जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम फैजाबाद ।
उपस्थित - (1) श्री चन्द्र पाल, अध्यक्ष
(2) श्रीमती माया देवी शाक्य, सदस्या
(3) श्री विष्णु उपाध्याय, सदस्य
परिवाद सं0-110/2013
रामतेज आयु लगभग 42 साल पुत्र श्री रामअभिलाख निवासी ग्राम बंास गंाव पोस्ट पालपुर थाना कुमारगंज तहसील मिल्कीपुर जिला फैजाबाद। ........... परिवादी
बनाम
श्रीमान षाखा प्रबन्धक बैंक आफ बड़ौदा षाखा कुमारगंज जिला फैजाबाद। ........... विपक्षी
निर्णय दिनाॅंक 10.08.2015
उद्घोशित द्वारा: श्री विश्णु उपाध्याय, सदस्य।
निर्णय
परिवादी के परिवाद का संक्षेप इस प्रकार है कि परिवादी ने विपक्षी बैंक से दिनांक 24.05.1999 को एक एफ0डी0आर0 तीन वर्श के लिये श्रीमती तिरपाला एवं रामतेज के पक्ष में बनवाया था, जिसका रुपया विपक्षी बैंक ने रामतेज के बचत खाता संख्या 13079 से रुपये 50,000/- का एफ0डी0आर0 संख्या 421268 बनवाया और परिपक्व होने पर दोनों नामित पक्षकारों में से किसी एक को एफ0डी0आर0 तुड़वाने का अधिकार था। एफ0डी0आर0 दिनांक 24.05.2002 को परिपक्व हो गयी। विपक्षी बैंक ने उक्त एफ0डी0आर0 को पुनः 36 माह के लिये दिनांक 30.05.2002 में रुपये 68,235/- को नवीनीकृत कर दिया। जब कि परिवादी ने मात्र रुपये 65,000/- का एफ0डी0आर0 बनवाने के लिये सहमति दी थी। विपक्षी बैंक ने षेश रकम रुपये 3,235/- परिवादी के बचत खाता संख्या 13079 में जमा नहीं किया। विपक्षी बैंक ने परिवादी को प्रष्नगत एफ0डी0आर0 की मूल प्रति उपलब्ध नहीं करायी। परिवादी दिनांक 16.06.2005 को विपक्षी बैंक गया और बचत खाता संख्या 13079 के नवीनीकृत बचत खाता संख्या 11150100001319 की नई पास बुक में अपने बचत खाते का इन्द्राज कराया तो पता लगा कि विपक्षी ने प्रष्नगत एफ0डी0आर0 101376 में जमा की गयी धनराषि की त्रुटि के बारे में विपक्षी बैंक के षाखा प्रबन्धक से पूछा तो उन्होंने कोई उचित जवाब नहीं दिया और कहा कि तुम लोग फालतू परेषान करते हो पास बुक में इन्द्राज सही हैं और यह कह कर कि तुम ज्यादा पढ़े लिखे नहीं हो डंाट डपट कर भगा दिया। परिवादी ने दिनांक 01.07.2011 को जनसूचना के अधिकार के तहत विपक्षी से सूचना मांगी कि ‘‘नवीनीकृत एफ0डी0आर0 दिनांक 30.05.2002 रुपये 68,235/- जो 36 माह के लिये किया गया था का नम्बर क्या है और उक्त धनराषि का परिपक्वता के बाद क्या होगा’’ तो विपक्षी बैंक ने बताया कि एफ0डी0आर0 का नम्बर 101376 है जिसकी परिपक्वता तिथि दिनांक 24.05.2005 को समाप्त हो गयी है। किन्तु परिपक्वता धनराषि के बारे में कोई उल्लेख नहीं किया। परिवादी दिनांक 16.06.2005 को अपना एफ0डी0आर0 के परिपक्व होने के बाद बैंक पहुंचा और बैंक के षाखा प्रबन्धक से एफ0डी0आर0 