जिला मंच, उपभोक्ता संरक्षण अजमेर
श्री राजेन्द्र प्रसाद पारीक पुत्र श्री राधेष्याम,गायत्री मंदिर के पास, डेगाना, जिला-नागौर(राज.)341503
प्रार्थी
बनाम
1. यूटीआई म्यूचल फण्ड मार्फत यूटीआई फाईनेषियल सेन्टर, उदय ज्योति, प्रथम फलोर, इण्डिया मोटर सर्किल,कचहरी रोड, अजमेर-305001
2. यूटीआई म्यूचल फण्ड, रजिस्टर्ड आॅफिस, 13 सर विठ्ठलदास ठाकरसे मार्ग(न्यू मरीन लाईन्स)मुम्बई-400020
3. कार्वी कम्प्यूटरषेयर प्रा.लि., यूनिट, यूटीआई म्यूचल फण्ड, नारायणी मेंषन, मकान नं. 1-90,/2/10/ई विठ्ठलराव नगर, महापुर, हैदराबाद-500081
अप्रार्थीगण
परिवाद संख्या 282/2012
समक्ष
1. गौतम प्रकाष षर्मा अध्यक्ष
2. श्रीमती ज्योति डोसी सदस्या
उपस्थिति
1.श्री सूर्यप्रकाष गांधी, अधिवक्ता, प्रार्थी
2.श्री बृजबिहारी षर्मा,प्रतिनिधि, अप्रार्थीगण
मंच द्वारा :ः- आदेष:ः- दिनांकः- 07.07.2015
1. परिवाद के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार है कि प्रार्थी ने यूटीआई कोन्ट्रा फण्ड में म्यूचल फण्ड हेतु दिनंाक 22.3.2006 को रू. 44887/- का ड्राफट आवेदन पत्र संख्या 8307889 के आवेदन किया जिस पर अप्रार्थी संख्या 1 व 2 ने यूटीआई कोन्ट्रा फण्ड स्कीम में 10.2250 /- की दर से 4400.978 यूनिट आवंटित किए । तत्पष्चात् उक्त म्यूचल फण्ड में निवेष की गई राषि की अच्छी रेट मिलने के कारण उसने म्यूचल फण्ड की राषि निकवाली चाही और उसने दिनंाक 2.11.2010 को अपना एकाउन्ट स्टेटमेंट निकलवाया जिससे उसे पता चला कि उसके एकाउण्ट में बैलेन्स यूनिट्स 0.000 थी तथा दिनांक 31.3.2006 की तारीख में ही रिजेक्षन दिखाया गया था । इस संबंध में अप्रार्थी संख्या 1 व 2 के हैदराबाद कार्यालय को उसने दिनंाक 18.11.2010 व 5.3.2011 को षिकायती पत्र लिखते हुए रिजेक्षन का कारण जानना चाहा साथ ही 4 वर्ष 7 माह तक उसे रिजेक्षन की सूचना नही ंभेजने बाबत् भी अवगत कराने को कहा जिस पर अप्रार्थी संख्या 3 ने प्रार्थी को बतलाया कि उसका परचेज ट्रंजेक्षन पूर्व रजिस्ट्रार, टीएसीएल, मुम्बई ने किया था इसलिए वे इस संबंध में कोई सूचना देने में असमर्थ है साथ ही यह भी अवगत कराया कि प्रार्थी की अर्जी चैक रिर्टन अनपेड के कारण निरस्त की गई है । अप्रार्थी संख्या 2 सें सम्पर्क करने पर बतलाया गया कि उसके द्वारा निवेष की गई राषि उन्हें प्राप्त नहीं हुई है और ना ही डिमाण्ड ड्राफट ही उन्हें मिला है । प्रार्थी द्वारा दिनांक 29.11.2011 को स्टेट बैंक आॅफ बीकानेर एण्ड जयपुर से ड्राफट के संबध में जानकारी चाहने पर बैंक ने यूटीआई को ड्राफट ईष्यू किए जाने की जानकारी दी । तत्पष्चात् यूटीआई ने 12.12.2011 को उक्त बैंक को पत्र भेजते हुए कहा कि प्रषनगत ड्राफट ट्राजिंट में खो गया है इसलिए दूसरा डीडी बना कर दे इसी बीच दिनंाक 22.12.2011 को अप्रार्थी ने म्यूचल फण्ड में जमा कराई गई राषि का नहीं मिलने के आधार पर रिडक्षन करने से इन्कार कर दिया इस प्रकार अप्रार्थीगण की लापरवाही के कारण प्रार्थी नवम्बर, 2010 में तत्समय प्रचलित दर से म्यूचल फण्ड की राषि प्राप्त नहीं कर सका । प्रार्थी ने परिवाद प्रस्तुत कर उसमें वर्णित अनुतोष दिलाए जाने की प्रार्थना की है ।
