राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
अपील सं0-८२४/२०१२
(जिला उपभोक्ता फोरम, द्वितीय लखनऊ द्वारा परिवाद संख्या-३३२/२०११ में पारित निर्णय/आदेश दिनांक-२७/०३/२०१२ के विरूद्ध)
Bank of Maharasthra through its Branch Manager Branch Aliganj Luncknow.
.............Appellant.
Versus
Utkarash Pharma C-74 Sector-k Aliganj Lucknow through its Proprietor Amit Kumar Goel son of Sri Jagbir Gopal Goel R/o c-74 Sector-k Aliganj Lucknow & One Other.
.......Respondents.
समक्ष:-
माननीय श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठा0सदस्य
अपीलकर्ता की ओर से उपस्थित : श्री आर0के0 गुप्ता विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थीगण की ओर से उपस्थित: श्री आर0के0 अग्रवाल विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक:27/04/2016
माननीय श्री उदय शंकर अवस्थी पीठा0 सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील जिला उपभोक्ता फोरम, द्वितीय लखनऊ द्वारा परिवाद संख्या-३३२/२०११ में पारित निर्णय/आदेश दिनांक-२७/०३/२०१२ के विरूद्ध योजित की गयी है।
संक्षेप में तथ्य इस प्रकार हैं कि प्रत्यर्थी सं0-२ प्रत्यर्थी सं0-१ का प्रोपराईटर है। दिनांक २७/०४/२००४ को प्रत्यर्थी सं0-२ ने प्रत्यर्थी सं0-१ के नाम से चालू खाता सी-ए-९९ बैंक ने खोला। प्रत्यर्थीगण के चेक सं0-१७०३०१ मु0 ३१९१९०/-रू0 दिनांक १५/१२/२००८ को अपीलकर्ता बैंक ने पैसे की कमी के कारण भुगतान नहीं किया तथा ४०/-रू0 काट लिए । प्रत्यर्थी ने दिनांक ३१/०३/२००९ को चेक सं0-१७०३०१ से १७०३०८ तक के भुगतान को रोकने के लिए स्टाप पेमेंट का पत्र भेजा। यह चेक एग्रो फार्मा, कानपुर के पक्ष में जारी हुए थे। दिनांक १८/०४/२००९ को अपीलकर्ता ने परिवादी/प्रत्यर्थी को यह सूचना दी कि ३१९०००/-रू0 के चेक का भुगतान कर दिया गया है और उसके खाते में पैसे कमी हैं। इस प्रकार प्रत्यर्थी सं0-२ अपीलकर्ता की शाखा में गया तब उसे अपीलकर्ता बैंक द्वारा बताया गया कि चेक सं0-१७०३०८ एवं १७०३०१ का भुगतान ओवरड्राफ्ट करके कर दिया गया। प्रत्यर्थी सं0-२ द्वारा यह बताने पर कि इन चेकों का भुगतान रोकने हेतु उसने पत्र प्रेषित किया था ।
