ORDER | द्वारा- श्री पवन कुमार जैन - अध्यक्ष - इस परिवाद के माध्यम परिवादीगण ने अनुरोध किया है कि विपक्षीगण से उन्हें नो डयूज सटिर्फिकेट तथा मानचित्र सहित मूल बैनामा वापिस दिलाया जाऐ। क्षतिपूर्ति की मद में विपक्षीगण से 80,000/- रूपये और लिये गये ऋण के सापेक्ष अधिक जमा की गई 8,000/- रूपये की धनराशि ब्याज सहित विपक्षीगण से दिलाऐ जाने की प्रार्थना उन्होंने अतिरिक्त की।
- संक्षेप में परिवाद कथन इस प्रकार हैं कि अपने भूखण्ड पर भवन निर्माण हेतु 98,000/- रूपया ऋण लेने हेतु लगभग 15 वर्ष पूर्व परिवादीगण ने विपक्षीगण को आवेदन किया था जो विपक्षीगण ने स्वीकार कर लिया। ऋण की धनराशि का भुगतान वर्ष 1991 से डिमांड नोट के आधार पर परिवादीगण द्वारा विपक्षीगण को किया जाना था। ऋण के सापेक्ष परिवादीगण ने मौजा ढ़क्का, कुन्दरपुर, जिला मुरादाबाद स्थित अपने आवासीय प्लाट का मूल बैनामा और उसका स्वीकृत मानचित्र विपक्षी सं0-2 को बन्धक हेतु दिये। विपक्षी सं0-2 ने स्वीकृत ऋण के बदले छपे हुऐ फार्म पर परिवादीगण के हस्ताक्षर करवाये, उन्हें कुछ भी पढ़ाया व समझाया नहीं गया। परिवादीगण को ऋण सम्बन्धी कागजात की नकलें भी विपक्षीगण ने नहीं दी। परिवादीगण ने स्व: विवेक से ऋण की किश्तों का भुगतान विपक्षी सं0-1 को किया। परिवादीगण को बताया गया था कि स्वीकृत ऋण के सापेक्ष 15 वर्ष की अवधि में परिवादीगण द्वारा कुल 2,40,000/- रूपया की धनराशि वापिस करनी है जिसमें मूल धन और ब्याज सम्मिलित होगा और यह धनराशि जमा करने पर ऋण चुकता हो जाऐगा। परिवादीगण के अनुसार उन्होंने ऋण के सापेक्ष 2,43,651/- रूपया 52 पैसे की धनराशि विपक्षीगण को अदा की और इस तरह अपेक्षित धनराशि से अधिक का भुगतान कर दिया जब परिवादीगण ने नक्शे सहित मूल बैनामा विपक्षी सं0-2 से मांगा तो वे टालमटोल करते रहे और कहा कि विपक्षी सं0-1 के पास मूल बैनामा है वहॉं से आने पर आपको दे दिया जाऐगा। कई बार लिखित और मौखिक तकाजा करने के बावजूद परिवादीगण को उनका मूल बयनामा वापिस नहीं किया गया। विपक्षी सं0-1 की ओर से उन्हें बताया गया कि कार्यालय में आग लग जाने की बजह से कागजात नहीं मिल पा रहे हैं अत: परिवादीगण जमा की गई समस्त धनराशि की रसीदों की फोटो प्रतियां और अन्य सम्बन्धित प्रपत्र उपलब्ध करा दें। परिवादीगण ने इसका अनुपालन किया। इसके बावजूद विपक्षीगण ने परिवादीगण को मूल बैनामा और नो डयूज सटिर्फिकेट नहीं दिया बल्कि परिवादीगण की ओर गलत बकाया धनराशि का नोटिस दे दिया। मजबूरन परिवादीगण ने 10,000/- रूपये की धनराशि और जमा कर दी। इसके बावजूद नक्शा और नो डयूज सर्टिफिकेट उन्हें विपक्षीगण ने नहीं दिया। परिवादीगण के अनुसार विपक्षीगण के यह कृत्य ग्राहक सेवा में कमी हैं। परिवादीगण ने अग्रेत्तर कथन किया कि जिस समय परिवादीगण ने ऋण लिया था उस समय विपक्षी सं0-1 का नाम आवास संघ था जो कालान्तर में बदल गया। अब संस्था का नाम सहकारी