Uttar Pradesh

Faizabad

CC/273/2007

SAVITRI DEVI - Complainant(s)

Versus

Uppcl - Opp.Party(s)

23 May 2015

ORDER

DISTRICT CONSUMER DISPUTES REDRESSAL FORUM
Judgement of Faizabad
 
Complaint Case No. CC/273/2007
 
1. SAVITRI DEVI
Faizabad
...........Complainant(s)
Versus
1. Uppcl
FAIZABAD
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. JUSTICE MR. CHANDRA PAAL PRESIDENT
 HON'BLE MRS. MAYA DEVI SHAKYA MEMBER
 HON'BLE MR. VISHNU UPADHYAY MEMBER
 
For the Complainant:
For the Opp. Party:
ORDER

जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम फैजाबाद ।

 

उपस्थित -     (1) श्री चन्द्र पाल, अध्यक्ष
        (2) श्रीमती माया देवी शाक्य, सदस्या
(3) श्री विष्णु उपाध्याय, सदस्य

परिवाद सं0-273/2007

               
श्रीमती सावित्री देवी आयु लगभग 75 साल पत्नी श्री हनुमान प्रसाद निवासिनी मुगलपुरा परगना हवेली अवध तहसील सदर षहर व जिला फैजाबाद।       .............. परिवादिनी
बनाम
1.    अधिषाशी अभियंता विद्युत वितरण खण्ड प्रथम फैजाबाद।
2.    मध्यांचल विद्युत वितरण निगम द्वारा अध्यक्ष 14 अषोक मार्ग षक्ति भवन लखनऊ।
3.    कलेक्टर महोदय, फैजाबाद।                            ..........  विपक्षीगण
निर्णय दिनाॅंक 23.05.2015            
उद्घोषित द्वारा: श्री विष्णु उपाध्याय, सदस्य।
                        निर्णय
    परिवादिनी के परिवाद का संक्षेप इस प्रकार है कि परिवादिनी अत्यंत वृद्ध है और उसने अपने जीविकोपार्जन के लिये विपक्षी संख्या 2 से आटा चक्की हेतु विद्युत कनेक्षन संख्या 0012/089920 लिया था जिसका परिवादिनी पर कोई बकाया नहीं है और दिनांक 18-01-2005 को पी0डी0 फीस रुपये 138/- रसीद संख्या 20 व पुस्तक संख्या 011531 द्वारा जमा कर के विद्युत कनेक्षन स्थाई रुप से विच्छेदित करवा लिया था। परिवादिनी ने दिनांक 04-06-2003 को रुपये 10,000/-, 31.05.2004 को रुपये 6,000/- तथा 28-08-2004 को रुपये 16,000/- जमा किये थे। विपक्षी ने स्थाई विद्युत विच्छेदन और पी0डी0 फीस दिनांक 18.01.2005 जमा करने के साढ़े तीन वर्श बाद दिनांक 15.06.2007 को एक डिमाण्ड नोटिस रुपये 32,436/- का भेज दिया। जिसको वापस लिये जाने के लिये परिवादिनी विपक्षी संख्या 1 के पास गयी और उन्हें स्थिति से अवगत कराया तो उन्होंने परिवादिनी की बात समझ कर कहा कि अब कोई बिल नहीं भेजा जायेगा। परिवादिनी विपक्षी संख्या 1 के आष्वासन पर चुप बैठ गयी। बाद में पता तब लगा जब विपक्षी संख्या 1 ने विपक्षी संख्या 3 के माध्यम से वसूली प्रमाण पत्र भेजा और अमीन ने आ कर बताया। परिवादिनी ने अमीन को बताया कि उसके विरुद्ध विपक्षी संख्या 1 ने गलत एवं अवैध रुप से आर0सी0 जारी कर दी है। विपक्षीगण को आदेषित किया जाय कि परिवादिनी से कोई वसूली न करें। परिवादिनी का कनेक्षन स्थाई रुप से विच्छेदित करने के बाद भी विपक्षीगणों ने परिवादिनी की सिक्योरिटी मनी को भी समायोजित नहीं किया है। परिवादिनी को विपक्षीगणों के कृत्य से षारीरिक, मानसिक व आर्थिक कश्ट उठाना पड़ा है। इसलिये परिवादिनी को अपना परिवाद दाखिल करना पड़ा। परिवादिनी को विपक्षीगण से क्षतिपूर्ति रुपये 50,000/- दिलायी जाय, परिवादिनी के विरुद्ध जारी आर0सी0 रुपये 32,438/- निरस्त की जाय, परिवाद व्यय रुपये 5,000/- परिवादिनी को विपक्षीगण से दिलाया जाय।
