सुरक्षित
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0 लखनऊ
(जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, बहराइच द्वारा परिवाद संख्या 72 सन 1997 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 16.9.1998 के विरूद्ध)
अपील संख्या 562 सन 1999
UNIT TRUST OF INDIA 13 SIR VITHALDAS THACKERSAY MARG, NEW MARINE LINES MUMBAI 400020 ............अपीलार्थीगण
बनाम
SMT. USHA AGARWAL C-52 KALPIPARA BAHRAICH & CENTRAL BANK OF INDIA BAHRAICH . ............प्रत्यर्थीगण
समक्ष:-
1 मा0 श्री चन्द्र भाल श्रीवास्तव, पीठासीन सदस्य।
2 मा0 श्री संजय कुमार, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता –श्री अब्दुल मुईन के सहयोगी
श्री उमेश कुमार श्रीवास्तव।
प्रत्यर्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता- श्री सिद्धार्थ श्रीनेत ।
दिनांक: 24;07;15
श्री चन्द्रभाल श्रीवास्तव, सदस्य (न्यायिक) द्वारा उदघोषित ।
निर्णय
प्रस्तुत अपील, जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, बहराइच द्वारा परिवाद संख्या 72 सन 1997 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 16.9.1998 के विरूद्ध प्रस्तुत की गयी है जिसके द्वारा जिला फोरम ने विपक्षी/अपीलार्थीगण को 10,000.00 रू0 परिपक्वता धनराशि 24 प्रतिशत ब्याज के साथ वापस करने का निर्देश दिया है तथा 5000.00 रू0 क्षतिपूर्ति भी आरोपित की है।
संक्षेप में, प्रकरण के आवश्यक तथ्य इस प्रकार हैं कि परिवादिनी श्रीमती ऊषा अग्रवाल द्वारा यूनिट ट्रस्ट आफ इण्डिया से 500 रू0 प्रत्येक के 10 वाण्ड क्रय करने हेतु 5000.00 रू0 दिनांक 19.8.1991 को विपक्षी संख्या-3, सेन्ट्रल बैंक आफ इण्डिया में जमा किए। धन की परिपक्वता 19.8.1996 को थी। विपक्षीगण द्वारा न तो आवश्यक प्रमाण-पत्र जारी किए गए और न ही परिपक्वता धनराशि अदा की गयी। जिला फोरम के समक्ष विपक्षी संख्या 1 व 2 / अपीलार्थीगण अनुपस्थित रहे। विपक्षी संख्या-3, सेन्ट्रल बैंक आफ इण्डिया की ओर से यह कहा गया कि परिवादिनी की धनराशि बैंक द्वारा विपक्षी संख्या 1 को दिनांक 10.9.1991 को भेज दी गयी थी जिला फोरम ने प्रकरण का विवेचन करते हुए विपक्षी संख्या 1 व 2 के विरूद्ध परिवाद स्वीकार कर लिया और विपक्षी संख्या 3 सेन्ट्रल बैंक को दायित्व से मुक्त कर दिया । उक्त प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश से विक्षुब्ध होकर यूनिट ट्रस्ट आफ इण्डिया द्वारा यह अपील दाखिल की गयी है । अपील के आधारों में यह कहा गया है कि परिवादिनी द्वारा जमा धनराशि यूनिट ट्रस्ट आफ इण्डिया को प्राप्त नहीं हुयी और परिवादिनी उपभोक्ता नहीं है तथा जिला फोरम द्वारा आरोपित 24 प्रतिशत ब्याज की दर अत्यधिक है।
हमने उभय पक्षों के विद्वान अधिवक्तागण की बहस सुन ली है एवं अभिलेख का अनुशीलन कर लिया है।
प्रत्यर्थी के विद्वान अधिवक्ता का सर्वप्रथम तर्क यह है कि यह अपील अत्यंत विलम्ब से दाखिल की गयी है और कालबाधित होने के कारण स्वीकार किए जाने योग्य नहीं है।
अभिलेख के अवलोकन से स्पष्ट है कि प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 16.9.98 को पारित किया गया है जिसकी प्रमाणित प्रतिलिपि अपीलार्थी को 25.9.98 को प्राप्त हुयी है, किन्तु उक्त प्रति प्राप्त होने के बाद भी काफी विलम्ब से दिनांक 01.4.99 को यह अपील दाखिल की गयी है। इस प्रकार पॉच माह से अधिक विलम्ब किया गया है जिसका कोई समुचित स्पष्टीकरण अपीलार्थी द्वारा नहीं दिया गया है। विलम्ब के बिन्दु पर अपीलार्थी की ओर से मात्र श्री बिक्रय भाटिया मैनेजर (लीगल) का शपथपत्र दाखिल किया गया है जो कि 11.2.99 का है। उक्त शपथपत्र में उन्होंने स्वीकार किया है कि प्रश्नगत आदेश उनको 09.11.1998 को प्राप्त हो गया था। यदि इस तिथि से भी आकलन किया जाए तो भी अपील काफी विलम्ब से दाखिल की गयी है जिसके बारे में शपथ पत्र में मात्र यह लिखा गया है कि प्रतिलिपि प्राप्त होने के बाद प्रकरण जोनल आफिस में भेजा गया था और जोनल आफिस में किन कारणों से विलम्ब हुआ उसका खुलासा शपथपत्र में नहीं किया गया है। ऐसी स्थिति में हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि यह अपील अत्यधिक कालबाधित है और अपीलार्थी की ओर से इसका कोई स्पष्टीकरण भी नहीं दिया गया है।
जहां तक गुण-दोष का प्रश्न है, परिवादिनी ने दिनांक 19.8.91 को यूनिट ट्रस्ट आफ इण्डिया में 5000.00 रू0 सेन्ट्रल बैंक आफ इण्डिया के माध्यम से जमा किए। बैंक की ओर से यह स्पष्ट कहा गया है कि उसने यूनिट ट्रस्ट आफ इण्डिया को 19.8.96 को उक्त धनराशि भेज दी थी। धन की परिपक्वता अवधि के उपरांत भी अपीलार्थीगण ने उक्त धनराशि का भुगतान परिवादिनी को नहीं किया जिससे 24 प्रतिशत वार्षिक ब्याज सहित भुगतान का निर्देश जिला फोरम ने दिया है तथा मानसिक उत्पीड़न हेतु भी 5000.00 रू0 आरोपित किए है, जोकि न्यायोचित प्रतीत होते हैं।
उपर्युक्त विवेचन के आधार पर हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि यह अपील अत्यधिक कालबाधित होने के कारण अस्वीकार किए जाने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत अपील अस्वीकार की जाती है।
उभय पक्ष इस अपील का अपना-अपना व्यय स्वयं वहन करेंगे।
इस निर्णय की प्रमाणित प्रतिलिपि पक्षकारों को नियमानुसार नि:शुल्क उपलब्ध करा दी जाए।
(चन्द्र भाल श्रीवास्तव) (संजय कुमार)
पीठा0 सदस्य (न्यायिक) सदस्य
कोर्ट-2
(S.K.Srivastav,PA)