2. अप्रार्थीगण की ओर से जवाब प्रस्तुत हुआ जिसमें दर्षाया है कि प्रार्थी इस तथ्य की जनकारी थी कि आवेदन के साथ संलग्न डिमाण्ड ड्राफट खो गया था जिसका भुगतान अभी तक अप्रार्थीगण को प्राप्त नहीं हुआ इसलिए प्रार्थी से डुप्लीकेट ड्राफट देने का अनुरोध किया जिसे प्रार्थी ने स्वीकार न कर षिकायत पत्र पेष कर दिया और सहयोग करने से इन्कार कर दिया । चूंकि प्रार्थी को यूनिटों का आवंटन नहीं किया गया था इसलिए यूनिट आवंटित न होने से प्रार्थी उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आता है ।
अप्रार्थीगण का कथन है कि उनके द्वारा कई बार बैंक को डुप्लीकेट ड्राफट भेजने का अनुरोध किया गया किन्तु बैंक ने प्रार्थी की अनुमति के बिना ड्राफट जारी करने से इन्कार कर दिया । प्रार्थी के यह जानते हुए कि उसके द्वारा किया गया विनयोग वर्ष 2010 में निरस्त हो चुका है फिर भी उसेन यह परिवाद मंच में वर्ष 2012 में प्रस्तुत किया है । अन्त में परिवाद खारिज होने योग्य दर्षाया ।
3. हमने पक्षकारान को सुना एवं पत्रावली का अनुषीलन किया ।
4. प्रार्थी के अनुसार उसके द्वारा दिनांक 22.3.2006 को अप्रार्थी संख्या 1 व 2 के वहां आवेदन पत्र संख्या 8307889 द्वारा राषि रू. 44887/- बैंक डी. डी. संख्या 878186 दिनांक 22.3.2006 भेजतेे हुए उसने यूटीआई कोन्ट्रा फण्ड में आवेदन किया एवं उसे दिनांक 12.4.2006 के स्टेटमेंट आफ एकाउण्ट के अनुसार परिवाद की चरण संख्या 2में वर्णित यूनिट्स आवंटित किए गए थे । प्रार्थी ने दिनंाक 2.11.2010 को चूंकि उस वक्त निवेष की गई राषि की अच्छी रेट मिल रही थी इसलिए प्रार्थी ने फण्ड राषि निकलवाने का मानस बनाया एवं अपना स्टेटमेंट आफ एकाउण्ट निकलवाया तो प्रार्थी के खाते में यूनिट्स जीरों दिखाए हुए थे तथा दिनांक 31.3.2006 में ही रिजेक्षन दिखाया हुआ था । इस तरह से प्रार्थी का कथन रहा है कि दिनांक 31.3.2006 की रिजेक्षन की जानकारी प्रार्थी को अप्रार्थी संख्या 1 व 2 ने नहीं दी एवं ऐसा रिजेक्षन उसे फण्ड आवंटित करने के बाद बिना किसी कारण के किया गया था । जो रिजेक्षन भी सहीं नही ंथा । इस संबंध में प्रार्थी द्वारा आगे जानकारी करने पर उसे बतलाया गया कि डीडी जो भेजा गया वह ट्रंजिट में ही गुम हो गया । अतः आवंटित यूनिट्स को निरस्त किया गया ।