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उसे बताया गया कि ऐसा कोई पत्र बैंक को प्राप्त नहीं हुआ है जिस पर प्रत्यर्थी सं0-२ ने प्राप्त कराए गए पत्र की फोटोप्रति प्रस्तुत की। दिनांक १८/०४/२००९ का पत्र मिलने के उपरांत अपीलकर्ता द्वारा से यह सूचना दी गयी कि उसे कोई पत्र नहीं मिला। प्रत्यर्थी ने अपने हस्ताक्षर से भुगतान रोकने हेतु तुरंत पत्र भेजा । अपीलकर्ता बैंक ने प्रत्यर्थी द्वारा प्रश्नगत चेकों का भुगतान रोकने हेतु निर्देश देने के बावजूद भुगतान कर दिया जबकि प्रत्यर्थी के खाते में चेक भुगतान हेतु पर्याप्त धनराशि भी नहीं थी। प्रत्यर्थी ने अपीलकर्ता बैंक से अपने खाते से भुगतान की गयी धनराशि वापस करने हेतु कहा किन्तु कोई सुनवाई नहीं की गयी। प्रत्यर्थी ने थाना अलीगंज लखनऊ में अपरात सं0-४०६, ४२०, ४६७ एवं ४६८ भारतीय दण्ड संहिता के अन्तर्गत मुकदमा भी दर्ज कराया जिसमें विवेचना के उपरांत आरोप पत्र प्रेषित किया। कोई सुनवाई न होने पर प्रत्यर्थी द्वारा जिला मंच के समक्ष परिवाद प्रत्यर्थी के खाते से अवैध रूप से किए गए भुगतान की वापसी एवं क्षतिपूर्ति हेतु योजित किया गया।
अपीलकर्ता बैंक की ओर से जिला मंच के समक्ष अपना पक्ष प्रस्तुत करने हेतु कोई उपस्थित नहीं हुआ। प्रत्यर्थी द्वारा प्रस्तुत की गयी साक्ष्य के परिशीलन के उपरांत विद्वान जिला मंच ने प्रत्यर्थी का परिवाद स्वीकार करते हुए अपीलकर्ता बैंक को निर्देशित किया कि वह प्रत्यर्थीगण को ३९९१७६/-रू0 निर्णय के दो माह के अन्दर दिनांक १५/०४/२००९ से संपूर्ण धनराशि अदा होने की तिथि तक ८ प्रतिशत साधारण वार्षिक ब्याज के हिसाब से अदा करेंगे। अपीलकर्ता बैंक प्रत्यर्थीगण को ५०००/-रू0 मानसिक उत्पीड़न के संदर्भ में बतौर क्षतिपूर्ति अदा करेंगे।
इस निर्णय से क्षुब्ध होकर यह अपील योजित की गयी है।
हमने अपीलकर्ता की ओर से श्री आर0के0 गुप्ता एवं प्रत्यर्थी की ओर से श्री आर0के0 अग्रवाल के तर्क सुने एवं पत्रावली का अवलोकन किया।
अपीलकर्ता के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि विद्वान जिला मंच ने अपीलकर्ता बैंक को सुनवाई का कोई अवसर प्रदान न करते हुए एकपक्षीय निर्णय करते हुए प्रश्नगत निर्णय पारित किया है।
अपीलकर्ता के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह तर्क भी प्रस्तुत किया गया कि एग्रो फार्मा कानपुर के पक्ष में प्रत्यर्थी द्वारा निष्पादित किए गए थे तथा इसका भुगतान इस फर्म द्वारा ही प्राप्त किया गया किन्तु प्रत्यर्थी ने जिला मंच के समक्ष योजित परिवाद में जानबूझकर मैसर्स एग्रो फार्मा कानपुर को पक्षकार नहीं बनाया गया । अपीलकर्ता बैंक की ओर से यह तर्क भी प्रस्तुत किया गया कि प्रश्नगत चेक का भुगतान रोके जाने के संदर्भ में प्रत्यर्थी द्वारा प्रेषित पत्र दिनांक ३१/०३/२००९ स्वयं खाता धारक प्रत्यर्थी द्वारा हस्ताक्षरित नहीं था। उसी दिन
