Uttar Pradesh

StateCommission

RP/40/2023

HDFC BANK LTD. - Complainant(s)

Versus

Vandana Tyagi - Opp.Party(s)

Manu Dixit

27 May 2024

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
Revision Petition No. RP/40/2023
( Date of Filing : 08 May 2023 )
(Arisen out of Order Dated 10/02/2023 in Case No. CC/203/2022 of District Ghaziabad)
 
1. HDFC BANK LTD.
aa
...........Appellant(s)
Versus
1. Vandana Tyagi
aa
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. JUSTICE ASHOK KUMAR PRESIDENT
 HON'BLE MR. Vikas Saxena JUDICIAL MEMBER
 
PRESENT:
 
Dated : 27 May 2024
Final Order / Judgement

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ

(मौखिक)

पुनरीक्षण याचिका संख्‍या-40/2023

 

एचडीएफसी बैंक लिमिटेड द्वारा

ब्रांच मैनेजर, गाजियाबाद.....                      .....पुनरीक्षणकर्ता

 

बनाम

 

वंदना त्‍यागी,

पत्‍नी स्‍व. सुनील दत्‍ता.....                         .....विपक्षी

 

समक्ष:-   

1. माननीय न्‍यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्‍यक्ष।

2. माननीय श्री विकास सक्‍सेना, सदस्‍य।

 

पुनरीक्षणकर्ता की ओर से उपस्थित:     श्री मनु दीक्षित,

विद्वान अधिवक्‍ता 

विपक्षी   

ओर से उपस्थित:                    श्री निश्‍चय चौधरी,

                                  विद्वान अधिवक्‍ता

 

दिनांक: 27.05.2024

 

माननीय श्री विकास सक्‍सेना, सदस्‍य द्वारा उदघोषित

निर्णय

    

पुकार करायी गयी।

प्रस्‍तुत पुनरीक्षण याचिका जिला उपभोक्‍ता आयोग, गाजियाबाद द्वारा परिवाद संख्‍या 203/2022 वंदना त्‍यागी बनाम मै0 एचडीएफसी बैंक लिमिटेड व अन्‍य में पारित आदेश दिनांक 02.05.2022 एवं 10.02.2023 के विरूद्ध योजित की गयी है।

विद्वान जिला आयोग द्वारा पारित आदेश दिनांक 02.05.2022 एवं 10.02.2023 निम्‍नवत् हैं :-

 

-2-

 

02.05.2022

     पत्रावली पेश हुयी। परिवादी उपस्थित। विपक्षीगण की ओर से कोई उपस्थित नहीं है। परिवादी की ओर से ट्रेकिंग रिपोर्ट दाखिल की गयी है, जिसके आधार पर विपक्षीगण पर तामील पर्याप्‍त है।

     अत: विपक्षीगण के विरूद्ध एकपक्षीय कार्यवाही अग्रसारित की जाती है। पत्रावली वास्‍ते एकपक्षीय साक्ष्‍य दिनांक 07.09.2022 को पेश हो।

 

10.02.2023

     पत्रावली पेश हुयी। परिवादी एवं विपक्षी सं0-1 के विद्वान अधिवक्‍ता उपस्थित है। विपक्षी संख्‍या 02 की ओर से कोई उपस्थित नहीं है। विपक्षीगण के विरूद्ध दिनांक 02.05.2022 को एकपक्षीय कार्यवाही का आदेश परिवादी के द्वारा प्रस्‍तुत ट्रेकिंग रिपोर्ट के आधार पर किया गया था, जिसे अपास्‍त कराने हेतु विपक्षीगण की ओर से प्रार्थना पत्र प्रस्‍तुत किये गये हैं।

   सुना एवं अवलोकन किया। कोविड-19 की छूट भी दिनांक 31.05.2022 तक थी परन्‍तु विपक्षीगण की ओर से 18.11.2022 को प्रार्थना पत्र दिया गया है जो विधायिका के अन्‍तर्गत 45 दिन की सीमा से बाहर होने के कारण प्रार्थना पत्र विपक्षीगण एकपक्षीय आदेश अपास्‍त करने हेतु निरस्‍त होने योग्‍य है। निरस्‍त किया जाता है। पत्रावली वास्‍ते एकपक्षीय साक्ष्‍य दिनांक 08.05.2023 को पेश हो।

 

 

-3-

पुनरीक्षणकर्ता की ओर से उपस्थित विद्वान अधिवक्‍ता श्री मनु दीक्षित एवं विपक्षी की ओर से उपस्थित विद्वान अधिवक्‍ता श्री निश्‍चय चौधरी को सुना गया।   

