Rajasthan

Churu

72/2012

Bagwana Ram - Complainant(s)

Versus

UTI - Opp.Party(s)

Narendra Sihag

03 Feb 2015

ORDER

Heading1
Heading2
 
Complaint Case No. 72/2012
 
1. Bagwana Ram
S/o Lixaman Ram JAt Baghu Ka bass Teh. Rajgar Churu
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. Shiv Shankar PRESIDENT
  Subash Chandra MEMBER
  Nasim Bano MEMBER
 
For the Complainant:
For the Opp. Party:
ORDER

जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, चूरू
अध्यक्ष- षिव शंकर
सदस्य- सुभाष चन्द्र
सदस्या- नसीम बानो
 
परिवाद संख्या-  72/2012
भगवानाराम पुत्र श्री लिखमाराम जाति जाट निवासी बेगुका बास तहसील व जिला चूरू (राजस्थान)
......प्रार्थी
बनाम
 
1.    शाखा प्रबन्धक यू.टी.आई. टेक्नोलोजी सर्विस लि. 7 लक्ष्मी विनोद भवन, आनन्द भवन के पास संसारचन्द्र रोड़, जयपुर जिला जयपुर (राजस्थान) 203001
                                                 ......अप्रार्थी
दिनांक-     24.02.2015
निर्णय
द्वारा अध्यक्ष- षिव शंकर
1.    श्री नरेन्द्र सिहाग एडवोकेट  - प्रार्थी की ओर से
2.    श्री नरेश कुदाल एडवोकेट  - अप्रार्थी की ओर से
 
 
1.    प्रार्थी ने अपना परिवाद पेष कर बताया कि प्रार्थी ने राजस्थान सरकार की योजना के मुताबिक दो बालिकाओं पर नसबन्दी ओपरेशन करवाने पर 150 यू.टी.आई. युनिट प्रति यूनिट मूल्य 10 रूपये प्लान राजलक्ष्मी यूनिट प्लान 2 के उपबन्धानुसार निर्गत सुविधा ली गई। जिस की सदस्यता संख्या 40396007 0004740 थी। बालिका की जन्म दिनांक 25.08.1991 नाम उर्मिला है जिनकी परिपक्वता तिथि दिनांक 28.08.2011 नियत थी। अप्रार्थी द्वारा परिपक्वता तिथि के पश्चात दिनांक 25.11.11 को एक सूचना पत्र के जरिये प्रार्थी को सूचना दी गई कि उक्त यूनिटो का वर्ततान मूल्य 100 रूपये प्रति यूनिट है जिसके हिसाब से 150 यूनिटो का मूल्य 15000 रूपये बनते है परन्तु अप्रार्थी द्वारा उक्त सूचना के साथ मात्र 4300 रूपये का चैक उक्त राशि के भुगतान हेतु भेजा है। उक्त योजना में लिए गये युनिटों में कभी कम भुगतान करने का कोई प्रावधान नहीं है जिसके बावजूद भी अप्रार्थी द्वारा मात्र 4300 रूपये का चैक भेज कर सेवा में गम्भीर त्रुटि की है जिस पर प्रार्थी द्वारा शेष रकम 10700 रूपये मय हर्जा खर्चा के सात दिवस में अप्रार्थी को अदा करने हेतु अपने अधिवक्ता के मार्फत दिनांक 29.12.11 को रजिस्टर्ड डाक से एक नोटिस भिजवाया गया। नोटिस अवधि बीत जाने के बावजूद भी अप्रार्थी द्वारा न तो नोटिस का जवाब दिया एवं न ही शेष रकम 10700 रूपये का भुगतान किया है अर्थात् सेवा में गम्भीर त्रुटि की है जिस हेतु यह परिवाद पेश करना पड़ रहा है। राजस्थान सरकार की राजलक्षमी येाजना में ली गई सुविधा मुताबिक 150 युनिट के हिसाब से वर्तमान मूल्य 100 रूपये प्रति यूनिट के हिसाब से कुल 15000 रूपये बनते है जिस में से 4300 रूपये का चैक अप्रार्थी ने भेजा है जबकि अप्रार्थी को कुल 15000 रूपये देने थे जो नहीं देकर अप्रार्थी ने सेवा में गम्भीर त्रुटि की है। इसलिए प्रार्थी ने बकाया 10,700 रूपये, मानसिक परेशानी व परिवाद व्यय की मांग की है।