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अपीलकर्ता ने प्रत्यर्थी को भुगतान रोके जाने के संदर्भ में प्रेषित पत्र की विश्वसनीयता स्पष्ट करने हेतु पत्र प्रेषित किया था किन्तु प्रत्यर्थी द्वारा इस पत्र का कोई मौखिक अथवा लिखित उत्तर नहीं दिया गया। अत: भुगतान रोके जाने के संदर्भ में प्रेषित पत्र की विश्वनीयता संदिग्ध होने के कारण अपीलकर्ता बैंक ने चेक का भुगतान कर दिया।
प्रत्यर्थी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि अपीलकर्ता का यह तर्क स्वीकार किए जाने योग्य नहीं है कि अपीलकर्ता को विद्वान जिला मंच में सुनवाई का अवसर प्रदान नहीं किया गया बल्कि वास्तविकता यह है कि अपीलकर्ता बैंक पर नोटिस की तामीला के बाद दिनांक २३/०६/२०११ को श्री भानु प्रकाश दुबे अधिवक्ता अपीलकर्ता की ओर से उपस्थित हुए किन्तु उनके द्वारा प्रतिवाद पत्र प्रस्तुत नहीं किया गया। इस संदर्भ में प्रत्यर्थी ने इस अपील की सुनवाई के मध्य प्रस्तुत अपने प्रति शपथपत्र में इस तथ्य की पुष्टि की है कि प्रत्यर्थी द्वारा प्रस्तुत किए गए प्रति शपथ पत्र के अभिकथनों का खण्डन अपीलकर्ता द्वारा नहीं किया गया है। अत: यह नहीं माना जा सकता है जिला मंच द्वारा ने अपीलकर्ता बैंक को प्रश्गनत परिवाद के संदर्भ में सुनवाई का अवसर न प्रदान करते हुए प्रश्नगत निर्णय पारित किया।
प्रत्यर्थी की ओर से यह तर्क भी प्रस्तुत किया गया कि दिनांक ३१/०३/२००९ को प्रत्यर्थी ने अपीलकर्ता बैंक को उसके द्वारा जारी किए गए चेक सं0-१७०३०४१ से १७०३०८ तक का भुगतान न करने हेतु पत्र प्रेषित किया था, किन्तु अपीलकर्ता बैंक ने प्रत्यर्थी द्वारा प्रेषित इस पत्र की अनदेखी करते हुए चेक सं0-१७०३०८ मु0 २०००००/-रू0 तथा चेक सं0-१७०३०१ मु0 ३१९१९०/-रू0 का भुगतान मैसर्स एग्रो फार्मा कानपुर को कर दिया। प्रत्यर्थी द्वारा यह तर्क भी प्रस्तुत किया गया कि दिनांक १५/०४/२००९ को उसके खाते में कुल ३९०१७६/-रू0 थे। प्रत्यर्थी ने अपीलकर्ता बैंक से ओवरड्राफ्ट की कोई सुविधा प्राप्त नहीं की थी। ओवरड्राफ्ट के लिए कोई निर्देश अपीलकर्ता बैंक को जारी न किए जाने के बावजूद प्रत्यर्थी के खाते में पर्याप्त धनराशि न होते हुए इन चेकों का भुगतान अपीलकर्ता बैंक द्वारा किया गया। इस प्रकार अपीलकर्ता बैंक ने इन चेकों का भुगतान करके सेवा में त्रुटि की है।
प्रस्तुत मामले में मुख्य विचारणीय बिन्दु यह है कि क्या अपीलकर्ता बैंक ने प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा जारी किए गए चेक सं0-१७०३०८ मु0 २०००००/-रू0 तथा चेक सं0-१७०३०१ मु0 ३१९१९०/-रू0 का भुगतान मैसर्स एग्रो फार्मा कानपुर को करके सेवा में त्रुटि की है?