    विपक्षीगण ने अपना उत्तर पत्र प्रस्तुत किया है तथा विपक्षीगण ने परिवादिनी द्वारा विद्युत कनेक्षन लिया जाना एवं दिनांक 18.01.2005 को स्थाई विच्छेदन हेतु पी0डी0 फीस जमा किया जाना स्वीकार किया है। परिवादिनी ने जो भी रुपया जमा किया है विपक्षीगण ने उसकी रसीद उसको जारी की है। परिवादिनी का यह कहना सरासर गलत है कि उसके विरुद्ध कोई बकाया नहीं है। परिवादिनी के विरुद्ध नियमानुसार बकाये की वसूली जारी की जा सकती है। परिवादिनी को चाहिए कि वह बकाया जमा कर के विभाग से अनापत्ति प्रमाण पत्र प्राप्त करे। परिवादिनी बकाया जमा नहीं करना चाहती है और अपना परिवाद दूशित मानसिकता के कारण दाखिल किया है। परिवादिनी किसी प्रकार का उपषमन पाने की अधिकारिणी नहीं है। दिनांक 04.10.2004 को परिवादिनी के यहां आग लग जाने के कारण मीटर केबिल आदि जल गया था और कोई सामान वहां न पाये जाने के कारण परिवादिनी का कनेक्षन काट दिया गया था। पी0डी0 का निस्तारण किया जाना स्वीकार है तथा परिवादिनी पर लाइन कटने की तिथि तक रुपये 32,436/- अंतिम बकाया था, जिसके लिये वसूली प्रमाण पत्र जारी किया गया। विपक्षी संख्या 1 ने परिवादिनी को कोई आष्वासन नहीं दिया था। परिवादिनी का परिवाद सव्यय निरस्त किये जाने योग्य है। 
    परिवादिनी के विद्वान अधिवक्ता की बहस को सुना। बहस के समय विपक्षीगण की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ। पत्रावली काफी पुरानी है। विपक्षीगण को बहस के लिये मौका दिया गया और निर्णय के पूर्व तक विपक्षीगण की ओर से किसी ने बहस नहीं की इसलिये परिवाद का निर्णय पत्रावली का भली भंाति परिषीलन करने के बाद गुण दोश के आधार पर किया। परिवादिनी ने अपने पक्ष के समर्थन में अपना षपथ पत्र, सूची पर दिनांक 14.08.2008 के विद्युत बिल की छाया प्रति, बिल दिनांक 16.05.2004 की छाया प्रति, पी0डी0 रसीद संख्या 20 पुस्तक संख्या 011531 रुपये 138/- दिनांक 18.01.2005 की छाया प्रति, दिनांक 29.08.2004 को जमा किये गये विद्युत बिल रुपये 16,000/- की रसीद की छाया प्रति, दिनांक 31.05.2004 को जमा किये गये विद्युत बिल रुपये 6,000/- की रसीद की छाया प्रति, दिनांक 04.06.2003 को जमा किये गये विद्युत बिल रुपये 10,000/- की रसीद की छाया प्रति, दिनांक 29.02.2004 को जमा किये गये विद्युत बिल रुपये 8,000/- की रसीद की छाया प्रति, दिनांक 15.06.2007 को जारी डिमाण्ड नोटिस रुपये 32,436/- की छाया प्रति दाखिल की है जो षामिल पत्रावली है। विपक्षीगण ने अपने पक्ष के समर्थन में अपना लिखित कथन, अधिषाशी अभियंता, आर0एन0 सरोज के पत्र दिनांक 21.12.2009 की छाया प्रति, विपक्षीगण के आफिस मेमोरेण्डम दिनांक 07.05.2007 की