राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या- 158/2016
(सुरक्षित)
(जिला उपभोक्ता फोरम, फैजाबाद द्वारा परिवाद संख्या- 68/2014 में पारित आदेश दिनांक 28.11.2015 के विरूद्ध)
Shriram General Insurance Company Limited, E-8, EPIP, RIICO Industrial Area, Sitapur, Jaipur (Rajasthan)- 302022 Branch Office 16, Chintal House, Station Road, Lucknow through its Manager.
..............अपीलार्थी/विपक्षी
बनाम
Urmila Mishra W/o Mahabali Mishra R/o House No. 86 Viashali Extension Dabari Palam, New Delhi. ..........प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष:-
1. माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री दिनेश कुमार।
विद्वान अधिवक्ता ।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : श्रीमती सुचिता सिंह ।
विद्वान अधिवक्ता ।
दिनांक: 06.02.2018
मा0 न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
परिवाद सं0- 68/2014 उर्मिला मिश्रा बनाम श्री राम जनरल इं0कं0लि0 व एक अन्य में जिला फोरम फैजाबाद द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक 28.11.2015 के विरूद्ध यह अपील धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गयी है।
आक्षेपित निर्णय और आदेश के द्वारा जिला फोरम ने परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए निम्न आदेश पारित किया है:-
"परिवादी का परिवाद विपक्षीगण के विरूद्ध आंशिक रूप से स्वीकार एवं आंशिक रूप से खारिज किया जाता है। विपक्षीगण को आदेशित किया जाता है कि वह परिवादी को वाहन की बीमित कीमत रूपये 7,50,000/- आदेश की दिनांक से 30 दिन के अन्दर भुगतान करें। विपक्षीगण परिवादी को रूपये 7,50,000/- पर परिवाद दाखिल करने की दिनांक से तारोज वसूली की दिनांक तक 9 प्रतिशत साधारण वार्षिक ब्याज का भी भुगतान करें। विपक्षीगण परिवादी को क्षतिपूर्ति के मद में रूपये 15,000/- तथा परिवाद व्यय के मद में रूपये 5,000/- का भी भुगतान करें। विपक्षीगण परिवादी का क्षति ग्रस्त वाहन अपने पास रखेंगे।"
जिला फोरम के निर्णय से क्षुब्ध होकर यह अपील उपरोक्त परिवाद के विपक्षी श्रीराम जनरल इं0कं0लि0 ने प्रस्तुत की है।
अपील की सुनवाई के समय अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री दिनेश कुमार तथा प्रत्यर्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्रीमती सुचिता सिंह उपस्थित हुयी है।
मैंने उभयपक्ष के विद्वान अधिवक्तागण के तर्क को सुना है और आक्षेपित निर्णय और आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया है।
अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्त सुसंगत तथ्य इस प्रकार है कि प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने परिवाद जिला फोरम के समक्ष इस कथन के साथ प्रस्तुत किया है कि उसका वाहन संख्या-डीएल 04सी एनबी 5051 महिन्द्रा एण्ड महिन्द्रा स्कारपियो एस0यू0वी विपक्षीगण की बीमा कम्पनी से 7,50,000/-रू0 मूल्य हेतु बीमाकृत था और बीमा पालिसी दिनांक 26.06.2011 से दिनांक 25.06.2012 तक वैध थी। बीमा अवधि में ही दिनांक 04.03.2012 को शाम 16 बजे पुलिस स्टेशन सदर मुफसिल औरंगाबाद में उसका यह वाहन दुर्घटनाग्रस्त हो गया जिसकी सूचना चौकीदार विशेश्वर यादव ने सम्बन्धित स्थानीय थाने में दिया। दुर्घटना में कार सवार एक व्यक्ति की मृत्यु हो गयी और छह: व्यक्ति घायल हो गये जिन्हें अस्पताल ले जाया गया। अस्पताल में एक और घायल सुनील कुमार की मृत्यु हो गयी। परिवाद-पत्र