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अपीलकर्ता बैंक के कथनानुसार प्रत्यर्थी द्वारा चेक सं0-१७०३०१ लगायत १७०३०८ का भुगतान न करने के संदर्भ में प्रेषित पत्र दिनांकित ३१/०३/२००९ खाता धारक प्रत्यर्थी सं0-२ द्वारा हस्ताक्षरित नहीं था । दिनांक ३१/०३/२००९ को ही अपीलकर्ता बैंक से संबंधित शाखा प्रबन्धक ने प्रत्यर्थी को पत्र प्रेषित करके स्थिति स्पष्ट करने की अपेक्षा की थी किन्तु प्रत्यर्थीद्वारा इस संदर्भ में कोई मौखिक अथवा लिखित सूचना प्रेषित न किए जाने के कारण अपीलकर्ता बैंक ने उपरोक्त चेकों का भुगतान मैसर्स एग्रो फार्मा कानपुर जिसके पक्षमें यह चेक जारी किए गए थे, को कर दिया । अपीलकर्ता बैंक द्वारा सेवा में कोई त्रुटि नहीं की गयी है।
प्रत्यर्थी का यह कथन है कि संबंधित शाखा प्रबन्धक ने दिनांक ३१/०३/२००९ को कोई पत्र उसे प्रेषित नहीं किया। दिनांक १८/०४/२००९ को बैंक के एक कर्मचारी ए0के0 मुखर्जी ने टेलीफोन पर सूचित किया था कि उसके खाते से ३१९०००/-रू0 के एक चेक का भुगतान किया गया है किन्तु खाते में धनराशि कम है। अत: शेष धनराशि प्रत्यर्थी अपने खाते में जमा करे। इस सूचना पर दिनांक १८/०९/२००९ को ही प्रत्यर्थी ने बैंक में प्रार्थना पत्र देकर यह सूचित किया था कि चेकों का भुगतान रोक दिया जाए, उसके बावजूद बैंक द्वारा चेकों का भुगतान किया गया। तत्कालीन शाखा प्रबन्धक ने प्रत्यर्थी द्वारा प्रेषित स्टाप पेमेंट का पत्र शाखा में उपलब्ध न होना बताया तथा प्रत्यर्थी को उपरोक्त पत्र के प्राप्ति की जानकारी उपलब्ध कराने को कहा जिस पर प्रत्यर्थी ने स्टाप पेमेंट के संदर्भ में प्रेषित पत्र के प्राप्ति की प्रति की फोटोप्रति शाखा प्रबन्धक को दिनांक १८/०४/२००९ को प्राप्त कराई। इस संबंध में अभिलेख जिला मंच के समक्ष प्रत्यर्थी द्वारा प्रस्तुत किए गए। प्रत्यर्थी ने अपील की सुनवाई के मध्य शपथ पत्र के साथ यह अभिलेख संलग्नक-४ एवं ४/१ के रूप में दाखिल किए हैं। ऐसी परिस्थिति में प्रत्यर्थी का यह कथन है कि दिनांक ३१/०३/२००९ को कोई पत्र संबंधित शाखा प्रबन्धक द्वारा प्रत्यर्थी को नहीं भेजा गया । बाद में विचार करके गलत तथ्यों के आधार पर अपीलकर्ता बैंक द्वारा यह कहा गया कि दिनांक ३१/०३/२००९ को प्रत्यर्थी को पत्र स्टाप पेमेंट के संदर्भ में स्पष्टीकरण प्रस्तुत करने के संदर्भ में भेजा गया था। उल्लेखनीय है कि दिनांक ३१/०३/२००९ को शाखा प्रबन्धक द्वारा कथित रूप से पत्र भेजे जाने की पुष्टि में कोई प्रमाण अपीलकर्तागण द्वारा प्रस्तुत नहीं किया गया है।
यह तथ्य निर्विवाद है कि दिनांक ३१/०३/२००९ को एक पत्र प्रत्यर्थी द्वारा जारी किए गए चेक सं0-१७०३०१ लगायत १७०३०८ का भुगतान रोके जाने हेतु अपीलकर्ता बैंक में प्रेषित किया गया था। अपीलकर्ता बैंक के कथनानुसार बैंक ने इस पत्र की विश्वनीयता की पुष्टि हेतु प्रत्यर्थी को पत्र प्रेषित किया था किन्तु पत्र का कोई मौखिक अथवा लिखित उत्तर प्राप्त न होने के कारण चेकों का भुगतान
