न्यायालय जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, द्वितीय लखनऊ
परिवाद संख्या-122/2008
श्री ओम प्रकाश निगम - परिवादी
बनाम
सहायक अभियंता फतेहगंज, पावर हाउस उ0प्र0 पावर
कारपोरशन लि0 एवं छः अन्य - विपक्षीगण
समक्ष
श्री संजीव शिरोमणि, अध्यक्ष
श्री गोवर्द्धन यादव, सदस्य
श्रीमती गीता यादव, सदस्य
द्वारा श्री संजीव शिरोमणि, अध्यक्ष
निर्णय
परिवाद अन्तर्गत धारा-12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम-1986
परिवाद पत्र के अनुसार, परिवादी का कथन, संक्षेप में, यह है कि परिवादी मेसर्स निगम गृह उद्योग स्थित बेगरिया, दुबग्गा, लखनऊ का प्रोपराइटर है , जहाॅ पर चक्की द्वारा पिसाई का कार्य किया जाता है एवं उसी परिसर में परिवादी रहता है। परिवादी ने उक्त कार्य हेतु दि0 31.1.2005 को 7.5 हार्स पावर के विद्युत संयोजन के लिये विपक्षी सं0 1 के यहाॅ प्रार्थना पत्र दिया । साढ़े चार माह बाद दि0 16.5.05 को विद्युत संयोजन के लिये विपक्षी सं0 3 के यहाॅ रू0 250/-व रू0 12,677/-जमा किया । दि0 22.7.05 को चायना मेड इलेक्ट्रानिक विद्युत मीटर परिवादी के परिसर में लगाया गया और दि0 1.8.05 को विपक्षीगण द्वारा उक्त विद्युत संयोजन चालू किया गया, जिसकाविद्युत संयोजन सं0 076494 है। दि0 13.8.05 को परिवादी के क्षेत्र में लगाया गया ट्रांसफारमर जल गया। शिकायत होने पर दि0 22.8.05 को दूसरा ट्रांसफारमर लगाया गया, जिस कारण परिवादी दस दिन तक चक्की नहीं चला सका, जिससे उसे मानसिक व आर्थिक हानि हुयी। दि0 25.8.05 को विद्युत न आने की शिकायत परिवादी ने विपक्षी सं0 1 से किया, जिसका निवारण दि0 28.8.05 को किया गया, इस कारण परिवादी का कारोबार चार दिन नहीं चल सका। दि0 13.9.05 को ट्रांसफारमर जलने के कारण विद्युत आपूर्ति में बाधा उत्पन्न हुयी जो दि0 28.9.05 को ठीक की गयी । इस कारण परिवादी की चक्की 15 दिन बंद रही । दि0 15.10.05 से विद्युत आपूर्ति विभिन्न कारणों से बाधित रही, जिसके लिये परिवादी ने अपने अधिवक्ता के माध्यम से दि024.10.05 को विपक्षीगण को नोटिस भेजी तब काफी विलंब से दि0 27.10.05 को ट्रांसफारमर बदलकर ठीक किया गया जिसकी वजह से परिवादी को 13 दिन तक कारोबार बंद रखना पड़ा। विपक्षीगण बिना कोई कारण बताये परिवादी के यहाॅ लगे तार को 1 मई 2006 को काटकर ले गये , जिससे उसके यहाॅ विद्युत आपूर्ति में बाधा उत्पन्न हो गयी जो काफी प्रयास के बाद 12 जून 2006 के द्वितीय सप्ताह में तार जोड़कर विपक्षीगण द्वारा विद्युत आपूर्ति संचालित की गयी। इस तरह से एक माह बारह दिन तक विद्युत आपूर्ति बाधित रही। विद्युत आपूर्ति प्रायः तार टूटने , लोड अधिक होने,एक फेज में करेन्ट न होने व ट्रांसफारमर जलने व अन्य कारणों से बराबर बाधित होती रही। ट्रांसफारमर में एक फ्रेज बुरी तरह खराब हो गया, जिसकी शिकायत परिवादी ने विपक्षी से कई बार किया । काफी प्रयास के उपरान्त दूसरा छोटा ट्रांसफारमर काफी विलंब