की धनराषि बचत खाते में अंतरित करने को कहा तो षाखा प्रबन्धक ने बताया कि उक्त एफ0डी0आर0 को अगले 12 माह के लिये नवीनीकृत कर दिया गया है। एफ0डी0आर0 की मूल प्रति मांगने पर बाद में आने को कहा। बाद में परिवादी बैंक कई बार गया तो विपक्षी बैंक ने न तो एफ0डी0आर0 दिया और न ही परिवादी की पास बुक में उसका उल्लेख किया। विपक्षी बैंक ने परिवादी के बचत खाते में भी हेरा फेरी किया है और सही तरीके से इन्द्राज नहीं किया है। इस प्रकार विपक्षी बैंक ने अपनी सेवा में कमी की है। परिवादी को विपक्षी बैंक से रुपये 50,000/- वापस दिलाया जाय, दिनांक 24.05.1999 से 24.05.2013 तक 15 प्रतिषत वार्शिक ब्याज रुपये 7,69,000/-, मानसिक व आर्थिक क्षति के लिये रुपये 50,000/-, परिवाद व्यय रुपये 20,000/- तथा पास बुक में हेरा फेरी के लिये रुपये 25,000/- दिलाया जाय।
विपक्षी बैंक को फोरम से नोटिस भेजा गया। विपक्षी बैंक के अधिवक्ता उपस्थित हुए तथा बैंक अधिवक्ता ने कई मौका प्रार्थना पत्र लिखित कथन दाखिल करने के लिये फोरम के समक्ष दिये किन्तु विपक्षी बैंक अधिवक्ता ने निर्णय के पूर्व तक अपना लिखित कथन दाखिल नहीं किया जब कि बैंक के खिलाफ परिवाद की सुनवाई एक पक्षीय रुप से किये जाने का आदेष दिनांक 30.04.2014 को किया गया था जिसे विपक्षी बैंक ने दिनांक 22.08.2014 को रिकाल कराया उसके बाद भी विपक्षी ने अभी तक अपना लिखित कथन परिवाद के निर्णय के पूर्व तक दाखिल नहीं किया है।
पत्रावली का भली भंाति परिषीलन किया। परिवादी ने अपने पक्ष के समर्थन में अपना षपथ पत्र, अपने बचत खाते की नई व पुरानी मूल पास बुक तथा पास बुक की छाया प्रतियंा, साक्ष्य मंे षपथ पत्र, जनसूचना में बैंक के उत्तर की छाया प्रति तथा एफ0डी0आर0 दिनांक 24.05.1999 तथा एफ0डी0आर0 दिनांक 24.05.2002 की छाया प्रति दाखिल की हैं, जो षामिल पत्रावली हैं। परिवादी द्वारा दाखिल एफ0डी0आर0 जो दिनांक 24.05.1999 को रुपये 50,000/- की गयी थी वह दिनांक 24.05.2002 को परिपक्व हो गयी और उसी एफ0डी0आर0 के पीछे पुनः उक्त एफ0डी0आर0 को तीन वर्श के लिये बढ़ाया गया है, जिसके ऊपर तिरपाला के अंगूठे का निषान लगा हुआ है और बैंक अधिकारी ने उसे प्रमाणित किया है। दिनांक 24.05.2002 को की गयी एफ0डी0आर0 दिनांक 24.05.2005 को परिपक्व होनी थी। किन्तु दिनांक 24.05.2002 को की गयी एफ0डी0आर0 की धनराषि जो जमा दिखाई गयी है वह रुपये 68,235/- की है। इस प्रकार परिवादी का यह कहना कि उसने एफ0डी0आर0 केवल 65,000/- जमा करने के लिये कहा था गलत है। क्यांे कि रुपये 65,000/- की एफ0डी0आर0 किये जाने का कोई आवेदन या सहमति परिवादी ने बैंक में नहीं किया है यदि किया था तो प्रमाण दाखिल करना चाहिए था। प्रष्नगत