के अनुसार दुर्घटना अचानक पशु के आ जाने के कारण घटित हुयी है जिससे प्रत्यर्थी/परिवादिनी का उपरोक्त वाहन पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गया है। परिवाद-पत्र के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने दुर्घटना की सूचना विपक्षी बीमा कम्पनी को उसके टोल फ्री नम्बर जो बीमा पालिसी में अंकित है पर दिनांक 04.03.2012 को दिया और पुन: दिनांक 05.03.2012 को सूचित किया। उसके बाद दुर्घटनाग्रस्त वाहन घटनास्थल पर पड़ा रहा परन्तु विपक्षी बीमा कम्पनी ने वाहन के निरीक्षण हेतु न तो सर्वेयर भेजने की कोई सूचना भेजी और न सर्वेयर भेजा। जबकि विपक्षी संख्या-02 ने प्रत्यर्थी/परिवादिनी का क्लेम नम्बर 10000/31/12/सी/065983 पंजीकृत करने की सूचना उसे टेलीफोन से दी। परिवाद-पत्र के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादिनी का कथन है कि उसका दुर्घटनाग्रस्त वाहन पुलिस द्वारा रिलीज किये जाने पर वह उसे पटना स्थित सोनाली आटो प्रा0लि0 गैराज पर ले गयी और इसकी सूचना विपक्षी संख्या-02 को दिया। तब विपक्षीगण उक्त गैराज पर प्रत्यर्थी/परिवादिनी को सूचित किये बिना गए।
परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादिनी का कथन है कि सुनील आटो प्रा0लि0 ने वाहन की क्षति 9,27,314/-रू0 स्टीमेट दिनांक 05.10.2012 के द्वारा आकंलित की। उसके बाद प्रत्यर्थी/परिवादिनी के मैनेजर ने दिनांक 07.10.2013 को रजिस्टर्ड डाक से विपक्षीगण को एफआईआर, चार्जशीट, आर0सी बुक, ड्राइविंग लाइसेंस और स्टीमेट की प्रति भेजा और दावा बीमा सैटेल करने का अनुरोध किया लेकिन विपक्षीगण ने न तो कोई सूचना दी और न ही दावा सैटेल किया तब प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने दिनांक 31.10.2013 को रजिस्टर्ड डाक से विपक्षीगण को पत्र भेजा और अपने क्लेम के स्टेट्स के सम्बन्ध में जानकारी चाही परन्तु विपक्षीगण ने कोई जवाब नहीं दिया तब प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने उन्हें लिखित नोटिस भेजा। फिर भी कोई कार्यवाही नहीं की गयी। तब प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने बीमित धनराशि व क्षतिपूर्ति के लिये परिवाद जिला फोरम के समक्ष प्रस्तुत किया है।
विपक्षी बीमा कम्पनी की ओर से जिला फोरम के समक्ष लिखित कथन प्रस्तुत किया गया है और कहा गया है कि उन्हें दुर्घटना की कोई सूचना प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने नहीं दी है। लिखित कथन में उन्होंने यह भी कहा है कि परिवाद जिला फोरम के क्षेत्राधिकार में नहीं है। इसके साथ ही यह भी कहा गया है कि वाहन का प्रयोग टैक्सी के रूप में प्रत्यर्थी/परिवादिनी द्वारा किया जा रहा था जबकि बीमा प्राईवेट कार के रूप में था। लिखित कथन में विपक्षीगण की ओर से कहा गया है कि प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने घायलों का विवरण नहीं दिया है और दुर्घटना के सम्बन्ध में कोई कागजात भी विपक्षीगण को नहीं दिया है न ही यह बताया है कि वाहन कहां जा रहा था और उसमें कौन-कौन बैठा था। लिखित कथन में विपक्षीगण की ओर से यह भी कहा गया है कि प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने बीमा कपटपूर्ण ढंग से कराया है और तथ्यों को छिपाया है। वह कोई अनुतोष पाने की अधिकारी नहीं है।
जिला फोरम ने उभयपक्ष के अभिकथन एवं उपलब्ध साक्ष्यों पर विचार करने के उपरांत यह माना है कि वाहन का बीमा फैजाबाद में कराया गया था इसलिये परिवाद जिला फोरम फैजाबाद के क्षेत्राधिकार में है। जिला फोरम ने यह भी माना है कि प्रत्यर्थी/परिवादिनी वाहन की बीमित धनराशि पाने की अधिकारी है। अत: जिला फोरम ने आक्षेपित निर्णय और आदेश उपरोक्त प्रकार से पारित किया है।
अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय और आदेश साक्ष्य और विधि के विरूद्ध है। प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने दुर्घटना की सूचना विलम्ब से बीमा कम्पनी को दिया है जो बीमा पालिसी की शर्त का उल्लघंन है। अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी की ओर से कहा गया है कि जांच पर यह पाया गया है कि दुर्घटना के समय वाहन प्रत्यर्थी/परिवादिनी के आधिपत्य व अभिरक्षा में नहीं था उसने वाहन श्री सिया रसिक सरन पुत्र श्री परमानन्द सिंह निवासी विभूति भवन तुलसी नगर अयोध्या यू0पी0 को दे दिया था लेकिन इंश्योरेंस और पंजीयन प्रमाण पत्र में अंतरण नहीं कराया था। अपीलार्थी/विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता का यह भी तर्क है कि उक्त सिया रसिक सरन ने ही वाहन की क्षतिपूर्ति का स्टीमेट पटना में दिनांक 05.10.2013 को कथित दुर्घटना के 01 साल 07 माह बाद प्राप्त किया है जबकि बीमा कम्पनी द्वारा दिनांक 26.03.2012 को ही बीमाधारक को पत्र फाईनल सर्वे में सहयोग करने हेतु भेजा गया है।
अपीलार्थी/विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि श्री सिया रसिक सरन ने जिला फोरम के समक्ष प्रस्तुत शपथ पत्र में अपने को प्रत्यर्थी/परिवादिनी का मुख्तार बताया है और उन्होंने ही यह परिवाद प्रत्यर्थी/परिवादिनी की ओर से नाजायज लाभ पाने हेतु प्रस्तुत किया है।
अपीलार्थी/विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता का यह भी तर्क है कि वाहन का वाणिज्यिक प्रयोग किया जा रहा था। अत: इस आधार पर भी बीमा कम्पनी बीमा धनराशि की अदायगी हेतु उत्तरदायी नहीं है। उनका यह भी तर्क है कि परिवाद जिला फोरम के क्षेत्राधिकार से परे है।
प्रत्यर्थी/परिवादिनी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय और आदेश साक्ष्य और विधि के अनुकूल है। प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने दुर्घटना की सूचना समय से बीमा कम्पनी को दिया है और बीमा कम्पनी द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादिनी का दावा निरस्त करने का जो आधार बताया गया है वह उचित नहीं है।
मैंने उभयपक्ष के तर्क पर विचार किया है।
वाहन का वर्तमान बीमा अपीलार्थी बीमा कम्पनी की फैजाबाद शाखा से कराया गया है। अपीलार्थी के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने यह बीमा कपटपूर्ण ढंग से तथ्यों को छुपाकर कराया है। अत: यह मानने हेतु उचित आधार है कि वर्तमान बीमा प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने ही कराया है। बीमा पालिसी प्रत्यर्थी/परिवादिनी के नाम है। वह ही वाहन की पंजीकृत स्वामी है। वाहन की बिक्री प्रत्यर्थी/परिवादिनी द्वारा किया जाना साबित नहीं होता है। अत: परिवाद जिला फोरम फैजाबाद में ग्राहय है और प्रत्यर्थी/परिवादिनी को परिवाद प्रस्तुत करने का अधिकार है।
परिवाद जिला फोरम फैजाबाद के समक्ष परिवादिनी उर्मिला मिश्रा के हस्ताक्षर से प्रस्तुत किया गया है और अपीलार्थी बीमा कम्पनी ने जिला फोरम के समक्ष यह नहीं कहा है कि परिवाद परिवादिनी उर्मिला मिश्रा ने नहीं प्रस्तुत किया है और परिवाद पर उनका हस्ताक्षर नहीं है। अत: यह कहना उचित नहीं है कि परिवाद परिवादिनी के मुख्तार ने प्रस्तुत किया है।
