Uttar Pradesh

Faizabad

CC/142/2011

RAJENDRA SINGH - Complainant(s)

Versus

Uppcl - Opp.Party(s)

12 Oct 2015

ORDER

DISTRICT CONSUMER DISPUTES REDRESSAL FORUM
Judgement of Faizabad
 
Complaint Case No. CC/142/2011
 
1. RAJENDRA SINGH
Faizabad
...........Complainant(s)
Versus
1. Uppcl
CIVIL LINE FZD
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. JUSTICE MR. CHANDRA PAAL PRESIDENT
 HON'BLE MRS. MAYA DEVI SHAKYA MEMBER
 HON'BLE MR. VISHNU UPADHYAY MEMBER
 
For the Complainant:
For the Opp. Party:
ORDER

जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम फैजाबाद।

 

उपस्थित -     (1) श्री चन्द्र पाल, अध्यक्ष
        (2) श्रीमती माया देवी शाक्य, सदस्या
(3) श्री विष्णु उपाध्याय, सदस्य

परिवाद सं0-142/2011

               
राजेन्द्र प्रसाद जायसवाल आयु लगभग 58 साल पुत्र स्व0 श्री छोटेलाल निवासी ग्राम गद्दोपुर परगना हवेली अवध तहसील व जिला फैजाबाद।                       .............. प्रार्थी
बनाम
अधिषाशी अभियंता उ0 प्र0 पावर कार्पोरेषन लिमिटेड विद्युत वितरण खण्ड प्रथम सिविल लाइन, फैजाबाद।                                                   .......... विपक्षी
निर्णय दिनाॅंक 12.10.2015            
उद्घोशित द्वारा: श्री विश्णु उपाध्याय, सदस्य।
                        निर्णय
    परिवादी के परिवाद का संक्षेप इस प्रकार है कि परिवादी के नाम से घरेलू उपयोग के लिये विद्युत कनेक्षन संख्या 314530 तथा बुक संख्या 3422 था। परिवादी ने अंतिम भुगतान रुपये 125/- का दिनांक 20.04.2000 को रसीद संख्या 49 के द्वारा किया। उक्त दिनांक को परिवादी के ऊपर कुछ भी बकाया नहीं था। दिनांक 20.04.2000 के बाद परिवादी की तबियत खराब हो गयी इसलिये वह आगे के विद्युत बिल जमा नहीं कर सका। दिनांक 06.06.2004 को 14 बजे के करीब विपक्षी केे कर्मचारी आये और परिवादी का विद्युत कनेक्षन स्थीयी रुप से काट कर केबिल आदि उतार कर ले गये, तब से परिवादी के यहां विद्युत कनेक्षन नहीं है। कनेक्षन काटे जाने के समय परिवादी को विद्युत विच्छेदन का एक प्रमाण पत्र विपक्षी ने उपलब्ध कराया। दिनांक 20.04.2000 से दिनांक 06.06.2004 का विद्युत बकाया परिवादी जमा करने को तैयार है। परिवादी गत कई वर्शों से लगातार विपक्षी को प्रार्थना पत्र देता चला आ रहा है मगर विपक्षी ने परिवादी की एक नहीं सुनी। उल्टे परिवादी के विरुद्ध रुपये 27,306/- $ 300/- की आर0सी0 दिनांक 09.07.2010 को काट दी, जो गैर कानूनी व वापस किये जाने योग्य है। विपक्षी द्वारा आर0सी0 जारी करने के कारण तहसील अमीन परिवादी को परेषान कर रहा है और वसूली प्रमाण पत्र में अंकित धनराषि जमा न करने पर जेल में बन्द कराने की धमकी दे रहा है। परिवादी ने तब एक वैधानिक नोटिस अपने अधिवक्ता के द्वारा दिनांक 31.07.2010 को विपक्षी को दी। मगर विपक्षी ने उसका कोई उत्तर नहीं दिया। इसलिये परिवादी को अपना परिवाद दाखिल करना पड़ा। परिवादी के विरुद्ध जारी वसूली प्रमाण पत्र वापस कराया जाय, दिनांक 20.04.2000 से दिनांक 06.06.2004 तक का बकाया परिवादी से जमा कराया जाय, क्षतिपूर्ति परिवादी को विपक्षी से रुपये 10,000/- दिलायी जाय।