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कर दिया गया। यदि बैंक को प्रत्यर्थी की ओर से चेकों का भुगतान रोके जाने के संबंध में भेजे गए पत्र की विश्वनीयता पर संदेह था, तब अपीलकर्ता बैंक से यह अपेक्षित था कि प्रत्यर्थी से इस संदर्भ में फोन से भी संपर्क किया जा सकता था क्योंकि प्रत्यर्थी का यह कथन है कि बैंक में उसका फोन उपलब्ध था और दिनांक १८/०४/२००९ को बैंक के कर्मचारी श्री ए0के0 मुखर्जी ने उसे फोन द्वारा सूचित भी किया था कि उसके खाते से २१९०००/-रू0 के चेक का भुगतान किया गया है, किन्तु खाते में धनराशि कम है।
यह तथ्य भी महत्वपूर्ण है कि प्रत्यर्थी के कथनानुसार दिनांक १५/०४/२००९ को उसके खाते में कुल ३९९१७६/-रू0 जमा थे। पत्र दिनांकित ३१/०३/२००९ प्रेषित किए जाने के उपरांत चेक सं0-१७०३०१ मु0 ३१९१००/-रू0 तथा चेक सं0-१७०३०८ मु0 २,००,०००/-रू0 का भुगतान अपीलकर्ता बैंक द्वारा किया गया। इस प्रकार कुल लगभग ५२००००/-रू0 का भुगतान अपीलकर्ता बैंक द्वारा किया गया जबकि इतनी धनराशि उपरोक्त प्रत्यर्थी के अपीलकर्ता बैंक में स्थित बैंक खाते में नहीं था। अपीलकर्ता बैंक के कथनानुसार ३१९१००/-रू0 के चेक का भुगतान प्रत्यर्थी के खाते में पर्याप्त धनराशि न होने के बावजूद बैंक के नियमों के अन्तर्गत की गयी।
यह तथ्य निर्विवाद है कि प्रत्यर्थी ने अपीलकर्ता बैंक से कोई ओवरड्राफ्ट की सुविधा प्राप्त नहीं की थी। प्रत्यर्थी द्वारा ओवर ड्राफ्ट हेतु कोई निर्देश भी अपीलकर्ता बैंक को नहीं दिए गए थे। इसके बावजूद प्रत्यर्थी के खाते में पर्याप्त धन न होने के बावजूद बैंक के किस नियम के अन्तर्गत चेक सं0-१७०३०१ मु0 ३१९०००/-रू0 का भुगतान अपीलकर्ता बैंक द्वारा किया गया, अपीलकर्ता की ओर से स्पष्ट नहीं किया गया।
इस प्रकार उपरोक्त तथ्यों के आलोक में यह स्पष्ट है कि प्रत्यर्थी द्वारा चेकों का भुगतान रोके जाने के संबंध में पत्र दिनांक ३१/०३/२००९ को भेजे जाने के बावजूद एवं प्रत्यर्थी के अपीलकर्ता बैंक में स्थित खाते में चेकों के भुगतान हेतु पर्याप्त धनराशि न होने के बावजूद अपीलकर्ता बैंक के कर्मचारियों ने अति उत्साह में प्रत्यर्थी के चेक सं0-१७०३०१ एवं १७०३०८ का भुगतान प्रत्यर्थी के खाते में पर्याप्त धनराशि न होने के बावजूद तथा चेकों का भुगतान रोके जाने हेतु पत्र भेजे जाने के बावजूद भुगतान अनधिकृत रूप से कर दिया । ऐसी परिस्थिति में हमारे विचार से विद्वान जिला मंच का यह निष्कर्ष कि अपीलकर्ता बैंक ने दिनांक १५/०४/२००९ को प्रत्यर्थी के खाते से २९९१७६/-रू0 का भुगतान करके सेवा में त्रुटि की है, त्रुटिपूर्ण नहीं है। अपील में बल नहीं है । तदनुसार अपील निरस्त किए जाने योग्य है।
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आदेश
अपील निरस्त की जाती है।
उभय पक्ष वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
उभयपक्षों को इस निर्णय की प्रमाणित प्रतिलिपि नियमानुसार नि:शुल्क उपलब्ध कराई जाए।
(उदय शंकर अवस्थी)
पीठा0सदस्य
सत्येन्द्र, आशु0 कोर्ट नं0-5