पुनरीक्षणकर्ता द्वारा जिला आयोग, गाजियाबाद द्वारा पारित आदेश दिनांक 02.05.2022 एवं आदेश दिनांक 10.02.2023 को अपास्‍त किये जाने तथा पुनरीक्षणकर्ता द्वारा प्रस्‍तुत वादोत्‍तर का संज्ञान लिये जाने तथा कार्यवाही में उपस्थित होकर सम्मिलित होने के अनुतोष की भी प्रार्थना की गयी।

पुनरीक्षणकर्ता/विपक्षी ने अपने वादोत्‍तर को पीठ द्वारा संज्ञान में लिये जाने की प्रार्थना की गयी है, जिसका आधार यह लिया गया है कि विद्वान जिला आयोग ने आदेश दिनांकित 10.02.2023 में यह कथन किया है कि विपक्षीगण के विरूद्ध दिनांक 02.05.2022 को एकपक्षीय कार्यवाही करने का आदेश परिवादी द्वारा प्रस्‍तुत ट्रेकिंग रिपोर्ट के आधार पर किया गया है।

मा0 सर्वोच्‍च न्‍यायालय द्वारा दी गयी कोविड-19 की छूट दिनांक 31.05.2022 तक थी, किन्‍तु विपक्षीगण की ओर से दिनांक 18.11.2022 को प्रार्थना पत्र दिया गया है, जो विधायिका के अन्‍तर्गत निर्धारित 45 दिन की सीमा के बाहर है, इस कारण प्रार्थना पत्र निरस्‍त करते हुए एकपक्षीय साक्ष्‍य हेतु दिनांक 08.05.2023 की तिथि नियत की गयी है।

इस पीठ के समक्ष निम्‍न 02 बिन्‍दु विचारणीय हैं :-

1.   क्‍या विपक्षी को उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के अन्‍तर्गत वर्तमान परिस्थितियों में वादोत्‍तर प्रस्‍तुत करने का अधिकार है अथवा

-4-

विधायिका के अन्‍तर्गत 45 दिन की सीमा निकलने के उपरान्‍त वादोत्‍तर का अधिकार नहीं है।

2.   क्‍या एकपक्षीय आदेश पारित होने के उपरान्‍त पुनरीक्षणकर्ता/विपक्षी को अग्रिम कार्यवाही में सम्मिलित होने का अधिकार है।

     प्रथम बिन्‍दु के संबंध में विचारण न्‍यायालय द्वारा आदेश दिनांकित 02.05.2022 पारित किया गया है, जिसमें परिवादी की ओर से प्रस्‍तुत की गयी डाक ट्रेकिंग रिपोर्ट को आधार मानते हुए समय-सीमा व्‍यतीत हो जाने के उपरान्‍त विधायिका के अन्‍तर्गत 45 दिन व्‍यतीत होने के आधार पर एकपक्षीय कार्यवाही अग्रसारित किये जाने का आदेश पारित किया गया है।

     उक्‍त ट्रेकिंग रिपोर्ट का अवलोकन किया गया। ट्रेकिंग रिपोर्ट में दिनांक 06.04.2022 को समय 13:19:28 में एचडीएफसी, जिसको पत्र संबोधित है। पत्र को डिलीवर्ड किये जाने की रिपोर्ट है। रिपोर्ट में अंकित है कि Item delivered (to HDFC addressee)” पुन: दिनांक 07.04.2022 की रिपोर्ट है “Item Delivery Confirmed.”

     उपरोक्‍त ट्रेकिंग रिपोर्ट से स्‍पष्‍ट हो जाता है कि दिनांक 06.04.2022 को उक्‍त नोटिस की डिलीवरी की पुष्टि की गयी थी। उक्‍त डाक ट्रेकिंग रिपोर्ट कितनी महत्‍वपूर्ण है, के संबंध में मा0 उच्‍च न्‍यायालय द्वारा पारित निर्ण्‍य पुर्णिमा सिंह बनाम स्‍टेट ऑफ यू0पी0 व अन्‍य में प्रकाशित 2024 ए एच सी 40783 में मा0 उच्‍च न्‍यायालय, इलाहाबाद ने पोस्‍टल ट्रेकिंग रिपोर्ट को नोटिस की तामील

 

 

-5-

की सम्‍पुष्टि मानते हुए इस आधार पर निर्णय पारित किया है कि पोस्‍टल ट्रेकिंग रिपोर्ट के आधार पर नोटिस की तामील मानी जावेगी।