से लगभग दो माह बाद दि0 31.10.06 को लगाया गया, जबकि बड़ा ट्रांसफारमर लगाया जाना था, जिस कारण विद्युत आपूर्ति प्रतिदिन बाधित होती रही। विपक्षीगण द्वारा परिवादी को प्रथम बिल चार माह का दि0 22.7.05 से दि0 31.11.05 का बिल, बिना रीडिंग लिये, रीडिंग एन0 आर0 करके मनमाने ढंग से निर्धारित यूनिट 4640 का बिल रू0 20016/-का भेजा, परिवादी ने इसकी शिकायत किया । इसी तरह से परिवादी को पुनः उपयोग की अवधि दि0 31.3.06 से दि0 30.4.06 का बिल बिना वास्तविक रीडिंग लिये रीडिंग एन0 आर0 करके मनमाने तरीके से निर्धारित यूनिट 1160 का बिल , जिसमें अवशेष जोड़कर कुल धनराशि रू0 37348/-का भेजा, जिसे लेकर परिवादी विपक्षीगण से मिला तो वहाॅ के अधिकारी ने अपने कर्मचारी द्वारा परिवादी के परिसर में भेजकर मीटर चेकिंग करायी, रीडिंग मॅगवाई, जो कुल 1384 यूनिट थी फिर भी विपक्षी ने रीडिंग के अनुसार बिल नहीं बनाया । दि0 13.2.07 को पुनः विपक्षीगण द्वारा लगाया गया ट्रांसफारमर खराब हो गया , जिसे काफी विलंब से 17 दिन बाद दि0 1.3.07 को बदलकर दूसरा लगाया गया। दि0 2.3.07 को एक फ्रेज से विद्युत आपूर्ति बंद हो गयी, जिसे शिकायत करने के बाद भी ठीक नहीं किया गया बल्कि 17 दिन बाद दि0 18.3.07 को परिवादी के यहाॅ लगे विद्युत संयोजन को भी विपक्षीगण ने बिना किसी कारण के काट दिया। विद्युत संयोजन जुड़वाने के लिये बार-बार परिवादी को विपक्षीगण से संपर्क करना पड़ा।विपक्षीगण के कर्मियों के कहने पर दि0 7.6.07 को विपक्षी सं0 5 के यहाॅ रू0 15000/-जमा किया व रू0 300/-रीसंयोजन के चार्जेज हेतु जमा किये फिर भी विपक्षीगण ने विद्युत आपर्ति नहीं किया बल्कि विपक्षीगण के कर्मी आकर तार इत्यादि भी काट कर ले गये , जिससे परिवादी को काफी क्षति हुये, जिससे क्षुब्ध होकर परिवादी को वर्तमान परिवाद इस जिला मंच में संस्थित करने की आवश्यकता पड़ी, जिसके माध्यम से उसने विपक्षीगण से परिवादी के विद्युत संयोजन को अविलम्ब जोड़े जाने अथवा जब तक संयोजन न जोड़े तब तक रू0 300/-प्रतिदिन की दर से हर्जाना विपक्षीगण से दिलाये जाने, परिवादी को विपक्षीगण से 177 दिन का रू0 300/-प्रतिदिन की दर से क्षतिपूर्ति रू0 52100/-दिलाये जाने, परिवादी द्वारा अपने लेबर को बिना कार्य किये 399 दिन का रू0 80/-प्रतिदिन के दर से भुगतान किये गये धन रू0 31920/-दिलाये जाने, तथा मानसिक एवं शारीरिक कष्ट हेतु रू0 50,000/-एवं वास्तविक उपयोग की गयी विद्युत यूनिट 4064 के आधार पर बिजली का बिल बनाकर परिवादी को देने, न कि एन0आर0 या एन0ए0 , न्यूनतम चार्ज या निर्धारित यूनिट के आधार पर लें चूॅकि विपक्षीगण ने कभी भी वास्तविक उपयोग विद्युत यूनिट का बिल बनाकर नहीं दिया। इस कारण वे किसी भी सरचार्ज , ब्याज को प्राप्त करने के अधिकारी नहीं है। फिक्स चार्ज 7.5 हार्स पावर पर 60/- प्रतिहार्स पावर की दर से रू0 450/-प्रतिमाह विपक्षीगण चार्ज का आदेश दिया जाय, परिवादी को दि0 1.8.05 से दि0 18.3.07 को जिस दिन विद्युत संयोजन अंतिम रुप से विच्छेदित कर दिया गया उसके बाद का किसी प्रकार का कोई भी भुगतान विपक्षीगण परिवादी से पाने का हकदार नहीं है ।