5. प्रार्थी अधिवक्ता की बहस है कि आवेदन क्रमांक 8307889 की फोटोप्रति पत्रावली पर है जिसमें डीडी नम्बर व राषि अंकित है एवं प्रार्थी को यूनिटस आवंटित किए गए है जिसका तात्पर्य यही है कि प्रार्थी के आवेदन के साथ भेजा गया डीडी अप्रार्थी को प्राप्त हुआ था अतः यूनिट्स आवंटित किए गए थे। प्रार्थी द्वारा भेजा गया डीडी अप्राथी्रगण के स्तर पर ही गुम हुआ है एवं अप्रार्थीगण का दायित्व था कि वह संबंधित बैंक से डुप्लीकेट डीडी जारी करवाते जो उनके द्वारा नहीं किया गया है एवं प्रार्थी को आवंटित यूनिटस अप्रार्थीगण ने जो निरस्त किए है वे अनुचित है एवं प्रार्थी आवंटित यूनिट्स की राषि वर्तमान बाजार मूल्य से प्राप्त करने का अधिकारी है ।
6. अप्रार्थीगण संख्या 1 व 2 की ओर से बहस में बतलाया कि डीडी रास्ते में खो गया था एवं प्रार्थी को इस संबंध में सूचित किया गया कि डुप्लीकेट डीडी इष्यू कराकर भेजे किन्तु प्रार्थी ने वर्ष 2010 तक भी एवं वाद दायर करने तक इस संबंध में कोई कार्यवाही नहीं की । उनकी बहस रही है कि डीडी खो जाने के तथ्य का वर्ष 2006 में पता चल गया था लेकिन प्रार्थी चुपचाप रहा व दिनांक 2.11.2010 के स्टेटमेंट आफ एकाउण्ट से स्वयं को जानकारी होना दर्षाया है किन्तु उक्त दिनांक 2.11.201.0 के बाद में भी परिवाद वर्ष 2012 में लाया गया है । अप्रार्थीगण की ओर से यह भी बहस रही है कि यदि किसी व्यक्ति को यूनिट आवंटित हो जाते है लेकिन चैक या डीडी की राषि का भुगतान नहीं हो पाता है तो ऐसे यूनिट को कैन्सिल करने का अधिकार इस स्कीम के संबंध में जारी स्कीम इन्फोरमेंषन डोक्यूमेंटस के पृ.स. 50 में बखूबी अंकित है । इस तरह से प्रार्थी को आवंटित यूनिट् को निरस्त सहीं रूप से किया है एवं डीडी की राषि प्रार्थी संबंधित बैंक से प्राप्त कर सकता है ।
7. हमने बहस पर गौर किया । हस्तगत प्रकरण में डीडी की राषि रू. 44887/- जो एसबीबीजे , जोधपुर ष्षाखा द्वारा जारी हुआ है का भुगतान नहीं होने का तथ्य एसबीबीजे ष्षाखा डेगाना के पत्र दिनंाक 30.11.2011 से स्पष्ट हो रहा है । अप्रार्थी के पत्र दिनांक 12.12.2011 जो बैंक को लिखा में डीडी की राषि अनपेड होना दर्षाया है एवं अनपेड होने का कारण दर्षाया है कि डीडी ट्रंजिट में गुम हो गया था । प्रार्थी ने इन यूनिट्स हेतु जो आवेदन किया में डीडी के नम्बर, डीडी जारी करने की तिथी एवं राषि का उल्लेख किया है । यह डीडी आवेदन के साथ प्रार्थी द्वारा भेजा जाना दर्षाया है एवं इसी आधार पर प्रार्थी को यूनिट्स आवंटित हुए है । यदि डीडी आवेदन के साथ नही ंहोता तो अप्रार्थी यूटीआई प्रार्थी को यूनिट्स ही आवंटित नहीं करते । स्वयं अप्रार्थी का भी यह कथन नहीं है कि प्रार्थी के आवेदन के साथ डीडी नहीं था । इस प्रकार उपरोक्त विवेचन से यह स्पष्ट हो रहा है कि डीडी यदि गुम हुआ है तो वह स्वयं अप्रार्थी के स्तर पर ही गुम हुआ है ।
8. अब हमें यह देखना है कि क्या स्कीम इन्फोरमेंषन डोक्यूमेंटस के पृ.सं. 50 के ैजंजमउमदज व ि।बबवनदज;ैव्।द्ध षीर्षक में वर्णित अनुसार अप्रार्थी यूटीआई ने प्रार्थी को आवंटित यूनिट्स को जो निरस्त किया है ऐसा सही रूप से किया है ?
