राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0 प्र0 लखनऊ
अपील संख्या 1400 सन 2009 सुरक्षित
(जिला उपभोक्ता फोरम, ,जालौन के परिवाद संख्या-211/2005 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 16-07-2009 के विरूद्ध)
1-उत्तर मध्य रेलवे झॉसी द्वारा मण्डल रेल प्रबन्धक (वाणिज्य) झॉसी।
2-महाप्रबन्धक, वाणिज्य पूर्वोत्तर रेलवे गोरखपुर।
3-यूनियन आफ इंडिया द्वारा महाप्रबन्धक, रेलवे बोर्ड रेल भवन नई दिल्ली।
....अपीलार्थीगण/विपक्षीगण
बनाम
श्रीमती उर्मिला जायसवाल पत्नी डा0 अशोक जायसवाल निवासी-एट जिला-जालौन हाल निवास-जायसवाल हास्पिटल सीहार मध्य प्रदेश।
...प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष:-
1-मा0 श्री अशोक कुमार चौधरी, पीठासीन न्यायिक सदस्य।
2-मा0 श्रीमती बाल कुमारी, सदस्य।
अधिवक्ता अपीलार्थी : श्री पी0पी0 श्रीवास्तव, विद्वान अधिवक्ता।
अधिवक्ता प्रत्यर्थी : कोई नहीं।
दिनांक:.01-01-2015
मा0 श्री अशोक कुमार चौधरी, पीठासीन न्यायिक सदस्य, द्वारा उदघोषित।
निर्णय
प्रस्तुत अपील अपीलार्थी ने विद्वान जिला मंच, जालौन द्वारा परिवाद संख्या-211/2005 श्रीमती उर्मिला बनाम उत्तर मध्य रेलवे झॉसी व अन्य में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 16-07-2009 के विरूद्ध प्रस्तुत की गई है, जिसमें यह आदेश किया गया है कि परिवादिनी का परिवाद ऑशिक रूप से स्वीकार किया जाता है। विपक्षीगण को आदेशित किया जाता है कि वह इस आदेश की दिनांक से एक माह के अन्दर 1,000-00 रूपये मानसिक कष्ट हेतु एवं 500-00 रूपये वाद व्यय के रूप में परिवादिनी को अदा करें। एक माह के अन्दर उक्त आदेश
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का अनुपालन न करने पर परिवादिनी 1000-00 रूपये पर 8 प्रतिशत साधारण सालाना व्याज भी भुगतान की तिथि तक प्राप्त करने की अधिकारिणी होगी।
संक्षेप में केस के तथ्य इस प्रकार है कि परिवादिनी ने दिनांक-22-12-2004 को एट स्टेशन से भोपाल के लिए ट्रेन नम्बर 1016 अप में एक बर्थ कोच नम्बर एस-5 पर सीट नम्बर 41 एट स्टेशन से दिनांक-27-12-2004 की यात्रा के लिए बुक करायी थी। दिनांक 27-12-2004 को जब वह उपरोक्त ट्रेन द्वारा यात्रा के लिए स्टेशन पर सम्बन्धित कोच की बर्थ पर बैठने गई तो उसे पता चला कि उक्त कोच पर गोरखपुर से ही अन्य किसी व्यक्ति को उक्त सीट आवंटित कर दी गई थी, जिसमें वह बैठा था। परिवादिनी के मामा नरेश चन्द्र गुप्ता द्वारा एट रेलवे स्टेशन पर शिकायत दर्ज करायी गई व वरिष्ठमण्डल प्रबन्धक (वाणिज्य) उत्तर मध्य रेलवे झॉसी को भी इस सम्बन्ध में रजिस्ट्री भेजी गई। परिवादिनी को बर्थ न मिलने के कारण उसे टैक्सी से भोपाल जाना पड़ा, जिसके लिए उसे 4000-00 रूपये व्यय करना पड़ा। परिवादिनी को विपक्षी रेलवे की लापरवाही के कारण आर्थिक व मानसिक कष्ट उठाना पड़ा तथा यात्रा में देरी हुई। परिवादिनी द्वारा शिकायत मण्डल रेल प्रबन्धक( वाणिज्य) गोरखपुर को आवश्यक कार्यवाही हेतु भेजा गया तथा गोरखपुर के महाप्रबन्धक, ( वाणिज्य) की ओर से 25-05-2005 को अवगत कराया गया कि उपरोक्त प्रकरण में करेन्ट काउन्टर टिकट संग्राहक गोरखपुर को दोषी पाये जाने के कारण उसके विरूद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही कर दी गई है। विपक्षीगण की लापरवाही एवं सेवा में कमी के कारण परिवादिनी का टिकट बेकार गया और उसे टैक्सी से भोपाल जाना पड़ा। परिवादिनी ने 1000-00 रूपये मानसिक कष्ट के लिए 4000-00 टैक्सी में हुए खर्च एवं 178-00 रूपये टिकट के दिलाये जाने हेतु याचना की गई है।