उक्त एफ0डी0आर0 रुपये 68,235/- को तीन वर्श के लिये नवीनीकृत किया गया था। परिवादी की पास बुक में दिनांक 08.04.2003 को एफ0डी0आर0 से रुपये अंतरित कर के परिवादी के बचत खाते में रुपये 75,585/- दिखाये गये हैं, जिस पर परिवादी ने अपना कोई मत व्यक्त नहीं किया है कि उक्त रुपये परिवादी के खाते में कहां से आये। परिवादी ने अपने बचत खाते से दिनंाक 08.04.2003 को रुपये 10,000/-, दिनांक 23.05.2003 को रुपये 25,000/-, दिनांक 31-05-2003 को रुपये 20,000/- तथा दिनांक 01.06.2003 को रुपये 18,000/- निकाल लिये हैं और दिनांक 01-06-2003 को परिवादी संयुक्त के खाते में रुपये 3,210/- बचे हैं। परिवादी ने अपने परिवाद में इस बात को छिपा लिया है कि उसके खाते मंे एफ0डी0आर0 का रुपया 75,585/- आ गया था जिसे उसने धीरे धीरे लगभग एक माह सात दिन में निकाल लिया है। परिवादी ने अपने परिवाद में यह नहीं बताया है कि किन कारणों से परिवादी के खाते में एफ0डी0आर0 परिपक्व होने के पूर्व एफ0डी0आर0 के रुपये 75,585/- उसके बचत खाते में आ गये और उसने उन रुपयों को लगभग एक माह सात दिन में ही निकाल लिया। परिवादी की नई पास बुक में एन्ट्री दिनांक 04.07.2008 से षुरु की गयी है और पहली एन्ट्री दिनांक 14.12.2009 को समय एक बज कर अट्ठाईस मिनट पर की गयी है, अतः परिवादी का यह कहना गलत है कि परिवादी दिनांक 16.06.2005 को बैंक गया और एन्ट्री कराने पर पता लगा कि प्रष्नगत एफ0डी0आर0 की कोई जानकारी पास बुक में नहीं है। इस प्रकार प्रमाणित होता है कि परिवादी दिनांक 16.06.2005 को बैंक गया ही नहीं था बल्कि वह दिनांक 14.12.2009 को बैंक गया था। परिवादी का यह कथन कि दिनांक 16.06.2005 को विपक्षी बैंक ने बताया कि प्रष्नगत एफ0डी0आर0 को अगले 12 माह के लिये नवीनीकृत कर दिया गया है गलत है क्यों कि उक्त दिनांक 16.06.2005 को परिवादी बैंक गया ही नहीं था। चूंकि विपक्षी बैंक ने अपना लिखित कथन दाखिल नहीं किया है इसलिये परिवादी इस बात की अवैधानिक मांग का उल्लेख अपने परिवाद में करता चला आया है कि विपक्षी बैंक ने परिवादी के एफ0डी0आर0 की धनराषि हड़प ली है। परिवादी अपने एफ0डी0आर0 का भुगतान प्राप्त कर चुका है और फोरम तथा बैंक को धोखा देेने की नीयत से अपना परिवाद दाखिल किया है। परिवादी अपना परिवाद प्रमाणित करने में असफल रहा है। परिवादी का परिवाद खारिज किये जाने योग्य है।
आदेश
परिवादी का परिवाद खारिज किया जाता है।
(विष्णु उपाध्याय) (माया देवी शाक्य) (चन्द्र पाल)
सदस्य सदस्या अध्यक्ष
निर्णय एवं आदेश आज दिनांक 10.08.2015 को खुले न्यायालय में हस्ताक्षरित एवं उद्घोषित किया गया।
(विष्णु उपाध्याय) (माया देवी शाक्य) (चन्द्र पाल)
सदस्य सदस्या अध्यक्ष