छाया प्रति, सहायक अभियंता की रिपोर्ट दिनांक 04.10.2004 की छाया प्रति तथा सर्वे रिपोर्ट दिनांक 04-10-2004 की छाया प्रति दाखिल की है, जो षामिल पत्रावली है। परिवादिनी एवं विपक्षीगणों द्वारा दाखिल प्रपत्रांे से प्रमाणित है कि परिवादिनी के परिसर में आग लग जाने के कारण मीटर केबिल व सभी सामान जल गया था। सर्वे रिपोर्ट में भी कहा गया है कि परिवादिनी के परिसर में कोई भी सामान नहीं पाया गया और सभी कुछ जल कर राख हो गया था। विद्युत अधिनियम 2003 की धारा 56 की उपधारा 2 के अनुसार यदि कोई बकाया न बताया गया हो और दो वर्श के बाद बकाया बताया जाय तो ऐसी धनराषि वसूल नहीं की जा सकेगी। परिवादिनी से पी0डी0 फीस दिनांक 18.01.2005 को करा ली गयी थी और डिमाण्ड नोटिस बिना किसी पूर्व सूचना के दिनांक 15.06.2007 को रुपये 32,436/- का भेजा गया जो 2 वर्श 4 माह 27 दिन बाद भेजा गया। उक्त नोटिस के पूर्व परिवादिनी को कोई सूचना या डिमाण्ड परिवादिनी से नहीं की गयी। इसलिये परिवादिनी को जारी विपक्षीगण का डिमाण्ड नोटिस दिनांक 15.06.2007 रुपये 32,436/- निरस्त किये जाने योग्य है। दूसरी बात यह है कि पी0डी0 फीस जमा करने के बाद विपक्षीगण वैसे भी वसूली नहीं कर सकते क्यों कि पी0डी0 फीस सारे देय जमा कराने के बाद ही जमा कराई जाती है। परिवादिनी अपना परिवाद प्रमाणित करने में सफल रही है। विपक्षीगण ने अपनी सेवा में कमी की है। परिवादिनी क्षतिपूर्ति व परिवाद व्यय पाने की अधिकारिणी है। परिवादिनी का परिवाद विपक्षीगण के विरुद्ध अंाषिक रुप से स्वीकार एवं अंाषिक रुप से खारिज किये जाने योग्य है।
आदेश
    परिवादिनी का परिवाद विपक्षीगण के विरुद्ध अंाषिक रुप से स्वीकार एवं अंाषिक रुप से खारिज किया जाता है। विपक्षीगण का डिमाण्ड नोटिस दिनांक 15.06.2007 रुपये 32,436/- निरस्त किया जाता है। विपक्षीगण को आदेषित किया जाता है कि वह परिवादिनी को रुपये 5,000/- (रुपये पांच हजार मात्र) क्षतिपूर्ति के मद में तथा रुपये 3,000/- परिवाद व्यय के मद में आदेष की दिनांक से 30 दिन के अन्दर अदा करें। विपक्षीगण यदि उक्त धनराषि निर्धारित अवधि 30 दिन में परिवादिनी को भुगतान नहीं करते हैं तो समस्त धनराषि रुपये 8,000/- पर 6 प्रतिषत साधारण वार्शिक ब्याज भी आदेष की दिनांक से तारोज वसूली की दिनांक तक अदा करेंगे। 
          (विष्णु उपाध्याय)         (माया देवी शाक्य)             (चन्द्र पाल)              
              सदस्य                  सदस्या                   अध्यक्ष      
निर्णय एवं आदेश आज दिनांक 23.05.2015 को खुले न्यायालय में हस्ताक्षरित एवं उद्घोषित किया गया।

          (विष्णु उपाध्याय)         (माया देवी शाक्य)             (चन्द्र पाल)           
              सदस्य                  सदस्या                    अध्यक्ष

 
 
[HON'BLE MR. JUSTICE MR. CHANDRA PAAL]
PRESIDENT
 
[HON'BLE MRS. MAYA DEVI SHAKYA]
MEMBER
 
[HON'BLE MR. VISHNU UPADHYAY]
MEMBER

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