2.    अप्रार्थी ने प्रार्थी के परिवाद का विरोध कर जवाब पेश किया कि राजलक्ष्मी यूनिट प्लान-2 योजना को दिनांक 31.03.2004 को निलम्बित कर दिया गया था और इस योजना के सभी यूनिट धारकों को यह विकल्प दिया गया था कि वे या ता राजलक्ष्मी यूनिट प्लान-2 को सरेण्डर करके भुगतान प्राप्त कर लेवें अन्यथा सरेण्डर वेल्यू के बराबर मूल्य के 6.6 प्रतिशत टेक्स फ्री ए.आर.एस. बाॅण्ड्स ले लेवें। इस बाबत दिनांक 30.01.2004 को दैनिक समाचार पत्र टाईम्स आॅफ इण्डिया में एक विज्ञापन भी प्रकाशित करवाया गया था तथा विकल्प चूनने के लिये सभी यूनिट धारकों को आॅप्शन फार्म भी भिजवा दिये गये थे। राजलक्ष्मी युनिट प्लान-2 बन्द करते समय यह भी तय किया गया था कि यदि आॅप्शन फार्म में किसी भी विकल्प पर टिक नहीं किया जाता है अथवा यूनिट धारक द्वारा आॅप्शन फार्म भरकर नहीं भिजवाया जाता है तो युनिट धारक के द्वारा 6.6 प्रतिश टेक्स फ्री ए.आर.एस. बाॅण्ड्स का विकल्प लिया गया मान लिया जावेगा। सभी युनिट धारकों की तरह प्रार्थी को भी आॅप्शन फार्म भिजवाया गया था किन्तु प्रार्थी के द्वारा आॅप्शन फार्म भरकर नहीं भेजा गया इस कारण से प्रार्थी द्वारा धारित 150 युनिट्स के स्थान पर उसकी सरेण्डर वेल्यू के अनुसार कुल 43 युनिट (जिनका मूल्य 100 रूपये प्रति यूनिट था) 6.6 प्रतिशत टेक्स फ्री ए.आर.एस. बाॅण्ड्स जारी कर दिये गये। उक्त 6.6 प्रतिशत टेक्स फ्री ए.आर.एस. बाॅण्ड्स का सर्टिफिकेट प्रार्थी को उसके पते पर दिनांक 07.04.2004 को पंजीकृत डाक से भिजवाया गया था। 6.6 प्रतिशत टेक्स फ्री ए.आर.एस. बाॅण्ड्स की परिपक्वता तिथि के पश्चात आवश्यक औपचारिकतायें पूर्ण करते ही प्रार्थी के द्वारा धारित 6.6 प्रतिशत टेक्स फ्री ए.आर.एस. बाॅण्ड्स की कुल 43 युनिट्स के मूल्य रूपये 4300 का चैक दिनांक 25.11.2011 का उसके पते पर भिजवा दिया गया तथा 6.6 प्रतिशत टेक्स फ्री ए.आर.एस. बाॅण्ड्स पर नियमानुसार देय ब्याज मय बकाया 77.30, रूपये 1496.13 का चैक दिनांक 27.01.2012 का उसके पते पर भिजवा दिया गया था। युनिट ट्रस्ट आॅफ इण्डिया द्वारा समस्त कार्यवाही नियमानुसार एवं राजलक्ष्मी युनिट योजना-2 की पूर्वनिर्धारित शर्तों के अनुसार की गई थी। स्कीम के आवेदन पत्र मय ब्रोस्चर के क्लाॅज 13 में इस प्रावधान का स्पष्ट अंकन भी किया गया था। राजलक्ष्मी युनिट योजना-2 को निलम्बित करने का निर्णय युनिट धारकों के हितों को ध्यान में रखते हुए लिया गया था। बाजार की समस्त स्थिति के विश्लेषण के बाद उक्त स्कीम को जारी रखना सर्वथा निवेशकों के हितों के विपरित था। इसलिए राजलक्ष्मी युनिट योजना-2 को बन्द किया गया जो किसी भी रूप से अप्रार्थी का सेवादोष नहीं है। उक्त राजलक्ष्मी युनिट योजना-2 को वर्ष 2003 में बन्द कर दिया गया था जबकि परिवाद 9 वर्ष के बाद प्रस्तुत किया गया है जो स्पष्ट रूप से मियाद बाहर है। उक्त आधार पर परिवाद खारिज करने की मांग की।