मेमो अपील के आधार से स्पष्ट है कि अपीलार्थी बीमा कम्पनी ने प्रत्यर्थी/परिवादिनी के दावा बीमा का संज्ञान लेते हुये सर्वेयर नियुक्त किया है। अत: वह अब प्रत्यर्थी/परिवादिनी का दावा विलम्ब से सूचना के आधार पर निरस्त नहीं कर सकती है। जैसा कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने M/S Galada Power and Telecommunication Ltd. versus United India Insurance Co. Ltd. and Another Etc. 2017(1) CPR 4 (SC) और सिविल अपील नम्बर 15611/2017 Om Prakash vs Reliance General Insuarance व अन्य के वाद में पारित निर्णय दिनांक 4 October, 2017 में स्पष्ट मत व्यक्त किया है।
दुर्घटना के समय वाहन का प्रयोग टैक्सी के रूप में किया जाना उपलब्ध साक्ष्यों से प्रमाणित नहीं है।
वाहन का बीमित मूल्य 7,50,000/-रू0 है। अपीलार्थी बीमा कम्पनी के सर्वेयर ने वाहन की क्षति का आकलन नहीं किया है और बीमा कम्पनी ने इसका कोई उचित कारण नहीं बताया है। अत: प्रत्यर्थी/परिवादिनी की ओर से प्रस्तुत वाहन की मरम्मत के आगणन पर विश्वास न करने के अलावा और कोई विकल्प नहीं है। प्रत्यर्थी/परिवादिनी की ओर से प्रस्तुत सोनाली आटो प्रा0लि0 पटना के आगणन में वाहन मरम्मत का खर्च 9,27,314/-रू0 बताया गया है। अत: वाहन की क्षति टोटल लास की श्रेणी में आती है। अत: वाहन का बीमित मूल्य 7,50,000/-रू0 प्रत्यर्थी/परिवादिनी को दिया जाना उचित है परन्तु वाहन का मलबा पंजीयन प्रमाण पत्र सहित बीमा कम्पनी को समर्पित किया जाना आवश्यक है। अत: बीमित धनराशि 7,50,000/-रू0 प्रत्यर्थी/परिवादिनी वाहन का साल्वेज व पंजीयन प्रमाण पत्र बीमा कम्पनी को समर्पित करने पर पाने की अधिकारी है। अत: जिला फोरम का निर्णय तद्नुसार संशोधित किये जाने योग्य है।
उपरोक्त् निष्कर्ष के आधार पर मैं इस मत का हूं कि जिला फोरम ने जो परिवाद की तिथि से अदायगी की तिथि तक बीमित धनराशि पर ब्याज दिया है वह उचित नहीं है। जिला फोरम ने जो 15,000/-रू0 क्षतिपूर्ति प्रत्यर्थी/परिवादिनी को प्रदान किया है वह भी उचित नहीं है, निरस्त किये जाने योग्य है।
उपरोक्त् निष्कर्ष के आधार पर अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है और जिला फोरम का निर्णय व आदेश संशोधित करते हुये अपीलार्थी बीमा कम्पनी को आदेशित किया जाता है कि वह वाहन की बीमित धनराशि 7,50,000/-रू0 प्रत्यर्थी/परिवादिनी को प्रत्यर्थी/परिवादिनी द्वारा वाहन का मलबा व पंजीयन प्रमाण पत्र समर्पित करने की तिथि से एक माह के अन्दर अदा करें। वाहन का मलबा व पंजीयन प्रमाण पत्र समर्पित करने की तिथि से एक माह के अन्दर बीमित धनराशि का भुगतान न किये जाने पर अपीलार्थी बीमा कम्पनी प्रत्यर्थी/परिवादिनी को सम्पूर्ण बीमित धनराशि पर परिवाद प्रस्तुत करने की तिथि से अदायगी की तिथि तक 9% वार्षिक की दर से ब्याज देगी।
प्रत्यर्थी/परिवादिनी वाहन का मलबा व पंजीयन प्रमाण पत्र आज से एक माह के अन्दर अपीलार्थी बीमा कम्पनी को समर्पित करेगी।
अपीलार्थी बीमा कम्पनी प्रत्यर्थी/परिवादिनी को जिला फोरम द्वारा प्रदान किया गया वाद व्यय 5,000/-रू0 अदा करेगी।
जिला फोरम द्वारा प्रदान की गयी 15,000/-रू0 की क्षतिपूर्ति अपास्त की जाती है।
अपील में उभय पक्ष अपना-अपना वादव्यय स्वयं वहन करेंगे।
धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत अपील में जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित जिला फोरम को इस निर्णय के अनुसार निस्तारण हेतु प्रेषित की जायेगी।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान)
अध्यक्ष
सुधांशु श्रीवास्तव, आशु0
कोर्ट नं0-1