विपक्षीगण की ओर से लिखित कथन दाखिल किया गया तथा कहा गया कि 27-12-2004 को गाड़ी सं0-1016 अप के कोच सं0-एस0 5 बर्थ सं0-41 पर टिकट सं0-702968 एट से भोपाल तक की यात्रा के लिए आरक्षण था तथा परिवादिनी द्वारा एट से भोपाल तक की यात्रा उक्त आरक्षित सीट पर
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सुविधापूर्वक की। उनका यह भी कहना है कि एट स्टेशन से ही एस-5 कोच के टी.टी.ई. द्वारा परिवादिनी को बर्थ नं0-41 उपलब्ध करा दी गई थी। संशोधित आरक्षण चार्ट पर वादिनी के टिकट की एवं यात्रा की टिप्पणी अंकित है। यह भी कहा गया है कि गोरखपुर के टिकट संग्राहक द्वारा एस0-5 कोच में बर्थ सं0-41 पर गोरखपुर से एट तक का आरक्षण आगे वाले टिकट पर दे दिया था इस कारण सम्बन्धित स्टाफ के विरूद्ध रेलवे विभाग द्वारा अनुशासनात्मक कार्यवाही की गई थी। परिवादिनी को कोई परेशानी नहीं हुई, क्योंकि परिवादिनी का आरक्षण एट से भोपाल तक था। परिवादिनी को आरक्षित सीट एट में ही उपलब्ध करा दी गई थी। परिवादिनी ने भोपाल तक की यात्रा आराम से की थी। उनका यह भी कहना है कि यदि परिवादिनी ने अपनी यात्रा स्थगित की तो उसे एट स्टेशन पर स्वयं अपनी शिकायत लिखवानी चाहिए थी, जिससे भी यह साबित है कि परिवादिनी द्वारा यात्रा पूरी की गई। विपक्षीगण की ओर से अतिरिक्त कथन में कहा गया है कि टिकट की धनराशि की वापसी के प्रकरणों में रेल दावा अधिकरण अधिनियम 1987 की धारा-13 एवं 15 से फोरम के क्षेत्राधिकार को वाधित किया गया है। विपक्षीगण द्वारा परिवादिनी को दी जाने वाली सेवा में किसी प्रकार की त्रुटि नहीं हुई है। परिवादिनी का परिवाद तद्नुसार खारिज होने योग्य है।
अपीलार्थी की ओर से उनके विद्वान अधिवक्ता श्री पी.पी.श्रीवास्तव उपस्थित आये। प्रत्यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं है।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि विद्वान जिला मंच ने अत्याधिक ब्याज लगा दिया है, जिसका कि कोई न्यायोचित आधार नहीं है। प्रश्नगत निर्णय का अवलोकन किया गया। हम यह समीचीन पाते हैं कि अपीलार्थीगण परिवादी/प्रत्यर्थी को 1000-00 रूपये के स्थान पर मानसिक कष्ट हेतु 500-00 ( पॉच सौ रूपये) तथा वाद व्यय के रूप में 500-00 रूपये के स्थान पर 250-00 (दो पचास रूपये) इस अपील के निर्णय के दो माह के अन्दर अदा करें, अन्यथा उपरोक्त धनराशि पर 06 प्रतिशत वार्षिक व्याज की दर से ब्याज
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भी भुगतान की तिथि तक दिलाया जाना न्यायोचित होगा। तद्नुसार अपील आंशिक रूप से स्वीकार किये जाने योग्य है।
आदेश
अपीलार्थीगण की अपील आंशिक रूप से की जाती है तथा विद्वान जिला मंच जालौन के परिवाद संख्या-211/2005 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 16-07-2009 को संशोधित करते हुए यह आदेशित किया जाता है कि अपीलार्थीगण/विपक्षीगण परिवादी/प्रत्यर्थी को 1000-00 रूपये के स्थान पर मानसिक कष्ट हेतु 500-00 ( पॉच सौ रूपये) तथा वाद व्यय के रूप में 500-00 रूपये के स्थान पर 250-00 (दो पचास रूपये) इस अपील के निर्णय के दो माह के अन्दर अदा करें, अन्यथा उपरोक्त धनराशि पर 06 प्रतिशत वार्षिक व्याज की दर से ब्याज भी भुगतान की तिथि तक देय होगा।
उभय पक्ष अपना-अपना अपील व्यय स्वयं वहन करेगें।
उभयपक्ष को इस निर्णय की प्रति नियमानुसार नि:शुल्क उपलब्ध करायी जाय।
( अशोक कुमार चौधरी ) ( बाल कुमारी )
पीठासीन सदस्य सदस्य
आर0सी0वर्मा, आशु. ग्रेड-2
कोर्ट नं0-3