3.    प्रार्थी की ओर से परिवाद के समर्थन में स्वंय का शपथ-पत्र, सूचना पत्र, यू.टी.आई. विवरण पत्र, फोटो प्रति चैक दिनांक 25.11.11, यूनिट विवरण विधिक नोटिस मय ए.डी. दस्तावेजी साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया है। अप्रार्थी की और से राधेश्याम जोशी का शपथ-पत्र, कुल प्रदर्स 1 से 15 दस्तावेजी साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किये है।

4.    पक्षकारान की बहस सुनी गई, पत्रावली का ध्यान पूर्वक अवलोकन किया गया, मंच का निष्कर्ष इस परिवाद में निम्न प्रकार से है।

5.    प्रार्थी अधिवक्ता ने अपनी बहस में परिवाद के तथ्यों को दौहराते हुए मुख्य तर्क यही दिया कि अप्रार्थी को प्रार्थी द्वारा राजलक्ष्मी युनिट योजना-2 में लिये गये युनिटों में कमी कर कम भुगतान करने का कोई प्रावधान नहीं था। फिर भी अप्रार्थी ने प्रार्थी को 15,000 रूपये की बजाय मात्र 4,300 रूपये भिजवाये गये। अपनी बहस में प्रार्थी अधिवक्ता ने यह भी तर्क दिया कि अप्रार्थी ने प्रश्नगत योजना को बन्द करने से पूर्व प्रार्थी को सूचना दिया जाना आवश्यक था। परन्तु अप्रार्थी ने प्रश्नगत योजना बन्द करने से पूर्व प्रार्थी को कोई सूचना नहीं दी। अप्रार्थी का उक्त कृत्य स्पष्ट रूप से सेवादोष है इसलिए प्रार्थी अधिवक्ता ने परिवाद स्वीकार करने का तर्क दिया। अप्रार्थी अधिवक्ता ने अपनी बहस में प्रार्थी अधिवक्ता के तर्कों का तर्क देते हुए मुख्य तर्क यह दिया कि चूंकि राजलक्ष्मी युनिट योजना-2 बाजार पर निर्धारित प्लान था और बाजार की तत्कालीन स्थिति को देखते हुए तथा निवेशकों के हित को देखते हुए प्रश्नगत योजना दिनांक 31.03.2004 को निलम्बित कर दी गयी। जिसकी सूचना भी अप्रार्थी द्वारा समाचार पत्रों में प्रकाशित की गयी। उक्त योजना निलम्बित करने का पूर्ण अधिकार अप्रार्थी कम्पनी को था। जिसका कथन प्रार्थी को जारी बाॅण्ड में भी अंकित किया हुआ है। योजना निलम्बित करने से पूर्व सभी यूनिट धारकों को विकल्प दिया गया था कि वे चाहे तो उक्त योजना को सरेण्डर कर अपना भुगतान प्राप्त कर लेंवे या सरेण्डर वेल्यू के बराबर के मूल्य के 6.6 प्रतिशत टैक्स फ्री ए.आर.एस. बाॅण्ड्स ले लेवें। विकल्प चूनने के लिए सभी युनिट धारकों को आॅप्शन फार्म भिजवा दिये गये थे। जिसमें यह स्पष्ट अंकित था कि यदि युनिट धारक द्वारा किसी भी विकल्प पर टीक नहीं किया जाता है या आॅप्शन फार्म भरकर नहीं भिजवाया जाता है तो युनिट धारक के द्वारा 6.6 प्रतिशत टैक्स फ्री ए.आर.एस. बाॅण्ड्स का विकल्प लिया मान लिया जावेगा। जिस क्रम में प्रार्थी को भी आॅप्शन फार्म भिजवा दिया गया था। जिसका जवाब नहीं आने पर प्रार्थी को नियमानुसार भुगतान कर दिया गया। अप्रार्थी अधिवक्ता ने यह भी तर्क दिया कि परिवाद में वर्णित प्रश्नगत योजना को निलम्बित करने के निर्णय को पूर्व में भी अनेक युनिट धारकों द्वारा चुनौति दी गयी थी जिस पर अनेक माननीय उच्च न्यायालय द्वारा अप्रार्थी के द्वारा लिये गये प्रश्नगत योजना को बन्द करने के निर्णय को उचित ठहराया। अप्रार्थी अधिवक्ता ने यह भी तर्क दिया कि प्रार्थी का परिवाद स्पष्ट रूप से कालबाधित है। उक्त आधारों पर परिवाद खारिज करने का तर्क दिया।