आवास निर्माण एवं वित्त निगम लि0, मुख्यालय-6, सरोजनी नायडू, मार्ग लखनऊ हो गया है। विपक्षी सं0-2 ने विपक्षी सं0-1 का नाम बदले जाने की कोई जानकारी परिवादीगण को नहीं दी, विपक्षी सं0-2 ने नियमित रूप से परिवादीगण को डिमांड नोट भी नहीं भेजे और न ही उन्होंने ऋण बकाऐ की परिवादीगण को कोई जानकारी दी। विपक्षी सं0-2 ने दिनांक 31/12/2004 को एक नोटिस परिवादीगण को भेजा जिसमें मकान की कुर्की करने का कथन किया गया जो विधि विरूद्ध है। परिवादीगण ने अपने अधिवक्ता के माध्यम से दिनांक 28/1/2010 को एक कानूनी नोटिस विपक्षीगण को भेजा जिसमें यह कथन करते हुऐ कि ऋण की पूरी धनराशि ब्याज सहित परिवादीगण ने अदा कर दी है, विपक्षीगण से असल बैनामा और नो डयूज सर्टिफिकेट की मांग की गई, किन्तु विपक्षीगण ने इस पर कोई कार्यवाहीं नहीं की। परिवादीगण ने दिनांक 23/12/2010 और 04/1/2011 को पुन: नोटिस भिजवाऐ किन्तु विपक्षीगण ने कोई कार्यवाही नहीं की बल्कि परिवादीगण के मकान को नीलाम करने की कार्यवाही उनके द्वारा की जा रही है। परिवादीगण के अनुसार विपक्षीगण के कृत्य सेवा में कमी तो हैं ही साथ ही साथ परिवादीगण का अनावश्यक उत्पीड़न भी विपक्षीगण कर रहे हैं। परिवादीगण ने परिवाद में अनुरोधित अनुतोष दिलाऐ जाने की प्रार्थना की।
- परिवाद के समर्थन में परिवादिनी सं0-1 ने अपना शपथ पत्र कागज सं0-3/4 दाखिल किया।
- परिवादीगण ने परिवाद के समर्थन में विपक्षीगण को भेजे गऐ नोटिस दिनांकि 23/12/2010, इसे भेजे जाने की डाकखाने की रसीद, जबाब नोटिस दिनांकित 28/1/2010, विपक्षीगण की ओर से प्राप्त डिमांड नोटिस दिनांकित 21/1/2010, विपक्षीगण की ओर से प्राप्त डिमांड नोटिस दिनांकित 01/1/2005, धनराशि जमा करने की रसीदें दिनांक 01/10/1991, 01/01/1992, 26/3/1992, 30/6/1992, 01/10/1992 ,01/01/1993, 12/4/1993, 31/5/1993, 28/6/1993, 06/10/1993, 31/12/1993, 30/4/1994, 21/5/1994, 21/7/1994, डिमांड नोटिस दिनांकित 07/4/1994, धनराशि जमा करने की रसीदें दिनांक 28/1/21994, 10/4/1995, डिमांड नोटिस दिनांकित 02/8/1995, समायोजन पत्र दिनांक 31/1/1995, 03/6/1995, 30/6/1995, डिमांड नोटिस दिनांकित 22/6/1995, समायोजन पत्र दिनांक 13/10/1995, 22/1/1996, 0/4/1996, 08/7/1996, 14/10/1996, 07/1/1997, 09/4/1997, 11/5/1997, 09/10/1997, 05/1/1998, 06/4/1998, 10/7/1998, 09/10/1998, 18/1/1999, 05/4/1999, 08/7/1999, 04/10/1999, कारपोरेशन बैंक कम्पनी बाग, मुरादाबाद में जमा की गई धनराशि की रसीदें दिनांकित 08/1/2001, , 13/6/2001, 01/10/2001, 24/12/2001, 11/3/2002, 05/9/2002, 13/9/2002, 08/11/2002, 13/1/2003, 06/3/2003, 02/7/2003, 11/8/2003, 06/10/2003, 03/12/2003, 05/1/2004, 15/1/2004, 27/8/2004, 20/9/2004, 06/12/2004, 04/2/2005, 26/2/2005, 04/2/2009, परिवादिनी सं0-1 द्वारा विपक्षी सं0-1 को भेजे गऐ पत्र दिनांकित 28/1/2009, विपक्षी सं0-1 के सहायक महाप्रबन्धक द्वारा विपक्षी सं0-2 को भेजे गऐ पत्र दिनांकित 14/1/2009, परिवादीगण द्वारा विपक्षी सं0-2 को भेजे गऐ पत्र दिनांकित 23/1/2009 तथा परिवादी पक्ष और विपक्षीगण के मध्य दिनांक 18/1/2011 तक हुऐ पत्राचार की नकलों को दाखिल किया गया है।