विपक्षीगण ने प्रतिवाद पत्र में कहा है कि परिवादी ने गलत तथ्यों पर वर्तमान परिवाद संस्थित कर दिया है।विपक्षीगण ने प्रतिवाद पत्र में कहा है कि कभी-कभी विद्युत प्रणाली में खराबी आ जाने के कारण या कोई अन्य कारण से बिजली का चला जाना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है जबकि बिजली विभाग उपभोक्ता को मीटर रीडिंग के अनुसार ही बिल भेजता है। परिवादी द्वारा संयोजन लेने के बाद 10/05 तक कोई भी विद्युत बिल का भुगतान नहीं किया गया है। परिवादी को जो बिल 11/5 का दिया गया था उसका भी भुगतान नहीं किया गया है। उपभोक्ता को स्वयं विद्युत रीडिंग लाकर बिल बनवाने की व्यवस्था प्रारम्भ है परंतु परिवादी द्वारा विद्युत रीडिंग लाकर बिल बनवाने की व्यवस्था में भी अपना विद्युत बिल नहीं बनवाया गया। विपक्षी द्वारा परिवादी को दि0 6/06 को रीडिंग के अनुसार बिल दिया गया उसका भी भुगतान परिवादी द्वारा नहीं किया गया। परिवादी का विद्युत संयोजन व्यवसायिक होेने के कारण प्रस्तुत परिवाद श्रवण करने का क्षेत्राधिकार मंच को नहीं है। परिवादी ने भ्रामक तथ्यों के आधार पर परिवाद संस्थित कर दिया है, इसलिये परिवादी किसी भी प्रकार का अनुतोष पाने का अधिकारी नहीं है।परिवादी ने विपक्षीगण के प्रतिवाद पत्र के कथनों का खंडन करते हुये जवाबुलजवाब दाखिल किया है।
परिवादी ने परिवाद पत्र के समर्थन में अपना शपथपत्र दाखिल किया है एवं परिवाद पत्र के साथ अभिलेखीय साक्ष्यों की छायाप्रतियाॅ दाखिल किया है।
विपक्षी ने प्रतिवाद पत्र के समर्थन में राम प्रकाश केन का शपथपत्र दाखिल किया है।
मंच ने पक्षकारों के विद्वान अधिवक्तागण को श्रवण किया एवं पत्रावली का सम्यक् अवलोकन किया।
परिवादी की ओर से यह कहा गया है कि विपक्षी द्वारा नियमित रुप से विद्युत की सप्लाई नहीं दी जाती थी, जिस कारण उसके जीविका के साधन का स्त्रोत समाप्त हो गया है और विपक्षीगण ने परिवादी के विद्युत संयोजन को विच्छेदित कर दिया है, इससे उसके जीविका पर प्रभाव पड़ रहा है। परिवाद पत्र के माध्यम से उसने विपक्षीगण से यह अनुतोष चाहा है कि उसका विद्युत संयोजन जोड़ दिया जाय, 177 दिन का हर्जा दिलाया जाय, जितने दिन उसकी चक्की नहीं चल सकी उसके लिये रू0 80/-प्रतिदिन के हिसाब से दिलायी जाय, रू0 50,000/- मानसिक कष्ट , 4064 यूनिट का विद्युत बिल बनाकर दिया जाय तथा दि0 1.8.05 से दि0 18.3.07 तक की विद्युत धनराशि उससे न ली जाय।