6.    हमने उभय पक्षों के तर्कों पर मनन किया। वर्तमान प्रकरण में प्रार्थी द्वारा अप्रार्थी से राजलक्ष्मी युनिट योजना-2 के तहत 150 यु.टी.आई. युनिट क्रय करना जो अप्रार्थी के द्वारा वर्ष 2003 में निलम्बित करना, प्रार्थी को उक्त योजना निलम्बित करने पर 43 रूपये मूल व 1496.13 रूपये ब्याज अदा करना स्वीकृत तथ्य है। वर्तमान प्रकरण में विवादक बिन्दु केवल यह है कि अप्रार्थी को प्रश्नगत योजना को निलम्बित तिथि से पूर्व ही निलम्बित करने का अधिकार है। अर्थात् अप्रार्थी द्वारा प्रश्नगत योजना निलम्बित कर सेवादोष किया है। अप्रार्थी अधिवक्ता ने मुख्य तर्क यही दिया कि उक्त विवादक बिन्दु का निस्तारण पूर्व में अनेक उच्च न्यायालय द्वारा निर्णय किया जा चूका है। अप्रार्थी ने अपने जवाब में भी उच्च न्यायालय द्वारा किये गये अनेक निर्णयों का हवाला दिया है जिसमें से हम माननीय राजस्थान उच्च न्यायालय के न्यायिक निर्णय दिनांक 04.09.2001 का हवाला देना उचित समझते है। माननीय राजस्थान उच्च न्यायालय ने क्रमशः 7 रीट व अपील का निर्णय एक साथ करते हुए यह निर्धारित किया कि प्ज पे जीम बंेम व िन्ज्प् जींज कमबपेपवद जव जमतउपदंजम जीम ेंपक ैबीमउम ूंे जंामद इल जीम ठवंतक ूीपबी पे जीम ीपहीमेज कमबपेपवद उंापदह इवकल बवदेबपवनेसल जंापदह पदजव ंबबवनदज जीम चतमअंपसपदह अवसंजपसम उंतामज बवदकपजपवदे पद मुनपजल ंदक कमइज उंतामज ंदक जव ेंमिहनंतक जीम वअमतंसस पदजमतमेजे व िजीम इमदमपिबपंतपमे व िजीम ेबीमउमण् प्ज ूंे ं इवदं पिकम कमबपेपवदण्ष् ज्ीम ेंपक ैबीमउम ींे दवज इममद जमतउपदंजमक जव कमदल वत ंअवपक जीम निजनतम तमजनतद जव ं उपदवत बीपसक इनज पज ूंे जीवनहीज इल जीम मगचमतजे वद जीम इंेपे व िजीम तमसमअंदज उंजमतपंस चसंबमक इमवितम जीमउ ंदक वद जीमपत मगंउपदंजपवद जींज ंदल नितजीमत बवदजपदनंजपवद व िजीम ेंपक ैबीमउम उपहीज पद जीम नसजपउंजम ंदंसलेपे ूवनसक तमेनसज पद हतंअम बवदेमुनमदबमे कमजतपउमदजंस जव जीम ीवसकमते व िजीम नदपजेण्ए ठवंतक नदकमत जीम चतवअपेपवदे व िजीम ंबज पे