- विपक्षी सं0-1 व 2 की ओर से विपक्षीगण के पैरोकार द्वारा शपथ पत्र कागज सं0-12 से समर्थित प्रतिवाद पत्र कागज सं0-11/1 लगायत 11/3 दाखिल किया गया जिसमें परिवादीगण को उनके अनुरोध पर भवन निर्माण हेतु 98,000/- रूपया ऋण स्वीकार किया जाना और ऋण की किश्तों की अदायगी डिमांड नोट के आधार पर वर्ष 1991 से प्रारम्भ होना तो स्वीकार किया गया है, किन्तु शेष कथनों से इन्कार किया गया। अग्रेत्तर कथन किया गया कि विपक्षी सं0-2 के तत्कालीन शाखा प्रबन्धक श्री साबिर खां द्वारा परिवादीगण को कभी भी यह नहीं बताया गया कि ऋण के सापेक्ष 15 वर्षों में विपक्षीगण को कुल 2,40,000/- रूपया अदा करना है, इस सम्बन्ध में परिवादीगण के कथन मिथ्या है। परिवादीगण ने कोई भी किश्त समयानुसार जमा नहीं की। नियमानुसार परिवादी को नीलामी का नोटिस भेजा गया है, इसमें परिवादीगण को अपमानित करने अथवा अवांछित लाभ प्राप्त करने का कोई प्रश्न नहीं है। प्रतिवाद पत्र में यह भी कहा गया है कि परिवादीगण विपक्षी सं0-2 के कार्यालय में आऐ थे और ऋण खाते का मिलान करके शेष धनराशि 15 दिन में अदा करने का आश्वासन देकर चले गऐ, किन्तु उन्होंने अवशेष धनराशि अदा नहीं की। यह भी कहा गया कि आवास संघ के कार्यालय में नकद भुगतान प्राप्त नहीं किया जाता उनका कोई एजेन्ट भी नहीं है जो भी धनराशि देय होती है वह सीधे बैंक में जमा की जाती है। परिवादीगण ने जो भी पैसा जमा किया है उसका बैंक स्टेटमेंट उन्हें दिया जा चुका है। परिवादीगण की ओर दण्ड ब्याज सहित 66,076/- रूपया 07 पैसे की धनराशि बकाया है जो उन्होंने बावजूद तलब व तकाजा अदा नहीं की है जब तक परिवादीगण समस्त धनराशि ऋण खाते के अनुसार जमा नहीं करते तब तक न तो उनका बैनामा वापसि किया जा सकता है और न ही उन्हें नो डयूज सर्टिफिकेट जारी किया जा सकता है। यह अभिकथित करते हुऐ कि अनावश्यक दबाब बनाने के उद्देश्य से परिवादीगण ने असत्य कथनों के आधार पर परिवाद योजित किया है, परिवाद को सव्यय खारिज किऐ जाने की प्रार्थना की।
- परिवादीगण की ओर से परिवादी सं0-2 ने अपना साक्ष्य शपथ पत्र कागज सं0-13/1 लगायत 13/5 तथा परिवादिनी सं0-1 ने अपना साक्ष्य शपथ पत्र कागज सं0-14/1 लगायत 14/5 दाखिल किया। परिवादिनी सं0-1 के साक्ष्य शपथ पत्र के साथ ऋण के सापेक्ष परिवादीगण द्वारा विपक्षी सं0-2 के पक्ष में निष्पादित रजिस्टर्ड मार्गेज डीड दिनांकित 13/8/1991 की फोटो प्रति को दाखिल किया गया।