     उक्‍त नोटिस को देखते हुए यह तथ्‍य उचित प्रतीत होता है कि पुनरीक्षणकर्ता के शाखा कार्यालय में नोटिस की तामील हो गयी थी, जिसका साक्ष्‍य पोस्‍टल ट्रेकिंग रिपोर्ट है, किन्‍तु इसके उपरान्‍त भी वादोत्‍तर प्रस्‍तुत नहीं किया गया था एवं विधायिका के अन्‍तर्गत 45 दिन के उपरान्‍त तक वादोत्‍तर नहीं आया था एवं मा0 उच्‍चतम न्‍यायालय द्वारा कोविट-19 के समय की छूट को देखते हुए भी यह विधायिका के अन्‍तर्गत 45 दिन की सीमा के बाहर है। इस संबंध में प्रत्‍यर्थी की ओर से मा0 सर्वोच्‍च न्‍यायालय द्वारा पारित निर्णय न्‍यू इण्डिया एश्‍योरेंस कं.लि. बनाम हिली मल्‍टी परपस कोल्‍ड स्‍टोरेज I (2016) CPJ 1 (SC) सिविल अपील संख्‍या 10941/2013 निर्णय तिथि दिनांक 04.03.2020 प्रस्‍तुत किया गया है।     

     इस निर्णय में यह प्रदान किया गया है कि उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम, 1986  के अन्‍तर्गत विपक्षी को परिवाद की प्रतिलिपि प्राप्‍त होने के 45 दिन अर्थात् सामान्‍य रूप से 30 दिन एवं पीठ के विवेकाधिकार पर अतिरिक्‍त 15 दिन के उपरान्‍त वादोत्‍तर देने का कोई अधिकार नहीं होता एवं फोरम को भी वादोत्‍तर लेने का कोई अधिकार अधिनियम के अन्‍तर्गत नहीं है।        

     प्रस्‍तुत मामले में ट्रेकिंग रिपोर्ट के अवलोकन से यह स्‍पष्‍ट होता है कि इसमें 60 ग्राम डाक भेजे जाने का वर्णय है, जिससे यह उपधारणा की जा सकती है कि परिवाद की प्रतिलिपि नोटिस के साथ प्रेषित की गयी, जो ट्रेकिंग रिपोर्ट के अनुसार दिनांक 06.04.2022 को

 

-6-

पुनरीक्षणकर्ता को प्राप्‍त हो गयी थी। इसके अतिरिक्‍त यह उपधारणा इसलिए भी की जा सकती है कि नोटिस के साथ परिवाद की प्रतिलिपि भी थी, क्‍योंकि सामान्‍यत: कार्यालय द्वारा बिना परिवाद पत्र के नोटिस प्रेषित नहीं की जा सकती है। अत: उक्‍त तिथि 06.04.2022 को पुनरीक्षणकर्ता को परिवाद की प्रतिलिपि प्राप्‍त हो गयी थी एवं धारा-38 उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अुसार 45 दिन की अवधि वादोत्‍तर दिये जाने की परिसीमा समाप्‍त हो चुकी थी, अत: मा. सर्वोच्‍च न्‍यायालय के उपरोक्‍त निर्णय न्‍यू इण्डिया एश्‍योरेंस कं.लि. बनाम हिली मल्‍टी परपस कोल्‍ड स्‍टोरेज  I (2016) CPJ 1 (SC) में दिये गये दिशा-निर्देशों का पालन करते हुए पुनरीक्षणकर्ता को परिवाद पत्र में वादोत्‍तर प्रस्‍तुत करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।

     द्वितीय बिन्‍दु के संबंध में आदेश दिनांकित 02.05.2022 का अवलोकन करने से स्‍पष्‍ट होता है कि विद्वान जिला आयोग ने पुनरीक्षणकर्ता पर तामील पर्याप्‍त मानते हुए आदेश पारित किया है, अत: विपक्षी के विरूद्ध एकपक्षीय कार्यवाही अग्रसारित की जाती है। पत्रावली वास्‍ते एकपक्षीय साक्ष्‍य दिनांक 07.09.2022 को पेश हो।  

     उक्‍त आदेश के संबंध में स्‍थापित विधि यह है कि किसी पक्ष के अनुपस्थित रहने पर एकपक्षीय कार्यवाही अग्रसारित करने का कोई अधिकार न्‍यायालय को नहीं है। यह बिन्‍दु मा. सर्वोच्‍च न्‍यायालय के निर्णय संग्राम सिंह बनाम इलेक्‍शन ट्रिब्‍यूनल कोटा प्रकाशित ए.आई.आर. 1955 सुप्रीम कोर्ट पृष्‍ठ 425 में विश्‍लेषित किया गया है कि प्रत्‍येक मामले में एकपक्षीय कार्यवाही का तात्‍पर्य एक पक्षकार की

 