मंच के द्वारा यह तय किया जाना है कि प्रस्तुत परिवाद इस मंच द्वारा श्रवण किये जाने योग्य है या नहीं क्योंकि विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता ने यह कहा है कि परिवादी ने अपने घर में पिसाई के लिये 7.5 हार्स पावर का विद्युत संयोजन लिया हुआ है। पिसाई से संबंधित प्रकरण वाणिज्यिक प्रयोग में आता है , इसलिये धारा 2 (1) डी (पप) के परन्तुक से बाधित है। इस संदर्भ में विपक्षी की ओर से नजीर प्प् ;2011द्ध ब्च्श्र 18 ;छब्द्ध प्ेीूंत ैपदही अध्े क्ंोीपद भ्ंतलंदं टपकलनज च्तंेंतंद छपहंउ स्जकण्ए के मामलें में माननीय राष्ट्रीय आयोग ने आटा चक्की को वाणिज्यिक प्रयोग माना है परन्तु इसनजीर में यह कहा गया है कि यदि परिवादी ने अपने परिवाद पत्र में यह नहीं लिखा है कि आटा चक्की उसके जीविका का एकमात्र साधन है तो आटा चक्की वाणिज्यिक प्रयोग के लिये मानी जायेगी। मौजूदा प्रकरण में ऐसा नहीं है। परिवादी ने अपने परिवाद पत्र के प्रस्तर 15 में यह कहा है कि परिवादी के पास आटा चक्की ही एकमात्र जीविका का साधन है। इसके अतिरिक्त उसकी आय का कोई स्त्रोत नहीं है। ऐसी स्थिति में विपक्षी के द्वारा दाखिल दूसरी नजीर प्ट ;2011द्ध ब्च्श्र 333;छब्द्ध ैंदरंल ।हतव प्दकनेजतपमे स्जकण् अध्े न्ीइअद स्जकण्ए - ।दतण् के प्रकरण में माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा यह व्यवस्था दी गयी है कि यदि कोई विद्युत संयोजन चनतमसल वाणिज्यिक प्रयोग के लिये लिया गया है तो परिवादी को उपभोक्ता नहीं माना जायेगा। यह नजीर मौजूदा प्रकरण के तथ्य एवं परिस्थतियों से भिन्न है वह इसलिये कि परिवादी आटा चक्की से पिसाई का काम करके अपने तथा अपने परिवार का भरण पोषण करता है। ैंदरंल ।हतव प्दकनेजतपमे स्जकण् अध्े न्ीइअद स्जकण्ए - ।दतण् के प्रकरण में परिवादी मुख्य रुप से कार इन्डस्ट्रीज चलाता है अतः ऐसा व्यक्ति उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अन्र्तगत उपभोक्ता नहीं माना जायेगा।
उपरोक्त विवेचना के आधार पर मंच की यह राय है कि प्रस्तुत परिवाद इस मंच में श्रवण करने योग्य है क्योंकि प्ेीूंत ैपदही अध्े क्ंोीपद भ्ंतलंदं टपकलनज च्तंेंतंद छपहंउ स्जकण्ए के मामलें में विद्युत चोरी का मामला था, इसलिये माननीय राष्ट्रीय आयोग ने जिला मंच को सुनवाई करने का क्षेत्राधिकार प्राप्त नहीं था, व्यवस्था दी है।
पक्षकारों के मध्य यह स्वीकृत तथ्य है कि परिवादी विपक्षीगण का उपभोक्ता है। विपक्षीगण ने यह भी स्वीकार किया है कि परिवादी के यहाॅ लगे विद्युत संयोजन को काटा गया है। विपक्षीगण के द्वारा बिना रीडिंग के एन0आर0 या एन0ए0 के निर्धारित यूनिट के तीन बिल शपथपत्र के साथ संलग्न किये गये है जो संलग्नक सं0 4, 5 व 15 है । विपक्षीगण ने अपने तर्क में यह कहा है कि परिवादी का यह दायित्व था कि वह स्वयम् रीडिंग लेकर आता और रीडिंग के अनुसार बिल बनवाता और उस बिल के अनुसार विद्युत बिल जमा करता लेकिन उसने ऐसा नहीं किया।