9. इस षीर्षक में यह अवष्य है कि डीडी/चैक यदि बैंक से अनपेड रिटर्न हो जाते है तो आवंटित यूनिट्स को निरस्त किया जा सकता है एवं यह माना जावेगा कि मामले में कोई यूनिट्स आवंटित ही नहीं किए गए थे किन्तु हस्तगत प्रकरण में उपर वर्णित अनुसार प्रार्थी की ओर से भेजा गया डीडी बैंक को प्राप्त हुआ हो एवं बैंक द्वारा किन्हीं कारणों से अनपेड किया हो इस संबंध में स्वयं अप्रार्थी का कथन रहा है कि डीडी खो गया था । इन हालात में यह प्रावधान अप्रार्थी की कोई मदद नही ंकरते क्योंकि डीडी बैंक द्वारा अनपेड नहीं हुआ है बल्कि डीडी जो अप्रार्थी को मिल चुका था अप्रार्थी के पास से गुम हो जाने से बैंक को मिला ही नहीं है । अतः सारे विवेचन से हम पाते है कि अप्रार्थी यूटीआई द्वारा प्रार्थी को आवंटित यूनिटस को सही रूप से निरस्त किया जाना नहीं पाया गया है एवं अप्रार्थी यूटीआई का यह निर्णय अपास्त होने योग्य है एवं प्रार्थी उसे आवंटित किए गए यूनिट्स का लाभ प्राप्त करने का अधिकारी पाया जाता है । अप्रार्थी यूटीआई उनके स्तर पर खोये गए इस डीडी का डुप्लीकेट प्राप्त करने हेतु यदि प्रार्थी से कोई औपचारिकता अपेक्षित है तो इस आषय का सहयोग प्रार्थी से प्राप्त कर सकेगा । अतः आदेष है कि
:ः- आदेष:ः-
10 (1) अप्रार्थी यूटीआई अर्थात अप्रार्थी संख्या 1 व 2 द्वारा प्रार्थी को आवंटित यूनिट्स जिन्हें अप्रार्थी संख्या 1 व 2 ने निरस्त कर दिया है को पुनः बहाल किया जाता है एवं प्रार्थी अप्रार्थी संख्या 1 व 2 से उसे आवंटित इन यूनिट्स की राषि मय लाभ जो वर्तमान में देय है, प्राप्त करने का अधिकारी होगा ।
(2) अप्रार्थी संख्या 1 व 2 प्रार्थी की ओर से जारी डीडी जो उनके स्तर पर गुम हुई है संबंध में यदि डुप्लीकेट डीडी प्राप्त करने हेतु कोई कार्यवाही करते है तो उस क्रम में यदि प्रार्थी की ओर से कोई औपचारिकताएं अपेक्षित होती है तो प्रार्थी उन औपचारिकताओं को पूरी करने में अप्रार्थी संख्या 1 व 2 तथा डीडी जारीकर्ता बैंक को सहयोग करेगा ।
(3) प्रार्थी अप्रार्थी संख्या 1 व 2 से मानसिक संताप व वाद व्यय के मद में राषि रू. 2000/- भी प्राप्त करने का अधिकारी होगा ।
(4) क्र.सं. 1 व 3 में वर्णित लाभ की राषि एवं हर्जे की राषि का भुगतान अप्रार्थी संख्या 1 व 2 प्रार्थी को इस आदेष से दो माह की अवधि में करें अथवा आदेषित राषि डिमाण्ड ड््राफट से प्रार्थी के पते पर रजिस्टर्ड डाक से भिजवावें ।
(5) दो माह में आदेषित राषि का भुगतान नहीं करने पर प्रार्थी अप्रार्थी संख्या 1 व 2 से उक्त राषियों पर निर्णय की दिनांक से ताअदायगी 09 प्रतिषत वार्षिक दर से ब्याज भी प्राप्त कर सकेगा ।
(श्रीमती ज्योति डोसी) (गौतम प्रकाष षर्मा)
सदस्या अध्यक्ष
11. आदेष दिनांक 07.07.2015 को लिखाया जाकर सुनाया गया ।
सदस्या अध्यक्ष