    विपक्षी ने अपना उत्तर पत्र प्रस्तुत किया है तथा परिवादी के परिवाद के तथ्यों से इन्कार किया है। विपक्षी को यह स्वीकार है कि परिवादी ने दिनांक 20.04.2000 को रुपये 125/- जमा किया था, किन्तु यह स्वीकार नहीं है कि उक्त तिथि तक कोई बकाया नहीं था। विद्युत का बिल एक माह के पूर्व तक का ही जारी करने की प्रथा है। परिवादी द्वारा विद्युत का निरन्तर उपभोग किया जाता रहा है मगर अपने विद्युत देयों का भुगतान परिवादी ने नहीं किया है। परिवादी के कनेक्षन का स्थाई विद्युत विच्छेदन नहीं हुआ है, यदि परिवादी की बात सही है तो परिवादी को अपना सबूत पेष करना चाहिए। माननीय उच्च न्यायालय नेे यह व्यवस्था दी है कि जब तक स्थाई विच्छेदन न हो जाय तब तक उपभोक्ता देयों के लिये उत्तरदायी है। परिवादी जब तक वसूली अधिपत्र में दी गयी धनराषि जमा नहीं कर देता तब तक वसूली अधिपत्र वापस नहीं मंगाया जा सकता। परिवादी ने कलेक्टर महोदय को पक्षकार नहीं बनाया है क्यों कि वसूली उन्हीं के द्वारा की जाती है। वसूली अधिपत्र वापस मंगाये जाने का कोई ठोस आधार नहीं है। परिवादी ने कोई धनराषि जमा नहीं की है। विद्युत विभाग का एक अलग कोड है जिसके अनुसार उसे कार्यवाही करनी होती है। परिवादी ने वाद का कार्य कारण वर्श 2004 मंे बताया है और परिवाद 7 वर्शों बाद दाखिल किया है जो समय सीमा से बाहर है। परिवादी के विरुद्ध रुपये 27,306/- की आर0सी0 जारी की गयी है जो बिल्कुल सही है। परिवादी का परिवाद मय विषेश हर्जे खर्चे के खारिज किये जाने योग्य है।
    पत्रावली का भली भंाति परिषीलन किया। परिवादी एवं विपक्षी द्वारा दाखिल प्रपत्रों व साक्ष्यों का अवलोकन किया। परिवादी का विद्युत कनेक्षन बकाया होने के आधार पर दिनांक 06.06.2004 को काटा गया, जब कि परिवादी ने अंतिम भुगतान रुपये 125/- का दिनांक 20.04.2000 में किया था। इस प्रकार परिवादी 4 वर्श तक विद्युत का उपभोग करता रहा और उस पर 4 वर्श का विद्युत मूल्य बकाया हो गया। परिवादी ने अपना परिवाद जून 2004 के बाद जून 2011 में दाखिल किया है जो कि काल बाधित है। परिवादी ने अपने परिवाद में कहा है कि विगत कई वर्शों से वह लगातार विपक्षी को प्रार्थना पत्र देता चला आ रहा है मगर विपक्षी ने परिवादी की एक नहीं सुनी, परिवादी ने अपने किसी षिकायती प्रार्थना पत्र की कोई भी प्रति परिवाद के साथ दाखिल नहीं की है, अतः परिवादी का यह कथन गलत प्रमाणित होता है। परिवादी ने चार वर्श तक विद्युत मूल्य जमा नहीं किया जिसे वह देने के लिये उत्तरदायी है। परिवादी ने विपक्षी को दिनांक 31.07.2010 को वैधानिक नोटिस भेजा है जो परिवादी के वाद कारण की स्थिति को नहीं बदल सकता। परिवादी को वाद कारण वर्श 2004 में ही उत्पन्न हो गया था, नोटिस देने से वाद कारण का समय आगे नहीं बढाया जा सकता। विपक्षी ने परिवादी को जो आर0सी0 भेजी है उसे गतल प्रमाणित करने का कोई ठोस आधार परिवादी ने नहीं दाखिल किया है। परिवादी अपना परिवाद प्रमाणित करने में असफल रहा है। विपक्षी ने अपनी सेवा में कोई कमी नहीं की है। परिवादी का परिवाद खारिज किये जाने योग्य है।
आदेश
    परिवादी का परिवाद खारिज किया जाता है।    
          (विष्णु उपाध्याय)         (माया देवी शाक्य)             (चन्द्र पाल)              
              सदस्य                  सदस्या                   अध्यक्ष      
निर्णय एवं आदेश आज दिनांक 12.10.2015 को खुले न्यायालय में हस्ताक्षरित एवं उद्घोषित किया गया।

          (विष्णु उपाध्याय)         (माया देवी शाक्य)             (चन्द्र पाल)           
              सदस्य                   सदस्या                    अध्यक्ष

 

 
 
[HON'BLE MR. JUSTICE MR. CHANDRA PAAL]
PRESIDENT
 
[HON'BLE MRS. MAYA DEVI SHAKYA]
MEMBER
 
[HON'BLE MR. VISHNU UPADHYAY]
MEMBER

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