-7-

अनुपस्थिति में कार्यवाही होना है न कि किसी भी पक्षकार को अग्रिम कार्यवाहियों में सम्मिलित होने से मना करना है। मा. सर्वोच्‍च न्‍यायालय के अनुसार एकपक्षीय रूप से कार्यवाही अग्रसारित करने से किसी भी पक्षकार को अग्रिम कार्यवाही में सम्मिलित होने से मना करने का कोई अधिकार न्‍यायालय को नहीं है। सिविल प्रक्रिया संहिता अथवा अन्‍य किसी अधिनियम में एकपक्षीय कार्यवाही का विकल्‍प मात्र पक्षकार की अनुपस्थिति में कार्यवाही चलाये जाने की अनुमति मात्र है। किसी भी पक्षकार को अग्रिम कार्यवाही में सम्मिलित होने से निषेध करने का कोई अधिकार एकपक्षीय कार्यवाही के आड़ में नहीं दिया जा सकता है।

     विद्वान जिला आयोग के आदेश दिनांकित 02.05.2022 के अवलोकन से स्‍पष्‍ट होता है कि विद्वान जिला आयोग ने एकपक्षीय कार्यवाही अग्रसारित करने से एकपक्षीय साक्ष्‍य के लिए तिथि नियत की थी तथा इसके उपरान्‍त पुनरीक्षणकर्ता द्वारा एकपक्षीय आदेश को अपास्‍त करने का प्रार्थना पत्र आदेश दिनांकित 10.02.2023 से निरस्‍त कर दिया गया है, जबकि मा. सर्वोच्‍च न्‍यायालय द्वारा स्‍थापित उपरोक्‍त विधि के अनुसार पक्षकार को अग्रिम कार्यवाही में सम्मिलित होने से मना नहीं किया जा सकता है।

     उपरोक्‍त विवेचन से स्‍पष्‍ट है कि पुनरीक्षणकर्ता को वादोत्‍तर प्रस्‍तुत करने का अधिकार अब नहीं रह गया है, क्‍योंकि मा. सर्वोच्‍च न्‍यायालय के निर्णय न्‍यू इण्डिया एश्‍योरेंस कं.लि. बनाम हिली मल्‍टी परपस कोल्‍ड स्‍टोरेज  I (2016) CPJ 1 (SC) में दिये गये दिशा-निर्देशों के अनुसार विधायिका के अन्‍तर्गत समय-सीमा निकल चुकी है तथा

 

-8-

इसके उपरान्‍त अधिनियम के प्रावधानानुसार पुनरीक्षणकर्ता को वादोत्‍तर का अधिकार नहीं रह जाता है, किन्‍तु पुनरीक्षणकर्ता को अग्रिम कार्यवाही में सम्मिलित होने का पूर्ण अधिकार है, अत: वे अग्रिम कार्यवाही में शपथ पत्र के माध्‍यम से अपना साक्ष्‍य प्रस्‍तुत कर सकते हैं एवं इसके उपरान्‍त दोनों पक्ष के साक्ष्‍य के प्रकाश में विद्वान जिला आयोग द्वारा वाद का निस्‍तारण किया जा सकता है।  

     तदनुसार पुनरीक्षण याचिका स्‍वीकार किये जाने योग्‍य है एवं विद्वान जिला आयोग द्वारा पारित प्रश्‍नगत् आदेश दिनांकित 02.05.2022 एवं 10.02.2023 अपास्‍त किये जाने योग्‍य है।

आदेश

प्रस्‍तुत पुनरीक्षण याचिका स्‍वीकार की जाती है। जिला उपभोक्‍ता आयोग, गाजियाबाद द्वारा परिवाद संख्‍या 203/2022 वंदना त्‍यागी बनाम मै0 एचडीएफसी बैंक लिमिटेड व अन्‍य में पारित आदेश दिनांक 02.05.2022 एवं 10.02.2023 अपास्‍त किया जाता है। पुनरीक्षणकर्ता/विपक्षी को यह अधिकार है कि वे अपना साक्ष्‍य परिवादी के साक्ष्‍य के उपरान्‍त प्रस्‍तुत कर सकते हैं, यद्यपि उन्‍हें वादोत्‍तर का अधिकार नहीं है।

विद्वान जिला आयोग से अपेक्षा की जाती है कि दोनों पक्ष को साक्ष्‍य का अवसर देते हुए परिवाद का निस्‍तारण यथासम्‍भव 03 माह की अवधि में किया जाना सुनिश्चित करें।        

आशुलिपि‍क से अपेक्षा की जाती है कि‍ वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।        

                     

 

(न्‍यायमूर्ति अशोक कुमार)                  (विकास सक्‍सेना)                

      अध्‍यक्ष                                सदस्‍य

                                

आशीष आशु0, कोर्ट-1

 
 
[HON'BLE MR. JUSTICE ASHOK KUMAR]
PRESIDENT
 
 
[HON'BLE MR. Vikas Saxena]
JUDICIAL MEMBER
 

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