत कर दिया है।
जिला उपभोक्ता आयोग के समक्ष अपीलार्थी/विपक्षी सं0-3 की ओर से अपना प्रतिवाद पत्र प्रस्तुत कर यह कथन किया कि प्रत्यर्थी/परिवादी उपभोक्ता नहीं है और परिवाद गलत कथनों के आधार पर दाखिल किया गया है। परिवाद में मिस ज्वाइन्डर आफ पार्टिज का दोष है। प्रत्यर्थी/परिवादी कार के किसी डिफेक्ट को सिद्ध नहीं कर पाया है, क्योंकि परिवादी उपभोक्ता नहीं है इसलिए परिवाद खारिज होने योग्य है।
विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग, वाराणसी द्वारा उभय पक्ष के अभिवचन, तथ्यों एवं उपलब्ध साक्ष्य पर विचार करने के उपरांत परिवाद को स्वीकार कर निम्न आदेश पारित किया गया है:-
"प्रस्तुत परिवाद स्वीकार किया जाता है। विपक्षी सं0-3 को आदेशित किया जाता है कि वह इस आदेश की तिथि से अन्दर 30 (तीस दिन) परिवादी को मु0-4,23,048.00 (चार लाख तेईस हजार अड़तालीस रूपये) तथा इस पर परिवाद दाखिला की तिथि से भुगतान की तिथि तक 09 प्रतिशत (नौ प्रतिशत) वार्षिक दर से ब्याज अदा करें। इसके अतिरिक्त परिवादी विपक्षी नं0-3 से उक्त निर्धारित अवधि में मानसिक कष्ट हेतु क्षतिपूर्ति मु0-10,000.00 (दस हजार रूपये) तथा वाद व्यय मु0-5,000.00 (पॉच हजार रूपये) भी पाने का हकदार होगा।"
जिला उपभोक्ता आयोग के प्रश्नगत निर्णय/आदेश से क्षुब्ध होकर अपीलार्थी/विपक्षी सं0-3 हिन्दुस्तान मोटर्स लिमिटेड द्वारा प्रस्तुत अपील योजित की गई है।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा कथन किया गया कि जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा मात्र प्रत्यर्थी/परिवादी की ओर से प्रस्तुत अभिकथनों के आधार पर निर्णय पारित किया गया है, जो कि पूर्णत: अविधिक है एवं जिला
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उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय तथ्य और विधि के विरूद्ध है और अपास्त किए जाने योग्य है।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा मुख्य रूप से कथन किया गया कि अपीलार्थी प्रश्नगत वाहन (अम्बेस्डर कार) की निर्माता कम्पनी है तथा प्रश्नगत वाहन में निर्णय सम्बन्धी कोई दोष नहीं है। यह भी कथन किया गया प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा प्रश्नगत वाहन (अम्बेस्डर कार) का उपयोग व्यसायिक कार्यों के लिए किया जाता रहा है, इसलिए प्रत्यर्थी/परिवादी उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आता है। यह भी कथन किया गया कि परिवाद में मिस ज्वाइन्डर आफ पार्टिंज का दोष है, जिस पर जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा विचार नहीं किया गया है।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता यह भी कथन किया गया है कि प्रश्नगत वाहन में तकनीकी खराबी का कोई दोष अथवा कमी को प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा प्रमाणित नहीं किया गया है और न ही प्रश्नगत वाहन से धुऑ निकलना, पेट्रोल की खपत अधिक होना, कार जल्दी गरम होना एवं पिकअप न लेना इत्यादि आरोपों को प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा सिद्ध किया गया है। यह भी कथन किया गया कि अपीलार्थी द्वारा सेवा में किसी प्रकार की कोई कमी नहीं की गई है, अत्एव अपील स्वीकार किये जाने योग्य है।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित विद्वान अधिवक्ता द्वारा कथन किया गया कि जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश पूर्णत: विधि सम्मत है तथा उसमें किसी प्रकार के हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है तथा अपील निरस्त किये जाने की प्रार्थना की गई।
हमारे द्वारा उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्ता द्व्य को सुना गया तथा पत्रावली पर उपलब्ध समस्त प्रपत्रों का अवलोकन किया गया।
यद्यपि प्रस्तुत अपील विलम्ब देरी क्षमा प्रार्थना पत्र के साथ प्रस्तुत की गई है, परन्तु चूंकि उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्ता द्व्य उपस्थित हैं, अत्एव अपील का निस्तारण सहमति से गुणदोष के आधार पर किया जाना उचित प्रतीत होता है।
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तद्नुसार विलम्ब देरी क्षमा प्रार्थना पत्र में दर्शित कारण पर्याप्त एवं उचित हैं, अत्एव विलम्ब देरी क्षमा प्रार्थना पत्र स्वीकार किया जाता है।
निर्विवादित रूप से वर्तमान प्रकरण में यह पाया जाता है कि प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा जो वाहन (अम्बेस्डर कार) अपीलार्थी/विपक्षीगण से क्रय किया गया था, उसमें उत्पन्न तकनीकी कमियों को पूर्णरूप से ठीक नहीं किया जा सका है और न ही वाहन को बदला गया है, जबकि प्रश्नगत वाहन वारण्टी अवधि में था, जिससे प्रत्यर्थी/परिवादी को आर्थिक मानसिक कष्ट हुआ है अत्एव अपीलार्थी/विपक्षी सं0-3 की सेवा में स्पष्ट कमी परिलक्षित है और विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश पूर्णत: विधि अनुकूल है तथा विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा जो अनुतोष अपने प्रश्नगत निर्णय/आदेश में प्रत्यर्थी/परिवादी को प्रदान किया गया है, उसमें किसी प्रकार कोई अवैधानिकता अथवा विधिक त्रुटि अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा अपील स्तर पर इंगित नहीं की जा सकी है, अत्एव प्रस्तुत अपील बलहीन होने के कारण निरस्त की जाती है।
अपीलार्थी को आदेशित किया जाता है कि वह उपरोक्त निर्णय/आदेश का अनुपालन 30 दिन की अवधि में किया जाना सुनिश्चित करें अन्यथा रू0 10,000.00 प्रतिमाह हर्जाना आदेश की तिथि से भुगतान की तिथि तक देय होगा।
अपील में उभय पक्ष अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
अपील में धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अन्तर्गत जमा धनराशि मय अर्जित ब्याज सहित सम्बन्धित जिला उपभोक्ता आयोग को विधिनुसार निस्तारण हेतु प्रेषित की जाए।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार) (सुशील कुमार)
अध्यक्ष सदस्य
हरीश आशु.,
कोर्ट नं0-1