चनज ूपजी जीम तमेचवदेपइपसपजल जव कपेबींतहम पजे निदबजपवदे वद इनेपदमेे चतपदबपचसमे तमहंतक इमपदह ींक जव जीम पदजमतमेज व िनदपज ीवसकमतेण्ष् न्दपज ीवसकमते इमवितम पदअमेजउमदज पद जीम ेंपक ैबीमउम ींक जीम दवजपबम जींज प िन्ज्प् जीपदो जींज बवदजपदनंजपवद व िजीम ेंपक ैबीमउम ूवनसक दवज इम पद जीम पदजमतमेज व िनदपज ीवसकमतेए पज बवनसक जमतउपदंजम पज ूपजी ेनििपबपमदज दवजपबम जव जीम ळवअमतदउमदजण्ष् माननीय उच्च न्यायालय के उक्त न्यायिक दृष्टान्त की रोशनी से स्पष्ट है कि अप्रार्थी द्वारा बाजार की स्थिति को देखते हुए तथा यूनिट धारको की राशि को सुरक्षा के दृष्टिगत लिया गया निर्णय उचित है। चूंकि अप्रार्थी कम्पनी द्वारा लिये गये निर्णय को विभिन्न उच्च न्यायालय द्वारा सही ठहराते हुए अन्तिम निर्णय दिया जा चूका है इसलिए मंच द्वारा पूनः उसी प्रकरण में निर्णय दिया जाना उचित व न्यायोचित नहीं है। मंच की राय में अप्रार्थी द्वारा अपनी प्रश्नगत राजलक्ष्मी युनिट योजना-2 का निलम्बन कर प्रार्थी को नियमानुसार भुगतान किया जाना कोई सेवादोष नहीं है। प्रार्थी का परिवाद अप्रार्थी के विरूद्ध माननीय उच्च न्यायालय के द्वारा दिये गये विभिन्न न्यायिक दृष्टान्तों की रोशनी में खारिज किये जाने योग्य है।

             अतः प्रार्थी का परिवाद अप्रार्थी के विरूद्ध माननीय उच्च न्यायालय के द्वारा दिये गये विभिन्न न्यायिक दृष्टान्तों की रोशनी में अस्वीकार कर खारिज किया जाता है। पक्षकारान प्रकरण का व्यय अपना-अपना वहन करेंगे।

 
सुभाष चन्द्र                              षिव शंकर
     सदस्य                                 अध्यक्ष
 
निर्णय आज दिनांक  24.02.2015 को लिखाया जाकर सुनाया गया।
    
 
सुभाष चन्द्र                              षिव शंकर
  सदस्य                                  अध्यक्ष

 

 

 
 
[HON'BLE MR. Shiv Shankar]
PRESIDENT
 
[ Subash Chandra]
MEMBER
 
[ Nasim Bano]
MEMBER

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