परिवादी ने अपने परिवाद पत्र में यह कहा है कि वह कई बार विपक्षीगण के पास बिल बनवाने हेतु गया था लेकिन विपक्षी ने कभी भी उसे बिल ठीक करके नहीं दिया, जिस कारण उसका बिल जमा नहीं हो सका । परिवादी जब भी मीटर रीडिंग लेकर के गया तो विपक्षी द्वारा उससे यह कहा गया कि जब मीटर रीडर आपके यहाॅ जायेगा तो मीटर की रीडिंग होगी और उसी रीडिंग के अनुसार बिल बनेगा। मीटर रीडर नहीं आया और परिवादीगण को एन0आर0 या एन0ए0 के बिल मिलते रहे है। परिवादी के परिसर में विद्युत संयोजन दि0 1.8.05 से दि0 18.3.07 तक रहा है। दि0 18.3.07 को विपक्षीगण ने विद्युत संयोजन समाप्त कर दिया। परिवादी के द्वारा विद्युत विच्छेदन की तिथि तक 4064 यूनिट का विद्युत उपभोग किया गया है। परिवादी 4064 यूनिट का बिल जमा करने को तैयार है।
परिवादी के तर्कानुसार जो अवधि विद्युत संयोजन की बतायी गयी है वह तिथि 1.8.05 से आरम्भ होकर दि0 18.3.07 तक है अर्थात 593 दिन विद्युत संयोजन रहा, जिसमें से 177
दिन विद्युत आपूर्ति विधिक रुप से बाधित रही। परिवादी व विपक्षीगण के मध्य मुख्य विवाद विद्युत बिलों का ठीक न होना है । विपक्षीगण के द्वारा मीटर के अनुसार रीडिंग न लेके एन0आर0 या एन0ए0 के रुप में विद्युत बिल दिया गया है। वह किस प्रकार से दिया गया है ? इसका कोई स्पष्ट कारण विपक्षी की ओेर से नहीं दिया गया है। परिवादी ने शपथपत्र के साथ संलग्न नोटिस दि0 12.12.07 तथा ए0डी0 क्रमशः संलग्नक सं0 12 व 14 दाखिल किया है। परिवादी ने विपक्षीगण के द्वारा संचालित ओ0टी0एस0 योजना के अन्र्तगत भी प्रार्थना पत्र दिया था और उसके द्वारा रू0 1000/-जमा भी किया गया था। परिवादी के बार-बार अनुरोध करने के बाद भी उसका विद्युत बिल ठीक नहीं किया गया और मनमाने ढंग से विद्युत बिल भेजा गया है। परिवादी को विपक्षी द्वारा अनावश्यक रुप से परेशान किया गया है।
उपरोक्त विवेचना के आधार पर मंच की यह राय है कि विपक्षीगण ने परिवादी को अकारण परेशान किया है और मनमाने ढंग से विद्युत बिल दिये है, जिससे परिवादी को निश्चित रुप से अकारण मानसिक व शारीरिक कष्ट हुआ है, फलस्वरुप परिवादी का परिवाद आंशिक रुप से स्वीकार किये जाने योग्य पाया जाता है।
आदेश
परिवादी का परिवाद आंशिक रुप से स्वीकार किया जाता है। विपक्षीगण को आदेशित किया जाता है कि वह इस निर्णय की तिथि सेे छः सप्ताह के अंदर परिवादी से यथोचित विद्युत शुल्क लेकर उसका विद्युत संयोजन जोड़ दें। परिवादी के द्वारा उपभोग किये गये 4064 यूनिट का बिल बनाकर विपक्षी परिवादी
से उसकी धनराशि वसूल करें। विद्युत विच्छेदन करने की तिथि से विपक्षीगण परिवादी से कोई शुल्क लेने के अधिकारी नहीं है। विपक्षीगण के द्वारा दिये गये तमाम बिलों को निरस्त किया जाता है । इसके अतिरिक्त विपक्षी परिवादी को मानसिक क्लेश हेतु रू010,000/-(दस हजार) तथा रू05000/-(पाॅच हजार) वाद व्यय अदा करगें, यदि विपक्षी उक्त निर्धारित अवधि के अंदर परिवादी को यह धनराशि अदा नहीं करते है तो विपक्षी को , समस्त धनराशि पर उक्त तिथि से ता अदायेगी तक 12 (बारह) प्रतिशत वार्षिक ब्याज की दर के साथ अदा करना पड़ेगा।
(गीता यादव) (गोवर्द्धन यादव) (संजीव शिरोमणि)
सदस्य सदस्य अध्यक्ष
दिनांक 09अप्रैल, 2015