- परिवादीगण की ओर से ऋण के सापेक्ष जमा की गई धनराशि की गणना कागज सं0-18/2 दाखिल की गई। प्रत्युत्तर में विपक्षीगण की ओर से सूची कागज सं0-23/2 द्वारा दिनांक 27/8/2014 तक परिवादीगण की ओर बकाया धनराशि का विवरण कागज सं0-23/3 लगायत 23/4 तथा परिवादीगण के ऋण खाते के बैंक स्टेटमेंट की नकल कागज सं0-23/5 लगायत 23/7 दाखिल की गई। इसके विरूद्ध परिवादीगण की ओर से लिखित आपत्ति कागज सं0-25/2 लगायत 25/3 दाखिल हुई।
- परिवादीगण तथा विपक्षी सं0-2 ने अपनी-अपनी लिखित बहस दाखिल की।
- हमने दोनों पक्षों के विद्वान अधिवक्तागण के तर्कों को सुना और पत्रावली का अवलोकन किया।
- दोनों पक्षों के मध्य इस बिन्दु पर कोई विवाद नहीं है कि परिवादीगण के आवेदन पर विपक्षीगण ने उन्हें भवन निर्माण हेतु 98,000/- रूपया का ऋण स्वीकृत किया था जिसकी अदायगी 15 वर्षों में परिवादीगण द्वारा की जानी थी। पक्षकारों के मध्य दिनांक 13/08/1991 को एक पंजीकृत मारगेज डीड निष्पादित हुआ। ऋण के भुगतान की शर्तें और ऋण की किश्तों पर देय ब्याज की दर इत्यादि का उल्लेख इस मारगेज डीड में है, यह मारगेज डीड पत्रावली का कागज सं0-15/2 लगायत 15/11 है।
- परिवादीगण के अनुसार उन्हें स्वीकृत ऋण के सापेक्ष केवल 94,922/- रूपया अवमुक्त किऐ गऐ उन्हें 3,078/- रूपया कम दिया गया और इस प्रकार विपक्षीगण ने मारगेज डीड में उल्लिखित शर्तों का उल्लंघन किया और गबन का भी अपराध किया। परिवादीगण का अग्रेत्तर तर्क है कि उनके द्वारा अब तक 2,43,651/- रूपया 52 पैसा अदा किया जा चुका है और इस प्रकार उन्होंने 5,651/- रूपया 52 पैसा अधिक अदा कर दिऐ इसके बावजूद विपक्षीगण विधि विरूद्ध तरीके से परिवादीगण के विरूद्ध ऋण की राशि शेष बताते हुऐ उनकी सम्पत्ति नीलाम करने हेतु प्रयासरत हैं जिसका उन्हें कोई अधिकार नहीं है। परिवादीगण के विद्वान अधिवक्ता ने हमारा ध्यान अपनी कैलकुलेशन शीट कागज सं0-18/2 की ओर आकर्षित किया और कहा कि शीट के अनुरूप उन्होंने धनराशि जमा की है। परिवादीगण के विद्वान अधिवक्ता ने समय-समय पर जमा की गई धनराशि के सन्दर्भ में पत्रावली में अवस्थित कागज सं0-3/8 लगायत 3/93 का भी उल्लेख किया। परिवादीगण के विद्वान अधिवक्ता का यह भी कथन है कि विपक्षीगण द्वारा दाखिल बकाया धनराशि की तालिका कागज सं0-23/3 एवं 23/4 तथा तत्सम्बन्धी ऋण खाते की प्रमाणित प्रति कागज सं0-23/5 लगायत 23/7 गलत है। परिवादी पक्ष की ओर से कहा गया कि विपक्षीगण ने देय धनराशि की गणना करने में चक्रवृद्धि ब्याज और दण्ड ब्याज परिवादीगण पर लगाया जिसका उन्हें अधिकार नहीं था। परिवादीगण के विद्वान अधिवक्ता का कथन है कि भारत सरकार के वित्त मंत्रालय द्वारा आवास ऋण पर ब्याज की दर कम की गई है इसके बावजूद परिवादीगण द्वारा लिऐ गऐ ऋण के सापेक्ष विपक्षीगण ने ब्याज की दर में कोई कमी नहीं की और ऐसा करके उन्होंने परिवादीगण के साथ अन्याय किया। परिवादीगण का यह भी आरोप है कि उनके द्वारा जमा की गई नकद धनराशि जिसका उल्लेख परिवादगण की लिखित बहस के पैरा सं0-7 (पृष्ठ सं0-23/7) में किया गया है, को विपक्षीगण ने समायोजित नहीं किया और ऐसा करके उन्होंने अमानत में ख्यानत का भी अपराध किया है। परिवादीगण के विद्वान ने उपरोक्त तर्कों के आधार पर परिवाद को स्वीकार कर परिवाद में अनुरोधित अनुतोष विपक्षीगण से दिलाऐ जाने की प्रार्थना की।
- विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्ता ने परिवादीगण के विद्वान अधिवक्ता के तर्कों का प्रतिवाद किया और कहा कि परिवादीगण के तर्क नि:तान्त आधारहीन हैं और उनके द्वारा लगाऐ गऐ आरोप मिथ्या हैं। विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्ता ने परिवादीगण की कैलकुलेशन शीट कागज सं0-18/2 को अस्वीकार करते हुऐ विपक्षीगण द्वारा दाखिल ऋण राशि के बकाये की तालिका एवं ऋण खाते की नकल को सही बताया और तर्क दिया कि अभिलेखों के अनुसार परिवादीगण की ओर अभी भी ऋण की राशि बकाया है जब तक परिवादीगण उसका भुगतान नहीं करते तब तक उनके द्वारा अनुरोधित अनुतोष उन्हें नहीं दिलाऐ जा सकते।
- उपभोक्ता फोरम के समक्ष कार्यवाही समरी प्रकृति की होती हैं। ऐसे विवाद जिनमें विधि और तथ्यों के गूढ़ प्रश्न निहित हों उपभोक्ता फोरम द्वारा विनिश्चित किया जाना अपेक्षित नहीं है। वर्तमान मामले में परिवादीगण ने जो प्रश्न उठाऐ हैं उनका निर्धारण और विनिश्चिय दोनों पक्षों के व्यापक साक्ष्य पर विचार किऐ बिना नहीं किया जा सकता। परिवादीगण द्वारा उठाऐ गऐ तर्क ऐसे हैं जो व्यापक विचारण की अपेक्षा करते हैं और ऐसी समरी कार्यवाहियों में उपभोक्ता फोरम द्वारा उनका विचारण किया जाना अपेक्षित नहीं है। ऐसे विवादों का न्याय निर्णयन सिविल न्यायालय के समक्ष किया जाना चाहिए।
- मामले के तथ्यों और परिस्थितियों तथा पक्षकारों के बीच विवाद की प्रकृति पर विचार करने के बाद हमारे विनम्र अभिमत में यह ऐसा मामला है जिसका न्याय निर्णयन उपभोक्ता फोरम द्वारा समरी कार्यवाही में नहीं किया जा सकता बल्कि इसका न्याय निर्णयन सिविल न्यायालय के समक्ष किया जाना चाहिऐ।
- उपरोक्तानुरूप परिवाद इस निर्देश के साथ खारिज होने योग्य है कि परिवादीगण सिविल न्यायालय अथवा अन्य किसी सक्षम न्यायालय में वाद योजित करने हेतु स्वतंत्र होगें।
परिवाद इस निर्देश के साथ खारिज किया जता है कि परिवादीगण सिविल न्यायालय अथवा अन्य किसी सक्षम न्यायालय में वाद योजित करने हेतु स्वतंत्र होगें। (श्रीमती मंजू श्रीवास्तव) (सुश्री अजरा खान) (पवन कुमार जैन) सामान्य सदस्य सदस्य अध्यक्ष - 0उ0फो0-।। मुरादाबाद जि0उ0फो0-।। मुरादाबाद जि0उ0फो0-।। मुरादाबाद
11.01.2016 11.01.2016 11.01.2016 हमारे द्वारा यह निर्णय एवं आदेश आज दिनांक 11.01.2016 को खुले फोरम में हस्ताक्षरित, दिनांकित एवं उद्घोषित किया गया। (श्रीमती मंजू श्रीवास्तव) (सुश्री अजरा खान) (पवन कुमार जैन) सामान्य सदस्य सदस्य अध्यक्ष - 0उ0फो0-।। मुरादाबाद जि0उ0फो0-।। मुरादाबाद जि0उ0फो0-।। मुरादाबाद
11.01.2016 11.01.2016 11.01.2016 | |